Wednesday, April 5, 2023

अमेरिकी राजनीति में नई नज़ीरों को जोड़ेंगे डोनाल्ड ट्रंप पर मुकदमे


अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एकबार फिर से खबरों में हैं. न्यूयॉर्क ग्रैंड ज्यूरी ने गत गुरुवार 30 मार्च को उनके 2016 के राष्ट्रपति अभियान के दौरान एक पोर्न स्टार को पैसे देने के आरोप में आपराधिक केस चलाने को मंजूरी दे दी है, ऐसे अपराध के लिए, जिसमें एक साल या उससे अधिक की कैद हो सकती है.

अमेरिका के इतिहास में आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले वे पहले पूर्व राष्ट्रपति बन गए हैं. कहा जा रहा था कि यदि वे मंगलवार को अदालत के सामने पेश नहीं हुए, तो उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है. बहरहाल वे अदालत के सामने पेश हो चुके हैं और उन्हें औपचारिक रूप से गिरफ्तार भी माना गया है. इस मामले में अगली सुनवाई 4 दिसंबर को होगी.

उन्हें 34 मामलों में आरोपी बनाया गया है. ट्रंप ने अदालत में कहा, मैंने कोई अपराध नहीं किया है और न अपने बिजनेस रिकार्ड में कोई गड़बड़ी नहीं की है.  57 मिनट चली पेशी के बाद ट्रंप कोर्ट से बाहर आए और फ्लोरिडा के लिए रवाना हो गए. अंततः उन्हें सजा हो या नहीं हो, लगता है कि ट्रंप इस मौके का फायदा उठाने को तैयार हैं.  

राजनीतिक साज़िश

वे इस मुकदमे को अपने खिलाफ बड़ी राजनीतिक साजिश बता रहे हैं. मैनहटन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के दफ्तर का कहना है कि ट्रंप से समर्पण के सिलसिले में बात की गई है. खबरें हैं कि वे अपने निजी विमान में बैठकर न्यूयॉर्क जाएंगे. जब आप इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं, तब तक वे न्यूयॉर्क पहुँच चुके होंगे.

ट्रंप ने कुछ समय पहले ही कह दिया था कि उनपर मुकदमा चलेगा और वे राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव के लिए लगातार धन-संग्रह कर रहे हैं. कोई दूसरा राजनेता होता, तो इससे उसका करियर तबाह हो जाता, पर अमेरिकी राजनीति और समाज के ध्रुवीकरण को देखते हुए लगता है कि ट्रंप इसे अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश करेंगे.

चुनाव की तैयारी

वे सज-धज के साथ मुकदमे में भाग लेने के लिए आए. आरोप सिद्ध होने या आरोप लगने के बाद भी अगर वे राष्ट्रपति चुनाव लड़ना चाहेंगे तो लड़ सकते हैं. अमेरिकी संविधान के मुताबिक़ राष्ट्रपति होने के लिए उम्मीदवार का आपराधिक रिकॉर्ड साफ़ होना ज़रूरी नहीं है. व्यक्ति जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ सकता है.

प्रताड़ना के आरोप के कारण पार्टी में ट्रंप की स्थिति बेहतर हो जाती है. 2020 के चुनाव के समय ही रिपब्लिकन पार्टी में ट्रंप विरोधी तबका भर आया था, पर उनके समर्थक भी कम नहीं हैं. पार्टी में रॉन डेसेंटिस उनके मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर कर आए हैं. पार्टी के कुछ बड़े नेता ट्रंप की नाटकबाज़ी को पसंद नहीं करते हैं, पर जनता के बीच उनकी पैठ है. सवाल है कि सब कुछ होने के बाद भी क्या राष्ट्रपति पद के लिए वे रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी बनने में सफल होंगे?

धन का भुगतान

हालांकि आरोपों को सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं किया गया है, पर मामला 2016 में पोर्न स्टार स्टॉर्मी डेनियल्स नाम की महिला को (जिनका असली नाम है स्टेफनी क्लिफर्ड), एक लाख तीस हजार डॉलर के भुगतान की जांच से जुड़ा है. आरोप सीलबंद हैं और मंगलवार को औपचारिक रूप से अदालत में उन्हें सुनाया जाएगा. 2016 में पोर्न स्टार ने मीडिया के सामने कहा था कि 2006 में ट्रंप और उनके बीच अफेयर था. इसके बाद ट्रंप की टीम ने स्टॉर्मी को मुँह बंद रखने के लिए एक लाख तीस हजार डॉलर का भुगतान किया.

स्टॉर्मी को पैसों का भुगतान गैरकानूनी नहीं था, लेकिन जिस तरीके से भुगतान हुआ, उसे गैरकानूनी माना गया. ट्रंप के तत्कालीन वकील माइकल कोहेन ने गुपचुप तरीके से स्टॉर्मी को दी थी. जबकि ऐसे दिखाया गया जैसे ट्रंप की एक कंपनी ने भुगतान एक वकील को किया है. इसे बाद में चुनावी प्रचार के खर्च में दिखा दिया गया था.

6 जनवरी का कांड

इसी लेनदेन को अपराध माना गया है, जिसकी जांच ट्रंप के राष्ट्रपति पद पर रहते हुए ही शुरू हो गई थी. इस मुकदमे को अमेरिका में चुनाव कानूनों के खिलाफ करीब बीस मामले तैयार हो चुके हैं. उनके खिलाफ सबसे बड़ा मामला है 6 जनवरी, 2021 को अमेरिकी संसद पर हुए हमले का केस. क्या इस केस के कारण उन्हें भविष्य में चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित किया जा सकता है?

इसके अलावा 2020 के चुनाव से जुड़ा एक और केस है. फुल्टन काउंटी, जॉर्जिया में चुनाव परिणामों की घोषणा में हस्तक्षेप का मामला, जो काफी गंभीर है. फुल्टन काउंटी में भी एक ग्रैंड ज्यूरी उनके मामले की पड़ताल कर रही है. मामला 11,780 वोटों का है, जिनकी वजह से ट्रंप की बहुत मामूली अंतर से वहाँ हार हो गई थी.

सामाजिक ध्रुवीकरण

अमेरिका में अतीत में राष्ट्रपति या पूर्व राष्ट्रपति आरोपों के घेरे में आए भी, तो किसी न किसी तरीके से बच गए. इस समय बात केवल न्याय की नहीं राजनीति की है. अब महत्वपूर्ण यह नहीं है कि ट्रंप ने गलती की है या नहीं. करीब-करीब आधा देश चाहता है कि उन्हें सजा दी जाए. आधा देश मानता है कि ट्रंप को प्रताड़ित किया जा रहा है. यह आधा देश मानने को तैयार नहीं कि ट्रंप के साथ न्याय होगा.

ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के पीछे परंपरावादी अमेरिका है. कोई और मौका होता, तो वे ट्रंप को ऐसे अपराध के लिए माफ नहीं करते, पर इस वक्त वे 2020 की हार से कुंठित हैं. तकरीबन ऐसे ही मामले को लेकर उन्होंने बिल क्लिंटन के खिलाफ महाभियोग का समर्थन किया था. और उस समय डेमोक्रेटिक पार्टी के जो समर्थक क्लिंटन का बचाव कर रहे थे, वे इस समय मान रहे हैं कि ट्रंप के खिलाफ मामला बनता है.

कानूनी स्थिति

मैनहटन की अदालत में कसौटी पर नैतिकता, आचार-व्यवहार और पाखंड से जुड़े सवाल नहीं हैं, बल्कि यह है कि एक महिला को किया गया एक लाख तीस हजार डॉलर का भुगतान चुनाव की आचार-संहिता का उल्लंघन था या नहीं. अमेरिका में चुनाव के लिए धन-संग्रह की व्यवस्था बहुत उदार है और उससे जुड़े नियमन बहुत कठोर नहीं हैं, इसीलिए देखना होगा कि अदालत का रुख अब क्या होगा.

अमेरिका की अदालत से यह उम्मीद न करें कि वह अपने फैसले को इस आधार पर तय करेगी कि अभियुक्त का रुतबा क्या है और इस  मसले पर जनता की राय क्या है. बहरहाल ट्रंप के पक्ष और विरोध की दलीलों पर गौर करें. उनके पुराने वकील माइकल गोहेन साहब अपनी गलती मान चुके हैं कि उन्होंने चुनाव-अभियान से जुड़े वित्तीय-नियमों का उल्लंघन किया है. वे यह भी मान चुके हैं कि उन्होंने संसद के सामने झूठ बोला.

तब क्या वकील सारी गलती वकील की मानी जाएगी? इस रकम को चुनाव-प्रचार के भुगतान की रकम बताना अपराध है. फिर भी सब कुछ जज पर निर्भर करेगा कि वे इस मामले को किस तरह से देखते हैं. चुनाव-प्रचार के लिए धन-संग्रह संघीय-कानून के दायरे में आता है और लेनदेन का विवरण राज्य-कानून के दायरे में. दोनों को किस तरह जोड़ा जाएगा? फिर भी आम जनता के मन में इस केस को लेकर दो तरह की बातें हैं. बहुत से लोग मानते हैं कि उन्हें बेवजह फँसाया जा रहा है.     

नई नज़ीर

दुनिया के अनेक देशों में पूर्व राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों पर मुकदमे चले हैं और उन्हें सजाएं भी हुई हैं, पर अमेरिका का राष्ट्रपति अभी तक सबसे अलग माना जाता रहा है. इटली के सिल्वियो बर्लुस्कोनी और फ्रांस के निकोलस सरकोज़ी हाल की घटनाएं हैं. सिद्धांत यह है कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भी आखिर सामान्य नागरिक है.

पिछले एक दशक में दक्षिण कोरिया के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों और दो पूर्व राष्ट्रपतियों को सजाएं हुई हैं. निकोलस सरकोज़ी के अलावा फ्रांस के पूर्व प्रधानमंत्री फ्रांस्वा फिलन को सज़ा हुई है. अमेरिका में अभी तक किसी पूर्व राष्ट्रपति को सजा नहीं हुई है. वॉटरगेट कांड के बावजूद रिचर्ड निक्सन को मुकदमे की जिल्लत से बख्श दिया गया. क्या डोनाल्ड ट्रंप इस परंपरा को तोड़ेंगे?

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित लेख का संवर्धित संस्करण

 

 

 

Sunday, April 2, 2023

हेट स्पीच पर राष्ट्रीय-बहस भी होनी चाहिए


सुप्रीम कोर्ट में गत 29 मार्च को जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने हेट स्पीच मामले पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि जिस दिन राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे, और नेता राजनीति में धर्म का उपयोग करना बंद कर देंगे, उसी दिन नफरत फैलाने वाले भाषण भी बंद हो जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हम अपने हाल के फैसलों में भी कह चुके हैं कि पॉलिटिक्स को राजनीति के साथ मिलाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। वहीं, जस्टिस बीवी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी की मिसाल देते हुए कहा, 'वाजपेयी और नेहरू को याद कीजिए, जिन्हें सुनने के लिए लोग दूर-दराज से एकत्र होते थे। हम कहां जा रहे हैं?' इसके पहले अदालत कह चुकी है कि खबरिया चैनलों के एंकर अपने कार्यक्रमों के माध्यम से हेट स्पीच परोसते रहे हैं। खंडपीठ ने नफरती भाषण देने वाले लोगों पर सख्त आपत्ति जताते हुए सवाल किया है कि लोग खुद को काबू में क्यों नहीं रखते हैं? यह काबू शब्द भी विचारणीय है। हेट स्पीच क्या बेकाबू होकर होती है या जो बाला जाता है वह सोचा-समझा होता है?

किसकी हेट स्पीच?

सुप्रीम कोर्ट में इस प्रश्न पर चल रही बहस को गौर से सुनने की जरूरत है। इस बहस के साथ देश की राजनीति, प्रशासन और सामाजिक व्यवस्था के बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न जुड़े हैं। ऐसे तमाम प्रश्नों पर हमें विचार करना चाहिए। केरल के पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके मांग की है कि वह देशभर में हुई हेट स्पीच की घटनाओं की निष्पक्ष, विश्वसनीय और स्वतंत्र जांच के लिए केंद्र सरकार को निर्देशित करें। भारत में मुसलमानों को डराने-धमकाने के चलन को तुरंत रोका जाए। हालांकि, कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या मुसलमान ऐसे बयान नहीं दे रहे हैं?

और कुछ सवाल

अदालत की टिप्पणी पर केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र चुप नहीं है। केरल जैसे राज्य चुप थे, जब मई 2022 में पीएफआई (प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) की एक रैली में हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ नरसंहार के आह्वान किए गए थे। उन्होंने आश्चर्य जताया कि जब अदालत इस बारे में जानती थी, तो उसने स्वत: संज्ञान क्यों नहीं लिया। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि तमिलनाडु में डीएमके के एक प्रवक्ता ने कहा था, ‘जो भी पेरियार कहते थे, वह किया जाना चाहिए… यदि आप स्वतंत्रता चाहते हैं तो आपको सभी ब्राह्मणों की हत्या करनी होगी। इस पर जैसे ही जस्टिस जोसफ हँसे, मेहता ने कहा, ‘यह हँसी की बात नहीं है। मैं इसे हँसी में नहीं उड़ाऊँगा। इस आदमी के खिलाफ एफआईआर नहीं हुई है। इतना ही नहीं, वे एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रवक्ता बने हुए हैं।’

Thursday, March 30, 2023

सोमवार को चेन्नई में दिखाई पड़ेगी विरोधी दलों की एकता

साभार सतीश आचार्य का पुराना कार्टून

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव की घोषणा होने और राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के साथ विरोधी दलों की एकता के प्रयासों में फिर से तेजी आ गई है। सोमवार 3 अप्रेल को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 16 विरोधी दलों की बैठक बुलाई है। जिन दलों को निमंत्रण दिया गया है, उनमें बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस भी शामिल है। वे आएंगे या नहीं इसे लेकर कयास हैं। ये दोनों दल अभी तक विरोधी दलों के किसी भी गठबंधन में शामिल होने से बचते रहे हैं।

वाईएसआर कांग्रेस ने गुरुवार को कहा भी है कि हमें बुलाया नहीं गया है और हम शामिल भी नहीं होंगे। बीजद ने भी बैठक में भाग लेने के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। अलबत्ता इस सम्मेलन के आयोजनकर्ताओं का कहना है कि बीजद के राज्यसभा मुख्य सचेतक सस्मित पात्रा बैठक में शामिल होंगे। विरोधी दलों के नेता यह भी मानते हैं कि ये दोनों दल एनडीए के करीब रहते हैं। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार जब सस्मित पात्रा से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि मैं कह नहीं सकता कि बीजद इस बैठक में शामिल होगा या नहीं। मेरे पास इसमें हिस्सा लेने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

एकता के सूत्र

बहरहाल बैठक के आयोजकों के अनुसार डीएमके की इस बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, जेएमएम, राजद, जेडीयू, तृणमूल कांग्रेस, सपा, वाईएसआरसीपी, बीजद, नेकां, बीआरएस, कम्युनिस्ट पार्टी, माकपा, राकांपा, आम आदमी पार्टी, आईयूएमएल, एमडीएमके को आमंत्रित किया गया है। अब पहली बार मोदी विरोध के नाम पर ही सही कम से कम 14 या 15 दल अब एक साथ बैठने को तैयार नज़र आ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ का लोकलुभावन बजट

गत 6 मार्च को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ‘गढ़बो नवा छत्तीसगढ़’ के आप्त-वाक्य के साथ वर्ष 2023-24 के लिए एक लाख 21 हज़ार 500 करोड़ रुपए का बजट प्रस्तुत किया। यह बजट इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राज्य कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर आधारित ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ को स्थापित करना चाहता है। इस साल राज्य में विधानसभा चुनाव भी हैं। इस दृष्टि से तमाम लोकलुभावन योजनाओं की भी इसमें भरमार है। खासतौर से बेरोजगारों को 2500 रुपये महीने क बेरोजगारी भत्त की घोषणा। इस योजना की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गणतंत्र दिवस पर कर चुके थे। बजट में केवल उसे औपचारिक रूप दिया गया है।

वित्तीय दृष्टि से राज्य आरामदेह स्थिति में है। राज्य के स्वयं की राजस्व प्राप्तियों को बढ़ाने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों का परिणाम सकारात्मक रहा है। इस वर्ष राज्य के स्वयं के राजस्व में 26 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है। एक और उपलब्धि यह है कि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा राज्य के विकास कार्यों हेतु वर्ष 2012-13 से निरंतर बाजार ऋण लिया जा रहा था। विगत तीन वर्षों में कुशल वित्तीय प्रबंधन अपनाते हुए वर्ष 2022-23 में सरकार ने अब तक बाजार ऋण नहीं लिया है।

आर्थिक संवृद्धि

बजट में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए कई प्रकार की घोषणाएं की गई हैं, जिनमें खासतौर से स्वास्थ्य, शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर है। हालांकि अर्थव्यवस्था का विकास देश के सभी इलाकों में हुआ है, पर छत्तीसगढ़ उन राज्यों में शामिल है, जिनका विकास अपेक्षाकृत तेज है। मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ 1 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 2001 में जो पहला बजट पेश किया था, वह साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए का था। संशोधित अनुमानों को जोड़ने के बाद वह 5,705 करोड़ रुपए का हो गया था। इस साल यह एक लाख 12 हजार करोड़ रूपये का है। 22 साल में इसका आकार करीब 22 गुना हो गया है।

Wednesday, March 29, 2023

पश्चिम एशिया में ‘डी-अमेरिकनाइज़ेशन?’

KAL's Cartoon इकोनॉमिस्ट से साभार

देस-परदेश

बुधवार 22 मार्च को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस की अपनी यात्रा का समापन किया और अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का मुकाबला करने के लिए एक नई रणनीति की शुरुआत की. उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ‘समान, खुली और समावेशी सुरक्षा-प्रणाली’ बनाने का संकल्प करते हुए अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ नए मोर्चे की शुरुआत की है.

गत 10 मार्च को सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराते हुए चीन ने दो संदेश दिए हैं. एक, चीन महत्वपूर्ण और जिम्मेदार शक्ति है और दूसरे यह कि वह अमेरिका के दबाव में आने वाला नहीं है. चीन ने पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप करके अपने आपको शांति-स्थापित करने वाले देश के रूप में स्थापित किया है. साथ ही अमेरिका की छवि झगड़े कराने वाले देश के रूप में बनी है. इसे पश्चिम एशिया में डी-अमेरिकनाइज़ेशनकी शुरुआत कहा जा रहा है.

15 अगस्त, 2021 को जब तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा किया था, तब भी ऐसा ही कहा गया था. जब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पश्चिमी फ्री-मार्केट की अवधारणा से जुड़ी है और संरा और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं कारगर हैं, तब तक यह मान लेना आसान नहीं है कि अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो जाएगा. अलबत्ता पश्चिम एशिया के घटनाक्रम ने सोचने-विचारने के लिए कुछ नए तथ्य उपलब्ध कराए हैं.

ईरान का प्रतिरोध

अमेरिका के मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में चीन का नाम लिया जा रहा है, पर हमें ईरान के प्रतिरोध पर भी ध्यान देना चाहिए. ईरान ने चार बातें साफ की हैं. एक, अरब देशों के साथ रिश्तों को सुधारने में उसे दिक्कत नहीं हैं. वह चीन पर भरोसा करता है. उसे अमेरिका पर भरोसा कत्तई नहीं है. चौथी, यूक्रेन युद्ध में वह रूस का समर्थक है. इसके प्रमाण हैं ईरान में बने सैकड़ों कामिकाज़े ड्रोन, जिनके अवशेष यूक्रेन के नागरिक इलाकों में मिले हैं.

इन सब बातों के अलावा वह अपने नाभिकीय कार्यक्रम को अमेरिका-समर्थित विश्व-व्यवस्था के हवाले करने को तैयार नहीं है. अब स्थिति यह है कि ईरान में हिजाब को लेकर चल रहे आंदोलन के खिलाफ सरकारी कार्रवाई छठे महीने में प्रवेश कर गई है. दूसरी तरफ मार्च के तीसरे हफ्ते में ईरान, चीन और रूस की नौसेनाओं ने ओमान की खाड़ी में संयुक्त युद्धाभ्यास किया है, जिससे आप अपने निष्कर्ष खुद निकाल सकते हैं.