प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति गौतबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को चुनाव में उनकी पार्टी की शानदार जीत के लिए बधाई दी है। इसी के साथ उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों को और अधिक मजबूत होने का भी भरोसा जताया। मोदी ने राजपक्षे बंधुओं को एक पत्र अलग से लिखा है, जिसमें उन्होंने कहा कि हम आपके साथ सहयोग के इच्छुक हैं। यह एक सामान्य शिष्टाचार भी है और भारत-श्रीलंका के बीच की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए बहुत आवश्यक भी।
Tuesday, August 18, 2020
Monday, August 17, 2020
बेरूत विस्फोट : लालफीताशाही की देन
मंगलवार 4 अगस्त को लेबनॉन के बेरूत शहर के बंदरगाह में हुए विस्फोट ने दुनियाभर को हिला दिया है। देश में सरकार विरोधी आंदोलन शुरू हो गया है। पूरे देश में राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। नागरिकों के मन में अपनी परेशानियों को लेकर जो गुस्सा भरा है, वह एकबारगी फूट पड़ा है। यह नाराजगी अब शायद राजनीतिक बदलाव के बाद ही खत्म हो पाएगी। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक वहाँ की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा है। प्रधानमंत्री हसन दीब ने कहा है कि समय से पहले चुनाव कराए बगैर हम इस संकट से बाहर नहीं निकल पाएंगे। पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़पों के कारण अराजकता का माहौल बन गया है।
Saturday, August 15, 2020
आशंकाएं और उम्मीदें
स्वतंत्रता दिवस की 73 वीं वर्षगाँठ के मौके पर देश तीन तरह की परेशानियों का सामना कर रहा है। सीमा पर चीन ने चुनौती दी है। दूसरी तरफ कोरोना वायरस की महामारी से भारत ही नहीं पूरी दुनिया परेशान है। तीसरी चुनौती है अर्थव्यवस्था की। भारत वैश्विक महाशक्तियों की कतार में शामिल जरूर हो चुका है, पर हम अभी संधिकाल में है। इस संधिकाल को पूरा करने के बाद ही खुशहाली की राह खुलेगी। आशंका है कि इस साल हमारी अर्थव्यवस्था की विकास-गति शून्य से भी नीचे चली जाएगी।
इन सब चुनौतियों के अलावा स्वतंत्रता दिवस के ठीक दस दिन पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के साथ एक नए युग की शुरुआत हुई है। पर इसके साथ ही कुछ सवाल भी खड़े हुए हैं। क्या यह राष्ट्र निर्माण का मंदिर बन पाएगा? क्या यह एक नए युग की शुरुआत है? ये बड़े जटिल प्रश्न हैं। मंदिर का भूमि पूजन होने के एक दिन पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक लम्बे प्रेस नोट के साथ ट्वीट किया कि ‘बाबरी मस्जिद थी और हमेशा ही मस्जिद रहेगी। अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक और बहुसंख्यक तुष्टीकरण के आधार पर किया गया फैसला इसे नहीं बदल सकता।’
Monday, August 10, 2020
बांग्लादेश पर भी चीन का सम्मोहिनी जादू!
नवम्बर 2014 में काठमांडू में दक्षेस शिखर सम्मेलन जब हुआ था, एक खबर हवा में थी कि नेपाल सरकार चीन को भी इस संगठन का सदस्य बनाना चाहती है। सम्मेलन के दौरान यह बात भारतीय मीडिया में भी चर्चा का विषय बनी थी। यों चीन 2005 से दक्षेस का पर्यवेक्षक देश है, और शायद वह भी इस इलाके में अपनी ज्यादा बड़ी भूमिका चाहता है। काठमांडू के बाद दक्षेस का शिखर सम्मेलन पाकिस्तान में होना था, वह नहीं हुआ और फिलहाल यह संगठन एकदम खामोश है। भारत-पाकिस्तान रिश्तों की कड़वाहट इस खामोशी को बढ़ा रही है।
इस दौरान भारत ने बिम्स्टेक जैसे वैकल्पिक क्षेत्रीय संगठनों में अपनी भागीदारी बढ़ाई और ‘माइनस पाकिस्तान’ नीति की दिशा में कदम बढ़ाए। पर चीन के साथ अपने रिश्ते बनाकर रखे थे। लद्दाख में घुसपैठ की घटनाओं के बाद हालात तेजी से बदले हैं। पाकिस्तान तो पहले से था ही अब नेपाल भी खुलकर बोल रहा है। पिछले पखवाडे की कुछ घटनाओं से लगता है कि बांग्लादेश को भी भारत-विरोधी मोर्चे का हिस्सा बनाने की कोशिशें हो रही हैं। बावजूद इसके कि डिप्लोमैटिक गणित बांग्लादेश को पूरी तरह चीनी खेमे में जाने से रोकता है। पर यह भी लगता है कि बांग्लादेश सरकार ने भारत से सायास दूरी बनाई है।