Wednesday, October 16, 2024

असमंजस और अशांति के दौर में एससीओ का इस्लामाबाद सम्मेलन


पाकिस्तान में मंगलवार से शुरू हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक भारत-पाकिस्तान रिश्तों के लिहाज से भले ही महत्वपूर्ण नहीं हो, पर क्षेत्रीय सहयोग, ग्लोबल-साउथ और खासतौर से चीन के साथ भारत के रिश्तों े लिहाज से महत्वपूर्ण है.  

यह बैठक पाकिस्तानी-प्रशासन के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई है. हाल की आतंकवादी हिंसा और राजनीतिक-अशांति का साया सम्मेलन पर मंडरा रहा है. अंदेशा है कि इस दौरान कोई अनहोनी न हो जाए.

शिखर सम्मेलन से पहले के कुछ हफ्तों में, पाकिस्तान सरकार ने अपने विरोधियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की है. एक जातीय-राष्ट्रवादी आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया है और राजधानी में विरोध प्रदर्शन को प्रतिबंधित कर दिया गया है.

राजधानी को वस्तुतः शेष देश से अलग कर दिया गया है और सड़कों पर सेना तैनात कर दी गई है. जेल में कैद इमरान खान के सैकड़ों समर्थकों को भी गिरफ्तार किया गया है, जिन्होंने इस महीने इस्लामाबाद में मार्च करने का प्रयास किया था.

पिछले सप्ताह कराची में चीनी इंजीनियरों के काफिले पर हुए घातक हमले ने भी देश में सुरक्षा संबंधी आशंकाओं को बढ़ा दिया है, जहाँ अलगाववादी समूह लगातार चीनी नागरिकों को निशाना बनाते रहे हैं.

जयशंकर की उपस्थिति

एससीओ की कौंसिल ऑफ हैड ऑफ गवर्नमेंट्स (सीएचजी) की इस बैठक में सात देशों के प्रधानमंत्री और ईरान के प्रथम उपराष्ट्रपति भाग लेंगे. भारत का प्रतिनिधित्व विदेशमंत्री एस जयशंकर करेंगे.

Thursday, October 10, 2024

भारत-पाकिस्तान रिश्ते और क्षेत्रीय-सहयोग के स्वप्न


इस महीने 15-16 को इस्लामाबाद में हो रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए विदेशमंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान जा रहे हैं. उनकी यात्रा को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या इसे दोनों देशों के संबंध-सुधार की शुरुआत माना जाए?  

हालांकि विदेश मंत्रालय और स्वयं विदेशमंत्री ने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा द्विपक्षीय-संबंधों को लेकर नहीं है, फिर भी सम्मेलन से बाहर, खासतौर से मीडिया में, रिश्तों को लेकर चर्चा जरूर होगी. पर यह चर्चा आधिकारिक रूप से नहीं होगी, सम्मेलन के हाशिए पर भी नहीं.

दूसरी तरफ सम्मेलन में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भारत-पाकिस्तान प्रसंग प्रतीकों के माध्यम से उठेंगे. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय-सहयोग और साइबर-सुरक्षा जैसे मसलों पर चर्चा के दौरान ऐसी बातें हों, तो हैरत नहीं होगी.

Wednesday, October 9, 2024

‘खर्ची-पर्ची’ खा गई, हरियाणा में कांग्रेस को

 


हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली जीत बहुत से लोगों को अप्रत्याशित लग रही है। कांग्रेस पार्टी ने परिणाम आने के पहले ही साज़िश का अंदेशा व्यक्त करके चुनाव आयोग से शिकायत कर दी थी। इससे कुछ देर के लिए उसके कार्यकर्ताओं को दिलासा भले ही मिल गई हो, पर पार्टी की व्यापक रणनीति में छिद्र नज़र आने लगे हैं। कहा यह जा रहा है कि राष्ट्रीय गठबंधन बनाने के बावजूद कांग्रेस जिताऊ पार्टी नहीं है। हरियाणा को छोड़ भी दें, तो जम्मू-कश्मीर में इंडिया गठबंधन को मिली सफलता, कांग्रेस नहीं नेशनल कांफ्रेंस की वजह से है। इन परिणामों के बाद भाजपा के बरक्स कांग्रेस को जो धक्का लगेगा, वह दीगर है, उसे इंडिया गठबंधन में अपने ही सहयोगियों का धक्का भी लगेगा। महाराष्ट्र में सीट-वितरण के वक्त आप इसे देखेंगे।  

वोट बढ़ा, फिर भी…

हरियाणा के परिणाम पर द हिंदू ने अपने संपादकीय में लिखा है, चुनाव विश्लेषकों के अनुमानों के विपरीत, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हरियाणा में अपनी सीटों को 40 से बढ़ाकर 48 और वोट शेयर को 36.5% से बढ़ाकर 39.9% करके लगातार तीसरी बार सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही है। कांग्रेस का वोट शेयर भी 11 अंक बढ़कर 39.1% दर्ज किया गया, लेकिन इसकी सीटों की संख्या मामूली रूप से छह बढ़कर 37 हो गई। प्रभावशाली जाट समुदाय को बढ़ावा देने वाली दो क्षेत्रीय पार्टियों, इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का प्रदर्शन खराब रहा, क्योंकि उनका संयुक्त वोट शेयर 2019 में 21% से गिरकर 2024 में 7% हो गया, जिससे कांग्रेस को मदद मिली।

Tuesday, October 8, 2024

पश्चिम एशिया में लड़ाई की पहली भयावह-वर्षगाँठ


गज़ा में एक साल की लड़ाई ने इस इलाके में गहरे राजनीतिक, मानवीय और सामाजिक घाव छोड़े हैं. इन घावों के अलावा भविष्य की विश्व-व्यवस्था के लिए कुछ बड़े सवाल और ध्रुवीकरण की संभावनाओं को जन्म दिया है. इस प्रक्रिया का समापन किसी बड़ी लड़ाई से भी हो सकता है.

यह लड़ाई इक्कीसवीं सदी के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगी. कहना मुश्किल है कि इस मोड़ की दिशा क्या होगी, पर इतना स्पष्ट है कि इसे रोक पाने में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से लेकर संरा सुरक्षा परिषद तक नाकाम हुए हैं. लग रहा है कि यह लड़ाई अपने दूसरे वर्ष में भी बिना किसी समाधान के जारी रहेगी, जिससे इसकी पहली वर्षगाँठ काफी डरावनी लग रही है.

इस लड़ाई के कारण अमेरिका, ब्रिटेन और इसराइल की आंतरिक-राजनीति भी प्रभावित हो रही है, बल्कि दुनिया के दूसरे तमाम देशों की आंतरिक-राजनीति पर इसका असर पड़ रहा है.

Wednesday, October 2, 2024

इसराइल के तूफानी हमलों का निशाना कौन है?


पहले हमास के प्रमुख इस्माइल हानिये और अब हिज़्बुल्ला के प्रमुख हसन नसरल्ला की मौत के बाद सवाल है कि क्या इससे पश्चिम एशिया में इसराइल की प्रतिरोधी-शक्तियाँ घबराकर हथियार डाल देंगी? हो सकता है कि कुछ देर के लिए उनकी गतिविधियाँ धीमी पड़ जाएं, पर यह इसराइल की निर्णायक जीत नहीं है.

किसी एक की जीत देखने की कोशिश करनी भी नहीं चाहिए, बल्कि समझदारी के साथ रास्ता निकालना चाहिए. यह युद्ध है, जिसमें इसराइल की रणनीति है प्रतिस्पर्धियों के मनोबल को तोड़ना और दीर्घकालीन उद्देश्य है ईरानी-चुनौती को कुंठित करना.

मौके की नज़ाकत को देखते हुए अब ईरान के रुख पर भी नज़र रखनी होगी. काफी दारोमदार उसपर है, क्योंकि शेष इस्लामिक देशों के हौसले आज वैसे नहीं हैं, जैसे सत्तर साल पहले हुआ करते थे. ईरान ने मंगलवार की रात इसराइल के ऊपर दो सौ से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागकर शुरुआत कर दी है, जिनमें से ज्यादातर को इसराइल ने बीच में ही रोक लिया.