Friday, December 16, 2016

नोटबंदी पर बहस से दोनों पक्ष भाग रहे हैं

सरकार और विपक्ष किन सवालों को लेकर एक-दूसरे से पंजा लड़ा रहे हैं?

देश नोटबंदी की वजह से परेशान है. दूसरी ओर एक के बाद एक कई जगहों से लाखों-करोड़ों के नोट बिल्डरों, दलालों और हवाला कारोबारियों के पास से मिल रहे हैं. तब सवाल उठता है कि सरकार और विपक्ष किन सवालों को लेकर एक-दूसरे से पंजा लड़ा रहे हैं?

नोटबंदी का फैसला अपनी जगह है, बैंकिंग प्रणाली कौन से गुल खिला रही है? वह कौन सी राजनीति है, जो जनता के सवालों से ऊपर चली गई है? अब सुनाई पड़ रहा है कि कांग्रेस बजट सत्र जल्द बुलाने का विरोध भी करेगी. दरअसल राजनीति की वरीयताएं वही नहीं हैं, जो जनता की हैं.

कांग्रेस बजट सत्र जल्द बुलाने का विरोध कर सकती है, क्योंकि चुनाव की घोषणा होने के बाद आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी, जिससे सरकार के पास कई तरह की घोषणाएं करने का मौका नहीं बचेगा. 

हाल में सरकार ने संकेत किया है कि नोटबंदी के कारण आयकर की दरों में कमी की जा सकती है. सवाल नोटबंदी की अच्छाई या बुराई का नहीं, उसकी राजनीति का है. 

Wednesday, December 14, 2016

क्या राहुल के पास वास्तव में कुछ कहने को है?

राहुल गांधी ने विस्फोट भले ही नहीं किया, पर माहौल विस्फोटक जरूर बना दिया है. यह उनकी छापामार राजनीति की झलक है, जिसे उन्होंने पिछले साल के मॉनसून सत्र से अपनाया है. यह संजीदा संसदीय विमर्श का विकल्प नहीं है. वे क्या कहना चाहते हैं और क्या जानकारी उनके पास है, इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए. उन्होंने जिस अंदाज में बातें की हैं, उनसे लगता है कि अब कुछ धमाके और होंगे.

Monday, December 12, 2016

भिंडी बाजार बनती राजनीति

राहुल गांधी ने कहा, नोटबंदी पर फैसले को चुनौती देने वाला मेरा भाषण तैयार है, लेकिन संसद में मुझे बोलने से रोका जा रहा है. मुझे बोलने दिया गया तो भूचाल आ जाएगा. सरकार की शिकायत है कि विपक्ष संसद को चलने नहीं दे रहा. उधर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है, सांसद अपनी जिम्मेदारी निभाएं. आपको संसद में चर्चा करने के लिए भेजा गया है, पर आप हंगामा कर रहे हैं. उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के बनासकांठा में हुई किसानों की रैली में कहा, मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जाता, इसलिए मैंने जनसभा में बोलने का फैसला किया है.

Sunday, December 11, 2016

संसदीय गरिमा को बचाओ

राहुल गांधी कहते हैं, सरकार मुझे संसद में बोलने नहीं दे रही। मैं बोलूँगा तो भूचाल आ जाएगा। और अब प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं कि मुझे बोलने नहीं दिया जाता। उधर पीआरएस के आँकड़ों के अनुसार संसद के शीत सत्र में लोकसभा में 16 और राज्यसभा में 19 फीसदी काम हुआ है। लोकसभा में जो भी काम हुआ उसका एक तिहाई प्रश्नोत्तर के रूप में है। राज्यसभा में प्रश्नोत्तर हो ही नहीं पाए। लोकसभा ने इस दौरान आयकर से जुड़ा एक संशोधन विधेयक पास किया, जो केवल 10 मिनट में पास हो गया। यह सत्र 16 दिसंबर तक चलना है। सोमवार और मंगल को अवकाश हैं। अब सिर्फ तीन दिन बचे हैं।
संसद के न चलने की वजह केवल विपक्ष नहीं है। इसमें सरकार की भी भूमिका है। संसदीय गरिमा की रक्षा करना दोनों की जिम्मेदारी है। सुनाई पड़ रहा है कि सरकार और विपक्ष के बीच बचे हुए समय के सदुपयोग पर सहमति बनी है, पर सच यह है कि काफी कीमती समय बर्बाद हो गया है। एक बौद्धिक तबक़ा कहता है कि राजनीति में शोर है तो उसे दिखाना और सुनाना भी चाहिए। सड़क पर शोर है तो संसद में क्यों नहीं? शोर के सांकेतिक अर्थ महत्वपूर्ण हैं। पर यदि वह पूरे के पूरे सत्र को बहा ले जाए तो उसका कोई मतलब भी नहीं रह जाता। और वह शोर निरर्थक हो जाता है और संसद भी।  

Saturday, December 10, 2016

अद्रमुक का दामन थामेगी कांग्रेस

जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की राजनीति में पहला सवाल अद्रमुक की सत्ता-संरचना को लेकर है। यानी कौन होगा उसका नेता? कैसे चलेगा उसका संगठन और सरकार? फिलहाल ओ पन्‍नीरसेल्‍वम को मुख्यमंत्री बनाया गया है। सवाल है क्या वे मुख्यमंत्री बने रहेंगे? पार्टी संगठन का सबसे बड़ा पद महासचिव का है। अभी तक जयललिता महासचिव भी थीं। एमजीआर और जयललिता दोनों के पास मुख्यमंत्री और महासचिव दोनों पद थे। अब क्या होगा?