Saturday, November 27, 2021

पहले से ज्यादा घातक है कोरोना का नया वेरिएंट


विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक सलाहकार समिति ने दक्षिण अफ्रीका में पहली बार सामने आए कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को ओमीक्रोन (Omicron)  नाम दिया है। यह एक ग्रीक शब्द है। डब्लूएचओ ने इस नए वेरिएंट को तकनीकी शब्दावली में 'चिंतनीय वेरिएंट' (वेरिएंट ऑफ़ कंसर्न/वीओसी) बताया है। डब्लूएचओ ने कहा कि यह काफी तेज़ी से और बड़ी संख्या में म्यूटेट होने वाला वेरिएंट है। इस वेरिएंट के कई म्यूटेशन चिंता पैदा करने वाले हैं, जिसके कारण संक्रमण का ख़तरा बढ़ गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन को इसके पहले मामले की जानकारी 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका से मिली थी। इसके अलावा बोत्सवाना, बेल्जियम, हांगकांग और इसराइल में भी इस वेरिएंट की पहचान हुई है। इस वेरिएंट के सामने आने के बाद दुनिया के कई देशों ने दक्षिणी अफ्रीका से आने-जाने पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया है। दक्षिण अफ्रीका, नामीबिया, जिम्बाब्वे, बोत्सवाना, लेसोथो और इस्वातिनी से आने वाले लोग ब्रिटेन में प्रवेश नहीं कर पाएंगे, बशर्ते वे ब्रिटेन या आयरलैंड के नागरिक या ब्रिटेन के निवासी न हों।

अमेरिकी अधिकारियों ने भी दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना, जिम्बाब्वे, नामीबिया, लेसोथो, इस्वातिनी, मोज़ाम्बीक और मलावी से आने वाली उड़ानों को रोकने का फ़ैसला किया है। यह प्रतिबंध सोमवार से लागू हो जाएगा। यूरोपीय संघ के देशों और स्विट्ज़रलैंड ने भी कई दक्षिणी अफ्रीकी देशों से आने-जाने वाले विमानों पर अस्थायी रोक लगा दी है।

कोरोना के नए वेरिएंट मिलने की ख़बर से दुनिया भर के शेयर बाज़ारों में शुक्रवार को तेज़ गिरावट दर्ज की गई. ब्रिटेन के प्रमुख शेयरों के सूचकांक 'एफ़टीएसई 100' में क़रीब चार फ़ीसदी की गिरावट हुई। मुम्बई शेयर बाजार  1688 अंक गिर गया। जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका के बाज़ार भी टूटने की खबरें हैं।

ममता अब राष्ट्रीय-राजनीति में उतरेंगी, कांग्रेस और बीजेपी दोनों का विकल्प बनेंगी?


ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने पिछले कुछ वर्षों में जो गतिविधियाँ की उन्हें देखते हुए उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की भनक लगती थी, पर पिछले एक हफ्ते की गतिविधियों से लगता है कि वे अब खुलकर इस मैदान में हैं और भारतीय जनता पार्टी के विकल्प के रूप में कांग्रेस के बजाय खुद को पेश करने जा रही हैं। यह बात उनकी पार्टी के हित में जरूर है, पर कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है।

जानकारों का यह भी कहना है कि ममता बनर्जी ने कांग्रेस के नेताओं को तोड़ा है, कुछ समय बाद बीजेपी के भी कई क्षुब्ध नेताओं को भी तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का रास्ता नजर आ सकता है। यशवंत सिन्हा पहले ही शामिल हो चुके हैं, जबकि तृणमूल कांग्रेस कई अन्य 'क्षुब्ध' बीजेपी नेताओं से संपर्क बना रही है. हाल में ममता बनर्जी ने अपने दिल्ली दौरे के दौरान भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी से मुलाकात की। टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के दिल्ली आवास पर हुई बैठक के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई जाने लगी कि भाजपा नेता स्वामी टीएमसी में शामिल होने वाले हैं। अलबत्ता स्वामी ने इन आरोपों को नकार दिया।

ममता बनर्जी ने भविष्य में मुम्बई यात्रा का कार्यक्रम भी बनाया है। वहाँ शरद पवार और शिवसेना के उद्धव ठाकरे के साथ वे एक लंबे अर्से से संपर्क में हैं। शरद पवार वर्षों से यह बात कह रहे हैं कि कांग्रेस से टूटी पार्टियों को एकसाथ आना चाहिए। तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस भी ऐसी ही एक पार्टी है।

मेघालय में बगावत

हाल में अपने दो दिन के दौरे पर आई ममता बनर्जी ने सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं की, तो पत्रकारों ने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने जो जवाब दिया, उससे लगता है कि वे कांग्रेस से टकराव मोल लेने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी से मुलाकात करने की कोई सांविधानिक जिम्मेदारी नहीं है। मुलाकात न होने की तुलना में दोनों के रिश्तों में कड़वाहट के ज्यादा बड़े कारण मेघालय में पैदा हुए हैं, जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा समेत कांग्रेस पार्टी के 17 में 12 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।

Monday, November 22, 2021

आंदोलन फिर से जागेंगे, राजनीतिक अंतर्विरोध अब और मुखर होंगे

आंदोलन को जारी रखने की घोषणा करते हुए बलवीर सिंह राजेवाल

देश में चल रहे किसान आंदोलन, उसकी राजनीति और अंतर्विरोध अब ज्यादा स्पष्ट होने का समय आ गया है। तीन कानूनों की वापसी इसका एक पहलू था। इसके साथ किसानों की दूसरी माँगें भी जुड़ी हैं। ये माँगे फिलहाल पंजाब और हरियाणा के किसानों की नजर आती हैं, क्योंकि इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी रूप देने की माँग भी शामिल है।

कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर भी आंदोलन फिर से शुरू करने की सुगबुगाहट है। अंग्रेज़ी अख़बार 'द हिंदू' के अनुसार असम में सीएए के ख़िलाफ़ कई समूह फिर से जागे हैं और 12 दिसंबर को प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं।

उधर केंद्रीय कैबिनेट 24 नवंबर को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मंजूरी पर विचार करेगी। इसके बाद कानूनों को वापस लेने वाले बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाएंगे। संसद का सत्र 29 नवंबर से शुरू होने वाला है।

आंदोलन जारी रहेगा

संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) का आंदोलन फिलहाल जारी रहेगा। रविवार को यह फैसला मोर्चे की बैठक में लिया गया। भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के अध्यक्ष बलवीर सिंह राजेवाल और जतिंदर सिंह विर्क ने बताया- 22 नवंबर को लखनऊ में महापंचायत बुलाई गई है। 26 नवंबर को काफी किसान आ रहे हैं। 27 को आंदोलन के अगले कदम के बारे में विचार किया जाएगा।

इसके पहले संयुक्त किसान मोर्चा की नौ सदस्यीय कोऑर्डिनेशन कमेटी की शनिवार बैठक हुई, जिसमें मोर्चा के शीर्ष नेता बलवीर सिंह राजेवाल, डॉ. दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिंदर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्काजी), युद्धवीर सिंह आदि उपस्थित थे।

कुछ और माँगें

राजेवाल के मुताबिक, प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखा है, जिसमें कुछ मांगें की जाएंगी। ये हैं- एमएसपी-गारंटी बिल के लिए कमेटी बनाई जाए, बिजली के शेष बिल को रद्द किया जाए और पराली जलाने के लिए लाए गए कानून को रद्द किया जाए। पत्र में अजय मिश्र टेनी को लखीमपुर मामले का मास्टरमाइंड मानते हुए कहा गया है कि उन्हें पद से हटाकर गिरफ्तार किया जाए।

Sunday, November 21, 2021

किसानों की जीत, पर समस्या जहाँ की तहाँ है


मोदी सरकार ने कृषि-कानूनों की वापसी के लिए जो खास दिन और समय चुना है, उसके पीछे चुनावी-रणनीति नजर आती है। इसके अलावा यह मजबूरी भी है। पंजाब और उत्तर प्रदेश दोनों के चुनावों पर किसान-आंदोलन का असर है। इन हालात में बीजेपी का चुनाव के मैदान में उतरना जोखिम से भरा था। हमारी लोकतांत्रिक-व्यवस्था के लिए यह अच्छी खबर है। इसे किसी की जीत या हार मानने के बजाय यह मानना चाहिए कि सरकार को जनता के बड़े वर्ग की भावना को सुनना होता है। लोकतांत्रिक-राजनीति केवल चुनाव में बहुमत हासिल करने का काम ही नहीं है। बहरहाल कानूनों की वापसी से पार्टी पर राजनीतिक दबाव कम होगा। इससे यह भी साबित होता है कि बड़े बदलावों के उतने ही बड़े राजनीतिक जोखिम हैं। दूसरे यह भी कि तेज औद्योगीकरण के माहौल में भी हमारे देश में खेती बड़ी संख्या में लोगों की भावनाओं के साथ जुड़ी हुई है। 

तीसरी पराजय

पिछले सात साल में पार्टी की इस किस्म की यह तीसरी पराजय है। इसके पहले भूमि सुधार कानून में संशोधन और जजों की नियुक्ति से जुड़े न्यायिक नियुक्ति आयोग के मामले में सरकार को पीछे हटना पड़ा था। इतना ही नहीं सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन तो संसद से पास करा लिया, पर उससे जुड़े नियम अभी तक नहीं बना पाई है। उसे लेकर वैश्विक और आंतरिक राजनीतिक दबाव है। बहरहाल संयुक्त किसान मोर्चा ने कानूनों की वापसी को किसानों की ऐतिहासिक जीत बताया है। यह भी कहा है कि आंदोलन फ़सलों के लाभकारी दाम की वैधानिक गारंटी के लिए भी था, जिस पर अब भी कुछ फ़ैसला नहीं हुआ है। अब हम संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने तक इंतज़ार करेंगे। इन कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया भी वही है, जो कानून बनाने की है। संसद को विधेयक पास करना होगा।

राजनीतिक निहितार्थ

राहुल गांधी, शरद पवार, संजय राउत, अखिलेश यादव, चरणजीत सिंह चन्नी से लेकर जयंत चौधरी तक सबने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। वे इस बात को रेखांकित जरूर करेंगे कि भारतीय जनता पार्टी हार रही है और इसीलिए उसने कानून वापस लेने का फैसला किया है। उन्होंने इसे किसानों की जीत और सरकार की हार भी बताया है। सच यह है कि उनके हाथ से भी एक महत्वपूर्ण मसला निकल गया है, आंदोलन जारी रहना उनके हित में था। बहरहाल बीजेपी के कार्यकर्ताओं के सिर पर से एक बोझ उतर गया है।

तीनों कानून 17 सितंबर 2020 को संसद से पास हुए थे। उसके पहले अध्यादेश लाए गए थे। इससे लगता था कि सरकार जल्दबाजी में इन्हें लागू करना चाहती है। इसके बाद से लगातार किसान संगठनों की तरफ से विरोध कर इन कानूनों को वापस लेने की मांग की जा रही थी। किसान संगठनों का तर्क है कि इनके जरिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म कर देगी और उन्हें उद्योगपतियों के रहमोकरम पर छोड़ देगी। सरकार का तर्क था कि इन कानूनों के जरिए कृषि क्षेत्र में नए निवेश के अवसर पैदा होंगे और किसानों की आमदनी बढ़ेगी।

Saturday, November 20, 2021

कोरोना की दवाओं की ईज़ाद से बँधी एक और उम्मीद


अमेरिका की दो दवा कंपनियों ने एकसाथ कोरोना की दवाइयों की ईज़ाद का ऐलान करके कोविड-19 संक्रमण का सामना कर रही दुनिया को राहत दी है। ये दवाएं महंगी हैं, पर दुनिया को इनसे उम्मीद बँधी है। दोनों दवाएं गोलियों की शक्ल में हैं। इनमें से एक को ब्रिटेन की मेडिसंस एंड हैल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) ने स्वीकृति दे दी है। दोनों को ही अमेरिकी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) की मंज़ूरी भी मिलने की संभावना है। दावा किया गया है कि दोनों दवाएं वायरस को शरीर के भीतर बढ़ने से रोकती और उसके असर को खत्म करती हैं।

हालांकि इसके पहले भी कोविड-19 की दवाओं को तैयार किए जाने का दावा किया गया है, पर यह पहली बार है कि किसी सरकारी संस्थान ने दवा को मंजूरी दी है। इन दवाओं की प्रभावोत्पादकता पक्के तौर स्थापित हुई, तो कोविड-19 के विरुद्ध वैश्विक प्रयासों को यकीनन बड़ी सफलता मिलेगी। वैक्सीन के साथ-साथ अब ये दवाएं भी हमारे पास हैं।

गेम चेंजर

ब्रिटिश वायरोलॉजिस्ट स्टीफन ग्रिफिन का कहना है कि इन दवाओं की सफलता से सार्स-कोव2 के संक्रमण के घातक परिणामों को रोकने में काफी मदद मिलेगी। बीबीसी के अनुसार ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री साजिद जावेद ने इसे 'गेमचेंजर' बताया है। उन्होंने कहा, 'आज का दिन हमारे देश के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि ऐसे एंटी वायरल को मंजूरी देने वाला यूके विश्व का पहला देश बना गया है, जिसे घर पर लिया जा सकता है।'

अभी तक कोरोना का सबसे बेहतर इलाज सिंथेटिक-एंटीबॉडीज़ या मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल के रूप में उपलब्ध था, जिसे इंजेक्शन के सहारे दिया जाता था। अब जो दवाएं सामने आई हैं, उन्हें गोलियों के रूप में लिया जा सकता है। दावा यह भी किया गया है कि इनके साइड इफेक्ट भी नहीं हैं। दवा कंपनी मर्क ने बताया है कि उसकी दवाई मोलनुपिराविर को ब्रिटिश औषधि नियामक की स्वीकृति मिल गई है और अब अमेरिकी एफडीए से स्वीकृति देने का अनुरोध किया गया है। यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी भी कुछ औषधियों को स्वीकृति देने पर विचार कर रही है।

जोखिम कम हुआ

मर्क की घोषणा के अगले ही दिन फायज़र ने भी अपनी दवा पैक्सलोविड की सफलता की घोषणा की। दोनों ही एंटी-वायरल दवाएं हैं, जो वायरस की शरीर के भीतर वृद्धि को रोकने की क्षमता रखती हैं। दोनों कंपनियों का दावा है कि इनके सेवन से संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल में भरती करने की जरूरत बहुत कम रह जाएगी। दवा को ब्रिटिश-स्वीकृति मिलने के पहले ही मर्क और अमेरिकी सरकार के बीच मोलनुपिराविर के 17 लाख कोर्सों की सप्लाई का सौदा हो चुका है। कोर्स यानी पाँच दिन की पूरी दवाई।

फायज़र ने बताया कि पैक्सलोविड ब्रांड नाम की इस गोली को मरीज को दिन में दो बार देना होता है। शर्त है कि उसे एफडीए की स्वीकृति मिल जाए। कंपनी का कहना है कि साल के अंत तक हम दवाई के एक करोड़ कोर्स तैयार कर लेंगे और 2022 में हमारा लक्ष्य दो करोड़ कोर्स तैयार करने का है। मर्क ने इसे बनाने का लाइसेंस कुछ दूसरी कंपनियों को भी दिया है।

भारत में भी इसका ट्रायल चल रहा है और संभव है कि किसी कंपनी को इसके उत्पादन का लाइसेंस मिले। गेट्स फाउंडेशन के ग्लोबल हैल्थ कार्यक्रम के अध्यक्ष ट्रेवर मंडेल ने कहा है कि अपेक्षाकृत कम अमीर देशों में जेनरिक दवाएं बनाने वाली कई कंपनियाँ मोलनुपिराविर की माँग का इंतजार कर रही हैं, इसलिए फाउंडेशन ने 12 करोड़ डॉलर इस मद में रख दिए हैं, ताकि उत्पादन-व्यवस्था के लिए उनकी मदद की जा सके।