सुप्रीम कोर्ट के
66ए के बाबत फैसले के बाद यह धारा तो खत्म हो गई, पर इस विषय पर विमर्श की वह
प्रक्रिया शुरू हुई है जो इसे तार्किक परिणति तक ले जाएगी। यह बहस खत्म नहीं अब
शुरू हुई है। धारा 66ए के खत्म होने का मतलब यह नहीं कि किसी को कुछ भी लिख देने
का लाइसेंस मिल गया है। ऐसा सम्भव भी नहीं। हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता और उसकी सीमाएं अच्छी तरह परिभाषित हैं। यह संवैधानिक व्यवस्था सोशल
मीडिया पर भी लागू होगी। पर उसके नियमन की जरूरत है। केंद्र सरकार ने इस मामले की
संवेदनशीलता को देखते हुए इससे हाथ खींच लिया था। उसकी जिम्मेदारी है कि वह अब
नियमों को स्पष्ट करने में पहल करे।
Thursday, March 26, 2015
Wednesday, March 25, 2015
कांग्रेस का मीडिया मेकओवर
कांग्रेस ने मंगलवार 25 मार्च को 21 पार्टी प्रवक्ताओं की नई सूची जारी की। इनमें 17 प्रवक्ता और 4 सीनियर प्रवक्ता हैं। इसके अलावा 31 लोगों को मीडिया और टीवी चैनलों के पैनल में कोऑर्डिनेट करने की जिम्मेदारी दी गई है। पूर्व प्रवक्ता अजय माकन को सीनियर प्रवक्ता बनाए रखा है। मीडिया पैनलिस्ट में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी को शामिल किया गया है। वह टीवी चैनलों पर कांग्रेस का पक्ष रखेंगी। पार्टी ने हाल में रणदीप सुरजेवाला को अपने जनसम्पर्क विभाग का प्रमुख बनाया है। पार्टी की योजना अब बड़े स्तर पर जनसम्पर्क अभियान चलाने की है। इस टीम में मीडिया पैनेलिस्टों को छांटने में खासी मशक्कत की गई लगती है।
इतनी भारी-भरकम प्रवक्ता टीम पहली बार घोषित की गई है। इसमें बड़ी संख्या में राहुल गांधी के करीबी लोग शामिल हैं। इनकी औसत उम्र 40 साल है। टीम में दो महत्वपूर्ण नाम नहीं दिखाई पड़े। पहला नाम है जयराम रमेश का और दूसरा शशि थरूर का। शशि थरूर कई कारणों से विवादास्पद हो गए थे, पर जयराम रमेश तो अच्छे प्रवक्ता माने जाते रहे हैं। लगता है वे किसी और महत्वपूर्ण काम को सम्हालने जा रहे हैं। एक और महत्वपूर्ण नाम राशिद अल्वी का है जो इस सूची में नहीं है। सूची को देखने पर यह भी नजर आता है कि पार्टी अपने मेकओवर में प्रवक्ताओं को महत्व दे रही है। जितने संगठित तरीके से यह टीम घोषित की गई है यह पार्टी के इतिहास में पहली बार होता लगता है।
इन नामों पर गौर करें तो काफी बड़ी संख्या युवाओं की है, पर वरिष्ठ और अनुभवी नेता भी इनमें शामिल हैं। वरिष्ठ नेताओं की संतानों को भी इनमें जगह दी गई है। मसलन दीपेंद्र हुड्डा, आरपीएन सिंह, शर्मिष्ठा मुखर्जी, सलमान सोज़, परिणीति शिंदे, सुष्मिता देव, अमित देशमुख, रश्मिकांत, गौरव गोगोई वगैरह।
अजय माकन, सीपी जोशी, सत्यव्रत चतुर्वेदी और शकील अहमद को सीनियर प्रवक्ता के तौर पर शामिल किया है। इसके अलावा पार्टी के सीनियर प्रवक्ताओं में आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, पी चिदंबरम और सलमान खुर्शीद पहले से ही शामिल हैं। इस सूची के घोषित होने के बाद मीडिया को अभी यह बताने वाला कोई नहीं है कि राहुल गांधी कहाँ हैं और कब आने वाले हैं।
यह है पूरी लिस्ट
सीनियर प्रवक्ता- आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, पी चिदंबरम, सलमान खुर्शीद,अजय माकन, सीपी जोशी, सत्यव्रत चतुर्वेदी, शकील अहमद।
प्रवक्ता- अभिषेक सिंघवी, अजय कुमार, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पी सी चाको, राज बब्बर, रीता बहुगुणा जोशी, संदीप दीक्षित, संजय झा, शक्ति सिंह गोहिल और शोभा ओझा की मौजूदा टीम के अतिरिक्त पार्टी प्रवक्ता होंगे भक्त चरणदास, दीपेंद्र हुड्डा, दिनेश गुंडूराव, गौरव गोगोई, खुशबू सुंदर, मधु गौड़, मीम अफजल, प्रियंका चतुर्वेदी, पीएल पुनिया, राजीव गौड़ा, राजीव सत्व, रजनी पाटिल, आरपीएन सिंह, सुष्मिता देव, टॉम वडक्कन, विजेंद्र सिंगला।
मीडिया पैनलिस्ट- अखिलेश प्रताप सिंह, आलोक शर्मा, एमी याग्निक, अमित देशमुख, अनंत गाडगिल, अशोक तंवर, बालचंद्र मुंगेरकर, ब्रजेश कलप्पा, चंदन यादव, चरण सिंह सापरा, सीआर केशवन, देवव्रत सिंह, हुसैन दलवी, जगवीर शेरगिल, जीतू पटवारी, मनीष तिवारी, मुकेश नायक, नदीम जावेद, नासिर हुसैन, प्रेमचंद मिश्रा, परणीति शिंदे, रागिनी नायक, राजीव शुक्ला, रंजीता रंजन, रश्मिकांत, सलमान सोज, संदीप चौधरी, संजय निरुपम, शर्मिष्ठा मुखर्जी, डॉ विष्णु।
इन नामों पर गौर करें तो काफी बड़ी संख्या युवाओं की है, पर वरिष्ठ और अनुभवी नेता भी इनमें शामिल हैं। वरिष्ठ नेताओं की संतानों को भी इनमें जगह दी गई है। मसलन दीपेंद्र हुड्डा, आरपीएन सिंह, शर्मिष्ठा मुखर्जी, सलमान सोज़, परिणीति शिंदे, सुष्मिता देव, अमित देशमुख, रश्मिकांत, गौरव गोगोई वगैरह।
अजय माकन, सीपी जोशी, सत्यव्रत चतुर्वेदी और शकील अहमद को सीनियर प्रवक्ता के तौर पर शामिल किया है। इसके अलावा पार्टी के सीनियर प्रवक्ताओं में आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, पी चिदंबरम और सलमान खुर्शीद पहले से ही शामिल हैं। इस सूची के घोषित होने के बाद मीडिया को अभी यह बताने वाला कोई नहीं है कि राहुल गांधी कहाँ हैं और कब आने वाले हैं।
यह है पूरी लिस्ट
सीनियर प्रवक्ता- आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, पी चिदंबरम, सलमान खुर्शीद,अजय माकन, सीपी जोशी, सत्यव्रत चतुर्वेदी, शकील अहमद।
प्रवक्ता- अभिषेक सिंघवी, अजय कुमार, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पी सी चाको, राज बब्बर, रीता बहुगुणा जोशी, संदीप दीक्षित, संजय झा, शक्ति सिंह गोहिल और शोभा ओझा की मौजूदा टीम के अतिरिक्त पार्टी प्रवक्ता होंगे भक्त चरणदास, दीपेंद्र हुड्डा, दिनेश गुंडूराव, गौरव गोगोई, खुशबू सुंदर, मधु गौड़, मीम अफजल, प्रियंका चतुर्वेदी, पीएल पुनिया, राजीव गौड़ा, राजीव सत्व, रजनी पाटिल, आरपीएन सिंह, सुष्मिता देव, टॉम वडक्कन, विजेंद्र सिंगला।
मीडिया पैनलिस्ट- अखिलेश प्रताप सिंह, आलोक शर्मा, एमी याग्निक, अमित देशमुख, अनंत गाडगिल, अशोक तंवर, बालचंद्र मुंगेरकर, ब्रजेश कलप्पा, चंदन यादव, चरण सिंह सापरा, सीआर केशवन, देवव्रत सिंह, हुसैन दलवी, जगवीर शेरगिल, जीतू पटवारी, मनीष तिवारी, मुकेश नायक, नदीम जावेद, नासिर हुसैन, प्रेमचंद मिश्रा, परणीति शिंदे, रागिनी नायक, राजीव शुक्ला, रंजीता रंजन, रश्मिकांत, सलमान सोज, संदीप चौधरी, संजय निरुपम, शर्मिष्ठा मुखर्जी, डॉ विष्णु।
Sunday, March 22, 2015
सोनिया आक्रामक क्यों?
पिछले एक हफ्ते
में श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी आक्रामक नजर आ रही है। यह
आक्रामकता संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह है। सबसे महत्वपूर्ण है सोनिया गांधी का
सड़क पर उतरना। यह पहला मौका है जब सोनिया गांधी सड़क पर उतरी हैं। केवल सड़क पर
ही नहीं सामने आकर नेतृत्व कर रही हैं। इसके कई कारण हैं। पहला कारण कांग्रेस की
बदहाली है। अपने इतिहास में पार्टी सबसे ज्यादा संकट से घिरी नजर आती है। कांग्रेस
का आक्रामक होना इसलिए स्वाभाविक लगता है। पर सोनिया क्यों, राहुल क्यों नहीं? क्या पार्टी ने कोई और
प्लान बनाया है? इसका जवाब समय देगा। बहुत सी बातों के जवाब समय के आवरण में छिपे हैं। अलबत्ता इतना दिखाई पड़ रहा है कि कांग्रेस अपनी पराजित छवि को दुरुस्त करके मैदान में वापसी करेगी।
क्या 21वीं सदी में किसी काम का रह जाएगा इंसान?
युवाल हरारी, हिब्रू यूनिवर्सिटी, यरुसलम.
विज्ञान और टेक्नोलॉजी में हो रही प्रगति के बरक्स इंसानी भविष्य पर एक बेहद दिलचस्प और विचारोत्तेजक लेख पेश है. हिंदी में ऐसे लेखों का सर्वथा अकाल है. लेखक प्रो. युवाल हरारी इतिहास पढ़ाते हैं. उनकी पुस्तक 'शेपियंस: अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ ह्यूमनकाइंड' इन दिनों धूम मचाए हुए है. उनकी किताब का विषय है मनुष्य का इतिहास जिसमें वे एक जैविक शरीर के रूप में इंसान के इतिहास को देखते हैं और फिर उसकी विविध क्रांतियों मसलन कृषि क्रांति, औद्योगिक क्रांति और पचास साल पुरानी सूचना क्रांति के प्रभावों का विवेचन करते हैं. इस बायो-इंजीनियरी ने मनुष्योत्तर सायबॉर्ग को जन्म दिया है जो अमर है. लगता है यह मनुष्य को पीछे छोड़ देगा. इस रोचक लेख का अनुवाद किया है आशुतोष उपाध्याय ने.
..................................................................................
जैसे-जैसे 21वीं सदी अपने पांव पसार रही है, इंसान के सिर पर उसकी कीमत ख़त्म हो जाने का खतरा मंडराने लगा है. क्योंकि बुद्धिमत्ता और चेतना का अटूट गठबंधन टूटने के कगार पर है. अभी हाल तक उच्च मेधा को अति विकसित चेतना का ही एक पहलू समझा जाता था. केवल चेतन जीव ही ऐसे काम करते पाए जाते थे जिनके लिए अच्छे खासे दिमाग की ज़रूरत पड़ती थी- जैसे शतरंज खेलना, कार चलाना, बीमारियों का पता लगा लेना या फिर लेख लिख पाना. मगर आज हम ऐसी नई तरह की अचेतन बुद्धिमत्ता विकसित कर रहे हैं जो इस तरह के कामों को इंसानों से कहीं ज्यादा बेहतर कर सकती है.
इस परिघटना ने एक अनूठे सवाल को जन्म दिया है- दोनों में कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है, बुद्धिमत्ता या चेतना? जब तक ये दोनों साथ-साथ चल रहे थे, यह सवाल दार्शनिकों के वक्त बिताने का एक बहाना भर था. लेकिन 21वीं सदी में यह सवाल एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक मुद्दा बन गया है. और इस बात को अब खासी तवज्जो दी जा रही है कि कम से कम आर्थिक नज़रिए से बुद्धिमत्ता अपरिहार्य है, जबकि चेतना का कोई ख़ास मोल नहीं.
विज्ञान और टेक्नोलॉजी में हो रही प्रगति के बरक्स इंसानी भविष्य पर एक बेहद दिलचस्प और विचारोत्तेजक लेख पेश है. हिंदी में ऐसे लेखों का सर्वथा अकाल है. लेखक प्रो. युवाल हरारी इतिहास पढ़ाते हैं. उनकी पुस्तक 'शेपियंस: अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ ह्यूमनकाइंड' इन दिनों धूम मचाए हुए है. उनकी किताब का विषय है मनुष्य का इतिहास जिसमें वे एक जैविक शरीर के रूप में इंसान के इतिहास को देखते हैं और फिर उसकी विविध क्रांतियों मसलन कृषि क्रांति, औद्योगिक क्रांति और पचास साल पुरानी सूचना क्रांति के प्रभावों का विवेचन करते हैं. इस बायो-इंजीनियरी ने मनुष्योत्तर सायबॉर्ग को जन्म दिया है जो अमर है. लगता है यह मनुष्य को पीछे छोड़ देगा. इस रोचक लेख का अनुवाद किया है आशुतोष उपाध्याय ने.
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जैसे-जैसे 21वीं सदी अपने पांव पसार रही है, इंसान के सिर पर उसकी कीमत ख़त्म हो जाने का खतरा मंडराने लगा है. क्योंकि बुद्धिमत्ता और चेतना का अटूट गठबंधन टूटने के कगार पर है. अभी हाल तक उच्च मेधा को अति विकसित चेतना का ही एक पहलू समझा जाता था. केवल चेतन जीव ही ऐसे काम करते पाए जाते थे जिनके लिए अच्छे खासे दिमाग की ज़रूरत पड़ती थी- जैसे शतरंज खेलना, कार चलाना, बीमारियों का पता लगा लेना या फिर लेख लिख पाना. मगर आज हम ऐसी नई तरह की अचेतन बुद्धिमत्ता विकसित कर रहे हैं जो इस तरह के कामों को इंसानों से कहीं ज्यादा बेहतर कर सकती है.
इस परिघटना ने एक अनूठे सवाल को जन्म दिया है- दोनों में कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है, बुद्धिमत्ता या चेतना? जब तक ये दोनों साथ-साथ चल रहे थे, यह सवाल दार्शनिकों के वक्त बिताने का एक बहाना भर था. लेकिन 21वीं सदी में यह सवाल एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक मुद्दा बन गया है. और इस बात को अब खासी तवज्जो दी जा रही है कि कम से कम आर्थिक नज़रिए से बुद्धिमत्ता अपरिहार्य है, जबकि चेतना का कोई ख़ास मोल नहीं.
Friday, March 20, 2015
क्या ‘मोदी मैजिक’ को तोड़ सकती है कांग्रेस?
सोनिया गांधी ‘सेक्युलर’ ताकतों को एक साथ लाने में कामयाब हुईं हैं. पिछले साल लोकसभा चुनाव के पहले इस किस्म का गठजोड़ बनाने की कोशिश हुई थी, पर उसका लाभ नहीं मिला. राज्यों के विधानसभा चुनावों में इसकी कोशिश नहीं हुई. केवल उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान के उपचुनावों में इसका लाभ मिला. उसके बाद दिल्ली के विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में यह एकता दिखाई दी. निष्कर्ष यह है कि जहाँ मुकाबला सीधा है वहाँ यदि एकता कायम हुई तो मोदी मैजिक नहीं चलेगा.
क्या इस कांग्रेस भाजपा विरोधी मोर्चे का नेतृत्व कांग्रेस करेगी? पिछले हफ्ते की गतिविधियों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर सोनिया गांधी के नेतृत्व में 14 पार्टियों के नेतृत्व में राष्ट्रपति भवन तक हुआ मार्च कई मानों में प्रभावशाली था, पर इसमें विपक्ष की तीन महत्वपूर्ण पार्टियाँ शामिल नहीं थीं. संयोग है कि तीनों विपक्ष की सबसे ताकतवर पार्टियाँ हैं. अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और बसपा की अनुपस्थिति को भी समझने की जरूरत है. कह सकते हैं कि मोदी-रथ ढलान पर उतरने लगा है, पर अभी इस बात की परीक्षा होनी है. और अगला परीक्षण स्थल है बिहार.
क्या इस कांग्रेस भाजपा विरोधी मोर्चे का नेतृत्व कांग्रेस करेगी? पिछले हफ्ते की गतिविधियों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर सोनिया गांधी के नेतृत्व में 14 पार्टियों के नेतृत्व में राष्ट्रपति भवन तक हुआ मार्च कई मानों में प्रभावशाली था, पर इसमें विपक्ष की तीन महत्वपूर्ण पार्टियाँ शामिल नहीं थीं. संयोग है कि तीनों विपक्ष की सबसे ताकतवर पार्टियाँ हैं. अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और बसपा की अनुपस्थिति को भी समझने की जरूरत है. कह सकते हैं कि मोदी-रथ ढलान पर उतरने लगा है, पर अभी इस बात की परीक्षा होनी है. और अगला परीक्षण स्थल है बिहार.
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