Sunday, March 21, 2021

मुम्बई का ‘वसूली’ मामला कहाँ तक जाएगा?


मुम्बई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र ने केवल महाराष्ट्र की ही नहीं, सारे देश की राजनीति में खलबली मचा दी है। देखना यह है कि इस मामले के तार कहाँ तक जाते हैं, क्योंकि राजनीति और पुलिस का यह मेल केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख को हटा दिया जाएगा। इस तरह से महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार बची रहेगी और धीरे-धीरे लोग इस मामले को भूल जाएंगे। पर क्या ऐसा ही होगा? इस मामले के राजनीतिक निहितार्थ गम्भीर होने वाले हैं और कोई आश्चर्य नहीं कि राज्य के सत्ता समीकरण बदलें। संजय राउत ने एमवीए के सहयोगी दलों से कहा है कि वे आत्ममंथन करें। इस बीच इस मामले से जुड़े मनसुख हिरेन की मौत से जुड़े मामले को केंद्रीय गृम मंत्रालय ने एनआईए को सौंपने की घोषणा की ही थी कि मुम्बई पुलिस के एंटी टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) ने कहा कि इस मामले की हमने जाँच पूरी कर ली है। घूम-फिरकर यह मामला राजनीति का विषय बन गया है। 

इस वसूली के छींटे केवल एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना तक ही सीमित नहीं रहेंगे। इसके सहारे कुछ और रहस्य भी सामने आ सकते हैं। अलबत्ता इन बातों से इतना स्पष्ट जरूर हो रहा है कि देश के राजनीतिक दल पुलिस सुधार क्यों नहीं करना चाहते। पिछले कुछ दिनों से मुंबई पुलिस कई कारणों से मीडिया में छाई हुई है। पहले मुकेश अंबानी के घर के पास विस्फोटक रखने के आरोप में पुलिस अधिकारी सचिन वझे फँसे। बात बढ़ने पर पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को पद से हटा दिया गया। इसपर परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिखी।

सवाल है कि परमबीर सिंह को यह चिट्ठी लिखने की सलाह किसने दी और क्यों दी? उन्हें जब यह बात पता थी, तब उन्होंने इसकी जानकारी दुनिया को देने में देरी क्यों की? सच्चे पुलिस अधिकारी का कर्तव्य था कि वे ऐसे गृहमंत्री के खिलाफ केस दायर करते। पर क्या भारत में ऐसा कोई पुलिस अफसर हो सकता है? विडंबना है कि हम इस वसूली के तमाम रहस्यों को सच मानते हैं। हो सकता है कि काफी बातें गलत हों, पर वसूली नहीं होती, ऐसा कौन कह सकता है? 

 सवाल यह भी है कि मुकेश अम्बानी के घर के पास मोटर वाहन से विस्फोट मिलने के पीछे रहस्य क्या है? सचिन वझे इस पूरे प्रकरण में मामूली सा मोहरा नजर आता है। असली ताकत कहीं और है। बेशक वह पुलिस कमिश्नर और शायद गृहमंत्री से भी ऊँची कोई ताकत है। यहाँ यह साफ कर देने की जरूरत है कि कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है। 

बीजेपी का अश्वमेध यज्ञ

अगले शनिवार को असम और बंगाल में विधानसभा चुनावों के पहले दौर के साथ देश की राजनीति का रोचक पिटारा खुलेगा। इन दो के अलावा 6 अप्रेल को पुदुच्चेरी, तमिलनाडु और केरल में चुनाव होंगे, जहाँ की एक-एक सीट का राजनीतिक महत्व है। इन पाँचों से कुल 116 सदस्य लोकसभा में जाते हैं, जो कुल संख्या का मोटे तौर पर पाँचवां हिस्सा हैं। यहाँ की विधानसभाएं राज्यसभा में 51 सदस्यों (21%) को भी भेजती हैं।

इस चुनाव को भारतीय जनता पार्टी के अश्वमेध यज्ञ की संज्ञा दी जा सकती है। सन 2019 के चुनाव में हालांकि भारतीय जनता पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली, पर उसे मूलतः हिंदी-पट्टी की पार्टी माना जाता है। पुदुच्चेरी में उसका गठबंधन सत्ता पाने की उम्मीद कर रहा है, जो तमिलनाडु का प्रवेश-द्वार है। पूर्वांचल में उसने असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में पैठ बना ली है, पर उसका सबसे महत्वपूर्ण मुकाबला पश्चिम बंगाल में हैं, जहाँ विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने यहां 211 सीटें जीती थीं। लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को 70 और बीजेपी को सिर्फ तीन। फिर भी वह मुकाबले में है, तो उसके पीछे कुछ कारण हैं।  

लोकसभा 2019 के चुनाव में भाजपा ने बंगाल में भी झंडे गाड़े। राज्य के तकरीबन 40 फ़ीसदी वोटों की मदद से 18 लोकसभा सीटें उसे हासिल हुईं। तृणमूल ने 43 फ़ीसदी वोट पाकर 22 सीटें जीतीं। दो सीटें कांग्रेस को मिलीं और 34 साल तक बंगाल पर राज करने वाली सीपीएम का खाता भी नहीं खुला। पिछले कई वर्षों से बीजेपी इस राज्य में शिद्दत से जुटी है। अब पहली बार उसकी उम्मीदें आसमान पर हैं। अमित शाह का दावा है, अबकी बार 200 पार। क्या यह सच होगा?

बंगाल का महत्व

बंगाल का महत्व कितना है, इसे समझने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों पर ध्यान दें। गत 18 मार्च को उन्होंने पुरुलिया को संबोधित किया। यह रैली शनिवार 20 मार्च को होनी थी लेकिन इसे दो दिन पहले ही आयोजित कराया गया। 20 मार्च को खड़गपुर में रैली हुई। आज बांकुड़ा में और 24 को कांटी मिदनापुर में रैलियाँ होंगी। पार्टी पहले चरण से ही माहौल बनाने की कोशिश में है। इससे पहले मोदी 7 मार्च को बंगाल आए थे। तब उन्होंने कोलकाता के बिग्रेड मैदान में जनसभा को संबोधित कर ममता पर निशाना साधा था।

Saturday, March 20, 2021

मोदी की बांग्लादेश यात्रा से भी जुड़ा है पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव

पिछले साल मतुआ समाज की बोरो मां वीणापाणि देवी से आशीर्वाद लेते नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते बांग्लादेश की दो दिन की यात्रा पर जा रहे हैं। इस यात्रा का दो देशों के रिश्तों से जितना वास्ता है, उतना ही पश्चिमी बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव से भी है। हो सकता है कि भविष्य के तीस्ता जैसे समझौतों से भी हो। बांग्लादेश में इस साल मुजीब वर्ष यानी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। इसके साथ ही बांग्लादेश की मुक्ति और स्वतंत्रता संग्राम के 50 वर्ष भी इस साल पूरे हो रहे हैं। दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 50 साल भी।

बांग्लादेश में मोदी तुंगीपाड़ा स्थित बंगबंधु स्मारक में जाएंगे। इसके अलावा वे ओराकंडी स्थित हरिचंद ठाकुर के मंदिर में भी जाएंगे। नरेंद्र मोदी 27 मार्च को ओराकंडी में मतुआ मंदिर जाएंगे। यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री इस मंदिर का दौरा करेगा। वे बारीसाल जिले के शिकारपुर में सुगंध शक्तिपीठ में भी जाएंगे। इसके अलावा वे कुश्तिया में रवीन्द्र कुटी बाड़ी और बाघा जतिन के पैतृक घर में भी जा सकते हैं। इन सभी जगहों का राजनीतिक महत्व है।

ओराकंडी मतुआ समुदाय के गुरु हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर का जन्मस्थल है। इसकी स्थापना 1860 में एक सुधार आंदोलन के रूप में की गई थी। इस समुदाय के लोग नामशूद्र कहलाते थे और अस्पृश्य माने जाते थे। हरिचंद ठाकुर ने इनमें चेतना जगाने का काम किया। उनके समुदाय के लोग उन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं। मतुआ धर्म महासंघ समाज के दबे-कुचले तबके के उत्थान के लिए काम करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में कुल आबादी के 23.5 प्रतिशत दलित और 5.8 प्रतिशत आदिवासी हैं। बंगाल के दलित एवं आदिवासी मतुआ धर्म महासंघ के स्वाभाविक समर्थक माने जाते हैं।

उत्तर 24 परगना जिले में बनगांव स्थित मतुआ धर्म महासंघ के मुख्यालय में मतुआ माता वीणापाणि देवी के साथ गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की थी। वीणापाणि देवी के दबाव में ही ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार को मतुआ कल्याण परिषद का गठन करना पड़ा। वीणापाणि देवी का गत वर्ष निधन हो गया। अब उनके पुत्र और पौत्र मतुआ आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।

Friday, March 19, 2021

पाकिस्तान से शांति का संदेश

 


पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने और फिर सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा है, कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार होना चाहिए। प्रधानमंत्री के साथ जनरल बाजवा के बयान का आना भी बड़ा संदेश दे रहा है।

पिछले बुधवार को इमरान खान ने पाकिस्तान के थिंकटैंक नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के दो दिन के इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग का उद्घाटन करते हुए कहा कि हम भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, पर भारत को इसमें पहल करनी चाहिए। पर उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनका आशय क्या है।

इसी कार्यक्रम में बाद में जनरल बाजवा बोले थे। इसमें उन्होंने कहा, ''जब तक कश्मीर मुद्दा हल नहीं हो जाता तब तक उपमहाद्वीप में शांति का सपना पूरा नहीं होगा। अब अतीत को भुला कर आगे बढ़ने का समय आ गया है।" पाकिस्तान की तरफ़ से हाल ही में सीमा पर युद्ध विराम समझौता किया गया है। जिसके बाद सेना प्रमुख जनरल जावेद बाजवा की भारत से बातचीत की पेशकश सामने आई है। उनकी इस पेशकश की सकारात्मक बात यह है कि इसमें कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी और इसी किस्म के विवादास्पद विषयों के नहीं उठाया गया है।

इस सिलसिले में एक और रोचक खबर यह है कि क़मर जावेद बाजवा ने अपनी सेना के जवानों को भारतीय लोकतंत्र की सफलता पर आधारित किताब पढ़ने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि यह जानने की ज़रूरत है कि भारत ने किस तरह से राजनीति को अपनी सेना को अलग रखा है।

Tuesday, March 16, 2021

बंगाल की भगदड़ और मीडिया का यथास्थितिवादी नज़रिया


पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें हैं। यहाँ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुकाबला उनसे बगावत करके भारतीय जनता पार्टी में आए शुभेंदु अधिकारी से है। इस क्षेत्र का मतदान 1 अप्रेल को यानी दूसरे दौर में होना है। शुरुआती दौर में ही राज्य की राजनीति पूरे उरूज पर है। एक तरफ बंगाल की राजनीति में तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर भागने की होड़ लगी हुई है, वहीं मीडिया के चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में अब भी ममता बनर्जी की सरकार बनने की आशा व्यक्त की गई है। शायद यह उनकी यथास्थितिवादी समझ है। चुनाव कार्यक्रम को पूरा होने में करीब डेढ़ महीने का समय बाकी है, इसलिए इन सर्वेक्षणों के बदलते निष्कर्षों पर नजर रखने की जरूरत भी होगी।

भारत में चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों का इतिहास अच्छा नहीं रहा है। आमतौर पर उनके निष्कर्ष भटके हुए होते हैं। फिर ममता बनर्जी की पराजय की घोषणा करने के लिए साहस और आत्मविश्वास भी चाहिए। बंगाल का मीडिया लम्बे अर्से से उनके प्रभाव में रहा है। बंगाल के ही एक मीडिया हाउस से जुड़ा एक राष्ट्रीय चैनल इस बात की घोषणा कर रहा है, तो विस्मय भी नहीं होना चाहिए। अलबत्ता तृणमूल के भीतर जैसी भगदड़ है, उसपर ध्यान देने की जरूरत है। मीडिया के विश्लेषण 27 मार्च को मतदान के पहले दौर के बाद ज्यादा ठोस जमीन पर होंगे। पर 29 अप्रैल के मतदान के बाद जो एक्ज़िट पोल आएंगे, सम्भव है उनमें कहानी बदली हुई हो।

भगदड़ का माहौल

सन 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से टीएमसी के 17 विधायक, एक सांसद कांग्रेस, सीपीएम और सीपीआई के एक-एक विधायक अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। यह संख्या लगातार बदल रही है। हाल में मालदा के हबीबपुर से तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी सरला मुर्मू ने टिकट मिलने के बावजूद तृणमूल छोड़ दी और सोमवार 8 मार्च को भाजपा में शामिल हो गईं। बंगाल में यह पहला मौका है, जब किसी प्रत्याशी ने टिकट मिलने के बावजूद अपनी पार्टी छोड़ी है। बात केवल बड़े नेताओं की नहीं, छोटे कार्यकर्ताओं की है। केवल तृणमूल के कार्यकर्ता ही नहीं सीपीएम के कार्यकर्ता भी अपनी पार्टी को छोड़कर भागे हैं। इसकी वजह पिछले दस वर्षों से व्याप्त राजनीतिक हिंसा है।