Wednesday, January 15, 2014
Tuesday, January 14, 2014
कतरनें काफी कुछ कहती हैं-2
दैनिक भास्कर में आज राहुल गांधी का इंटरव्यू छपा है। अभी तक राहुल गांधी या कांग्रेस की मीडिया मंडली हंदी मीडिया की उपेक्षा करती थी। इस बार के चुनाव परिणामों ने उन्हें कुछ सोचने को मजबूर किया है। पर क्या वे हिंदी बोलने वालों के दिल और दिमाग को समझते हैं? जल्द सामने आएगा। इससे एक बात यह झलकती है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की घोषणा होने वाली है। अलबत्ता यह इंटरव्यू पीआर एक्सरसाइज जैसा लगता है। इंटरव्यूअर की भूमिका क्रॉस क्वेश्चन की होती है जो इसमें दिखाई नहीं पड़ती।
भारत-अमेरिका रिश्तों में बचकाना बातें
देवयानी खोब्रागडे के मामले को लेकर हमारे मीडिया में जो
उत्तेजक माहौल बना उसकी जरूरत नहीं थी. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता था. इसे
भारत-अमेरिका रिश्तों के बनने या बिगड़ने का कारण मान लिया जाना निहायत नासमझी
होगी. दो देशों के रिश्ते इस किस्म की बातों से बनते-बिगड़ते नहीं है. भारत में इस
साल चुनाव होने हैं और यह मामला बेवजह गले की हड्डी बन सकता है. सच यह है कि यह एक
बीमारी का लक्षण मात्र है. बीमारी है संवेदनशील मसलों की अनदेखी. बेहतर होगा कि हम
बीमारी को समझने की कोशिश करें. हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर
केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए.
Sunday, January 12, 2014
कांग्रेस को जरूरत है एक जादुई चिराग की
आम आदमी पार्टी
हालांकि सभी पार्टियों के लिए चुनौती के रूप में उभरी है, पर उसका पहला निशाना
कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। पर ‘आप’ की जीत के बाद
राहुल गांधी ने कहा कि हमें जनता से जुड़ने की कला ‘आप’ से सीखनी चाहिए। सवा सौ साल पुरानी पार्टी के नेता की इस बात के माने
क्या हैं? राहुल की ईमानदारी या कांग्रेस का भटकाव? पार्टी को पता नहीं रहता कि जनता के मन में क्या है। राहुल गांधी ने इसके
फौरन बाद लोकपाल विधेयक का मुद्दा उठाया और कोई कुछ सोच पाता उससे पहले ही वह
कानून पास हो गया। लोकसभा चुनाव होने में तकरीबन तीन महीने का समय बाकी है। अब
कांग्रेस को तीन सवालों के जवाब खोजने हैं। क्या राहुल गांधी के नाम की औपचारिक
घोषणा प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में की जाएगी? क्या
सरकार कुछ और बड़े राजनीतिक फैसले करेगी? कांग्रेस कौन सी
जादू की पुड़िया खोलेगी जिसके सहारे सफलता उसके चरण चूमे?
पिछले मंगलवार
को राहुल गांधी के घर पर प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के बड़े नेताओं की बैठक करने
के बाद इतना जाहिर कर दिया कि वे भी अब सक्रिय रूप से चुनाव में हिस्सा लेंगी। राहुल
गांधी को अपने साथ विश्वसनीय सहयोगियों की जरूरत है। अगले कुछ दिनों में
महत्वपूर्ण नेताओं को सरकारी पदों को छोड़कर संगठन के काम में लगने के लिए कहा
जाएगा। इस बार एक-एक सीट के टिकट पर राहुल गांधी की मोहर लगेगी। महासचिवों के स्तर
पर भारी बदलाव होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश,
मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और अन्य हिंदी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस के पास
प्रभावशाली चेहरों की कमी है। कांग्रेस ने खुद भी इन इलाकों को त्यागा है। इसके
पहले प्रियंका गाँधी को मुख्यधारा की राजनीति में लाने की कोशिश नहीं की है। अमेठी
और रायबरेली के सिवा वे देश के दूसरे इलाकों में प्रचार करने नहीं जातीं। उन्हें
राहुल की पूरक बनाने का प्रयास अब किया जा रहा है। लगता है संगठन के काम अब वे देखेंगी।
प्रचार के तौर-तरीकों में भी बुनियादी बदलाव के संकेत हैं। हिंदी इलाकों में अच्छे
ढंग से हिंदी बोलने वाले प्रवक्ताओं को लगाने की योजना है। सोशल मीडिया में पार्टी
की इमेज सुधारने के लिए बाहरी एजेंसियों की मदद ली जा सकती है।
जीएसएलवी :भारतीय विज्ञान-गाथा का एक पन्ना
दुनिया के किसी
भी देश के अंतरिक्ष अभियान पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हर सफलता के पीछे विफलताओं
की कहानी छिपी होती। हर विफलता को सीढ़ी की एक पायदान बना लें वह सफलता के दरवाजे
पर पहुँचा देती है। यह बात जीवन पर भी लागू होती है। भारत के जियोसिंक्रोनस
सैटेलाइट लांच वेहिकल (जीएसएलवी) के इतिहास को देखें तो पाएंगे कि यह रॉकेट कई
प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए तैयार हुआ है। इसकी सफलता-कथा ही लोगों को
याद रहेगी, जबकि जिन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता है, वे इसकी
विफलता की गहराइयों में जाकर यह देखना चाहेंगे कि वैज्ञानिकों ने किस प्रकार इसमें
सुधार करते हुए इसे सफल बनाया।
जीएसएलवी की
चर्चा करने के पहले देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर नजर डालनी चाहिए। यह समझने की
कोशिश भी करनी चाहिए कि देश को अंतरिक्ष कार्यक्रम की जरूरत क्या है। कुछ लोग
मानते हैं कि जिस देश में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हों और जहाँ चालीस करोड़
से ज्यादा लोग खुले में शौच को जाते हों उसे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजना शोभा नहीं
देता। पहली नजर में यह बात ठीक लगती है। हमें इन समस्याओं का निदान करना ही चाहिए।
पर अंतरिक्ष कार्यक्रम क्या इसमें बाधा बनता है? नहीं बनता बल्कि इन
समस्याओं के समाधान खोजने में भी अंतरिक्ष विज्ञान मददगार हो सकता है।
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