बांग्लादेश एकबार फिर से 2007-08 के दौर में वापस आ गया है. प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने कार्यकाल के आठवें महीने में ही न केवल इस्तीफा देना पड़ा है, देश छोड़कर भी जानापड़ा है. वे दिल्ली आ गई हैं, पर शायद यह अस्थायी मुकाम है.
अब हमें उनके
बाद के परिदृश्य के बारे में सोचना होगा. इसके लिए बांग्लादेश के राजनीतिक दलों के
साथ संपर्क बनाकर रखना होगा. कम से कम उन्हें भारत-विरोधी बनने से रोकना होगा.
आशा थी कि शेख
हसीना के नेतृत्व में देश एक स्थिर और विकसित लोकतंत्र के रूप में उभर कर आएगा, पर
वे ऐसा कर पाने में सफल नहीं हुईं. देश का राजनीतिक भविष्य अभी अस्पष्ट है, पर
फिलहाल कुछ समय तक यह सेना के हाथ में रहेगा.
सेना के हाथ में
सत्ता बनी रही, तो उससे नई समस्याएं पैदा होंगी और यदि असैनिक सरकार आई, तो उसे
लोकतांत्रिक-पारदर्शिता और कट्टरपंथी आक्रामकता के बीच से गुजरना होगा. आंदोलन के
एनजीओ टाइप छात्र नेता जैसी बातें कर रहे हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि भविष्य
की राह आसान नहीं है.
व्यवस्था
या अराजकता?
देश के विभिन्न
स्थानों और प्रतिष्ठानों में शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीरों और प्रतिमाओं को तोड़ा
गया, अवामी लीग के कार्यालय में आग लगाई गई. सोमवार की दोपहर, बीएनपी, जमाते इस्लामी आंदोलन सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता और नागरिक
समाज के प्रतिनिधि ढाका छावनी से एक सशस्त्र बल वाहन में राष्ट्रपति के निवास
बंगभवन गए.
राष्ट्रपति, सेना प्रमुख के साथ बंगभवन में हुई इस बैठक में अंतरिम सरकार को लेकर कई फैसले किए गए. बैठक के बाद बीएनपी महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि संसद जल्द ही भंग कर दी जाएगी और अंतरिम सरकार की घोषणा की जाएगी.