कांग्रेस पार्टी के संकट
को दो सतहों पर देखा जा सकता है। राज्यों में उसके कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर भाग
रहे हैं। दूसरी तरफ पार्टी केन्द्र में अपने नेतृत्व का फैसला नहीं कर पा रही है। कर्नाटक
में सांविधानिक संकट है, पर उसकी पृष्ठभूमि में कांग्रेस का भीतर का असंतोष है।
पार्टी छोड़कर भागने वाले ज्यादातर विधायक कांग्रेसी हैं। वे सामान्य विधायक भी
नहीं हैं, बल्कि बहुत सीनियर नेता हैं। यह कहना सही नहीं होगा कि वे पैसे के लिए
पार्टी छोड़कर भागे हैं। ज्यादातर के पास काफी पैसा है। यह समझने की जरूरत है कि रोशन
बेग जैसे कद्दावर नेताओं के मन में संशय पैदा क्यों हुआ। रामलिंगा रेड्डी जैसे वरिष्ठ
नेता अपना रुख बदलते रहते हैं, पर इतना साफ है कि उनके मन में पार्टी नेतृत्व को
लेकर कोई खलिश जरूर है। कांग्रेस से हमदर्दी रखने वाले विश्लेषकों को भी अब लगने
लगा है कि पार्टी ने इच्छा-मृत्यु का वरण कर लिया है।
केवल कर्नाटक की बात नहीं
है। इसी गुरुवार को गुजरात में कांग्रेस के पूर्व विधायक अल्पेश ठाकोर और धवल सिंह
जाला गुरुवार को भाजपा में शामिल हो गए। दोनों ने राज्यसभा उपचुनाव में कांग्रेसी
उम्मीदवारों के खिलाफ वोट देने के बाद 5 जुलाई को ही विधायक पद से इस्तीफ़ा दे
दिया था। कर्नाटक में कांग्रेस के साथ जेडीएस के विधायकों ने भी इस्तीफे दिए हैं,
पर बड़ी संख्या कांग्रेसियों की है। इसके पहले तेलंगाना में कांग्रेस के 18 में से
12 विधायक केसीआर की पार्टी टीआरएस में शामिल हो गए। ये विधायक
दो महीने पहले ही जीतकर आए थे। गोवा में तो पूरी पार्टी भाजपा में चली गई। यह
दल-बदल है, पर इसके पीछे के कारणों को भी समझने की जरूरत है। ज्यादातर
कार्यकर्ताओं के मन में असुरक्षा का भाव है।
संकट केन्द्र में है
राहुल गांधी के इस्तीफे
के बाद केन्द्र में अराजकता का माहौल है। यह सब लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से
शुरू हुआ है, पर वास्तव में इसकी शुरूआत 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही हो गई थी।
पार्टी को उम्मीद थी कि एकबार पराजय का क्रम थमेगा, तो फिर से सफलता मिलने लगेगी।
उसकी सारी रणनीति राहुल को स्थापित करने के लिए सही समय के इंतजार पर केन्द्रित
थी। वह भी हो गया, पर संकट और गहरा गया।