वेदवाक्य है, ‘यत्र
विश्वं भवत्येक नीडम। ’यह हमारी विश्व-दृष्टि है। 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ‘ग्लोबलाइजेशन’ या ‘ग्लोबल विलेज’ जैसे रूपकों से कहीं
व्यापक है। अथर्ववेद के भूमि सूक्त या ‘पृथ्वी सूक्त’ से पता लगता है कि हमारी
विश्व-दृष्टि कितनी विषद और विस्तृत है। आज पृथ्वी कोरोना संकट से घिरी है। ऐसे
में एक तरफ वैश्विक नेतृत्व और सहयोग की परीक्षा है। यह घड़ी भारतीय जन-मन और उसके
नेतृत्व के धैर्य, संतुलन और विश्व बंधुत्व से आबद्ध हमारे सनातन मूल्यों की
परीक्षा भी है। हम ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के प्रवर्तक और समर्थ हैं। यह बात
कोरोना के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष से सिद्ध हो रही है।
हमारे पास संसाधन सीमित हैं, पर आत्मबल असीमित है, जो किसी भी युद्ध में विजय
पाने की अनिवार्य शर्त है। पिछले कुछ समय ने भारत ने एक के बाद एक अनेक अवसरों पर
पहल करके अपनी मनोभावना को व्यक्त किया है। कोरोना पर विजय के लिए अलग-अलग मोर्चे
हैं। एक मोर्चा है ‘निवारण’ या निषेध का। अर्थात वायरस के
लपेटे में आने से लोगों को बचाना। दूसरा मोर्चा है चिकित्सा का, तीसरा मोर्चा है
उपयुक्त औषधि तथा उपकरणों की खोज का और इस त्रासदी के कारण आर्थिक रूप से संकट में
फँसे बड़ी संख्या में लोगों को संरक्षण देने का चौथा मोर्चा है। इनके अलावा भी
अनेक मोर्चों पर हमें इस युद्ध को लड़ना है। इसपर विजय के बाद वैश्विक पुनर्वास की
अगली लड़ाई शुरू होगी। उसमें भी हमारी बड़ी भूमिका होगी।
एक परीक्षा, एक अवसर
यह भारत की परीक्षा है, साथ ही अपनी सामर्थ्य दिखाने का एक अवसर भी। गत 13
मार्च को जब नरेंद्र मोदी ने कोरोना से लड़ाई के लिए दक्षेस देशों को सम्मेलन का
आह्वान किया था, तबतक विश्व के किसी भी नेता के दिमाग में यह बात नहीं थी इस
सिलसिले में क्षेत्रीय या वैश्विक सहयोग भी सम्भव है। ज्यादातर देश इसे अपने देश
की लड़ाई मानकर चल रहे थे। इस हफ्ते प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ में माइकल कुगलमैन ने अपने आलेख में इस बात को
रेखांकित किया है कि नरेंद्र मोदी एक तरफ अपने देश में इस लड़ाई को जीतने में
अग्रणी साबित होना चाहते हैं, साथ ही भारत को एक नई ऊँचाई पर स्थापित करना चाहते
हैं।
अब इस सप्ताह का एक समाचार हमारी इस भूमिका को रेखांकित करता है। भारत ने कोविड-19 संकट के संदर्भ में 24 घंटे से भी कम समय में
मलेरिया की दवा से आंशिक रूप से हटाए गए निर्यात के प्रतिबंध के बाद आवश्यक
जीवन-रक्षक दवाओं की 10-टन की खेप को श्रीलंका
भेजा, जिसमें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) और पैरासिटॉमाल
शामिल हैं। मंगलवार 7 अप्रेल को एयर इंडिया का विशेष चार्टर विमान कोलम्बो भेजा
गया। इसे दक्षेस भावना के अंतर्गत दान के
रूप में भेजा गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह निर्णय प्रतिबंध हटाने से पहले किया गया था।
श्रीलंका में
भारतीय उच्चायोग की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इस संकट की घड़ी में भारत
की श्रीलंका के प्रति प्रतिबद्धता की यह एक और अभिव्यक्ति है। घरेलू चुनौतियों और
बाधाओं के बावजूद, भारत ने हमेशा अपने संसाधनों और विशेषज्ञता को
अपने दोस्तों और भागीदारों के साथ साझा करने में विश्वास किया है। इस बात पर कम
लोगों ने ध्यान दिया होगा कि दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे
से दो सप्ताह में 50 से अधिक राहत-बचाव उड़ानों का संचालन किया गया।
ये उड़ानें देश में फँसे विदेशी नागरिकों को उनके देश पहुँचाने के लिए संचालित की
गईं। दो सप्ताह में विभिन्न देशों की ओर से उनके नागरिकों को यहां से निकालने के
लिए 56 बचाव उड़ानें हुई और उनसे 10,600 से अधिक विदेशी नागरिकों को उनके देश रवाना किया गया। जापान, नॉर्वे, जर्मनी, अफगानिस्तान, पोलैंड, रूस और फ्रांस के नागरिकों को उनके देश पहुंचाया गया। उड़ानें
अभी जारी हैं।
अस्सलाम अलैकुम!
पिछले सप्ताह एक
और समाचार पाकिस्तानी अखबार ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने दिया। इसके अनुसार
भारतीय उड़ान सेवा ‘एयर इंडिया’ भारत से फ्रैंकफ़र्ट के लिए विशेष उड़ानें संचालित
कर रही है। ये उड़ानें पाकिस्तान के ऊपर से होकर गुजर रही हैं। इन उड़ानों ने जब पाकिस्तान की वायु सीमा में प्रवेश किया
तो पाकिस्तान के एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (एटीसी) ने उन्हें ‘अस्सलाम अलैकुम’ कहा और बधाई दी। पाकिस्तान के एटीसी ने कोरोना वायरस महामारी के
दौरान राहत कार्यों के लिए उड़ानों के संचालन के लिए भारत की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, हमें
आप पर गर्व है कि महामारी की हालत में आप उड़ानों का संचालन कर रहे हैं, गुड लक।
जब एयर इंडिया के
पायलट ने कहा कि उन्हें ईरान के हवाई क्षेत्र के लिए रेडार प्राप्त नहीं हो रहा है, तो पाकिस्तान के एटीसी ने भारतीय विमान की
स्थिति तेहरान हवाई क्षेत्र के लिए स्थानांतरित कर दी। भारतीय पायलट का कहना था कि
मेरे पूरे कैरियर में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी पश्चिम एशियाई देश ने 1,000 मील
का सीधा रूट दे दिया हो। ईरान शायद ही किसी एयरलाइन को सीधा रास्ता देता है, इसलिए कि यह केवल ईरान के रक्षा उद्देश्यों के
लिए निर्धारित है।
सहयोग का यह एक
पहलू है। इसके साथ हमारी वैश्विक प्रतिबद्धता जुड़ी है। ये अंतरराष्ट्रीय उड़ानें
ऐसी परिस्थितियों में संचालित की गई हैं, जब देशभर में 14 अप्रैल तक लागू लॉकडाउन के कारण सामान्य उड़ानों पर
प्रतिबंध लगा है। यद्यपि देश में आवागमन पर रोक है, पर सार्वजनिक सेवाओं तथा
आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए हवाई जहाज उड़ानें भर रहे हैं, मालगाड़ियाँ दौड़
रहीं हैं और सड़कों पर ट्रक चल रहे हैं। सामाजिक क्रिया-कलाप चलाए रखने और
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय रक्त-संचार बनाए रखने के लिए यह एक अलग प्रकार का प्रयास
है, जो हम देख नहीं पा रहे हैं। इसका महत्व हमें बरसों बाद समझ में आएगा।
अमेरिकी अनुरोध
कोरोना-पीड़ितों के इलाज में प्रायोगिक रूप से कुछ देशों
में मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाई ‘हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन’ को लेकर भी खबरें
सुर्खियों में थीं। सुर्खियों की वजह यह सनसनीखेज परिकल्पना थी कि उसे लेकर
अमेरिका ने भारत को कोई चेतावनी दी है। यह सच है कि पिछले तीन
सप्ताह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत से यह दवाई माँग रहे हैं। 21 मार्च को डोनाल्ड ट्रंप ने अपने ट्वीट में लिखा था, ''हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और एज़िथ्रोमाइसिन का कॉम्बीनेशन
मेडिसिन की दुनिया में बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकता है। भारत को कम से कम 20 देशों से इस दवा की सप्लाई करने की अपील मिली
है। इनमें पड़ोसी देश श्रीलंका और नेपाल भी शामिल हैं। सामान्य
परिस्थितियों में इसकी आपूर्ति में दिक्कत भी नहीं थी। भारत भेजता भी रहा है।
दुनिया में इसकी 70 फीसदी आपूर्ति भारतीय कम्पनियाँ करती हैं। शायद भारत ने इसकी घरेलू बढ़ती
मांग के कारण कुछ समय के लिए इसके निर्यात पर रोक लगाई थी। जैसे ही लगा कि इसकी
जरूरत काफी ज्यादा है, यह रोक हटा दी गई और अमेरिका से पहले इसकी खेप श्रीलंका
भेजी गई।
इस दवा की आपूर्ति जारी रखने की
घोषणा करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘महामारी के मानवीय पहलू को ध्यान में रखते हुए भारत ने उन
सभी पड़ोसी देशों को उचित मात्रा में पैरासिटॉमाल और मलेरिया रोधी दवा ‘हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन’
के निर्यात को मंजूरी दे दी है, जो हमपर निर्भर हैं। इसके
अलावा हम इन आवश्यक दवाओं की आपूर्ति उन कुछ देशों को भी करेंगे जो खासतौर पर
महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं। अलबत्ता इस संबंध में हम किसी भी आशंका या
राजनीतिकरण के किसी भी प्रयास को बढ़ावा नहीं देंगे।
कोविड-19 महामारी को देखते हुए भारत हमेशा इस बात का पक्षधर रहा है
कि मजबूत एकजुटता और सहयोग दिखाना चाहिए। किसी भी जिम्मेदार सरकार की तरह भारत की
पहली प्राथमिकता है अपने लोगों के लिए आवश्यक दवाएं की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहे।
यह सुनिश्चित करने के बाद ही दूसरे देशों को इसकी पूर्ति की जा रही है। इंडियन
ड्रग मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के एक्ज़िक्यूटिव डायरेकर अशोक कुमार मदान के अनुसार
भारत में इस दवा की सप्लाई में कोई कमी नहीं है। इस घोषणा के पहले विदेश व्यापार
महानिदेशक (डीजीएफटी) ने सोमवार 6 अप्रेल को 14 दवाओं पर से प्रतिबंध
हटाने को मंजूरी दी थी। कोरोना से लड़ने के लिए किसी भी तरह का टीका अभी ईजाद नहीं
हुआ है, लेकिन अमेरिका में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल कोरोना मरीज़ों को
ठीक करने के लिए किया जा रहा है।
हमेशा एक कदम आगे
यह ‘विश्व-बंधुत्व’
की भारतीय भावना का एक उदाहरण है। पर यह पहला उदाहरण नहीं है। भारत ने प्राकृतिक और
दैवीय आपदाओं के अवसर पर हमेशा आगे बढ़कर काम किया है। ऐसा दक्षिण एशिया की सुनामी
के समय देखा गया, समुद्री तूफानों का यही अनुभव है और अब
कोरोनावायरस का भी यही संदेश है। भारत इस आपदा का सामना कर रहा है, पर इसके विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में भी बराबर का भागीदार है।
इस सिलसिले में नवीनतम समाचार यह है कि भारत कोरोनावायरस के इलाज के लिए विश्व
स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में तैयार की जारी औषधि के विकास में भी भागीदार है।
इस सहयोग की
शुरुआत अपने पास-पड़ोस से ही हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 मार्च को सार्क देशों से अपील की थी कि हमें मिलकर काम
करना चाहिए। इसकी पहल के रूप में उन्होंने शासनाध्यक्षों के बीच एक वीडियो
कांफ्रेंस का सुझाव दिया। इस वीडियो कांफ्रेंस में भारत के पड़ोसी देशों ने भाग
लिया। भारत ने इस आपदा का सामना करने के लिए एक कोष बनाने का सुझाव भी दिया, जिसमें एक करोड़ डॉलर का प्रारम्भिक योगदान भी किया। जिस
समय चीन के वुहान शहर में इस संकट की शुरुआत हुई थी भारत ने अपने विमान भेजकर न
केवल अपने नागरिकों को वहाँ से निकाला, बल्कि पड़ोसी देशों के नागरिकों को भी
निकाला। ईरान में अपनी टीम भेजी, जो परीक्षण उपकरण साथ लेकर गई। भारत आते वक्त
सारे उपकरण ईरान को दे दिए गए।
जरूरत पड़ने पर
देशों में हालात से निपटने के लिए भारत डॉक्टरों और विशेषज्ञों की एक त्वरित
कार्यवाही टीम बना रहा है, जो टेस्टिंग किट और दूसरे
उपकरणों के साथ तैयार रहेगी। प्रधानमंत्री ने पड़ोसी देशों के आपातकालीन कार्यबलों
के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण कैप्स्यूलों की व्यवस्था करने और संभावित वायरस वाहकों और
उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाने में मदद करने के लिए सॉफ्टवेयर को साझा
करने की भी पेशकश की। भारत के पास वैज्ञानिक और तकनीकी आधार है, जो इस क्षेत्र के विकास में मददगार होगा।
पिछले कुछ वर्षों
में भारत ने प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने और राहत पहुँचाने में विशेषज्ञता
हासिल की है और इस सिलसिले में संरचनात्मक कार्य भी किए हैं। कोरोना संकट से
निपटने के लिए नरेंद्र मोदी ने जो संपर्क-संवाद कायम किया है, वह दक्षिण एशिया के साथ-साथ शेष विश्व के लिए भी प्रेरक-पहल
है। कोरोना वायरस के कारण चीन में फँसे भारतीयों को निकालने के साथ-साथ भारत ने
मित्र देशों के नागरिकों को भी निकालने की पेशकश की थी। इनमें दस से ज्यादा देशों
के नागरिक शामिल हैं। इनमें मालदीव, म्यांमार, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, मैडागास्कर, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका और
श्रीलंका जैसे देश शामिल हैं। यहाँ तक कि पाकिस्तान से भी कहा था कि उनके नागरिकों
को भी हम निकाल कर ला सकते हैं। चीन के अलावा भारतीय विमान ईरान, इटली और जापान जैसे देशों से हजारों भारतीयों को निकाल कर
लाए हैं।
चिकित्सकीय मुहिम
दक्षिण एशिया के
राज्याध्यक्षों के वीडियो सम्मेलन के बाद 26 मार्च को सऊदी अरब के सुल्तान किंग
सलमान की अध्यक्षता में जी-20 देशों की आपातकालीन बैठक
हुई। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,
अमेरिका के
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर
पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग वीडियो कांफ्रेंस
के जरिये शामिल हुए। इसमें जी-20 देशों के नेताओं ने
वैश्विक महामारी के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए इससे लड़ने के लिए विश्व की
अर्थव्यवस्था में पांच हजार अरब डॉलर खर्च करने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री मोदी ने
विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्थाओं में सुधार की भी बातें की।
राजनेताओं और राष्ट्राध्यक्षों के मार्फत की गई पहलों के
समांतर भारत के वैज्ञानिक-चिकित्सक और तकनीशियन भी इस दिशा में सक्रिय हैं। भारत
कोरोना की वैक्सीन तैयार करने वाली अंतरराष्ट्रीय मुहिम का हिस्सा है, हमारी
कम्पनियाँ इसके इलाज के लिए दवाई तैयार करने के कार्यक्रम पर विदेशी कम्पनियों के
साथ मिलकर काम कर रही हैं। भारत के रक्षा अनुसंधान संगठन डीआरडीओ ने वेंटीलेटरों
की ऐसी तकनीक तैयार की है, जिसमें एक वेंटीलेटर का इस्तेमाल एक से ज्यादा मरीज कर
सकते हैं। विभिन्न आईआईटी ऐसे वेंटीलेटर बनाने में कामयाब हुए हैं, जो परम्परागत
वेंटीलेटरों से चौथाई लागत में तैयार किए जा सकते हैं।
इसी सप्ताह की खबर है कि दुनिया भर में लगभग 43 फार्मा और बायोटेक
फर्मों ने कोविड-19 वैक्सीन खोजने के लिए अपनी सबसे बड़ी शोध और विकास पहल शुरू की
है। इसमें भारत की कम्पनी ज़ायडस कैडिला और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी शामिल
हैं। अमेरिकी कम्पनी कोडाजेनिक्स और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एक वैक्सीन
विकसित किया है, जिसका पशुओं पर परीक्षण किया जा रहा है। किसी भारतीय संस्थान और
अमेरिकी कम्पनी के बीच यह पहला अपने किस्म का कार्यक्रम है। अमेरिका के विदेश
विभाग ने इस कार्यक्रम को लांच करते वक्त कहा था कि भारत और अमेरिका का सहयोग किस
प्रकार फलदायी होगा, यह इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।
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