सोमवार को जारी किए गए डेटा के अनुसार अगस्त के
महीने में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति की दर बढ़कर 7 फीसदी हो गई है, जो जुलाई में
6.71 प्रतिशत और पिछले साल अगस्त में 5.3 प्रतिशत थी। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन
ने हाल में उम्मीद जाहिर की थी, यह दर गिरकर 6 फीसदी से नीची हो जाएगी, पर उनका
अनुमान गलत साबित हुआ है। जुलाई के महीने में देश का खुदरा मूल्य सूचकांक
(सीपीआई-सी) 6.71 हो गया था,
जो पिछले पाँच महीनों में सबसे कम था।
अच्छी संवृद्धि और मुद्रास्फीति में क्रमशः आती
गिरावट से उम्मीदें बढ़ी थीं, पर लगता है कि रिजर्व बैंक को पहले महंगाई से लड़ना
होगा। मुद्रास्फीति में तेजी से केंद्रीय बैंक पर इस महीने के आखिर में नीतिगत
दरों में बढ़ोतरी करने का दबाव बढ़ सकता है भले ही जुलाई में औद्योगिक उत्पादन में
भारी गिरावट क्यों न दिखी हो।
खाद्य-वस्तुओं में तेजी
इस साल अप्रैल में यह 7.79 प्रतिशत हो गई थी,
जो पिछले आठ साल का उच्चतम स्तर था। उसके बाद से इसमें गिरावट देखने को मिली है,
पर अगस्त में आई तेजी चिंताजनक है। महंगाई बढ़ने का प्रमुख कारण बारिश सामान्य
नहीं होने से अनाज और सब्जियों के दाम में तेजी है। अचानक गर्मी बढ़ने से उत्पादन
प्रभावित होने के कारण गेहूं की मुद्रास्फीति पहले से दहाई अंक में है। वहीं कम मॉनसूनी
बारिश के कारण धान की बुवाई का रकबा कम होने से उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ने की
आशंका है। इन दोनों कारणों से अनाज की महंगाई दर ऊंची बनी रहने की आशंका है।
स्थिर कीमत पर आधारित सकल मूल्य वर्धन (जीवीए)
चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में 12.7 फीसदी बढ़ा, जबकि
नॉमिनल जीडीपी में 26.7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जो
अर्थव्यवस्था में ऊँची मुद्रास्फीति के असर को दर्शाता है। इसका मतलब है कि खुदरा
महंगाई भले ही क़ाबू में दिख रही हो, असली महंगाई
सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ी है। रिजर्व बैंक को इस समस्या के समाधान पर विचार
करना होगा।
ब्याज दरों पर असर
इस महीने 30 सितंबर को रिजर्व बैंक की मौद्रिक
नीति समिति (एमपीसी) की बैठक होने वाली है। अनुमान है कि बैंकों की ब्याज दरों में
25 से 35 आधार अंकों (बीपीएस) की बढ़ोतरी हो सकती है। पर अगस्त महीने के उपभोक्ता
मूल्य सूचकांक को देखते हुए लगता है कि ब्याज दरें बढ़ेंगी। इससे सिस्टम में तरलता
कम होगी और औद्योगिक उत्पादन प्रभावित होगा।
अभी 21 सितंबर को अमेरिकी फेडरल बैंक की ब्याज
दरों की घोषणा होगी। रिजर्व बैंक को इस घोषणा का भी इंतजार है। उसका असर भारत में
विदेशी पूँजी-निवेश पर पड़ेगा। रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को 2-6 प्रतिशत के बीच
रखना चाहता है। फिलहाल ऐसा होता नजर आ नहीं रहा है।
रिज़र्व बैंक जब से महंगाई को कम करने की कोशिश
कर रहा है, तब से यह दूसरी बार है जब खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के छह प्रतिशत की
ऊपरी सीमा से लगातार आठवें महीने ऊपर बनी हुई है। इससे पहले अप्रैल, 2020 से नवंबर, 2020 के दौरान यह स्थिति देखने को मिली
थी। विनिर्माण, बिजली और खनन जैसे क्षेत्रों में खराब
प्रदर्शन के कारण देश में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) की वृद्धि दर जुलाई में सुस्त
पड़कर चार महीने के निचले स्तर 2.4 प्रतिशत पर आ गई। पिछले महीने जून में यह 12.7
प्रतिशत थी।
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय
के आंकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र में इस साल जुलाई
में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो चार महीने का निचला स्तर है। बिजली क्षेत्र में
2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो छह महीने का निचला स्तर है। खनन क्षेत्र में कोयला
उत्पादन बढ़ने के बावजूद 16 महीने के अंतराल के बाद जुलाई में 3.3 प्रतिशत की
गिरावट आई।
ग्रामीण महंगाई
अगस्त में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के
कारण ईंधन महंगाई दर घटकर 10.78 फीसदी रह गई लेकिन अनाज, फल
एवं सब्जियां और मसाले में तेजी दर्ज की गई। महीने के दौरान अजान की कीमतों में
9.6 फीसदी, फल की कीमतों में 7.4 फीसदी, सब्जियों की कीमतों में 7.4 फीसदी और मसालों की कीमतों में 14.9
फीसदी की वृद्धि हुई है। जहां तक सेवाओं का सवाल है तो शिक्षा और घरेलू वस्तुएं
एवं सेवाएं अगस्त में कहीं महंगी हो गईं।
अगस्त में ग्रामीण महंगाई दर शहरी मुद्रास्फीति
के मुकाबले अधिक रही। महीने के दौरान ग्रामीण महंगाई दर 7.15 फीसदी रही जबकि शहरी
महंगाई दर 6.7 फीसदी दर्ज की गई। राज्यों के बीच पश्चिम बंगाल में 8.9 फीसदी,
गुजरात में 8.2 फीसदी, तेलंगाना में
8.1 फीसदी और महाराष्ट्र में 7.99 फीसदी मुद्रास्फीति दर्ज की गई। इन राज्यों में
मुद्रास्फीति राष्ट्रीय औसत से ऊपर रहीं। जबकि दिल्ली (4.2 फीसदी), हिमाचल प्रदेश (4.9 फीसदी) और कनार्टक (4.98 फीसदी) में महंगाई दर देश
की औसत मुद्रास्फीति से कम रही।
औद्योगिक उत्पादन सुस्त
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से जारी
आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में
वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ गई। महीने के दौरान औद्योगिक उत्पादन सूचकांक घटकर महज
2.4 फीसदी रह गया जो एक महीना पहले 12.7 फीसदी रहा था। मॉनसूनी बारिश के कारण खनन
गतिविधियां थमने से खनन उत्पादन में 3.3 फीसदी का संकुचन देखा गया। जबकि विनिर्माण
उत्पादन में 3.2 फीसदी की वृद्धि हुई और बिजली उत्पादन में 2.3 फीसदी का इजाफा
हुआ।
जहां तक उपयोग आधारित उद्योगों का सवाल है तो
अर्थव्यवस्था में निवेश मांग का प्रतिनिधित्व करने वाले पूंजीगत वस्तु उद्योग में
5.8 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स में 2 फीसदी का संकुचन दिखा
जो ग्रामीण भारत में कमजोर मांग का संकेत देता है।