Monday, April 15, 2013

अगले चुनाव के बाद खुलेगी राजनीतिक सिद्धांतप्रियता की पोल


जिस वक्त गुजरात में दंगे हो रहे थे और नरेन्द्र मोदी उन दंगों की आँच में अपनी राजनीति की रोटियाँ सेक रहे थे उसके डेढ़ साल बाद बना था जनता दल युनाइटेड। अपनी विचारधारा के अनुसार नीतीश कुमार, जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव किसी की नरेन्द्र मोदी की रीति-नीति से सहमति नहीं थी। नीतीश कुमार उस वक्त केन्द्र सरकार में मंत्री थे। वे आसानी से इस्तीफा दे सकते थे। शायद उन्होंने उस वक्त नहीं नरेन्द्र मोदी की महत्ता पर विचार नहीं किया। सवाल नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने या न बनने का नहीं। प्रत्याशी बनने का है। उनके प्रत्याशी बनने की सम्भावना को लेकर पैदा हुई सरगर्मी फिलहाल ठंडी पड़ गई है।

Sunday, April 14, 2013

नीतीश के लिए आसान नहीं है एनडीए से अलगाव की डगर


फिलहाल जेडीयू ने भारतीय जनता पार्टी से प्रधानमंत्री पद के अपने प्रत्याशी का नाम घोषित करने का दबाव न डालने का फैसला किया है। पर यदि दबाव डाला भी होता तो यह एक टैक्टिकल कदम होता। दीर्घकालीन रणनीति नहीं। यह धारणा गलत है कि बिहार में एनडीए टूटने की शुरूआत हो गई है। सम्भव था कि जेडीयू कहती, अपने प्रधानमंत्री-प्रत्याशी का नाम बताओ। और भाजपा कहती कि हम कोई प्रत्याशी तय नहीं कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी का पार्टी के संसदीय बोर्ड में आना या प्रचार में उतरना प्रधानमंत्री पद की दावेदारी तो नहीं है। बहरहाल यह सब होने की नौबत नहीं आई। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नीतीश कुमार और शरद यादव से फोन पर बात की कि भाई अभी किसी किस्म का दबाव मत डालो। यह न आप के लिए ठीक होगा और न हमारे लिए। और बात बन गई।

Friday, April 12, 2013

बेकाबू क्यों हो रहा है उत्तर कोरिया?



जब हम विश्व समुदाय की बात करते हैं तो इसका एक मतलब होता है अमेरिका और उसके दोस्त। और जब हम उद्दंड या दुष्ट देश यानी रोग स्टेट्स कहते हैं तो उसका मतलब होता है उत्तर कोरिया, ईरान और सीरिया और एक हद तक वेनेजुएला। सन 1990 के दशक से दुनिया को शीत-युद्ध से भले मुक्ति मिल गई, पर अमेरिका और इन उद्दंड देशों के बीच तनातनी का नया दौर शुरू हो गया है। अमेरिका का कहना है कि उत्तर कोरिया किसी भी वक्त दक्षिण कोरिया या प्रशांत महासागर में स्थित अमेरिकी अड्डों पर मिसाइलों से हमला कर सकता है। सुदूर पूर्व पर नज़र रखने वालों का कहना है कि उत्तर कोरिया हमला नहीं करेगा। परमाणु बम का प्रहार करने की स्थिति में वह नहीं है। उसके पास एटमी ताकत है ज़रूर, पर डिलीवरी की व्यवस्था नहीं है। हो सकता है वह किसी मिसाइल का परीक्षण करे या एटमी धमाका। अलबत्ता यह विस्मय की बात है कि सायबर गाँव में तब्दील होती दुनिया में कोरिया जैसी समस्याएं कायम हैं। दोनों कोरिया एक भाषा, एक संस्कृति, एक राष्ट्र के बावजूद राजनीतिक टकराव के अजब-गजब प्रतीक है।

Monday, April 8, 2013

धा धा धिन्ना, नमो नामो बनाम राग रागा



लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि मैं एक सपने के सहारे राजनीति में सक्रिय हूँ। उधर नरेन्द्र मोदी गुजरात का कर्ज़ चुकाने के बाद भारत माँ का कर्ज़ चुकाने के लिए दिल्ली आना चाहते हैं। दिल्ली का कर्ज़ चुकाने के लिए कम से कम डेढ़ दर्जन सपने सक्रिय हो रहे हैं। ये सपने क्षेत्रीय राजनीति से जुड़े हैं। उन्हें लगता है कि प्रदेश की खूब सेवा कर ली, अब देश-सेवा की घड़ी है। बहरहाल आडवाणी जी के सपने को विजय गोयल कोई रूप देते उसके पहले ही उनकी बातों में ब्रेक लग गया। विजय गोयल के पहले मुलायम सिंह यादव ने आडवाणी जी की प्रशंसा की थी। भला मुलायम सिंह आडवाणी की प्रशंसा क्यों कर रहे हैं? हो सकता है जब दिल्ली की गद्दी का फैसला हो रहा हो तब आडवाणी जी काम आएं। मुलायम सिंह को नरेन्द्र मोदी के मुकाबले वे ज्यादा विश्वसनीय लगते हैं। कुछ और कारण भी हो सकते हैं। मसलन नरेन्द्र मोदी यूपी में प्रचार के लिए आए तो वोटों का ध्रुवीकरण होगा। शायद मुस्लिम वोट फिर से कोई एक रणनीति तैयार करे। और इस रणनीति में कांग्रेस एक बेहतर विकल्प नज़र आए। उधर आडवाणी जी लोहिया की तारीफ कर रहे हैं। क्या वे भी किसी प्रकार की पेशबंदी कर रहे हैं? आपको याद है कि आडवाणी जी ने जिन्ना की तारीफ की थी। उन्हें लगता है कि देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए अपनी छवि सौम्य सभी वर्गों के लिए स्वीकृत बनानी होती है। जैसी अटल बिहारी वाजपेयी की थी।

Sunday, April 7, 2013

अलोकप्रियता के ढलान पर ममता की राजनीति

राजनेता वही सफल है जो सामाजिक जीवन की विसंगतियों को समझता हो और दो विपरीत ताकतों और हालात के बीच से रास्ता निकालना जानता हो। ममता बनर्जी की छवि जुनूनी, लड़ाका और विघ्नसंतोषी की है। संसद से सड़क तक उनके किस्से ही किस्से हैं। पिछले साल रेल बजट पेश करने के बाद दिनेश त्रिवेदी को उन्होंने जिस तरह से हटाया, उसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती। उनकी तुलना जयललिता, मायावती और उमा भारती से की जाती है। कई बार इंदिरा गांधी से भी। मूलतः वे स्ट्रीट फाइटर हैं। उन्हें इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने वाम मोर्चा के 34 साल पुराने मजबूत गढ़ को गिरा कर दिखा दिया। पर लगता है कि वे गिराना जानती हैं, बनाना नहीं। इन दिनों बंगाल में अचानक उनकी सरकार के खिलाफ आक्रोश भड़क उठा है। सीपीएम की छात्र शाखा एसएफआई के नेता सुदीप्तो गुप्ता की मौत इस गुस्से का ट्रिगर पॉइंट है। यह सच है कि वे कोरी हवाबाजी से नहीं उभरी हैं। उनके जीवन में सादगी, ईमानदारी और साहस है। वे फाइटर के साथ-साथ मुख्यमंत्री भी हैं और सात-आठ मंत्रालयों का काम सम्हालती हैं। यह बात उनकी जीवन शैली से मेल नहीं खाती। फाइलों में समय खपाना उनका शगल नहीं है। उन्होंने सिर्फ अपने बलबूते एक पार्टी खड़ी कर दी, यह बात उन्हें महत्वपूर्ण बनाती है, पर इसी कारण से उनका पूरा संगठन व्यक्ति केन्द्रित बन गया है।