गढ़चिरौली में महाराष्ट्र पुलिस के सी-60 कमांडो दस्ते की क्विक रेस्पांस टीम (क्यूआरटी) के 16 सदस्यों की 1 मई को हुई मौत के बाद दो तरह के सवाल मन में आते हैं। पहला रणनीतिक चूक के बाबत है। हम बार-बार एक तरह की गलती क्यों कर रहे हैं? दूसरा सवाल हिंसक माओवादी राजनीति को लेकर है। आतंकियों ने पहले सड़क निर्माण में लगे ठेकेदार के तीन दर्जन वाहनों में आग लगाई। इसकी सूचना मिलने पर क्यूआरटी दस्ता एक प्राइवेट बस से घटनास्थल की ओर रवाना हुआ, तो रास्ते में आईईडी लगाकर बस को उड़ा दिया। इस तरह से उन्होंने कमांडो दस्ते को अपने जाल में फँसाया।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पिछले एक महीने में गढ़चिरौली में हो रही गतिविधियों के बारे में 13 अलर्ट जारी हुए थे। पिछले साल 22 अप्रैल को इसी इलाके में पुलिस के कमांडो दस्ते में 40 आतंकियों को ठिकाने लगाया था। आतंकी इस साल बदले की कार्रवाई कर रहे थे और इस बात की जानकारी राज्य पुलिस को थी। सामान्यतः कमांडो दस्ते को एक ही वाहन में नहीं भेजा जाता। वे ज्यादातर पैदल मार्च करते हुए जाते हैं, ताकि उनपर घात लगाकर हमला न हो सके। इस बार वे प्राइवेट बस में जा रहे थे, जिसकी जानकारी केवल पुलिस को थी। सम्भव है कि स्थानीय लोगों ने इसे देखा हो और आतंकियों को जानकारी दी हो। जो भी है, यह स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर की अनदेखी है, जिसका भारी खामियाजा देना पड़ा।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पिछले एक महीने में गढ़चिरौली में हो रही गतिविधियों के बारे में 13 अलर्ट जारी हुए थे। पिछले साल 22 अप्रैल को इसी इलाके में पुलिस के कमांडो दस्ते में 40 आतंकियों को ठिकाने लगाया था। आतंकी इस साल बदले की कार्रवाई कर रहे थे और इस बात की जानकारी राज्य पुलिस को थी। सामान्यतः कमांडो दस्ते को एक ही वाहन में नहीं भेजा जाता। वे ज्यादातर पैदल मार्च करते हुए जाते हैं, ताकि उनपर घात लगाकर हमला न हो सके। इस बार वे प्राइवेट बस में जा रहे थे, जिसकी जानकारी केवल पुलिस को थी। सम्भव है कि स्थानीय लोगों ने इसे देखा हो और आतंकियों को जानकारी दी हो। जो भी है, यह स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर की अनदेखी है, जिसका भारी खामियाजा देना पड़ा।