Thursday, February 25, 2021

कांग्रेस के भविष्य पर पाँच राज्यों में लटकी तलवार


सोमवार 22 फरवरी को पुदुच्चेरी में वी नारायणसामी के इस्तीफे के बाद दक्षिण भारत में कांग्रेस की एकमात्र सरकार का पतन हो गया। अब केवल पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं। इनके अलावा महाराष्ट्र और झारखंड के सत्तारूढ़ गठबंधनों में वह शामिल है। एक साल के भीतर उसकी दूसरी सरकार का पतन हुआ है। उसके पहले कर्नाटक की सरकार गई थी और पिछले साल सचिन पायलट के असंतोष के कारण राजस्थान में सरकार पर संकट आया था।

पर्यवेक्षकों के सामने अब दो-तीन सवाल हैं। अगले कुछ महीनों में पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने वाले हैं। इनमें पुदुच्चेरी के अलावा असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल शामिल हैं। सवाल है कि इन चुनावों में कांग्रेस की सम्भावनाएं क्या हैं और उनसे आगे पार्टी की राजनीति किस रास्ते पर जाएगी? दूसरा सवाल पार्टी संगठन को लेकर है। पार्टी अध्यक्ष का चुनाव फिलहाल जून तक के लिए टाल दिया गया है। तबतक इन पाँचों राज्यों के चुनाव परिणाम आ जाएंगे, जिनसे पार्टी की दिशा और साफ होगी।

नेतृत्व का सवाल

पिछले कुछ समय से संसद के दोनों सदनों में कांग्रेसी रणनीति के अंतर्विरोध दिखाई पड़ रहे थे। लोकसभा में राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी अपेक्षाकृत आक्रामक रही है। उनका साथ दिया अधीर रंजन चौधरी, गौरव गोगोई, के सुरेश, मणिकम टैगोर और रवनीत सिंह बिट्टू ने। राज्यसभा में पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद और उनके सहायक आनंद शर्मा की भूमिका से हाईकमान संतुष्ट नजर नहीं आया। ये दोनों 23 उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने पिछले साल अपना असंतोष व्यक्त करते हुए पार्टी अध्यक्ष को चिट्ठी लिखी थी।

मई 2019 में राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष हैं, पर व्यावहारिक रूप से राहुल गांधी ही सर्वेसर्वा हैं। उन्होंने अपने विश्वासपात्र जितेन्द्र सिंह को असम की, तारिक अनवर को केरल की, जितिन प्रसाद को पश्चिम बंगाल की और दिनेश गुंडूराव को तमिलनाडु और पुदुच्चेरी की जिम्मेदारी दी है। पाँचों गठबंधनों पर राहुल गांधी की मुहर ही होगी।

Wednesday, February 24, 2021

दिशा रवि पर लगे आरोप और अदालत से मिली जमानत का निहितार्थ


 टूलकिट मामले में गिरफ्तार दिशा रवि को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने  मंगलवार को जमानत पर रिहा कर दिया। कोर्ट ने पुलिस की कहानी और दावों को खारिज करते हुए कहा कि पुलिस के कमजोर सबूतों के चलते एक 22 साल की लड़की जिसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है,उसे जेल में रखने का कोई मतलब नहीं है। दिशा को 23 फरवरी तक न्यायिक हिरासत में लिया गया था और मंगलवार को उसके ख़त्म होने पर उन्हें मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पंकज शर्मा के सामने पेश किया गया था और पुलिस ने चार दिन की कस्टडी की मांग की थी।

पुलिस को हिरासत नहीं मिली क्योंकि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने दिशा को एक लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानत बॉण्ड भरने की शर्त पर जमानत दे दी थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं। उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं। देशद्रोह के क़ानून का ऐसा इस्तेमाल नहीं हो सकता।

बहरहाल यह मामला खत्म नहीं हुआ है। अभी इस मामले में जाँच चलेगी। पुलिस को अब साक्ष्य लाने होंगे। अठारह पृष्ठ के एक आदेश में, न्यायाधीश राणा ने पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूतों को ‘अल्प और अधूरा’ बताते हुए कुछ कड़ी टिप्पणियां कीं। बेंगलुरु की रहने वाली दिशा को अदालत के आदेश के कुछ ही घंटों बाद मंगलवार रात तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि हमें कोई कारण नजर नहीं आता कि 22 साल की लड़की को जेल में रखा जाए, जबकि उसका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है। वॉट्सऐप ग्रुप बनाना, टूल किट एडिट करना अपने आप में अपराध नहीं है। महज वॉट्सऐप चैट डिलीट करने से दिशा रवि और ‘पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन’ (पीजेएफ) के खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।

राष्ट्रीय विकास के लिए जरूरी है महिला सशक्तीकरण

नल से जल

अपने दो कमरों वाले घर से महज कुछ ही गज़ की दूरी पर स्थित अपने छोटे से खेत में काम कर रही हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के बल्लही गांव की निवासी एकदम खुश है. अब से पहले करीब दो दशक तक फूलकली अपने परिवार की रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के लिए नजदीकी सप्लाई पॉइंट से बाल्टियां भरकर पानी लाती थी, जो कि उसके घर से 400 मीटर दूरी पर है.

भले ही यह दूरी बहुत ज्यादा न रही हो लेकिन दो बच्चों की मां फूलकली कहती है कि केंद्र के फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘नल से जल ’ के तहत प्रशासन द्वारा उसके घर तक जलापूर्ति उपलब्ध कराए जाने से तीन महीने के अंदर उसके जीवन में कितना बदलाव आ गया है इस बात को केवल वही समझ सकता है जो पिछले दो दशकों से लगातार हर दिन दो बार पानी की बाल्टियां भरकर ला रहा हो.

फूलकली ने दिप्रिंट से कहा, ‘बाल्टी छूट गई. आप नहीं जानते कि यह कितनी बड़ी नियामत है. हर एक दिन, चाहे बारिश हो या फिर सर्दी मुझे पानी लाने के लिए बाहर जाना ही पड़ता था.’

द प्रिंट में पढ़ें पूरा आलेख

उपरोक्त प्रकरण मैंने सिर्फ इसलिए उधृत किया है, ताकि मैं बता सकूँ कि महिला सशक्तीकरण कैसे होता है। भारत सरकार की पत्रिका कुरुक्षेत्र में लिखने का आनंद यह है कि इसे बहुत ज्यादा लोग पढ़ते हैं। सरकारी सेवाओं की तैयारी करने वाले युवा इसे और योजना को पढ़ते हैं। मेरा यह लेख कुरुक्षेत्र के फरवरी 2021 के अंक में प्रकाशित हुआ है।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने में स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्त्री-शक्ति के कारगर इस्तेमाल से देश की आर्थिक संवृद्धि को तेजी से बढ़ाया जा सकता है।  महिलाओं को सशक्त बनाने का अर्थ है समूचे समाज को समर्थ बनाना। भारत में स्त्री-सशक्तीकरण के चार प्रमुख आधार हैं। 1.शिक्षा, 2.स्वास्थ्य, 3.रोजगार और 4.सामाजिक परिस्थितियाँ। पहली तीन बातों के लिए सरकारी कार्यक्रम मददगार हो सकते हैं, पर चौथा आधार सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अलबत्ता सामाजिक परिवर्तनों पर भी शिक्षा और आधुनिक संस्कृति में आ रहे परिवर्तनों, खासतौर से बदलती तकनीक की भी, भूमिका होती है।

हाल में जब नेशनल फैमिली हल्थ सर्वे (एनएफएचएस) के पाँचवें दौर के परिणाम प्रकाशित हुए, तब एक नई तरह की जानकारी की ओर हमारा ध्यान गया। इस सर्वेक्षण में पहली बार यह पूछा गया था कि क्या आपने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है? बिहार में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत सबसे कम था, जिनकी इंटरनेट तक पहुंच है (20.6%) और सिक्किम में सबसे ज्यादा (76.7%)। एनएफएचएस के ये आंकड़े अधूरे हैं, क्योंकि इनमें केवल 22 राज्यों के परिणाम हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों के परिणाम इसमें शामिल नहीं हैं, फिर भी जो विवरण सामने आए हैं, वे बताते हैं कि स्त्रियों के सशक्तीकरण के संदर्भ में हमें परंपरागत बातों के अलावा कुछ नई बातों की तरफ भी ध्यान देना होगा। मसलन इंटरनेट की भूमिका।  

Tuesday, February 23, 2021

कांग्रेस हाईकमान ने पुदुच्चेरी की अनदेखी की

निवर्तमान मुख्यमंत्री वी नारायणसामी और राज्यपाल तमिलसाई सौंदरराजन

पुदुच्चेरी में कांग्रेस सरकार गिर गई है। वहाँ किसी नए गठबंधन की सरकार बनेगी या नहीं, यह बात कुछ दिन में स्पष्ट होगी। कांग्रेसी पराजय के बाद कहा जा रहा है, हालांकि पार्टी को भरोसा है कि आगामी चुनाव में उसे हमदर्दी का लाभ मिलेगा, पर मुख्यमंत्री वी नारायणसामी तथा हाईकमान ने पार्टी के भीतर असंतोष की अनदेखी की। इंडियन एक्सप्रेस में मनोज सीजी ने लिखा है कि कांग्रेस के नेता मानते हैं कि पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष और कुछ विधायकों की कमजोरी को लेकर नारायणसामी और हाईकमान के मन में अतिशय आत्मविश्वास था और उन्होंने स्थिति की गंभीरता को नहीं पहचाना। पार्टी ने पिछले साल मध्य प्रदेश में बनी बनाई सरकार को खोया है और उससे पहले 2019 में कर्नाटक में जेडीएस के साथ बनी गठबंधन सरकार गिरी थी।

कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि पुदुच्चेरी में उसके विधायकों को चारा डालने का काम 2018 में ही शुरू हो गया था। विधायक ई थीप्पैंथन और विज़ियावैनी वी ने तत्कालीन स्पीकर वी वैदिलिंगम से शिकायत की थी कि अद्रमुक के दो और एनआर (नमतु राज्यम) कांग्रेस के एक विधायक ने दल बदलने के लिए धन देने की पेशकश की है। स्पीकर को ऑडियो रिकॉर्डिंग सौंपी गई थीं।

सम्पर्क करने पर वैदिलिंगम ने इस बात की पुष्टि की कि उन्हें शिकायत मिली थी। उन्होंने जाँच की, तो वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए। सन 2019 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि उनके बाद स्पीकर बने वीपी सिवकोलुन्दु ने इस मामले को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। एक नेता का कहना है कि हम जानते थे कि कोशिशें हुई थीं…हमारे कुछ विधायक और पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री ए नमस्सिवायम परेशान भी थे। पर हम इस मामले में कुछ कर नहीं पाए।

पार्टी हाईकमान से जुड़े एक नेता ने कहा, नमस्सिवायम जैसे नेताओं को महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो दिया गया था। और क्या देते? यदि वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, तो उन्हें विधायकों का समर्थन हासिल करना चाहिए था। अब वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं। बीजेपी का अद्रमुक और एनआर कांग्रेस के साथ गठबंधन होगा। एनआर कांग्रेस के नेता एन रंगासामी मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। वे पहले भी मुख्यमंत्री रहे हैं। नमस्सिवायम को क्या मिलेगा? नमस्सिवायम के ससुर रंगासामी के बड़े भाई हैं।

किसानों की आड़ में अपने-अपने खेल


देखते ही देखते किसान आंदोलन खेती से जुड़ी माँगों को छोड़कर तीन अलग-अलग रास्तों पर चला गया है। जिस आंदोलन के नेताओं ने शुरू में खुद को गैर-राजनीतिक बताया था और जिसके शुरुआती दिनों में राजनीतिक दलों के नेता उसके पास फटक नहीं रहे थे, वह राजनीतिक शक्ल ले रहा है। दूसरा रास्ता भारतीय किसान यूनियन के टिकैत ग्रुप ने पकड़ा है, जिसने इसे जाट-अस्मिता का रंग देकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में खाप-महापंचायतों और रैलियों की धूम मचा दी है। तीसरे जिस खालिस्तानी साजिश का संदेह शुरू में था, उसकी भी परतें खुल रही हैं।

आंदोलनों की वैश्विक मशीनरी भी इसमें शामिल हो गई है। आमतौर पर यह मशीनरी पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और संधारणीय विकास के सवालों को लेकर चलती है। संयोग से इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में पराली जलाने और उत्तर भारत के पर्यावरण प्रदूषण में खेती की भूमिका से जुड़े सवाल भी थे। वे इस आंदोलन के साथ गड्ड-मड्ड हो गए हैं।

पीछे रह गए खेती के सवाल

इस पूरी बहस में भारतीय कृषि की बदहाली और आर्थिक सुधारों की बात लगभग शून्य है। कोई यह समझने का प्रयास नहीं कर रहा कि भविष्य की अर्थव्यवस्था और खासतौर से रोजगार सृजन में किस किस्म की कृषि-व्यवस्था की हमें जरूरत है। खेती से जुड़े नए कानून कृषि-कारोबार और उसकी बाजार-व्यवस्था के उदारीकरण की दीर्घकालीन प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं और उन आर्थिक सुधारों का हिस्सा हैं, जो पूरे नहीं हो पाए। सन 1950 में हमारी अर्थव्यवस्था में खेती की हिस्सेदारी 55 फीसदी से ज्यादा थी। आज 16 फीसदी से कुछ कम है। खाद्य सुरक्षा के लिए खेती की भूमिका है और हमेशा रहेगी। खासतौर से भारत जैसे देश में जहाँ गरीबी बेइंतहा है।

हमारी खेती की उत्पादकता कम है। कम से कम चीन या दूसरे ऐसे देशों के मुकाबले कम है, जिनकी तुलना हम खुद से करते हैं। खेती में पूँजी निवेश और दलहन, तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है, जिसका हमें आयात करना पड़ता है। यह काम कैसे होगा और उसके लिए किस प्रकार की नीतियाँ अपनानी होंगी, यह समझने के लिए हमें विशेषज्ञों की शरण में जाना होगा।