Wednesday, February 9, 2022

नए शीत-युद्ध का प्रस्थान बिंदु है शी-पुतिन वार्ता

यूक्रेन को लेकर रूस और पश्चिमी देशों की तनातनी के बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चीन गए, जहाँ उनकी औपचारिक मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ हुई। वे विंटर ओलिम्पिक के उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए गए थे, जिसका डिप्लोमैटिक महत्व नहीं है, पर दो बातों से यह यात्रा महत्वपूर्ण है। एक तो पश्चिमी देशों ने इस ओलिम्पिक का राजनयिक बहिष्कार किया है, दूसरे महामारी के कारण देश से बाहर नहीं निकले शी चिनफिंग की किसी राष्ट्राध्यक्ष से यह पहली रूबरू वार्ता थी।

क्या युद्ध होगा?

अमेरिका और यूरोप साबित करना चाहते हैं कि हम दुनिया की सबसे बड़ी ताकत हैं। दूसरी तरफ रूस-चीन खुलकर साथ-साथ हैं। युद्ध कोई नहीं चाहता, पर युद्ध के हालात चाहते हैं। आर्थिक पाबंदियाँ, साइबर अटैक, छद्म युद्ध, हाइब्रिड वॉर वगैरह-वगैरह चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अब रूस के साथ चीन है। ताइवान और हांगकांग के मसले भी इससे जुड़ गए हैं। ताइवान को अमेरिका की रक्षा-गारंटी है, यूक्रेन के साथ ऐसा नहीं है। फिर भी अमेरिका ने कुमुक भेजी है। 

कल्पना करें कि लड़ाई हुई और रूस पर अमेरिकी पाबंदियाँ लगीं, और बदले में पश्चिमी यूरोप को गैस-सप्लाई रूस रोक दे, तब क्या होगायूरोप में गैस का एक तिहाई हिस्सा रूस से आता है। शीतयुद्ध के दौरान भी सोवियत संघ ने गैस की सप्लाई बंद नहीं की थी। सोवियत संघ के पास विदेशी मुद्रा नहीं थी। पर आज रूस की अर्थव्यवस्था इसे सहन कर सकती है। अनुमान है कि रूस तीन महीने तक गैस-सप्लाई बंद रखे, तो उसे करीब 20 अरब डॉलर का नुकसान होगा। उसके पास 600 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। इतना ही नहीं, उसे चीन का सहारा भी है, जो उसके पेट्रोलियम और गैस का खरीदार है।

रूस-चीन बहनापा

क्या यह नया शीतयुद्ध है? शीतयुद्ध और आज की परिस्थितियों में गुणात्मक बदलाव है। उस वक्त सोवियत संघ और पश्चिम के बीच आयरन कर्टेन था, आज दुनिया काफी हद तक कारोबारी रिश्तों में बँधी हुई है। दो ब्लॉक बनाना आसान नहीं है, फिर भी वे बन रहे हैं। ईयू और अमेरिका करीब आए हैं, वहीं रूस और चीन का बहनापा बढ़ा है। पश्चिम में इस रूस-चीन गठजोड़ को ‘ड्रैगनबेयर’ नाम दिया गया है।

Sunday, February 6, 2022

आर्थिक-अवसर पैदा करने के हौसलों वाला बजट


बजट आ गया, आपको कैसा लगा? कई मायनों में इसकी परीक्षा पूरे साल होगी। लंबे अरसे तक आम नागरिक बजट को महंगा-सस्ता की भाषा में समझता था। मध्य वर्ग की दिलचस्पी इनकम टैक्स तक होती थी, आज भी है। रेल बजट को लोग नई ट्रेनों की घोषणा और किराए-मालभाड़े में कमी-बेसी से ज्यादा नहीं समझते थे। इस लिहाज से इस बजट में कुछ भी नहीं है। इस साल के बजट का सार एक वाक्य में है, समस्याओं का हल है तेज आर्थिक संवृद्धि। संवृद्धि होगी, तो सरकार को टैक्स मिलेगा, सामाजिक कल्याण के काम किए जा सकेंगे। संवृद्धि के साथ यह भी देखना होगा कि राजकोषीय घाटा कितना है और कर्ज कितना है और कितना ब्याज देना है वगैरह। ब्याज दर ऊँची या नीची होना भी महत्वपूर्ण है। जीडीपी, घाटे और कर्ज को एकसाथ पढ़ना होगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति और पूँजी-निवेश को भी। 

अनेक चुनौतियाँ

वित्तमंत्री के सामने चुनौती है धीमी होती वैश्विक अर्थव्यवस्था और बढ़ती ब्याज दरों के बीच तेज संवृद्धि को हासिल करना। पर देखना होगा कि इस दौरान बेरोजगारी और महंगाई का सामना किस तरह से होगा। यह बात इसी साल सामने आ जाएगी। कुछ अपेक्षाएं या अंदेशे महामारी से भी जुड़े हैं, जिसकी तीसरी लहर के बीच यह बजट आया है। पिछले साल जीडीपी में 6.6 फीसदी का संकुचन हुआ था, जिसे एडजस्ट करने के बाद देखें, तो आज अर्थव्यवस्था महामारी से पहले यानी 2019-20 से केवल एक फीसदी के आसपास ही बेहतर है। देश के पास उपभोग के साधन तकरीबन उतने ही या उससे कम हैं, जितने 2019-20 में थे। बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, खाद्य-सुरक्षा, जलवायु-परिवर्तन, पुष्टाहार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक-विषमता वगैरह-वगैरह की चुनौतियाँ ऊपर से हैं। हर सेक्टर की भारी अपेक्षाएं हैं और राजनीतिक चुनौती अलग से।

बदलाव, जो दिखाई भी पड़ेंगे

इसबार का बजट अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों चुनौतियों का सामना करता नजर आता है। इसमें दूर की बातें हैं, पर 2024 के चुनाव के ठीक पहले नजर आने वाले कार्यक्रम भी हैं। हाईवे, पुल, वंदे भारत ट्रेनें, डिजिटल इंडिया और 5-जी जैसे कार्यक्रमों के परिणाम दो साल बाद दिखाई पड़ेंगे। वित्तमंत्री ने कुल 39.45 लाख करोड़ रुपये का बजट तैयार किया है, पर कुल कमाई 22.84 करोड़ रुपये की है। निर्माण पर भारी खर्च का मतलब है राजकोषीय घाटा। सवाल है कि वह कैसे पूरा होगा और बेरोजगारी तथा बढ़ती महंगाई का सामना किस तरह से किया जाएगा?  सरकार ने इस बीच मुफ्त अनाज दिया और मनरेगा के माध्यम से काम भी दिया। कुछ रिकवरी हुई है, पर वह अधूरी और असंतुलित है।  

राजकोषीय घाटा

कुल व्यय पर नियंत्रण के बावजूद शुद्ध बाजार उधारी 32.3 फीसदी बढ़कर 11.59 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी। बाजार से कर्ज लेने में रिजर्व बैंक के बॉण्ड मैनेजमेंट की परीक्षा भी होगी। कर्ज पर ब्याज बढ़ने से सरकार का हाथ तंग होगा। 2020-21 में कुल सरकारी खर्च में ब्याज की हिस्सेदारी 19 फीसदी थी। चालू वर्ष में यह 22 फीसदी से ज्यादा है और अगले साल 24 फीसदी तक हो सकती है। संसाधनों का एक चौथाई ब्याज में जाएगा। चालू वित्तवर्ष में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.8 फीसदी था, जो 6.9 फीसदी हो जाएगा। अगले साल 6.4 फीसदी का लक्ष्य है। यह स्तर 2025-26 के लिए निर्धारित 4.5 फीसदी से दो फीसदी तक ज्यादा है, पर इसे हासिल किया जा सकता है।

Wednesday, February 2, 2022

छुटकारा कैसे मिले, इस ‘जानलेवा विषमता’ से?

विकास, संवृद्धि और उत्पादन के खुशगवार आँकड़ों की बहार है, पर जब आइना देखते हैं, तब चेहरे की झुर्रियाँ हैरान और परेशान करती है। ऐसा ऑक्सफ़ैम असमानता-रिपोर्ट से हुआ है। ‘इनइक्वैलिटी किल्स’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में आर्थिक-विषमता भयानक तरीके से बढ़ रही है। 2021 में देश के 84 फीसदी परिवारों की आय घटी है, पर इसी अवधि में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। मार्च 2020 से 30 नवंबर, 2021 के बीच अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये (313 अरब डॉलर) से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपये (719 अरब डॉलर) हो गई है, जबकि 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक देशवासी आत्यंतिक गरीबी-रेखा के दायरे में आ गए हैं।

वैश्विक-चिंतन की दिशा

ऑक्सफ़ैम की वैश्विक-विषमता रिपोर्ट स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम के सम्मेलन के पहले आती है। दावोस का फोरम कारोबारी संस्था है, जिसे कॉरपोरेट दुनिया संचालित करती है। नब्बे के दशक में जबसे आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण की बातें शुरू हुई हैं वैश्विक गरीबी और असमानता सुर्खियों में है। समाधान खोजे गए, पर वे कारगर नहीं हुए। सहस्राब्दी लक्ष्यों को 2015 तक हासिल करने में संयुक्त राष्ट्र विफल रहा। अब उसने 2030 के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। विकास और विषमता की विसंगति को दावोस का फोरम भी स्वीकार करता है। वहाँ भी ऑक्सफ़ैम-रिपोर्ट का जिक्र हुआ है।

Tuesday, February 1, 2022

बदहवास इमरान को चीन में कुछ भी हासिल नहीं होगा


लगातार अलोकप्रिय होते जा रहे इमरान खान को लेकर पाकिस्तान में अनिश्चय बढ़ता जा रहा है। पर्यवेक्षक वर्तमान व्यवस्था को बदलने का सुझाव देने लगे हैं। हालांकि उनका कार्यकाल अगले साल अगस्त तक है, पर उसके पहले ही उनके हटने की बातें हो रही हैं। नवंबर में सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल खत्म हो रहा है, जिसे इमरान सरकार ने खींचकर बढ़ाया था। बाजवा का कार्यकाल बढ़ने से जो अंतर्विरोध पैदा हुए हैं, वे भी इमरान के गले की हड्डी हैं। तालिबान के काबिज होने के बावजूद अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तानी मुराद पूरी नहीं हुई है। आर्थिक-संकट सिर पर है, और अंदरूनी राजनीति हिचकोले खा रही है। इन हालात में वे 3 फरवरी को चीन जा रहे हैं।

इमरान-समर्थक साबित करने में लगे हैं कि बस वक्त बदलने ही वाला है। चीन-रूस-पाकिस्तान की धुरी बनने वाली है, चीनी उद्योग सीपैक में आने वाले हैं, स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनेंगे और पाकिस्तान स्टील मिल्स का उद्धार चीनी कंपनियाँ करेंगी वगैरह-वगैरह। इमरान खान चीन में हो रहे विंटर ओलिम्पिक्स के उद्घाटन समारोह में हाजिरी देने जा रहे हैं। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने इस आयोजन का राजनयिक बहिष्कार करने की घोषणा की है। बहरहाल पाकिस्तान में इस चीन-यात्रा को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके लिए सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा ने उन्हें विशेष ब्रीफिंग दी। इमरान के करीबी पर्यवेक्षक शगूफे छोड़ रहे हैं कि नए ध्रुवीकरण का केंद्र पाकिस्तान बनने जा रहा है। चीन में न केवल राष्ट्रपति पुतिन के साथ इमरान खान की मीटिंग होगी, बल्कि एक त्रिपक्षीय-मुलाकात भी होगी, जिसमें चीन-रूस और पाकिस्तान के शासनाध्यक्ष होंगे।

उम्मीद पर पानी फिरा

रूस-सरकार ने इन शिगूफों पर पानी डाल दिया है और स्पष्ट किया है कि पुतिन की केवल चीनी के राष्ट्रपति से भेंट होगी, किसी और के साथ नहीं। त्रिपक्षीय तो दूर की बात है, पुतिन से द्विपक्षीय बात भी होने वाली नहीं है। बात होने या नहीं होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है पाकिस्तान की घटती साख। चीन के साथ हिमालय से ऊँची और समुद्र से गहरी दोस्ती की असलियत से भी पाकिस्तान इस समय रूबरू है। इमरान खान की यात्रा के ठीक पहले पाकिस्तान ने पिछले साल आतंकवादी हमले में हताहत दासू बिजली परियोजना से जुड़े 36 चीनी नागरिकों को मुआवजा देने का फैसला किया है।  

Sunday, January 30, 2022

ग्रोथ के इंजन को चलाने की चुनौती


दो दिन बाद पेश होने वाले आम बजट से देश के अलग-अलग वर्गों को कई तरह की उम्मीदें हैं। महामारी से घायल अर्थव्यवस्था को मरहम लगाने, बेहोश पड़े उपभोक्ता उद्योग को जगाने, गाँवों से बाहर निकलती आबादी को रोजगार देने और पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को तैयार करने की चुनौती वित्तमंत्री के सामने है। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में संवृद्धि 9.2 प्रतिशत रहेगी। नॉमिनल संवृद्धि 18 प्रतिशत के आसपास रहेगी, जबकि पिछले बजट में 14 प्रतिशत का अनुमान था। इस साल का कर-संग्रह भी अनुमान से कहीं बेहतर हुआ है। इन खुश-खबरों के बावजूद अर्थव्यवस्था के बुनियादी सुधार के सवाल सामने हैं।

गरीबों को संरक्षण

पहली निगाह ग्रामीण और सोशल सेक्टर पर रहती है। एफएमसीजी सेक्टर चाहता है कि सरकार लोगों के हाथों में पैसा देना जारी रखे, खासकर गाँवों में। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को अभी 6 हजार रुपये सालाना रकम दी जाती है। संभव है कि इस राशि को बढ़ा दिया जाए। मनरेगा और खेती से जुड़ी योजनाओं के लिए आबंटन बढ़ सकता है, जो ग्रामीण उपभोक्ताओं का क्रय-शक्ति बढ़ाएगा। महामारी से शहरी गरीब ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लॉकडाउन ने कामगारों की रोजी छीन ली। रेस्तरां, दुकानों, पार्लरों, भवन निर्माण आदि से जुड़े कामगारों की सबसे ज्यादा। छोटी फ़र्मों और स्वरोजगार वाले उपक्रमों में रोजगार खत्म हुए हैं। संभव है कि सरकार शहरी गरीबों के लिए पैकेज की घोषणा करे। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, कौशल विकास, रोजगार-वृद्धि, मझोले और छोटे उद्योगों की सहायता उपभोक्ता-सामग्री की माँग बढ़ाने जैसी घोषणाएं इस बजट में हो सकती हैं।

मध्यवर्ग की उम्मीदें

मध्यवर्ग को आयकर से जुड़ी उम्मीदें रहती हैं। वे स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। ज्यादातर लोग घर से काम कर रहे है। उनका बिजली, इंटरनेट, मकान किराए, फर्नीचर आदि का खर्च बढ़ गया है। वे किसी रूप में टैक्स छूट की उम्मीद कर रहे हैं। जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा से जुड़ी सुविधाएं और उसपर जीएसटी कम करने की माँग भी है। पीपीएफ में निवेश की अधिकतम सीमा को 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करने का सुझाव भी है। ग्रोथ के इंजन को चलाए रखने में मध्यवर्ग की सबसे बड़ी भूमिका है। क्या सरकार उसे खुश कर पाएगी?

बदला माहौल

वैक्सीनेशन की गति बढ़ने से माहौल बदला है और उपभोक्ता की दिलचस्पी भी बढ़ी है। उम्मीद से ज्यादा कर-संग्रह हुआ है, जो कर-दायरा बढ़ाने से और ज्यादा हो सकता है। जीडीपी-संवृद्धि बेहतर होने से आने वाले वर्ष में कर-संग्रह और बेहतर होगा। पिछले दो साल से पेट्रोलियम के सहारे सरकार ने कर-राजस्व के लक्ष्य हासिल जरूर किए, पर इससे मुद्रास्फीति बढ़ी। यह बात अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है। साबित यह भी हुआ है कि सरकारी विभागों की व्यय-क्षमता कमजोर है, तमाम विभागों को आबंटित धनराशि का इस्तेमाल नहीं हो पाया। इससे संवृद्धि प्रभावित हुई। राष्ट्रीय अधोसंरचना पाइपलाइन, 4जी तकनीक, डिजिटल इंडिया मिशन, निर्यात उत्पादों पर शुल्क और कर में रियायत की योजना तथा जल जीवन मिशन में लक्ष्य से कम खर्च हुआ। संभव है कि अंतिम तिमाही में व्यय बढ़े, पर सरकारी विभागों को अपने कार्यक्रमों के लिए आबंटित धनराशि को खर्च न कर पाने की समस्या का समाधान खोजना होगा।