असीम त्रिवेदी के बहाने चली बहस का एक फायदा यह हुआ कि सरकार ने इस 142 साल पुराने देशद्रोह कानून को बदलने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। मीडिया से सम्बद्ध ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ने गृह मंत्रालय से इस दिशा में काम करने का अनुरोध किया है। कानूनों का अनुपालन कराने वाली एजेंसियाँ अक्सर सरकार-विरोध को देश-विरोध समझ बैठती हैं। सूचना एवें प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी ने जीओएम के प्रमुख पी चिदम्बरम को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि दंड संहिता की धारा 124 ए का समुचित संशोधन होना चाहिए। चिदम्बरम ने उनसे सहमति व्यक्त की है। विडंबना है कि इसी दौरान तमिलनाडु में कुडानकुलम में नाभिकीय बिजलीघर लगाने के विरोध में आंदोलन चला रहे लोगों के खिलाफ देशद्रोह के आरोप लगा दिए गए हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शासन के प्रति विरोध और विद्रोह में काफी महीन रेखा है। हम आसानी से यह कहते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा है। हम सीमा पर ज़ोर देने लगे हैं, जबकि मूल संविधान में यह सीमा नहीं थी। देश के पहले संविधान संशोधन के मार्फत हमारे संविधान में युक्तिसंगत पाबंदियाँ लगाने का प्रावधान शामिल किया गया। विचार-विनिमय की स्वतंत्रता लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण कारक है। किसी ने सवाल किया कि गाली देना क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो सकती है? वस्तुतः हम भूलते हैं कि मौलिक अधिकार राज्य के बरक्स होते हैं। दो व्यक्तियों के बीच की गाली-गलौज के लिए दूसरे कानून हैं। राज्य की आलोचना के आधार दूसरे हैं। इस पोस्ट में मेरी ज्यादातर सामग्री दो साल पहले की एक पोस्ट से ली गई है। कुछ जगह नए संदर्भ जोड़े हैं। इस मामले में जैसे ही बहस आगे बढ़ती है तब यह सवाल आता है कि क्या हमारे देश, राज्य, सरकार, व्यवस्था का गरीब जनता से कोई वास्ता है? राष्ट्रीय चिह्नों की चिंता काफी लोगों को है, पर इनसानं के रूप में जो जीवित राष्ट्रीय चिह्न मौज़ूद हैं उनका अपमान होता है तो कैसा लगता है?
Monday, September 17, 2012
कहाँ से आ गई सरकार में इतनी हिम्मत?
ममता बनर्जी के रुख में बदलाव है और मुलायम सिंह की बातें गोलमोल हैं। लगता है आर्थिक उदारीकरण के सरकारी फैसलों के पहले गुपचुप कोई बात हो गई है।
पिछले साल सरकार आज के मुकाबले ज्यादा ताकतवर थी। 24 नवम्बर को मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी विदेशी निवेश का फैसला करने के बाद सरकार ने नहीं, बंगाल की मुख्यमंत्री ने उस फैसले को वापस लेने की घोषणा की थी। इस साल रेलवे बजट में किराया बढ़ाने की घोषणा रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने की और वे भूतपूर्व हो गए। सरकार लगातार कमज़ोर होती जा रही है। ऐसे में आर्थिक सुधार की इन जबर्दस्त घोषणाओं का मतलब क्या निकाला जाए? पहला मतलब शेयर बाज़ार, मुद्रा बाज़ार और विदेश-व्यापार के मोर्चे पर दिखाई पड़ेगा। देश के बाहर बैठे निवेशकों की अच्छी प्रतिक्रियाएं मिलेंगी और साथ ही देश के राजनीतिक दलों का विरोध भी देखने को मिलेगा। यूपीए सरकार को विपक्ष से ज्यादा अपने बाड़े के भीतर से ही विरोध मिलेगा। ममता बनर्जी ने डीज़ल के दाम फौरन घटाने का सरकार से आह्वान भी कर दिया है। पर सवाल है सरकार में इतनी हिम्मत कहाँ से आ गई? इसका एक अर्थ यही है कि कांग्रेस पार्टी ने मन बना लिया है कि सरकार गिरती है तो गिरे। या फिर बैकरूम पॉलिटिक्स में फैसलों पर सहमतियाँ बन गईं हैं।
Saturday, September 15, 2012
एक और सायना का उदय
मौज़ूदा दौर में भारतीय खेलों में सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाला काम हैदराबाद में पी गोपीचन्द और उनके साथी कर रहे हैं। भारतीय बैंडमिंटन की जो नई पौध तैयार हो रही है उसमें से एक पुसरला वेंकटेशा सिंधु ने शुक्रवार को चीन की इस साल की ओलिंम्पिक गोल्ड मेडल विनर ली श्वेरुई को हराकर संकेत किया है कि सायना नेहवाल के बाद और शायद उनसे भी ज्यादा ताकतवर खिलाड़ी सामने आ गई है। सिंधु ने यह जीत चीन के चेंगझाओ में हो रही चाइना मास्टर्स सुपर सीरीज़ में हासिल की है। 17 साल की सिंधु ने अपने क्वार्टर फाइनल मैच के पहले गुरुवार को आठवीं सीड थाईलैंड की पोरंतिप बरानाप्रसेरत्सक को हराकर संकेत दे दिया था कि वे इस बार बड़े इरादे से आईं हैं। इसी साल फरबरी में उबेर कप के एक मैच में ली श्वेरुई ने उन्हें 21-16, 21-13 से आसानी से हराया था। श्वेरुई ने इस साल ओलिम्पिक और ऑल इंग्लैंड सहित पाँच टाइटल जीते हैं। इस मैच के पहले वह एक मैच और हारी हैं, 17 जून को इंडोनेशिया ओपन का फाइनल मैच सायना नेहवाल के हाथ। सायना नेहवाल ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा न लेने का फैसला किया था। अब वे जापान मास्टर्स सीरीज़ में भाग लेंगी। शायद यह सोच-समझकर किया गया होगा. क्योंकि सिंधु को आजमाने का इससे बेहतर मौका और नहीं हो सकता था। यों भी केवल सायना नेहवाल को होने से उनपर बोझ पड़ता है और दूसरे देशों के खिलाड़ी उनके खेल को पढ़कर जवाब खोज लेते हैं। एक से ज्यादा खिलाड़ी पास में होने से हमारे पास बेहतर चॉइस होती है। बहरहाल सिधु अब खेल के एक लेवल ऊपर आ गईं हैं। चीन की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को चीनी दर्शकों के ही सामने हराना बड़ी उपलब्धि है।
इस प्रतियोगिता में तीन नए भारतीय खिलाड़ी खास तौर से सामने आए हैं। सिंधु के अलावा आरएमवी गुरुसायदत्त और अजय जयराम। गुरु ने पहले पूर्व ऑल इंगलैंड चैम्पियन हफीज़ हाशिम को और फिर अपने ही देश के पी कश्यप को हराया। अजय जयराम पुरुष वर्ग के सेमी फाइनल में पहुँच गए हैं उन्होंने अपने ही देश के सौरभ वर्मा को हराया। गुरुसायदत्त हालांकि 8-21, 12-21 के स्कोर पर चीन के चेंग लोंग से हार गए हैं, पर चेंग टॉप सीड खिलाड़ी है।
इस प्रतियोगिता में तीन नए भारतीय खिलाड़ी खास तौर से सामने आए हैं। सिंधु के अलावा आरएमवी गुरुसायदत्त और अजय जयराम। गुरु ने पहले पूर्व ऑल इंगलैंड चैम्पियन हफीज़ हाशिम को और फिर अपने ही देश के पी कश्यप को हराया। अजय जयराम पुरुष वर्ग के सेमी फाइनल में पहुँच गए हैं उन्होंने अपने ही देश के सौरभ वर्मा को हराया। गुरुसायदत्त हालांकि 8-21, 12-21 के स्कोर पर चीन के चेंग लोंग से हार गए हैं, पर चेंग टॉप सीड खिलाड़ी है।
Friday, September 14, 2012
आधी-अधूरी हैं हिन्दी की सरकारी वैबसाइट
मीडिया स्टडीज ग्रुप का सरकारी हिंदी वेबसाइट का सर्वेक्षण
14 सितम्बर हिन्दी को राजभाषा बनाने का दिन है। हिन्दी इस देश की राजभाषा है। कुछ साइनबोर्डों को देखने से ऐसा अहसास होता है कि इस देश की एक भाषा यह भी है। राजभाषा के रूप में हिन्दी कैसी है इसे समझने के लिए सरकारी वैबसाइटों को देखना रोचक होगा। मीडिया स्टडीज़ ग्रुप ने इसका सर्वक्षण किया है, जिसके निष्कर्ष हिन्दी की कहानी बयाँ करते हैं।
सरकार की वेबसाइटों
पर हिंदी की घोर उपेक्षा दिखाई देती है। हिंदी को लेकर भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालय, विभाग व
संस्थान के साथ संसद की वेबसाइटों के एक सर्वेक्षण से यह आभास मिलता है कि सरकार
को हिंदी की कतई परवाह नहीं हैं। सर्वेक्षण में शामिल वेबसाइटों के आधार पर यह
दावा किया जा सकता है कि हिंदी भाषियों के एक भी मुकम्मल सरकारी वेबसाइट नहीं हैं। अंग्रेजी के मुकाबले तो हिंदी की वेबसाइट
कहीं नहीं टिकती है। हिंदी के
नाम पर जो वेबसाइट है भी, वे भाषागत अशुद्धियों
से आमतौर पर भरी हैं। हिंदी के नाम पर अंग्रेजी का देवनागरीकरण मिलता हैं। हिंदी की वेबसाइट या तो खुलती नहीं है। बहुत
मुश्किल से कोई वेबसाइट खुलती है तो ज्यादातर में अंग्रेजी में ही सामग्री मिलती
है। रक्षा मंत्रालय
की वेबसाइट का हिंदी रूपांतरण करने के लिए उसे गूगल ट्रासलेंशन से जोड़ दिया गया
है।
कांग्रेस पर भारी पड़ेगी राहुल की हिचक
भारतीय राजनीतिक दल खासतौर से कांग्रेस पार्टी जितना विदेशी मीडिया के प्रति संवेदनशील है उतना भारतीय मीडिया के प्रति नहीं है। पिछले दिनों सबसे पहले टाइम मैगज़ीन की ‘अंडर अचीवर’ वाली कवर स्टारी को लेकर शोर मचा, फिर वॉशिंगटन पोस्ट की सामान्य सी टिप्पणी को लेकर सरकार ने बेहद तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। और अब राहुल गांधी को लेकर इकोनॉमिस्ट की और भी साधारण स्टोरी पर चिमगोइयाँ चल रहीं हैं। पश्चिमी मीडिया की चिन्ता भारत के आर्थिक सुधारों पर लगा ब्रेक और कांग्रेस की क्रमशः बढ़ती अलोकप्रियता को लेकर है। सच यह है कि इन सारी कथाओं में बाहरी स्रोतों पर आधारित अलल-टप्पू बातें हैं। खासतौर से इकोनॉमिस्ट की कथा एक भारतीय लेखिका आरती रामचन्द्रन की पुस्तक पर आधारित है। राहुल गांधी के जीवन को ‘डिकोड’ करने वाली यह पुस्तक भी किसी अंदरूनी सूचना के आधार पर नहीं है। इकोनॉमिस्ट ने 'द राहुल प्रॉब्लम' शीर्षक आलेख में कहा है कि राहुल ने "नेता के तौर पर कोई योग्यता नहीं दिखाई है। और और ऐसा नहीं लगता कि उन्हें कोई भूख है। वे शर्मीले स्वभाव के हैं, मीडिया से बात नहीं करते हैं और संसद में भी अपनी आवाज़ नहीं उठाते हैं।" बहरहाल यह वक्त राहुल गांधी और कांग्रेस के बारे में विचार करने का है। कांग्रेस के पास अपनी योजना को शक्ल देने का तकरीबन आखिरी मौका है। राहुल की ‘बड़ी भूमिका’ की घोषणा अब होने ही वाली है।
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