Wednesday, August 7, 2024

शेख हसीना का पराभव और अराजकता भारत के लिए अशुभ संकेत


बांग्लादेश एकबार फिर से 2007-08 के दौर में वापस आ गया है. प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने कार्यकाल के आठवें महीने में ही न केवल इस्तीफा देना पड़ा है, देश छोड़कर भी जानापड़ा है. वे दिल्ली आ गई हैं, पर शायद यह अस्थायी मुकाम है.

पहले सुनाई पड़ रहा था कि संभवतः वे लंदन जाएंगी, पर अब सुनाई पड़ रहा है कि ब्रिटेन को कुछ हिचक है. फिलहाल उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत पर है. उनके पराभव से बांग्लादेश की राजनीति में किस प्रकार का बदलाव आएगा, इसका पता नहीं, पर इतना साफ है कि दक्षिण एशिया के निकटतम पड़ोसी देशों में भारत के सबसे ज्यादा दोस्ताना रिश्ते उनके साथ थे.

अब हमें उनके बाद के परिदृश्य के बारे में सोचना होगा. इसके लिए बांग्लादेश के राजनीतिक दलों के साथ संपर्क बनाकर रखना होगा. कम से कम उन्हें भारत-विरोधी बनने से रोकना होगा.

आशा थी कि शेख हसीना के नेतृत्व में देश एक स्थिर और विकसित लोकतंत्र के रूप में उभर कर आएगा, पर वे ऐसा कर पाने में सफल नहीं हुईं. देश का राजनीतिक भविष्य अभी अस्पष्ट है, पर फिलहाल कुछ समय तक यह सेना के हाथ में रहेगा.

सेना के हाथ में सत्ता बनी रही, तो उससे नई समस्याएं पैदा होंगी और यदि असैनिक सरकार आई, तो उसे लोकतांत्रिक-पारदर्शिता और कट्टरपंथी आक्रामकता के बीच से गुजरना होगा. आंदोलन के एनजीओ टाइप छात्र नेता जैसी बातें कर रहे हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि भविष्य की राह आसान नहीं है.

व्यवस्था या अराजकता?

देश के विभिन्न स्थानों और प्रतिष्ठानों में शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीरों और प्रतिमाओं को तोड़ा गया, अवामी लीग के कार्यालय में आग लगाई गई. सोमवार की दोपहर, बीएनपी, जमाते इस्लामी आंदोलन सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता और नागरिक समाज के प्रतिनिधि ढाका छावनी से एक सशस्त्र बल वाहन में राष्ट्रपति के निवास बंगभवन गए.

राष्ट्रपति, सेना प्रमुख के साथ बंगभवन में हुई इस बैठक में अंतरिम सरकार को लेकर कई फैसले किए गए. बैठक के बाद बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि संसद जल्द ही भंग कर दी जाएगी और अंतरिम सरकार की घोषणा की जाएगी.

Monday, August 5, 2024

फिर से चौराहे पर बांग्लादेश


बांग्लादेश एकबार फिर से 2007-08 के दौर में वापस आ गया है। ऐसा लगता था कि शेख हसीना के नेतृत्व में देश लोकतांत्रिक राह पर आगे बढ़ेगा, पर वे ऐसा कर पाने में सफल हुईं नहीं। हालांकि इस देश का राजनीतिक भविष्य अभी अस्पष्ट है, पर लगता है कि फिलहाल कुछ समय तक यह सेना के हाथ में रहेगा। उसके बाद लोकतंत्र की वापसी कब होगी और किस रूप में होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है। यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि सेना बैरक में कब लौटेगी, कर्फ्यू पूरी तरह से नहीं हटाया गया है, इंटरनेट पूरी तरह से वापस नहीं आया है और शैक्षणिक संस्थान बंद हैं।

शेख हसीना और उनके सलाहकारों ने भी राजनीतिक रूप से गलतियाँ की हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि उन्होंने पिछले 16 वर्षों में लोकतांत्रिक-व्यवस्था को मजबूत करने की कोशिश नहीं की और जनमत को महत्व नहीं दिया। अवामी लीग जनता के मुद्दों को नजरंदाज़ करती रही। आरक्षण विरोधी आंदोलन को 'सरकार विरोधी आंदोलन' माना गया। उसे केवल कोटा सुधार आंदोलन के रूप में नहीं देखा। शेख हसीना के बेटे और उनके आईटी सलाहकार सजीब वाजेद जॉय ने सेना और न्याय-व्यवस्था से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया है कि कोई भी अनिर्वाचित देश में नहीं आनी चाहिए। सवाल है कि क्या निकट भविष्य में चुनाव संभव है? भारत की दृष्टि से यह परेशानी का समय है।

Saturday, August 3, 2024

मोदी3.0: उत्साह के बावजूद आशंकाएं

गत 9 जून को, नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ लेकर एक कीर्तिमान बनाया था, जो 1962 में जवाहर लाल नेहरू के दौर के बाद पहली बार स्थापित हुआ है। उसके एक दिन बाद, उन्होंने अपनी सरकार के चार प्रमुख विभागों-रक्षा, गृह, वित्त और विदेश के मंत्रियों को उनके पुराने पदों पर फिर से नियुक्त करके न केवल निरंतरता का, बल्कि दृढ़ता का संदेश भी दिया। विरोधी इसे बैसाखी पर टिकी सरकार बता रहे हैं, पर नरेंद्र मोदी तकरीबन उसी सहज तरीके से काम कर रहे हैं, जैसे करते आए थे।

भारतीय जनता पार्टी के पास 240 सीटें हैं, जिनसे भले ही पूर्ण बहुमत साबित नहीं होता है, पर 1984 के बाद यह किसी भी एक पार्टी को प्राप्त तीसरा सबसे बड़ा जनादेश है। तीनों जनादेश नरेंद्र मोदी के नाम हैं। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव-परिणाम को मोदी की पराजय बताया है, पर सच यह है कि पिछले तीन लोकसभा परिणामों में कांग्रेस को प्राप्त सीटों को एकसाथ जोड़ लें, तब भी वे इन 240 सीटों के बराबर नहीं हैं।

आक्रामक-विपक्ष

बावजूद इसके, मानना यह भी होगा कि मोदी की पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिलीं। कम से कम उत्तर प्रदेश, बंगाल और महाराष्ट्र में उसे अपमानित भी होना पड़ा है। यानी वोटर ने किसी को कुछ ढील दी और दूसरे को कुछ कसा। कुल मिलाकर बीजेपी देश के 29 में से 13 प्रदेशों में सत्ता में है, और उसके सहयोगी दल छह प्रांतों में शासन कर रहे हैं। बेशक केंद्र में सरकार पहले की तुलना में कुछ कमजोर है, पर वैसी लाचार नहीं है, जैसी मनमोहन सिंह अपनी सरकार को बताते थे। उनके ही आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने उनके दौर को पॉलिसी पैरेलिसिस बताया था।

Wednesday, July 31, 2024

इसराइल के दोनों तरफ लगी आग, फलस्तीनी गुटों की एकता और इस्माइल हानिये की हत्या

30 जुलाई को तेहरान में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान के साथ हमास के चीफ इस्माइल हानिये।

एक तरफ इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने अमेरिकी संसद में जाकर घोषणा की है कि गज़ा में लड़ाई जारी रहेगी, वहीं फलस्तीनियों की दृष्टि से अच्छी खबर यह है कि उनके दो सबसे महत्वपूर्ण गुटों हमास और फतह के बीच गज़ा में 'सुलह सरकार (यूनिटी गवर्नमेंट)' बनाने करने पर सहमति हो गई है. पर इसके एक हफ्ते बाद ही हमास के प्रमुख इस्माइल हानिये की हत्या के निहितार्थ को भी समझना होगा.

यह सहमति 14 गुटों के बीच हुई है, पर इन दो गुटों का एक-दूसरे के करीब आना सबसे महत्वपूर्ण हैं. सुलह इसलिए मायने रखती है, क्योंकि आने वाले समय में यदि विश्व समुदाय टू-स्टेट समाधान की दिशा में आगे बढ़ा, तो वह कोशिश इन गुटों के आपसी टकराव की शिकार न हो जाए.

फिर भी इस समझौते को अंतिम नहीं माना जा सकता. इसमें कई किंतु-परंतु हैं, फिलहाल यह फलस्तीनियों की आंतरिक एकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यह सहमति चीन की मध्यस्थता से हुई है, इसलिए इसे चीन की बढ़ती भूमिका के रूप में भी देखना होगा.

Saturday, July 27, 2024

अमेरिकी संसद के चुनाव

अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति-चुनाव है, साथ ही संसद के चुनाव भी होंगे, जिसके दो सदन हैं-हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव और सीनेट। 50 राज्यों के 435 जिलों से 435 सदस्य चुनकर आएंगे, जिनसे 119वें हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव का गठन होगा। यह सदन 3 जनवरी 2025 से 3 जनवरी 2027 तक काम करेगा। देश का उच्च सदन है सीनेट, जिसमें 50 राज्यों से 100 सदस्य आते हैं। हरेक राज्य को चाहे वह छोटा हो या बड़ा, दो-दो सदस्यों के रूप में बराबर का प्रतिनिधित्व मिलता है। सीनेट के अधिकार भी ज्यादा होते हैं। वर्तमान समय में हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में रिपब्लिकन पार्टी का, 213 के मुकाबले 218 का क्षीण बहुमत है। दूसरी तरफ सीनेट में डेमोक्रेट्स का 51-49 से बहुमत है। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव का कार्यकाल दो वर्ष का और सीनेटरों का छह वर्ष का होता है। चक्रीय व्यवस्था के तहत हरेक दो साल में सदन के 100 सदस्यों में से एक तिहाई नए आते हैं। इसबार 33 सदस्यों का चुनाव होगा, जो छह साल के लिए चुने जाएंगे। इनके अलावा 11 राज्यों और दो टेरिटरीज़ के गवर्नरों, शहरों के मेयरों तथा कई राज्यों तथा स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित