संयुक्त राष्ट्र और
उसकी स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत के 21
दिन के लॉकडाउन को 'जबर्दस्त’
बताते हुए उसकी तारीफ
की है। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख
टेड्रॉस गैब्रेसस ने इस मौके पर गरीबों के लिए आर्थिक पैकेज की भी सराहना
की है। भारत के इन कदमों से प्रेरित होकर विश्व बैंक ने एक अरब डॉलर की विशेष
सहायता की घोषणा की है। डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने देश में
जारी लॉकडाउन का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों
ने कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम
हुआ। भारत में गर्म मौसम और मलेरिया के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है
और उम्मीद है कि वे कोरोना को हरा देंगे।
हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी
होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने
दिया है। इस देश की आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए जो अंदेशा
था, वह काफी हद तक गलत साबित हो रहा है। यह बात तथ्यों से साबित हो रही है। गत 1
मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75, इटली में
170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130। एक महीने बाद भारत में यह
संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः 2,15,003, 1,10,574,
1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी। भारत में पिछले एक हफ्ते में यह संख्या
तेजी से बढ़ी है और अब तीन हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी।
इस तेजी के कारणों से हम परिचित हैं, पर यकीन है कि इसपर जल्द से जल्द काबू पा
लिया जाएगा। सच यह है कि लॉक डाउन के एक सप्ताह बाद बीमारी से प्रभावित होने वालों
की दैनिक संख्या में गिरावट आने लगी थी। ध्यान देने वाली बातें दो हैं। एक, यूरोप
और अमेरिका के मुकाबले हमारे यहाँ बीमारी का असर कम है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह
है कि हमारे यहाँ असंगठित क्षेत्र के कामगारों की संख्या बहुत बड़ी है, जिनका
भरण-पोषण सबसे बड़ी समस्या है। भारत सरकार ने इसके लिए 1.74 लाख करोड़ का पैकेज
घोषित करके फौरी तौर पर उन्हें राहत पहुँचाने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने
व्यक्तिगत रूप से भी लोगों से उनकी परेशानियों के लिए क्षमा माँगी है। बीमारी से
ज्यादा बड़ी लड़ाई इस तबके को संरक्षण देने की है। यह काम केवल सरकार के सहारे ही
नहीं होगा, इसमें हम सबके सहयोग की जरूरत है।
लड़ाई अभी जारी है। वैश्विक लड़ाई के मुकाबले भारत की लड़ाई के संदर्भ कुछ अलग
हैं। हमारी रणनीति भी अलग रही है। देश के भीतर से ही बहुत से लोगों का कहना है कि
भारत में टेस्ट ज्यादा नहीं किए जा रहे हैं, जिनके कारण संख्या कम लग रही है, वह
ज्यादा भी हो सकती है। बीमारों की संख्या कितनी ज्यादा हो जाएगी भाई? टेस्ट तो हो ही रहे हैं, केवल रणनीति अलग है। भारतीय
आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) देश के ही नहीं दुनिया के सबसे पुराने और
अनुभवी संस्थानों में से एक है। उसके विशेषज्ञों का कहना है कि हम अफरा-तफरी में
टेस्ट करने के बजाय लक्षणों के आधार पर टेस्ट कर रहे हैं। विभिन्न सामुदायिक समूहों
के बीच नमूने लेकर भी जाँच कर रहे हैं।
इतना स्पष्ट है
कि हमारे यहाँ अमेरिका जैसे हालात नहीं हैं। बड़ी संख्या में लोग बीमार होते, तो
क्या यह बात छिपाई जा सकती थी? अब निजी
प्रयोगशालाओं को भी टेस्ट की छूट दी गई है। आईसीएमआर ने रक्त नमूनों से एंटीबॉडी
परीक्षण को भी मंजूरी दे दी है। एंटीबॉडी परीक्षण से जांच का परिणाम पंद्रह से बीस
मिनट में मिल जाएगा। यह प्रारंभिक जाँच होगी। बीमारी की पुष्टि के लिए एक और जाँच
करानी होगी। लोगों की जाँच भी होने लगी है। सरकारी प्रयोगशालाएं भी अब आठ हजार के
आसपास रोज जाँच कर रहीं हैं। उन लोगों की शिकायत दूर होनी चाहिए, जो दायरा बढ़ाने
की माँग कर रहे हैं।
भारत के संदर्भ
में कहा जा रहा है कि देश ने विदेश से आ रहे लोगों की जाँच करने और उन्हें अलग
करने में तेजी दिखाई, जिसके कारण बीमारी का प्रसार नहीं हो पाया। हालांकि शिकायतें
हैं कि कुछ लोगों ने हिदायतों को ध्यान में नहीं रखा, पर काफी लोगों ने ध्यान रखा।
दूसरे यह भी कहा जा रहा है कि भारत के लोगों की शारीरिक संरचना में बीमारियों से
लड़ने का माद्दा ज्यादा है। तीसरे देश में बीसीजी का टीका अनिवार्य रूप से लगाया
जाता है। इस टीके कारण देश के लोगों की उन लक्षणों से लड़ने की क्षमता ज्यादा है,
जो कोरोना वायरस के कारण पैदा हो रहे हैं।
यह भी माना जा
रहा है कि भारतीय लोगों के मार्फत जिस वायरस का संक्रमण होता है, उसकी स्ट्रीम
कमजोर है या कमजोर हो जाती है। भारत की गर्म जलवायु में वायरस का प्रभाव कम होने
की सम्भावनाएं हैं। ऐसी तमाम बातें हैं, जिनके पीछे वैज्ञानिक आधार हैं भी नहीं भी
हैं। बीसीजी टीके को लेकर वैज्ञानिक शोध पत्र अब सामने आ रहे हैं। भारत के लोगों
ने वैक्सीनेशन को स्वीकार किया, जिसके परिणाम हमारे सामने हैं। हमने खसरा, चेचक,
पोलियो, तपेदिक और डिप्थीरिया जैसी तमाम बीमारियों से सामूहिक प्रतिरक्षण को
स्वीकार किया है। यूरोप और अमेरिका में टीकाकरण का विरोध करने वाले भी हैं।
डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने माना है कि भारत के पास लड़ने
की अद्भुत क्षमता है। भारत ने जरूरत होने पर सख्त कदम उठाए। लोगों को संक्रमण और
बचाव की जानकारी दी। सरकार की पूरी मशीनरी ने मिलकर काम किया। दूसरे देशों ने इस
पर तेजी से काम नहीं किया।…इटली और अमेरिका जैसे देशों ने लक्षण मिलने पर भी लोगों
को आइसोलेट नहीं किया। आप तेजी से कार्रवाई
नहीं करते,
तो मुश्किल बढ़ सकती थी।
बहरहाल लड़ाई जारी है। लॉकडाउन अभी जारी है। पूरा समाधान यह भी नहीं है।
लॉकडाउन भी खत्म होगा। सम्भव है आंशिक रूप से हो या कुछ खास हॉटस्पॉट्स में जारी
रहे। महत्वपूर्ण है हमारी जीत, जिसके पीछे सबसे बड़ा कारण है हमारी सामूहिक शक्ति।
यकीन मानिए यह शक्ति बनी रही, तो कोरोना क्या तमाम परेशानियों का समाधान हम कर
लेंगे।
आमीन।
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