Thursday, June 23, 2022

उद्धव ठाकरे के सामने मुश्किल चुनौती


ताजा समाचार है कि गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ 41 विधायक आ गए हैं। इतना ही नहीं पार्टी के 18 में से 14 सांसद बागियों के साथ हैं। शिंदे ने अभी तक अपने अगले कदम की घोषणा नहीं की है। शिवसेना के इतिहास के सबसे बड़े घमासान में एक तरफ़ जहां महाविकास अघाड़ी के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लग गया है, वहीं दूसरी ओर शिवसेना के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं। बीबीसी हिंदी में विनीत खरे की रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कैसे हो गया कि मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की नाक के नीचे मंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बड़ी संख्या में विधायकों ने विद्रोह कर दिया और उन्हें इसकी ख़बर ही नहीं लगी? वह भी तब जब मुंबई में जानकार बताते हैं कि राज्य में ये बात आम थी कि एकनाथ शिंदे नाख़ुश चल रहे हैं। बीबीसी मराठी के आशीष दीक्षित की रिपोर्ट के अनुसार शिवसेना के इस संकट के पीछे भारतीय जनता पार्टी का हाथ है।

अस्तित्व का सवाल

बीबीसी में दिलनवाज़ पाशा की रिपोर्ट के अनुसार अब उद्धव ठाकरे के सामने सिर्फ़ सरकार ही नहीं अपनी पार्टी बचाने की भी चुनौती है क्योंकि बाग़ी एकनाथ शिंदे ने शिव सेना पर ही दावा ठोक दिया है। महाराष्ट्र के मौजूदा सियासी घमासान का एक नतीजा ये भी हो सकता है कि एकनाथ शिंदे बाग़ी शिव सेना विधायकों के साथ बीजेपी से हाथ मिले लें और राज्य में सत्ता बदल जाए। इसी के साथ उद्धव ठाकरे के लगभग ढाई साल के कार्यकाल का भी अंत हो जाएगा।

विश्लेषक मानते हैं कि पिछले ढाई साल में उद्धव ठाकरे ने कोविड के ख़िलाफ़ तो जमकर काम किया लेकिन इसके अलावा वे कुछ और उल्लेखनीय नहीं कर पाए। कोविड महामारी के दौरान उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के रूप में सोशल मीडिया पर सुपर एक्टिव थे और जनता से सीधा संवाद कर रहे थे। महामारी के दौरान हुए एक सर्वे में उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ पाँच मुख्यमंत्रियों में शामिल किया गया था।

अदृश्य नेतृत्व

उद्धव ठाकरे ने अपने आप को घर तक ही सीमित रखा और वे बहुत कम बाहर निकले। उद्धव दिल के मरीज़ हैं और 2012 में सर्जरी के बाद उन्हें 8 स्टेंट भी लग चुके हैं। नवंबर 2021 में उद्धव अस्पताल में भरती हुए थे और उनकी रीढ़ की सर्जरी की गई थी। उद्धव ठाकरे ने अधिकतर कैबिनेट बैठकें वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए ही कीं। वे बहुत कम मंत्रालय गए। सरकारी आवास वर्षा, जहाँ से सरकार चलती है, वहाँ भी वे कम ही रहे और अपने निजी बंगले में ही अधिक रहे। उन्होंने स्वास्थ्य की वजह से अपने आप को सीमित रखा। हालांकि महाराष्ट्र में ही शरद पवार जैसे बुज़ुर्ग नेता हैं जो बहुत सक्रिय रहते हैं और आमतौर पर दौरे करते रहते हैं।

संख्या की जाँच होगी

महाराष्‍ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि ज‍िरवाल ने एक न्यूज़ चैनल से कहा क‍ि जो मुझे पत्र मिला है, उसमें 34 का नाम है। कभी कम बोलते हैं, कभी ज्यादा बोलते हैं। जो उन्होंने लिखा है उसकी जांच करने की जरूरत पड़ेगी। एक दो दिन में फैसला हो जाएगा। लिस्ट में कुछ हस्ताक्षर पर संशय है। कानून में जैसा होगा वैसी मैं जांच करूंगा। उन्होंने कहा क‍ि जांच करने के लिए विधायकों को सामने बुलाना पड़ेगा। अभी तक कोई कम्युनिकेशन नहीं हुआ है। देखूंगा अभी पढ़ रहा हूं क्या-क्या है, उसके बाद निर्णय लूंगा। दूसरी तरफ पार्टी के नेता संजय राउत ने दावा किया है कि शिंदे के पाले में गए 40 में से कम से कम आधे विधायक वापस आने के लिए संपर्क में हैं।

लिस्ट का इंतजार

उधर एबीपी न्यूज के अनुसार बीजेपी फिलहाल एकनाथ शिंदे की तरफ से जारी होने वाली उस लिस्ट का इंतजार कर रही है जिसके आधार पर आधिकारिक तौर पर यह पता चल सके कि एकनाथ शिंदे के साथ में कुल कितने विधायकों का समर्थन मौजूद है और इन विधायकों में कितने शिवसेना के विधायक हैं। सूत्रों के मुताबिक एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि इस वक्त उनके साथ 37 से ज्यादा शिवसेना के विधायक मौजूद है और ऐसे में अब उनके खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती।

 

 

Wednesday, June 22, 2022

वात्याचक्र में घिरी शिवसेना


बुधवार की रात एकनाथ शिंदे की प्रेस कांफ्रेंस टलती चली गई। यह भी पता नहीं लगा कि उनकी बैठक में क्या तय हुआ। अब आज दिन में कुछ बातें साफ होंगी। गुवाहाटी में 34 बागी विधायक मौजूद हैं। इसका इतना मतलब है कि शिवसेना विधायक दल में उद्धव ठाकरे अल्पमत में हैं। ऐसा कैसे सम्भव है? क्या यह सिर्फ शिंदे और बीजेपी का खेल है? कल रात शरद पवार ने कहीं कहा कि राज्य की इंटेलिजेंस कैसी है कि विधायकों के भागने की जानकारी तक नहीं हो पाई। दिन के अपने टीवी प्रसारण में उद्धव ठाकरे ने कहा कि मैं इस्तीफा देने को तैयार हूँ। रात में खबर आई कि शरद पवार ने उनसे कहा कि इस्तीफा देने की जरूरत है। शायद वे विधानसभा में शक्ति परीक्षण के लिए तैयार हैं। उधर ठाकरे में सरकारी भवन वर्षा छोड़कर निजी भवन मातोश्री में सामान पहुँचा दिया है। पर वे एमवीए के साथ हैं। और यह भी स्पष्ट है कि वे काफी हद तक शरद पवार के प्रभाव में हैं। 

शिवसेना के वर्तमान उद्वेलन के पीछे चार कारण नजर आते हैं। एक, हिन्दुत्व और विचारधारा के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से अलगाव और एनसीपी, कांग्रेस से दोस्ती। दो, ठाकरे परिवार का वर्चस्व। 2019 में जब सरकार बन रही थी, तब उद्धव ठाकरे ने कोशिश की थी कि उनके बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए। तब शरद पवार ने उन्हें समझाया था।

तीसरा कारण है बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) का आसन्न चुनाव, जिसमें शिवसेना के अंतर्विरोध सामने आएंगे। इन तीन कारणों की प्रकृति कमोबेश एक जैसी है। इनके अलावा जिस कारण का जिक्र एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे भी कर रहे हैं, वह है बीजेपी का ऑपरेशन कमल। यानी कि बीजेपी ने इस उद्वेलन को हवा दी है। कुछ और कारण भी हैं, पर इन चार वजहों में से किसी एक को केंद्र में रखकर भी बात करने के बजाय सभी कारणों पर ध्यान देना चाहिए।

क्रॉसवोटिंग

हाल में महाराष्ट्र के अंतर्विरोध हाल में हुए राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावी नतीजों में व्यक्त हो गए थे। ये अंतर्विरोध केवल शिवसेना से जुड़े हुए ही नहीं हैं। इनके पीछे एनसीपी और कांग्रेस के भीतर चल रही उमड़-घुमड़ भी जिम्मेदार है। क्रॉसवोटिंग केवल शिवसेना में नहीं हुई थी। विधान परिषद की कुल 30 में से 10 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने पांच उम्मीदवार उतारे थे जबकि उसके पास संख्या केवल चार को जिताने लायक ही थी। पाँचों जीते और अब एकनाथ शिंदे की बगावत के अचानक सामने आने से सबको हैरत हो रही है, पर लगता है कि शिंदे की नाराजगी पहले से चल रही थी।

इस साल के पाँच राज्यों में हुए चुनावों बाद महाराष्ट्र के विधायकों के मन में अपने भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे थे। एक तरफ शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस पार्टी के महा विकास अघाड़ी के बीच दरार बढ़ी, वहीं तीनों पार्टियों के भीतर से खटपट सुनाई पड़ने लगी। सबसे बड़ा असमंजस कांग्रेस के भीतर था। पार्टी के विधायकों का एक दल अप्रैल के पहले हफ्ते में हाईकमान से मिलने दिल्ली भी आया था। विधायकों की मुलाकात पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव केसी वेणुगोपाल से ही हुई, जबकि वे सोनिया गांधी या राहुल गांधी से मिलने आए थे। दिल्ली आए विधायकों ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा 'सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद ही सनसनीखेज खुलासे होंगे।'

मोदी की तारीफ

गत 10 मार्च को पाँच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणाम आने के कुछ दिन बाद शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य मजीद मेमन ने एक ट्वीट में लिखा कि पीएम मोदी में कुछ गुण होंगे या उन्होंने कुछ अच्छे काम किए होंगे, जिसे विपक्षी नेता ढूंढ नहीं पा रहे हैं। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई थी, जब नवाब मलिक की गिरफ्तारी को लेकर उनकी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच तलवारें तनी हुईं थीं। मजीद मेमन वाली बात तो आई-गई हो गई, पर अघाड़ी सरकार के भीतर की कसमसाहट छिप नहीं पाई।

कांग्रेस के नेता दबे-छुपे पंजाब और उत्तर प्रदेश में पार्टी की दुर्दशा देखकर परेशान हैं और उन्हें लगने लगा है कि यहाँ अब और रुकना खतरे से खाली नहीं है। उनका विचार है कि 2024 के विधान सभा चुनाव तक अघाड़ी बना भी रहा, तो वह सफल नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने विकल्प की तलाश शुरू कर दी है।

कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि राज्य में जब अघाड़ी सरकार बनी थी, तब मंत्रियों को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे विधायकों की बातों को सुनें। हरेक मंत्री के साथ तीन-तीन विधायक जोड़े गए थे। यह व्यवस्था हुई भी होगी, तो हमें पता नहीं। अलबत्ता सरकार बनने के ढाई साल बाद जब एक मंत्री एचके पाटील ने जब तीन विधायकों के साथ बैठक की, तब इस व्यवस्था की जानकारी शेष विधायकों को हुई।

विधायकों को कई तरह की शिकायतें हैं, जिन्हें लेकर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी भी लिखी। दूसरी तरफ शरद पवार दिल्ली में बीजेपी-विरोधी राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की गतिविधियों में जुड़े हैं, पर इस बीच भाजपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच अचानक सम्पर्क बढ़ने से भी अघाड़ी सरकार के भीतर चिंता बढ़ गई। उसी दौरान नितिन गडकरी ने राज ठाकरे से मुलाकात की। कांग्रेस के पार्टी 25 विधायक गठबंधन की सरकार से नाराज हैं और उन्होंने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी।

सब नाराज

उधर केंद्रीय राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा कि अघाड़ी के 25 विधायक भाजपा के सम्पर्क में हैं। उन्होंने यह नहीं बताया था कि किस पार्टी के नेताओं ने सम्पर्क किया है, किन्तु यह संकेत जरूर किया कि ये सभी नेता सरकार में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं। ज्यादातर पर्यवेक्षक मानते हैं कि नाराजगी मुख्यतः राकांपा से है सरकार के भीतर और बाहर भी शिवसेना और राकांपा हावी हैं।

दूसरी तरफ अघाड़ी गठबंधन में सिर्फ कांग्रेस के नेता ही नाराज नहीं हैं। शिवसेना के पास मुख्यमंत्री पद होने के बावजूद उसके नेता भी नाराज हैं। गत 22 मार्च को शिवसेना के सांसद श्रीरंग बारने ने कहा था कि सबसे ज्यादा फायदा शरद पवार की राकांपा ने उठाया है। नेतृत्व करने के बावजूद शिवसेना को नुकसान उठाना पड़ रहा है। शिवसेना विधायक तानाजी सावंत ने भी ऐसी ही बात कही थी।

Tuesday, June 21, 2022

आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस: बुद्धि और चेतना क्या टकराएंगी?


भारत के समानव अंतरिक्ष-अभियान गगनयान की पहली परीक्षण उड़ान जल्द ही होने वाली है। शुरुआती उड़ान में अंतरिक्ष-यात्री नहीं होंगे, पर जब जाएंगे तब  उनके साथ ‘व्योममित्र’ नामक एक रोबोट भी अंतरिक्ष जाएगा। यह रोबोट पूरे यान के मापदंडों पर निगरानी रखेगा। इसमें कोई नई बात नहीं है, केवल आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दायरे की ओर इशारा है।

तकनीकी विकास के हम ऐसे दौर में हैं, जब आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का प्रवेश जीवन में हो रहा है। पहले हमें लगता था कि मशीनें ज्यादा से ज्यादा सोचेंगी भी तो एक सीमा तक ही सोचेंगी। पर हाल में ब्रिटिश पत्रिका इकोनॉमिस्ट ने लिखा है कि आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का अब कविता, पेंटिंग और साहित्य जैसी ललित कलाओं में भी प्रवेश होगा। ऐसा कम्प्यूटर की डीप लर्निंग तकनीक के कारण सम्भव हुआ है। पेंटिंग वगैरह तो कम्प्यूटर बना ही रहे थे, पर वे अब आपके पसंदीदा कलाकार की शैली में पेंटिंग बना देंगे। सभी बारीकियों के साथ।

डीप लर्निंग

यह तकनीक मनुष्य के मस्तिष्क में काम करने वाले करोड़ों-अरबों न्यूरॉन्स की डीप लर्निंग के सिद्धांत पर काम करती है। शुरू में लगता था कि इसकी भी सीमा है, पर हाल में विकसित फाउंडेशन मॉडल्स ने साबित किया है कि पहले से कई गुना जटिल डीप लर्निंग सम्भव है। आप कम्प्यूटर पर जो वाक्य लिखते हैं, उसे व्याकरण-सम्मत आपका कम्प्यूटर बनाता जाता है। आप चाहते हैं कि आपके आलेख का अच्छा सा शीर्षक बन जाए, बन जाएगा। लेख का सुन्दर सा इंट्रो बन जाएगा।

आप मोबाइल फोन पर संदेश लिखते हैं, तो आपकी जरूरत के शब्द अपने आप आपके सामने बनते जाते हैं। तमाम जटिल पहेलियों के समाधान कम्प्यूटर निकाल देता है। लूडो से लेकर शतरंज तक आपके साथ खेलता है। शतरंज के चैम्पियनों को हराने लगा है। तकनीक ने हमारे तमाम काम आसान किए हैं। अब वह मनुष्य की तरह काम करने लगी है।

आप संगीत-रचना रिकॉर्ड कर रहे हैं। उसके दोष दूर करता जाएगा। इससे रचनात्मकता के नए आयाम खुल रहे हैं। आप चाहते हैं कि पिकासो या रैम्ब्रां की शैली में कोई चित्र बनाएं, तो आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस यह काम कर देगी, क्योंकि उसके पास सम्बद्ध कलाकार की शैली से जुड़ा छोटे से छोटा विवरण मौजूद है। उस जानकारी के आधार पर कम्प्यूटर चित्र बना देगा।

Sunday, June 19, 2022

'अग्निपथ' पर पेट्रोल किसने छिड़का?


सेना में भरती से जुड़े 'अग्निपथ' कार्यक्रम के विरोध में देश के कई क्षेत्रों में हिंसा की जैसी लहर पैदा हुई है, उसे रोकने की जरूरत है। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की ही नहीं है, विरोधी दलों की भी है। नौजवानों को भड़काना बंद कीजिए। बेशक उनकी सुनवाई होनी चाहिए, पर विरोध को शांतिपूर्ण तरीके से व्यक्त करना चाहिए। जिस प्रकार की हिंसा सड़कों पर देखने को मिली है, वह देशद्रोह है। रेलगाड़ियों, बसों और सरकारी बसों में आग लगाने वाले सेना में भरती के हकदार कैसे होंगे? सरकार ने फौरी तौर पर इस स्कीम भरती होने वालों की आयु में इस साल दो साल की छूट भी दी है। साथ ही रक्षा मंत्रालय से जुड़ी अन्य सेवाओं में अग्निवीरों को 10 प्रतिशत का आरक्षण देने की घोषणा की है। सरकार ने यह भी कहा है कि भविष्य में अर्धसैनिक बलों की भरती में अग्निवीरों को वरीयता दी जाएगी। राज्य सरकारों की पुलिस में भी इन्हें वरीयता दी जा सकती है। वायुसेना ने भरती की प्रक्रिया 24 जून से शुरू करने का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया है। इससे माहौल को सुधारने में मदद मिलेगी। 14 जून को जिस दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अग्निपथ कार्यक्रम को स्वीकृति दी, उसी दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी विभागों और मंत्रालयों में मानव संसाधन की स्थिति की समीक्षा की और निर्देश दिया कि अगले डेढ़ साल में सरकार द्वारा मिशन मोड में 10 लाख लोगों की भरती की जाए। इन दोनों फैसलों का असर सकारात्मक असर होने के बजाय नकारात्मक होना चिंता का विषय है।

हिंसा के पीछे कौन?

यह देखने की जरूरत भी है कि अचानक शुरू हुए इस आंदोलन के पीछे किन लोगों की भूमिका है और वे चाहते क्या हैं। यह संदेश नहीं जाना चाहिए कि सरकार को आंदोलन की धमकियाँ देकर दबाया जा सकता है। शाहीनबाग, किसान आंदोलन और नूपुर शर्मा से जुड़े मामलों में सरकार की नरम नीति से बेजा फायदे उठाने की कोशिशों को सफलता नहीं मिलनी चाहिए। अग्निपथ कार्यक्रम सेनाओं के आधुनिकीकरण और देश के सुधार कार्यक्रमों का हिस्सा है। देश को अत्याधुनिक हथियारों से लैस एक युवा सशस्त्र बल की ज़रूरत है। यह रोजगार गारंटी कार्यक्रम नहीं है। उसे इस प्रकार आंदोलनों का शिकार बनने से रोकना चाहिए। शुक्रवार तक की जानकारी के अनुसार विरोध प्रदर्शनों के कारण 300 से अधिक ट्रेनें प्रभावित हुई हैं, जबकि 200 से अधिक रद्द की जा चुकी हैं। इनमें 94 मेल व एक्सप्रेस और 140 पैसेंजर ट्रेन रद्द की जा चुकी हैं। वहीं 65 मेल व एक्सप्रेस ट्रेन और 30 यात्री ट्रेन आंशिक रूप से रद्द की गई हैं। तेलंगाना, बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रदर्शनकारियों ने तमाम स्थानों पर रेलवे स्टेशनों को नुकसान पहुँचाया है, कैश-काउंटरों से रुपयों की लूट की है और ट्रेनों में आग लगाई है। यह भयावह स्थिति है और इसे किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

अग्निपथ योजना

योजना के तहत 90 दिनों के भीतर क़रीब 40 हजार युवकों की सेना में भरती की जाएगी। उन्हें 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी। भरती होने के लिए उम्र साढ़े 17 साल से 21 साल के बीच होनी चाहिए। चूंकि पिछले दो साल भरती नहीं हो पाई थी, इसलिए पहले बैच के लिए अधिकतम आयु सीमा दो साल बढ़ाई गई है। इसमें भाग लेने के लिए शैक्षणिक योग्यता 10वीं या 12वीं पास होगी। जनरल ड्यूटी सैनिक में प्रवेश के लिए, शैक्षणिक योग्यता कक्षा 10 है। इस स्कीम के तहत भरती चार साल के लिए होगी। पहले साल का वेतन प्रति महीने 30 हज़ार रुपये होगा, जो हर साल बढ़ते हुए चौथे साल में प्रति माह 40 हज़ार रुपये हो जाएगा। चार साल बाद सेवाकाल में प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन होगा और 25 प्रतिशत लोगों को नियमित किया जाएगा। योजना का विरोध करने वाले कहते हैं कि चार साल की सेवा के बाद उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है।

सामयिक परिवर्तन

कुछ लोगों का कहना है कि चार साल बाद नौजवान एटीएम का गार्ड बनकर रह जाएगा। इस कार्यक्रम को बदलते समय के दृष्टिकोण से भी देखा चाहिए। सभी देशों की सेनाओं का आकार छोटा हो रहा है, क्योंकि युद्धों में सैनिकों की भूमिका कम हो रही है और तकनीकी भूमिका बढ़ रही है। चीन की सेना ने पिछले तीन-चार साल में अपना आकार करीब आधा कर लिया है। भारतीय सेना की थिएटर कमांड योजना और इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स बेहतर समन्वय और संसाधनों के इस्तेमाल को देखते हुए बनाए जा रहे हैं। सेना को बदलती चुनौतियों के बीच अपनी गैर-परंपरागत युद्ध क्षमताओं और साइबर और खुफ़िया इकाइयों का विस्तार करने की ज़रूरत है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने एक टेलीविज़न चैनल से कहा, योजना अभी आई ही है। इसे शुरू तो होने दें, इसमें पहली नियुक्तियां होने दें। ये देखें कि ये योजना कैसे काम करती है। सुधार सभी योजनाओं में होते हैं। शॉर्ट सर्विस कमीशन को पांच साल के लिए शुरू किया गया था और बाद में उसे कोई पेंशन और चिकित्सकीय सुविधा नहीं मिलती थी।

Monday, June 13, 2022

भस्मासुर साबित होने लगे हैं इमरान खान

जबसे इमरान खान की कुर्सी छिनी है, उन्होंने आंदोलन छेड़ रखा है। पाकिस्तान के सामने तमाम तरह की चुनौतियाँ खड़ी हैं। उनके बीच इमरान खुद बड़ी समस्या बन गए हैं। वे फौरन चुनाव चाहते हैं। उन्हें लगता है कि आज चुनाव हों, तो उन्हें भारी जीत मिलेगी। सच है कि उनकी लोकप्रियता बढ़ी है और भड़काऊ भाषणों से उनके समर्थकों का हौसला बुलंद है। पर, अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है। आंदोलनों की आँधी के कारण उसे सुधारने की कोशिशों को पलीता लग रहा है। अब उन्होंने देश के तीन टुकड़े होने, सेना की तबाही और एटम बम छिनने का शिगूफा छेड़कर जनता को भयभीत कर दिया है।

फौरन चुनाव की माँग

गत 10 अप्रैल को नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के बाद वे सत्ता से बाहर हो गए थे। इसके बाद उन्होंने सार्वजनिक भाषणों में बार-बार दावा किया था कि हम 20 लाख पीटीआई कार्यकर्ताओं को इस्लामाबाद लाएंगे और तब तक वहीं रहेंगे, जब तक चुनाव की तारीख़ों की घोषणा नहीं की जाती। फिर 25 मई को देशव्यापी ‘लांग मार्च’ की घोषणा की और ‘पूरे देश’ को इस्लामाबाद पहुंचने का आह्वान किया।

उनकी अपील बेअसर रही और उन्होंने उसे इस घोषणा के साथ मार्च समाप्त कर दिया, कि हम ‘अगले छह दिनों में दोबारा मार्च करेंगे’। अब कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। अब कह रहे हैं कि सरकार मुझपर ग़द्दारी का मुक़दमा बनाकर रास्ते से हटाना चाहती है। 4 जून को ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में एक जलसे में उन्होंने कहा, जब तक ख़ून है वक़्त के यज़ीदों का मुक़ाबला करता रहूँगा। वे अपने भाषणों में धार्मिक प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल करते हैं।

तबाह अर्थव्यवस्था

इमरान खान ने आंदोलन के लिए ‘लांग मार्च’ का सहारा लिया है। एक शहर से दूसरे शहर के बीच कारों, बसों और ट्रकों पर बैठे आंदोलनकारियों के काफिले सड़कों पर हैं। एक तरफ देश आर्थिक संकट से घिरा है और दूसरी तरफ आंदोलनों की बाढ़ है। जुलूसों को रोकने के लिए इस्लामाबाद में कंटेनरों के ढेर लगे हैं। इससे सड़कों पर यातायात प्रभावित हुआ है, आए दिन स्कूल बंद होते हैं खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो जाती है।