Tuesday, September 3, 2019

अमेज़न की आग: इंसानी नासमझी की दास्तान


अमेज़न के जंगलों में लगी आग ने संपूर्ण मानवजाति के नाम खतरे का संदेश भेजा है। यह आग केवल ब्राजील और उसके आसपास के देशों के लिए ही खतरे का संदेश लेकर नहीं आई है। संपूर्ण विश्व के लिए यह भारी चिंता की बात है।  ये जंगल दुनिया के पर्यावरण की रक्षा का काम करते हैं। इन जंगलों में लाखों किस्म की जैव और वनस्पति प्रजातियाँ हैं। अरबों-खरबों पेड़ यहां खड़े हैं। ये पेड़ दुनिया की कार्बन डाई ऑक्साइड को जज्ब करके ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे को कम करते हैं। दुनिया की 20 फीसदी ऑक्सीजन इन जंगलों से तैयार होती है। इसे पृथ्वी के फेफड़े की संज्ञा दी जाती है। समूचे दक्षिण अमेरिका की 50 फीसदी वर्ष इन जंगलों के सहारे है। अफसोस इस बात का है कि यह आग इंसान ने खुद लगाई है। उससे ज्यादा अफसोस इस बात का है कि हमारे मीडिया का ध्यान अब भी इस तरफ नहीं गया है। 
जंगलों की इस आग की तरफ दुनिया का ध्यान तब गया, जब ब्राजील के राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (आईएनईपी) ने जानकारी दी कि देश में जनवरी से अगस्त के बीच जंगलों में 75,336 आग की घटनाएं हुई हैं। अब ये घटनाएं 80,000 से ज्यादा हो चुकी हैं। आईएनईपी ने सन 2013 से ही उपग्रहों की मदद से जंगलों की आग का अध्ययन करना शुरू किया है। कई तरह के अनुमान हैं। पिछले एक दशक में ऐसी आग नहीं लगी से लेकर ऐसी आग कभी नहीं लगी तक।
यह आग इतनी जबर्दस्त है कि ब्राजील के शहरों में इन दिनों सूर्यास्त समय से कई घंटे पहले होने लगा है। देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। आग बुझाने के लिए सेना बुलाई गई है और वायुसेना के विमान भी आकाश से पानी गिरा रहे हैं। फ्रांस में हो रहे जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन में इस संकट पर खासतौर से विचार किया गया और इसके समाधान के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने की पेशकश की गई है।
पूरी दुनिया पर खतरा
आग सिर्फ ब्राजील के जंगलों में ही नहीं लगी है, बल्कि वेनेजुएला, बोलीविया, पेरू और पैराग्वे के जंगलों में भी लगी है। वेनेज़ुएला दूसरे नंबर पर है जहां आग की 2600 घटनाएं सामने आई हैं, जबकि 1700 घटनाओं के साथ बोलीविया तीसरे नंबर पर है। ब्राजील में आग की घटनाओं का सबसे अधिक प्रभाव उत्तरी इलाक़ों में पड़ा है। घटनाओं में रोराइमा में 141%, एक्रे में 138%, रोंडोनिया में 115% और अमेज़ोनास में 81% वृद्धि हुई है, जबकि दक्षिण में मोटो ग्रोसो डूो सूल में आग की घटनाएं 114% बढ़ी हैं।

Sunday, September 1, 2019

क्या हासिल होगा बैंकों के महाविलय से?


शुक्रवार की दोपहर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के विलय की घोषणा के लिए जो समय चुना था, वह सरकार की समझदारी को भी बताता है. इस प्रेस कांफ्रेंस के समाप्त होते ही खबरिया चैनलों के स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज थी कि इस वित्तवर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई है. बैंकों के विलय की घोषणा ने जो सकारात्मक माहौल पैदा किया था, उसके कारण जीडीपी की खबर से लगने वाला धक्का, थोड़ा धीरे से लगा. बेशक मंदी की खबरें चिंताजनक हैं, पर सरकार यह संदेश देना चाहती है कि हम सावधान हैं और अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल कर रखेंगे. कई बार संकट के बीच से ही समाधान भी निकलते हैं.
वित्तमंत्री ने बैंकों के महाविलय की जो घोषणा की है, उससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 18 से घटकर 12 रह जाएगी. वित्त मंत्री निर्मला पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का अधिग्रहण करेगा. इसी तरह वहीं केनरा बैंक में सिंडीकेट बैंक का, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक तथा इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक का विलय होगा. अब इन 10 बैंकों के विलय के बाद चार बैंक बन जाएंगे. बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया के रूप में दो बड़े बैंक पहले से हैं. इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब एंड सिंध बैंक पहले की तरह काम करते रहेंगे क्योंकि ये मजबूत क्षेत्रीय बैंक हैं. बैंक-राष्ट्रीयकरण के पचास वर्ष बाद उन्हें लेकर यह सबसे बड़ा फैसला है.  

राहुल का कश्मीर कनफ्यूज़न


कांग्रेस और बीजेपी के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है। ज्यादातर सरकारी फैसलों के दूसरे पहलू पर रोशनी डालने की जिम्मेदारी कांग्रेस की है, क्योंकि वह सबसे बड़ा विरोधी दल है। पार्टी की जिम्मेदारी है कि वह अपने वृहत्तर दृष्टिकोण या नैरेटिव को राष्ट्रीय हित से जोड़े। उसे यह विवेचन करना होगा कि पिछले छह साल में उससे क्या गलतियाँ हुईं, जिनके कारण वह पिछड़ गई। केवल इतना कहने से काम नहीं चलेगा कि जनता की भावनाओं को भड़काकर बीजेपी उन्मादी माहौल तैयार कर रही है।
कांग्रेसी नैरेटिव के अंतर्विरोध कश्मीर में साफ नजर आते हैं। इस महीने का घटनाक्रम गवाही दे रहा है। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का आदेश पास होने के 23 दिन बाद राहुल गांधी ने कश्मीर के सवाल पर महत्वपूर्ण ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, सरकार के साथ हमारे कई मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन साफ है कि कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है। पाकिस्तान वहां हिंसा फैलाने के लिए आतंकियों का समर्थन कर रहा है। इसमें पाकिस्तान समेत किसी भी देश के दखल की जरूरत नहीं है।
राहुल गांधी का यह बयान स्वतः नहीं है, बल्कि पेशबंदी में है। यही इसका दोष है। इसके पीछे संयुक्त राष्ट्र को लिखे गए पाकिस्तानी ख़त का मजमून है, जिसमें पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि कश्मीर में हालात सामान्य होने के भारत के दावे झूठे हैं। इन दावों के समर्थन में राहुल गांधी के एक बयान का उल्लेख किया गया है, जिसमें राहुल ने माना कि 'कश्मीर में लोग मर रहे हैं' और वहां हालात सामान्य नहीं हैं। राहुल गांधी को अपने बयानों को फिर से पढ़ना चाहिए। क्या वे देश की जनता की मनोभावना का प्रतिनिधित्व करते हैं?

Saturday, August 31, 2019

कश्मीर पर किस असमंजस में है कांग्रेस?


अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का आदेश पास होने के 23 दिन बाद राहुल गांधी ने कश्मीर के सवाल पर एक महत्वपूर्ण ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, सरकार के साथ हमारे कई मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन यह साफ है कि कश्मीर हमारा आंतरिक मामला है। पाकिस्तान वहां हिंसा फैलाने के लिए आतंकियों का समर्थन कर रहा है। इसमें पाकिस्तान समेत किसी भी देश के दखल की जरूरत नहीं है।
राहुल गांधी ने ऐसा बयान क्यों जारी किया, इस वक्त क्यों किया और अभी तक क्यों नहीं किया था। ऐसे कई सवाल मन में आते हैं। राहुल के बयान के पीछे निश्चित रूप से पाकिस्तान सरकार द्वारा संयुक्त राष्ट्र को लिखे गए एक ख़त का मजमून है। इसमें पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि कश्मीर में हालात सामान्य होने के भारत के दावे झूठे हैं। इन दावों के समर्थन में राहुल गांधी के एक बयान का उल्लेख किया गया है, जिसमें राहुल ने माना है कि 'कश्मीर में लोग मर रहे हैं' और वहां हालात सामान्य नहीं हैं।
बड़ी देर कर दी…
हालात सामान्य नहीं हैं तक बात मामूली है, क्योंकि देश में काफी लोग मान रहे हैं कि कश्मीर में हालात सामान्य नहीं है। सरकार भी एक सीमा तक यह बात मानती है। पर 'कश्मीर में लोग मर रहे हैं' कहने पर मतलब कुछ और निकलता है। तथ्य यह है कश्मीर में किसी आंदोलनकारी के मरने की खबर अभी तक नहीं है। पाकिस्तानी चिट्ठी में नाम आने से राहुल गांधी का सारा राजनीतिक गणित उलट गया है। उन्होंने अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करने में देर कर दी है। कहना मुश्किल है कि आने वाले दिनों में उनकी राजनीति की दिशा क्या होगी।

मंदी रोकने के लिए बड़े फैसले करने होंगे


शुक्रवार की दोपहर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के पुनर्गठन के बाबत महत्वपूर्ण फैसलों से जुड़ी प्रेस कांफ्रेंस जैसे ही समाप्त की, खबरिया चैनलों के स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज दिखाई पड़ी कि पहली तिमाही में जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई है। यह दर अनुमान से भी कम है। मंदी की खबरें इस बात के लिए प्रेरित कर रही हैं कि आर्थिक सुधारों की गति में तेजी लाई जाए। बैंकिग पुनर्गठन और एफडीआई से जुड़े फैसलों के साथ इसकी शुरुआत हो गई है। उम्मीद है कि कुछ बड़े फैसले और होंगे। फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत है कि ग्रामीण और शहरी बाजारों में माँग और अर्थव्यवस्था में विश्वास का माहौल पैदा हो।   
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने इस तिमाही की दर 5.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। हाल में समाचार एजेंसी रायटर्स ने अर्थशास्त्रियों का एक सर्वे किया था, उसमें भी 5.7 फीसदी का अनुमान था। पर वास्तविक आँकड़ों का इन अनुमानों से भी कम रहना चिंतित कर रहा है। मोदी सरकार के पिछले छह साल में यह सबसे धीमी तिमाही संवृद्धि है। इस तिमाही के ठीक पहले यानी 2019-19 की चौथी तिमाही में संवृद्धि दर 5.8 फीसदी थी। जबकि पिछले वित्तवर्ष की पहली तिमाही में यह दर 8 फीसदी थी। ज़ाहिर है कि मंदी का असर अर्थव्यवस्था पर दिखाई पड़ने लगा है।