Tuesday, June 20, 2017
इमर्जेंसी : यादों के कुछ काले-सफेद पन्ने
Monday, December 30, 2019
एसपीजी सुरक्षा को लेकर निरर्थक राजनीतिक विवाद
Monday, May 20, 2013
पराजय-बोध से ग्रस्त भाजपा
Friday, May 7, 2021
चुनाव-परिणामों का कांग्रेस पर असर
पिछले कई महीनों से कांग्रेस पार्टी की आंतरिक राजनीति का विश्लेषण बाहर के बजाय भीतर से ज्यादा अच्छा हो रहा है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका ग्रुप-23 की है, जो पार्टी में हैं, पर नेतृत्व की बातों से असहमति को पार्टी के मंच पर और बाहर भी व्यक्त करते हैं। बहरहाल हाल में हुए पाँच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर पार्टी ने बहुत संकोच के साथ ही प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राहुल गांधी ने 2 मई को तीन ट्वीट किए थे। एक में कहा गया था कि हम जनता के फैसले को स्वीकार करते हैं। ऐसा ही ट्वीट पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने किया। राहुल गांधी के शेष दो ट्वीट में ममता बनर्जी और एमके स्टालिन को जीत पर बधाई दी गई थी। उन्होंने ममता बनर्जी को बधाई दी, पर ऐसी ही बधाई पिनाराई विजयन को नहीं दी।
विस्तार से पार्टी का
कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ, पर जी-23 के दो वरिष्ठ सदस्यों कपिल सिब्बल और
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि देश में महामारी की स्थिति को देखते हुए यह समय टिप्पणी
करने के लिहाज से उचित नहीं है। बंगाल की हार को लेकर अधीर रंजन चौधरी ने दिल्ली
के एक अंग्रेजी अखबार को कुछ सफाई दी है। खबर थी कि उन्होंने कोई ट्वीट भी किया
है, पर वह नजर नहीं आया। शायद हटा दिया गया। ऐसा लगता है कि फिलहाल पार्टी की
रणनीति है कि चुनाव-परिणामों पर चर्चा नहीं की जाए। इसकी जगह महामारी को लेकर
केंद्र पर निशाना लगाया जाए। यह रणनीति एक सीमा तक काम करेगी, पर यह एक प्रकार का
पलायन साबित होगा।
केरल
में असंतोष
नेतृत्व ने भले ही चुनाव-परिणामों पर चुप्पी साधी है, पर कार्यकर्ता मौन नहीं है। केरल से उनकी आवाज सुनाई पड़ी है। उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी की सत्ता में वापसी होगी। केरल में इससे पहले सत्ता में बैठी सरकार ने कभी वापसी नहीं की है, इसलिए यूडीएफ को वापसी की उम्मीद थी। बहरहाल शुरूआती चुप्पी के बाद, केरल दबे-छिपे बातें सामने आने लगी हैं। एर्नाकुलम के युवा कांग्रेस सांसद हिबी एडेन ने फेसबुक पर लिखा, हमें क्या अब भी लगातार सोते हाईकमान की आवश्यकता क्यों है?
Sunday, January 15, 2017
चुनावी पारदर्शिता के सवाल
Thursday, October 27, 2022
शी की ताकत और चीन की आक्रामकता बढ़ी
शी चिनफिंग के अलावा चीनी पोलितब्यूरो की नई स्थायी समिति के सदस्य (ऊपर बाएं से दाएं) वांग हूनिंग, काई ची, झाओ लेजी, (नीचे बाएं से दाएं) ली शी, ली छ्यांग और दिंग श्वेशियांग।
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने तीसरे और
संभवतः आजीवन कार्यकाल की शुरुआत लोहे के दस्ताने पहन कर की है. अपने
प्रतिस्पर्धियों को हाशिए पर डालते हुए उन्होंने वफादारों की एक नई टीम की घोषणा
भी की है. शीर्ष स्तर पर तरक्कियों और तनज़्ज़ुली को देखते हुए साफ है कि वे अलग राय
रखने वालों को मक्खी की तरह निकाल फेंकेंगे.
शी की आर्थिक, विदेश और सैनिक नीतियों का पता
आने वाले समय में ही लग पाएगा, अलबत्ता रविवार 16 अक्तूबर को चीनी कम्युनिस्ट
पार्टी (सीपीसी) के बीसवें अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने हांगकांग में
लोकतांत्रिक आंदोलन के दमन को उचित ठहराया और ताइवान पर क़ब्ज़ा करने के लिए ताकत
के इस्तेमाल का भी समर्थन किया.
इस महा-सम्मेलन के चार बड़े संदेश हैं. पहला,
शी चिनफिंग अब उम्रभर के लिए सर्वोच्च नेता बन गए हैं. दूसरे नंबर के नेता ली
खछ्यांग हटाए गए और तीसरा है पोलितब्यूरो के सात में से चार पुराने सदस्यों को
हटाकर चार नए नेताओं को पदोन्नति दी गई. और चौथा, भविष्य की आर्थिक-सामाजिक नीतियाँ.
नेतृत्व-परिवर्तन नहीं
माओ ज़ेदुंग आजीवन महासचिव थे, पर 1976 में
उनके निधन के बाद आए देंग श्याओ पिंग ने देश में सत्ता परिवर्तन की एक अनौपचारिक
व्यवस्था बनाई थी कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दो कार्यकाल से ज्यादा काम नहीं
करेगा. देंग के दो पसंदीदा उत्तराधिकारियों जियांग ज़ेमिन और हू जिनताओ ने इस नियम
को अपने ऊपर लागू किया था.
शी चिनफिंग ने न केवल इस व्यवस्था को खत्म कर
दिया है. साथ ही अपने किसी उत्तराधिकारी को भी तैयार नहीं किया है. चीन में शीर्ष
नेताओं के रिटायर होने की उम्र अभी तक 68 वर्ष थी, पर 69 के शी रिटायर होने को
तैयार नहीं हैं और उनकी टीम में 60 से कम का कोई भी नेता नहीं है.
वफादारों को इनाम
पार्टी की बीसवीं कांग्रेस शनिवार को खत्म हो
गई थी. रविवार को शी चिनफिंग के साथ पोलितब्यूरो की स्थायी-समिति के शेष छह सदस्य
पेश हुए. इनमें शी चिनफिंग, झाओ लेजी और वांग हूनिंग तीन सदस्य पुराने हैं. ये सब
उनके वफादार हैं.
जो चार नए सदस्य जोड़े गए हैं उनके नाम हैं ली
छ्यांग, काई ची, दिंग श्वेशियांग और ली शी. यह पोलितब्यूरो ही चीन की सत्ता का
सर्वोच्च निकाय है. अब सभी सदस्य शी के पक्के वफादार हैं. दूसरे नंबर के नेता
प्रधानमंत्री ली खछ्यांग और एक अन्य महत्वपूर्ण सदस्य वांग वांग हटा दिए गए हैं.
दोनों की उम्र 67 वर्ष है, जो चीन में
सेवानिवृत्ति की उम्र 68 से एक साल कम है. इसके विपरीत शी चिनफिंग इस आयु सीमा से
एक साल ज्यादा 69 वर्ष के हो चुके हैं. प्रधानमंत्री ली खछ्यांग का कार्यकाल मार्च
2023 में खत्म होगा. संभवतः शंघाई गुट के ली छ्यांग तब उनके स्थान पर प्रधानमंत्री
बनाए जाएंगे.
शी के छह सहयोगी वरीयता क्रम से इस प्रकार हैं, 1.ली छ्यांग, जो शंघाई में पार्टी प्रमुख रह चुके हैं, 2.झाओ लेजी, जो केंद्रीय अनुशासन निरीक्षण आयोग के प्रमुख रह चुके हैं, 3.विचारधाराविद वांग हूनिंग, 4.बीजिंग के पूर्व पार्टी प्रमुख काई ची, 5.शी के चीफ ऑफ स्टाफ दिंग श्वेशियांग और 6.आर्थिक गतिविधियों के केंद्र ग्वांगदोंग प्रांत के पूर्व पार्टी प्रमुख ली शी.
Wednesday, November 16, 2022
अजय माकन का इस्तीफा और खड़गे की पहली परीक्षा
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अभी अपना काम ठीक से संभाला भी नहीं है कि वह पहला विवाद उनके सामने आ गया है, जिसका अंदेशा था. कांग्रेस नेता अजय माकन ने पार्टी के राजस्थान प्रभारी के रूप में इस्तीफा दे दिया है. यह इस्तीफा उन कारणों से महत्वपूर्ण है, जो पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के ठीक पहले उठे थे और जिनके बारे में माना जा रहा था कि वे खड़गे को परेशान करेंगे. राजस्थान-संकट का समाधान खड़गे के सांगठनिक कौशल की पहली बड़ी परीक्षा होगी.
अगले पखवाड़े में राहुल गांधी की भारत जोड़ो
यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर सकती है. उस समय यह विवाद तेजी पकड़ेगा. अजय माकन
ने अपना यह इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखने के कुछ दिनों
बाद दिया है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह अब इस जिम्मेदारी को जारी नहीं रखना
चाहते हैं.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार माकन, 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के समानांतर
बैठक आयोजित करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के तीन वफादारों को कारण बताओ
नोटिस देने के बाद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करने से नाराज हैं.
सूत्रों ने कहा कि इससे माकन परेशान थे क्योंकि
जिन विधायकों को कारण बताओ नोटिस दिया गया था, वे राहुल गांधी के नेतृत्व वाली
यात्रा का समन्वय कर रहे हैं. एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, ‘राहुल गांधी की यात्रा आयोजित करने के लिए अजय माकन किस नैतिक अधिकार
के साथ राजस्थान जाएंगे, अगर सीएलपी बैठक का मजाक उड़ाने वाले
लोग ही इसका समन्वय करेंगे?’
माकन के करीबी सूत्रों ने बताया कि पार्टी
नेतृत्व ने उन्हें अपना फैसला वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश की लेकिन वे असफल
रहे. खड़गे के नाम माकन के पत्र को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा राज्य में युवा
नेतृत्व को ‘मौका’ देने से इनकार करने से पैदा हुए संकट के खिलाफ पार्टी आलाकमान
पर दबाव बनाने की कोशिश के रूप में देखा गया.
8 नवंबर को लिखे गए अपने पत्र में माकन ने कहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के प्रदेश में प्रवेश करने और राज्य विधानसभा उपचुनाव होने से पहले एक नए व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. उन्होंने लिखा, ‘मैं राहुल गांधी का सिपाही हूं. मेरे परिवार का पार्टी से दशकों पुराना नाता है.’
Sunday, March 21, 2021
मुम्बई का ‘वसूली’ मामला कहाँ तक जाएगा?
मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र ने केवल महाराष्ट्र की ही नहीं, सारे देश की राजनीति में खलबली मचा दी है। देखना यह है कि इस मामले के तार कहाँ तक जाते हैं, क्योंकि राजनीति और पुलिस का यह मेल केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख को हटा दिया जाएगा। इस तरह से महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार बची रहेगी और धीरे-धीरे लोग इस मामले को भूल जाएंगे। पर क्या ऐसा ही होगा? इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ गम्भीर होने वाले हैं और कोई आश्चर्य नहीं कि राज्य के सत्ता समीकरण बदलें। संजय राउत ने एमवीए के सहयोगी दलों से कहा है कि वे आत्ममंथन करें। इस बीच इस मामले से जुड़े मनसुख हिरेन की मौत से जुड़े मामले को केंद्रीय गृम मंत्रालय ने एनआईए को सौंपने की घोषणा की ही थी कि मुम्बई पुलिस के एंटी टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने कहा कि इस मामले की हमने जाँच पूरी कर ली है। घूम-फिरकर यह मामला राजनीति का विषय बन गया है।
इस वसूली के छींटे
केवल एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना तक ही सीमित नहीं रहेंगे। इसके सहारे कुछ और
रहस्य भी सामने आ सकते हैं। अलबत्ता इन बातों से इतना स्पष्ट जरूर हो रहा है कि
देश के राजनीतिक दल पुलिस सुधार क्यों नहीं करना चाहते। पिछले कुछ दिनों से मुंबई
पुलिस कई कारणों से मीडिया में छाई हुई है। पहले मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक
रखने के आरोप में पुलिस अधिकारी सचिन वझे फँसे। बात बढ़ने पर पुलिस कमिश्नर परमबीर
सिंह को पद से हटा दिया गया। इसपर परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी
लिखी।
सवाल है कि परमबीर सिंह को यह चिट्ठी लिखने की सलाह किसने दी और क्यों दी? उन्हें जब यह बात पता थी, तब उन्होंने इसकी जानकारी दुनिया को देने में देरी क्यों की? सच्चे पुलिस अधिकारी का कर्तव्य था कि वे ऐसे गृहमंत्री के खिलाफ केस दायर करते। पर क्या भारत में ऐसा कोई पुलिस अफसर हो सकता है? विडंबना है कि हम इस वसूली के तमाम रहस्यों को सच मानते हैं। हो सकता है कि काफी बातें गलत हों, पर वसूली नहीं होती, ऐसा कौन कह सकता है?
सवाल यह भी है कि मुकेश अम्बानी के घर के पास मोटर वाहन से विस्फोट मिलने के पीछे रहस्य क्या है? सचिन वझे इस पूरे प्रकरण में मामूली सा मोहरा नजर आता है। असली ताकत कहीं और है। बेशक वह पुलिस कमिश्नर और शायद गृहमंत्री से भी ऊँची कोई ताकत है। यहाँ यह साफ कर देने की जरूरत है कि कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है।
Saturday, September 30, 2023
मालदीव के चुनाव में भारत बनाम चीन
सोलिह और मुइज़्ज़ु |
दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी देशों के साथ
रिश्ते बनाने की भारतीय कोशिशों में सबसे बड़ी बाधा चीन की है. पाकिस्तान के अलावा
उसने बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव में काफी पूँजी निवेश किया
है. पूँजी निवेश के अलावा चीन इन सभी देशों में भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने का
काम भी करता है.
इसे प्रत्यक्ष रूप से हिंद महासागर के छोटे से
देश मालदीव में देखा जा सकता है. चीन अपनी नौसेना को तेजी से बढ़ा रहा है. वह
रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस जगह पर अपनी पहुंच बनाना चाहेगा, उसे भारत रोकना चाहता है. चीन यहां अपनी तेल आपूर्ति की सुरक्षा
चाहता है, जो इसी रास्ते से होकर गुजरता है.
आज मालदीव में राष्ट्रपति पद की निर्णायक चुनाव
है, जिसे भारत
और चीन की प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा जा रहा है. करीब 1,200 छोटे द्वीपों
से मिल कर बना मालदीव पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना है. यहां के बीच दुनिया के
अमीरों और मशहूर हस्तियों को पसंद आते हैं. सामरिक दृष्टि से भी हिंद महासागर के
मध्य में बसा यह द्वीप समूह काफी अहम है, जो पूरब और पश्चिम के बीच कारोबारी
जहाजों की आवाजाही का प्रमुख रास्ता है.
चीन-समर्थक मुइज़्ज़ु
चुनाव में आगे चल रहे मोहम्मद मुइज़्ज़ु की
पार्टी ने पिछले कार्यकाल में चीन से नजदीकियां काफी ज्यादा बढ़ा ली हैं. चीन की
बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए खूब सारा धन बटोरा
गया. 45 साल के मुइज़्ज़ु माले के मेयर रहे हैं. पिछली सरकार में मालदीव के मुख्य
एयरपोर्ट से राजधानी को जोड़ने की 20 करोड़ डॉलर की चीन समर्थित परियोजना का
नेतृत्व उन्हीं के हाथ में था.
मालदीव में चीन के पैसे से बनी इसी परियोजना की
सबसे अधिक चर्चा है. यह 2.1 किमी लंबा चार लेन का एक पुल है. यह
पुल राजधानी माले को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोड़ता है. यह हवाई अड्डा एक अलग
द्वीप पर स्थित है. इस पुल का उद्घाटन 2018 में किया गया
था. उस समय यामीन राष्ट्रपति थे.
9 सितंबर को हुए पहले दौर में उन्हें 46 फीसदी वोट मिले. दूसरी तरफ निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को 39 फीसदी वोट ही मिल सके. सोलिह ने भारत से रिश्तों को सुधारने में अपना ध्यान लगाया था.
Thursday, December 31, 2020
नेपाल का संकट क्या चीन के सीधे हस्तक्षेप से सुलझ पाएगा?
नेपाल में गत 20 दिसंबर को संसद हो जाने के बाद से असमंजस की स्थिति है। पिछले हफ्ते ऐसा लगा था कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी किसी प्रकार का हस्तक्षेप कर रही है। वहाँ से पार्टी की एक उच्च स्तरीय टीम नेपाल का दौरा करके वापस चली गई है, पर स्थितियाँ जस की तस हैं। चीनी प्रतिनिधिमंडल ने जानने का प्रयास किया कि क्या संसद की पुनर्स्थापना संभव है। यदि संभव नहीं है, तो क्या चुनाव उन तारीखों में हो सकेंगे, जिनकी घोषणा की गई है। बुधवार 30 दिसंबर को यह टीम वापस लौट गई।
सवाल है कि क्या इस राजनीतिक संकट का समाधान चीन कर पाएगा? इस बीच खबर है कि नेपाली विदेशमंत्री प्रदीप ग्यावली भारत और नेपाल के बीच बने संयुक्त आयोग की बैठक में भाग लेने के लिए जनवरी में भारत आएंगे। अभी इसकी तारीख तय नहीं है। यह यात्रा औपचारिक है, पर संभव है कि इस दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातें हों।
Sunday, November 24, 2013
‘तहलका’ मामला निजी नहीं
Saturday, August 21, 2021
भारतीय विदेश-नीति की विफलता
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने अफगानिस्तान के घटनाक्रम को लेकर भारतीय विदेश-नीति के बारे में कहा है कि कई साल से हम सबके मन में यह सवाल घुमड़ता रहा था कि क्या अफगानिस्तान लंबे समय से चले आ रहे संकट के दौर से निकल पाएगा और क्या वहां स्थिर सरकार देने की दिशा में किए जा रहे अथक प्रयास आगे भी जारी रहेंगे? यूपीए सरकार के दौरान हमने नए संसद भवन, स्कूलों-जैसे अहम संस्थानों के पुनर्निर्माण के अतिरिक्त सलमा बांध-जैसी विकास परियोजनाओं पर भारी धनराशि खर्च की। अब सब कुछ तालिबान के हाथ में है और लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करने के प्रयास छिन्न-भिन्न हो गए हैं। हम पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई जैसे अपने दोस्तों की खैरियत के लिए फिक्रमंद ही हो सकते हैं जो अपने परिवार के साथ, जिसमें छोटी-छोटी बच्चियां भी हैं, काबुल में ही रह रहे हैं। मैं मानकर चलता हूं कि सरकार ने हमारे नागरिकों के साथ-साथ भारत से दोस्ती निभाने वाले अफगानों को वहां से सुरक्षित निकालने के लिए पर्याप्त राजनीतिक उपाय बचाकर रखे होंगे।