पिछले महीने सोमवार 20 अप्रेल
को अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) में खनिज तेल की कीमतें -40.32 डॉलर के नकारात्मक स्तर पर
पहुँच गईं। कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय वायदा बाजार में यह अजब घटना थी। ऐसा इसलिए
हुआ, क्योंकि कोरोना वायरस के कारण अमेरिका सहित बड़ी संख्या में देशों में
लॉकडाउन है। तेल की माँग लगातार घटती जा रही है। दूसरी तरफ उत्पादन जारी रहने के
कारण भविष्य के खरीद सौदे शून्य होने के बाद नकारात्मक स्थिति आ गई। हालांकि यह
स्थिति बाद में सुधर गई, फिर भी पेट्रोलियम के भावी कारोबार को लेकर उम्मीदें टूटने
लगी हैं। उधर ओपेक देशों और रूस ने येन-केन प्रकारेण अपने उत्पादन को कम करने का
फैसला करके भावी कीमतों को और गिरने से रोकने की कोशिश जरूर की है, पर इस कारोबार
की तबाही के लक्षण नजर आने लगे हैं। सब जानते हैं कि एक दिन पेट्रोलियम का वर्चस्व
खत्म होगा, पर क्या वह समय इतनी जल्दी आ गया है? क्या कोरोना ने उसकी
शुरुआत कर दी है?
कोरोना वायरस ने मनुष्य जाति के
अस्तित्व को चुनौती देने का काम किया है।
आधुनिक विज्ञान और तकनीक को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि उसने एकदम
नए किस्म की इस बीमारी की पहचान करने और उसके इलाज के रास्ते खोजने की दिशा में
तेजी से काम शुरू कर दिया है। इसकी पहचान करने वाले किट, रोकने वाली वैक्सीन और
इलाज करने वाली दवाएं विकसित करने का काम तेजी से चल निकला है। करीब साढ़े तीन
महीने पुरानी इस बीमारी को रोकने वाली वैक्सीन की पाँच-छह किस्मों का मनुष्यों पर
परीक्षण चल रहा है। आशा है कि अगले एक वर्ष में इसपर पूरी तरह विजय पाई जा सकेगी,
पर यह बीमारी विश्व-व्यवस्था के सामने कुछ सवाल लेकर आई है।
नई विश्व व्यवस्था
ये सवाल कम से कम तीन वर्गों में
विभाजित किए जा सकते हैं। पहला सवाल पेट्रोलियम से ही जुड़ा है। क्या ऊर्जा के
परम्परागत स्रोतों का युग समाप्त होने जा रहा है? विश्व-व्यवस्था और शक्ति-संतुलन में पेट्रोलियम की महत्वपूर्ण भूमिका है।
पेट्रोलियम की भूमिका समाप्त होगी, तो उससे जुड़ी शक्ति-श्रृंखलाएं भी कमजोर
होंगी। उनका स्थान कोई और व्यवस्था लेगी। हम मोटे तौर पर पेट्रो डॉलर कहते हैं, वह
ध्वस्त होगा तो उसका स्थान कौन लेगा? यह परिवर्तन नई वैश्विक-व्यवस्था को जन्म देगा।
क्या पूँजीवाद और समाजवाद जैसे सवालों का भी अंत होगा? क्या अमेरिका का महाशक्ति रूप ध्वस्त हो जाएगा? क्या भारत का महाशक्ति के रूप में उदय होगा? कोरोना से लड़ाई में राज्य को सामने आना पड़ा। क्या बाजार का अंत होगा? नब्बे के दशक से वैश्वीकरण को जो लहर चली थी, उसका क्या होगा? उत्पादन, व्यापार और पूँजी निवेश तथा बौद्धिक सम्पदा से जुड़े प्रश्नों को अब
दुनिया किन निगाहों से देखेगी? इनके साथ ही वैश्विक-सुरक्षा के
सवाल भी जुड़े हैं। वैश्विक-सुरक्षा की परिभाषा में जलवायु परिवर्तन और संक्रामक
बीमारियाँ भी शामिल होने जा रही हैं, जो राजनीतिक सीमाओं की परवाह नहीं करती
हैं।