मोदी सरकार के नागरिकता
संशोधन कानून को लेकर देश के कई इलाकों में रोष व्यक्त किया जा रहा है। सामाजिक
जीवन में कड़वाहट पैदा हो रही है और कई तरह के अंतर्विरोध जन्म ले रहे हैं।
धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को लेकर सवाल हैं। इन सबके साथ वैश्विक स्तर पर देश की छवि
का सवाल भी जन्म ले रहा है। भारत और भारतीय समाज की उदार, सहिष्णु और बहुलता की
संरक्षक छवि को ठेस लगी है। जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबे की यात्रा स्थगित होने
के बड़े राजनयिक निहितार्थ भले ही न हों, बांग्लादेश और पाकिस्तान की
प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं और पश्चिमी
देशों के मीडिया की प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं। भारत की उदार और प्रबुद्ध
लोकतंत्र की छवि को बनाने में इनकी प्रमुख भूमिका है।
नागरिकता कानून में संशोधन के बाद कुछ अमेरिकी सांसदों ने
काफी कड़वी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राज्यसभा से कानून पास होने के कुछ समय बाद
ही अमेरिकी सांसद आंद्रे कार्सन ने बयान जारी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
आलोचना की और इस कानून को ‘ड्रैकोनियन’
बताया और कहा कि इसके कारण भारत में मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन जाएंगे। न्यूयॉर्क
टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, ब्रिटेन के अखबार इंडिपेंडेंट और अल जज़ीरा ने आलोचनात्मक
टिप्पणियाँ कीं हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के प्रवक्ता ने कहा कि भारत के इस कानून पर संयुक्त राष्ट्र की
निगाहें भी हैं। संयुक्त राष्ट्र के कुछ बुनियादी आदर्श हैं और हम मानते हैं कि
मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र से प्रतिपादित उद्देश्यों का उल्लंघन नहीं
होना चाहिए।