Thursday, April 9, 2020

अभी तक सफल है भारतीय रणनीति


हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने दिया है. आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए हमारे देश को लेकर जो अंदेशा था, वह काफी हद तक गलत साबित हुआ है. पर क्या पिछले एक हफ्ते की तेजी के बावजूद आने वाले समय में भी गलत साबित होगा? यकीनन हमें सफलता मिल रही है. तथ्य इस बात की गवाही दे रहे हैं. हालांकि इसकी वैक्सीन तैयार नहीं है, पर जिन लोगों ने इस बीमारी पर विजय पाई है, अब उनके शरीर में जो एंटीबॉडी तैयार हो गई हैं, वे मरीजों के इलाज में काम आएंगी.
गत 1 मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75, इटली में 170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130. एक महीने बाद 1 अप्रेल को भारत में यह संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः 2,15,003, 1,10,574, 1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी. भारत में लॉकडाउन शुरू होने के बाद यह संख्या स्थिर होती नजर आ रही थी, पर पिछले एक हफ्ते में यह संख्या तेजी से बढ़ी है और अब पाँच हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी. पिछले तीन-चार दिन की संख्या का विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि यह तेजी थमी है.
एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया की मीडिया में एक टिप्पणी के आधार पर कुछ लोग कह रहे हैं कि भारत में तीसरी स्टेज शुरू हो गई है, या यह तीसरी स्टेज की पहली स्टेज है वगैरह. ऐसा नहीं है. डॉ गुलेरिया ने भी कहा था कि संक्रमण स्थानीय स्तर पर ही है, पर कुछ जगहों पर ज्यादा है. मरकज़ वाला प्रकरण नहीं हुआ होता, तो शायद आज हम बेहतर स्थिति में होते, पर भरोसा अब भी है कि अगले कुछ दिनों में हालात सुधरेंगे. पूरे भरोसे के साथ कुछ कहने के लिए हमें लॉकडाउन के अंतिम दिन तक के तथ्यों का इंतजार करना चाहिए. देखना यह है कि संख्या कहाँ तक बढ़ेगी और गिरावट कहाँ से शुरू होगी.
अमेरिका के जॉन हॉपकिंस सेंटर के ट्रैकर के अनुसार गत 8 अप्रेल को भारतीय समयानुसार दिन के दो बजे दुनियाभर में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 14 लाख, 32 हजार, 577 थी. कुल 82 हज़ार 195 लोगों की जान जा चुकी है. इस ट्रैकर को बहुत सावधानी से पढ़ें, तो अब नए मरीजों की संख्या में गिरावट आने लगी है. यूरोप के ज्यादातर देशों में नए मरीजों की संख्या में कमी आने लगी है. अमेरिका में भी पिछले दो दिन में स्थिरता आई है. फिर भी हमें समय का इंतजार करना होगा. समय बड़ा चिकित्सक है और शिक्षक भी. कोरोना प्रसंग हमें काफी बातें सिखाकर गया है. निश्चित रूप से इसके बाद दुनिया को अपने तौर-तरीके बदलने होंगे. व्यक्तिगत रूप से हम सबको भी.
इस साल नवरात्रि कोरोना-प्रभाव में निकल गईं. कल 10 अप्रेल को गुड फ्राइडे और 12 अप्रेल को ईस्टर संडे है. मुसलमानों का पवित्र रमज़ान का महीना 23 अप्रैल से शुरू हो रहा है. सब मना रहे हैं कि अच्छा हो कि जल्द से जल्द इस बीमारी के डर से दुनिया को छुटकारा मिले. सभी समुदाय अपने पर्व और त्यौहार खुशी से मनाएं. उम्मीद है ऐसा होगा. अलबत्ता हमें कुछ सावधानियाँ बरतनी होंगी. उनकी अनदेखी नहीं होनी चाहिए.  
संयुक्त राष्ट्र और उसकी स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत के 21 दिन के लॉकडाउन को 'जबर्दस्तबताते हुए उसकी तारीफ की है. डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने इस मौके पर गरीबों के लिए आर्थिक पैकेज की भी सराहना की है. भारत के इन कदमों से प्रेरित होकर विश्व बैंक ने एक अरब डॉलर की विशेष सहायता की घोषणा की है. डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने देश में जारी लॉकडाउन का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम हुआ. भारत में गर्म मौसम और मलेरिया के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है और उम्मीद है कि वे कोरोना को हरा देंगे.
ध्यान देने वाली बातें दो हैं. पहली बात स्पष्ट है कि यूरोप और अमेरिका के मुकाबले हमारे यहाँ बीमारी का असर कम है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे यहाँ असंगठित क्षेत्र के कामगारों की संख्या बहुत बड़ी है, जिनका भरण-पोषण सबसे बड़ी समस्या है. भारत सरकार ने इसके लिए 1.74 लाख करोड़ का पैकेज घोषित करके फौरी तौर पर उन्हें राहत पहुँचाने का प्रयास किया है. पर यह राहत गाँवों पर केंद्रित है. शहरी कामगारों के सामने परेशानियाँ पैदा हो गईं, जिसके कारण भारी संख्या में लोगों ने अपने गाँवों की ओर पलायन किया. इस तबके को संरक्षण देने की भी एक लड़ाई है. यह काम केवल सरकार के सहारे ही नहीं होगा, इसमें आपके सहयोग की जरूरत है.
कोरोना से लड़ाई की हमारी रणनीति अलग रही है. भरोसा रखिए हमारी रणनीति सफल होगी. हमारे पास साधन कम हैं, इसलिए लॉकडाउन का ही रास्ता था. कुछ लोगों का कहना है कि टेस्ट ज्यादा करने चाहिए. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) दुनिया के सबसे पुराने और अनुभवी संस्थानों में से एक है. उसके विशेषज्ञों मानते हैं कि हम अफरा-तफरी में टेस्ट करने के बजाय लक्षणों के आधार पर टेस्ट कर रहे हैं. अब तो रक्त नमूनों से एंटीबॉडी परीक्षण को भी मंजूरी दे दी है. कुछ दिन पहले तक रोज तीन हजार टेस्ट हो रहे थे, अब दस से बारह हजार हो रहे हैं. यकीन मानिए हम सफल हैं. यह बात इस हफ्ते और स्पष्ट हो जाएगी.


2 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (10-04-2020) को "तप रे मधुर-मधुर मन!" (चर्चा अंक-3667) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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  2. सटीक और सामयिक प्रस्तुति

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