Sunday, March 17, 2019

गठबंधन राजनीति का बिखराव!

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बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि कांग्रेस के साथ हम किसी भी राज्य में गठबंधन नहीं करेंगे। मायावती ने ही साथ नहीं छोड़ा, आंध्र प्रदेश में कांग्रेस और तेदेपा का गठबंधन टूट गया है। बीजेपी को हराने के लिए सामने आई ममता बनर्जी तक ने अपने बंगाल में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाना उचित नहीं समझा। दिल्ली में कांग्रेसी झिड़कियाँ खाने के बावजूद अरविन्द केजरीवाल बार-बार चिरौरी कर रहे हैं। सम्भव है कि दिल्ली और हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन हो जाए। इसकी वजह है कांग्रेस के भीतर से लगातार बाहर आ रहे विपरीत स्वर।

17वीं लोकसभा और चार राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों की प्रक्रिया सोमवार 18 मार्च से शुरू हो रही है, पर अभी तक क्षितिज पर एनडीए और यूपीए के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर कोई तीसरा चुनाव पूर्व मोर्चा या महागठबंधन नहीं है। जो भी होगा, चुनाव परिणाम आने के बाद होगा और फिर उसे मौके के हिसाब से सैद्धांतिक बाना पहना दिया जाएगा। यह भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे का यथार्थ है। जैसा हमेशा होता था स्थानीय स्तर पर सीटों का बँटवारा हो जरूर रहा है, पर उसमें जबर्दस्त संशय है। टिकट कटने और बँटने के चक्कर में एक पार्टी छोड़कर दूसरी में जाने की दौड़ चल रही है।

Friday, March 15, 2019

शिखर पर पहुँचाएंगे नई पीढ़ी के वोटर


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लोकसभा के आगामी चुनाव में भारत के 89.9 करोड़ वोटर भाग लेंगे. दुनिया के किसी लोकतंत्र में एकसाथ इतने वोटरों की भागीदारी कभी नहीं हुई. सन 2014 के चुनाव में 81.5 करोड़ वोटरों ने हिस्सा लिया था. इसबार 8.4 करोड़ वोटरों की वृद्धि हुई है. इनमें भी 1.6 करोड़ वोटरों की आयु 18 से 19 वर्ष के बीच है. उनके अलावा छह करोड़ से ऊपर वोटर भी नौजवानों की परिभाषा में आते हैं. इतनी बड़ी संख्या में युवा वोटरों की चुनाव में भागीदारी क्या बताती है? ये वोटर अपनी राजनीति और व्यवस्था से क्या चाहते हैं?

राष्ट्रीय राजनीति के ज्यादातर नियंता अपने जीवन के संध्याकाल में प्रवेश कर चुके हैं. सही या गलत उनके पास अनुभव हैं और अतीत की यादें हैं. पर नए मतदाताओं के पास केवल उम्मीदें और हौसले हैं. इनमें से काफी नौजवान कुपोषण, गरीबी और तमाम असुविधाओं की बाधाओं को पार करके यहाँ तक पहुँचे हैं. व्यवस्था के निर्माण में उनकी भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण है। उनके सपने पूरे होंगे, तो इसी व्यवस्था की मदद से होंगे. और वे इस व्यवस्था को पुष्ट करेंगे. सवाल है कि क्या हमारा लोकतंत्र इतनी बड़ी संख्या में नौजवानों की उम्मीदों को पूरा करेगा?

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषाएं सामान्यतः 15 से 24 साल की अवस्था को युवा की श्रेणी में रखती हैं. भारत की राष्ट्रीय युवा नीति-2003 में 13 से 35 वर्ष की आयु को युवा की श्रेणी में रखा गया था. बाद में 2014 की राष्ट्रीय नीति में इसे 15-29 वर्ष कर दिया गया. यह परिभाषा बदलती रहती है, पर किसी भी परिभाषा से देखें, तो पाएंगे कि दुनिया के सबसे युवा देशों में भारत सबसे आगे है. सन 2018 में भारत की सकल आबादी की औसत उम्र 27.9 वर्ष थी और 2020 में देश की कुल आबादी में 34 फीसदी युवा होंगे.

Wednesday, March 13, 2019

स्त्रियों को टिकट देने में हिचक क्यों?

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ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने घोषणा की है कि हम एक तिहाई सीटें महिला प्रत्याशियों को देंगे। प्रगतिशील दृष्टि से यह घोषणा क्रांतिकारी है और उससे देश के दूसरे राजनीतिक दलों पर भी दबाव बनेगा कि वे भी अपने प्रत्याशियों के चयन में महिला प्रत्याशियों को वरीयता दें। उधर ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव में 41 फीसदी टिकट महिलाओं को दिए हैं। दोनों घोषणाएं उत्साहवर्धक हैं, पर दोनों लोकसभा के लिए हैं। ओडिशा में विधानसभा चुनाव भी हैं, पर उसमें टिकट वितरण का यही फॉर्मूला नहीं होगा। बंगाल में अभी चुनाव नहीं हैं, इसलिए कहना मुश्किल है कि विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की रणनीति क्या होगी। बहरहाल दोनों घोषणाएं सही दिशा में बड़ा कदम हैं। 
सत्रहवें लोकसभा चुनाव में देश के 90 करोड़ मतदाताओं को भाग लेने का मौका मिलेगा, इनमें से करीब आधी महिला मतदाता हैं। पर व्यावहारिक राजनीति इस आधार पर नहीं चलती। आने दीजिए पार्टियों की सूचियाँ, जिनमें पहलवानों की भरमार होगी। राजनीति की सफलता का सूत्र है विनेबिलिटीयानी जीतने का भरोसा। यह राजनीति पैसे और डंडे के जोर पर चलती है। पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों के विश्लेषण से एक बात सामने आई कि युवा और खासतौर से महिला मतदाताओं ने चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह भूमिका इसबार के चुनाव में और बढ़ेगी, पर राजनीतिक जीवन में उनकी भागीदारी आज भी कम है। कमोबेश दुनियाभर की राजनीति पुरुषवादी है, पर हमारी राजनीति में स्त्रियों की भूमिका वैश्विक औसत से भी कम है। सामान्यतः संसद और विधानसभाओं में महिला सदस्यों की संख्या 10 फीसदी से ऊपर नहीं जाती।

Monday, March 11, 2019

चुनावी मुद्दा बनेगा राष्ट्रवाद!

चुनाव घोषित होने के बाद अब सबका ध्यान इस बात पर जाएगा कि मतदाता किस बात पर वोट डालेगा। तीन महीने पहले हुए पाँच राज्यों के विधान सभा चुनावों के दौरान जो मुद्दे थे, वे अब पूरी तरह बदल गए हैं।  हाल में रायटर्स ने एक लम्बी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना के हमले से देश के ग्रामीण इलाकों में पिछले कुछ समय से छाई निराशा के बादल छँटते नजर आ रहे हैं। देश की तकरीबन 70 फीसदी आबादी गाँवों में रहती है और देश की राजनीति की दिशा तय करने में गाँवों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। रायटर्स ने इस सिलसिले में किसानों से बात की है। अपनी बदहाली से नाखुश होने के बावजूद किसानों को लगता है कि मोदी अगर पाकिस्तान को सबक सिखाता है, तो अच्छी बात है। पर यह सब देशभक्ति तक सीमित नहीं होगा, राष्ट्रवाद का अर्थ, उसकी जरूरत, भारतीय राष्ट्र राज्य की संरचना, उसकी अवधारणा और उसका विकास ये सारे मुद्दे उसमें शामिल होंगे। हमारे यहाँ किसी वजह से कुछ लोग राष्ट्रवाद का नाम सुनकर ही भड़कने लगते हैं। जबकि जरूरत इस विषय पर गहराई से जाने की है।  

Saturday, March 9, 2019

कांग्रेस का ‘सर्जिकल-संकट’


http://www.rashtriyasahara.com/epaperpdf//09032019//09032019-md-hst-2.pdf
कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने पिछले गुरुवार को कहा कि पुलवामा आतंकी हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच ‘मैच फिक्सिंग’ का नतीजा है। उनका कहना था कि पुलवामा हमले के बाद के घटनाक्रम पर यदि आप नजर डालेंगे तो पता चलता है कि यह पीएम नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच मैच फिक्सिंग थी।  हरिप्रसाद कांग्रेस के बहुत बड़े नहीं, तो छोटे नेता भी नहीं हैं। पिछले साल राज्यसभा के उप सभापति के चुनाव में पार्टी ने कर्नाटक के इस सांसद को अपना प्रत्याशी बनाया था। हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने बाद में सफाई दी, बीके हरिप्रसाद ने जो भी कहा है कि वह पार्टी का स्टैंड नहीं है, उनकी अपनी राय है। पर कैसी राय? उन्होंने मामूली बात नहीं कही है। साफ है कि पार्टी ने उनके बयान की अनदेखी की। यह अनदेखी सायास थी या अनायास?