Saturday, December 12, 2020

कोरोना महामारी ने खोल कर रख दी वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों की पोल, गारंटी नहीं कि वैक्सीन के बाद नहीं होगा संक्रमण


सन 2020 में जब दुनिया को महामारी ने घेरा तो पता चला कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं अस्त-व्यस्त हैं। निजी क्षेत्र ने मौके का फायदा उठाना शुरू कर दिया। यह केवल भारत या दूसरे विकासशील देशों की कहानी नहीं है। ब्रिटेन और अमेरिका जैसे धनवान देशों का अनुभव है।

प्रमोद जोशी

कोविड-19 ने इनसान के सामने मुश्किल चुनौती खड़ी की है, जिसका जवाब खोजने में समय लगेगा। कोई नहीं कह सकता कि इस वायरस का जीवन-चक्र अब किस जगह पर और किस तरह से खत्म होगा। बेशक कई तरह की वैक्सीन सामने आ रहीं हैं, पर वैक्सीन इसका निर्णायक इलाज नहीं हैं। इस बात की गारंटी भी नहीं कि वैक्सीन के बाद संक्रमण नहीं होगा। यह भी पता नहीं कि उसका असर कितने समय तक रहेगा।

महामारी से सबसे बड़ा धक्का करोड़ों गरीबों को लगा है, जो प्रकोपों का पहला निशाना बनते हैं। अफसोस कि इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक की ओर देख रही दुनिया अपने भीतर की गैर-बराबरी और अन्याय को नहीं देख पा रही है। इस महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति दुनिया के पाखंड का पर्दाफाश किया है।

नए दौर की नई कहानी

सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर वैश्विक रणनीति का जिक्र अस्सी के दशक में शुरू हुआ था। फिर नब्बे के दशक में दुनिया ने पूंजी के वैश्वीकरण और वैश्विक व्यापार के नियमों को बनाना शुरू किया। इस प्रक्रिया के केंद्र में पूंजी और कारोबारी धारणाएं ही थीं। ऐसे में गरीबों की अनदेखी होती चली गई। हालांकि उस दौर में वैश्विक गरीबी समाप्त करने और उनकी खाद्य समस्या का समाधान करने के वायदे भी हुए थे, पर पिछले चार दशकों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है।

Friday, December 11, 2020

भारत-चीन रिश्तों की बर्फ पिघलने के आसार नहीं


भारत और चीन के बीच तनाव कितना ही रहा हो, दोनों सरकारों के विदेश विभाग आमतौर पर काफी संयत तरीके से प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते रहे हैं, पर इस हफ्ते दोनों देशों के व्यवहार में फर्क नजर आया। संयोग से इसी हफ्ते रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का ऐसा वक्तव्य सामने आया, जिससे लगता है कि रूस को भारतीय विदेश-नीति के नियंताओं से शिकायत है।

पिछले बुधवार यानी 9 दिसंबर को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया के थिंक टैंक लोवी इंस्टीट्यूट के एक ऑनलाइन इंटर-एक्टिव सेशन में कहा कि चीन ने लद्दाख में एलएसी पर भारी संख्या में सैनिक तैनात करने के बार में पाँच अलग-अलग स्पष्टीकरण दिए हैं। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि वे पाँच स्पष्टीकरण क्या हैं, पर उन्होंने इतना जरूर कहा कि चीन ने द्विपक्षीय समझौतों का बार-बार उल्लंघन किया। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 30-40 साल में बने रिश्ते इस समय बहुत मुश्किल दौर में हैं।

लोकतंत्र की आहट


 इंडियन एक्सप्रेस में आज किसान-आंदोलन के सिलसिले में सुहास पालशीकर ने लिखा है कि देखना होगा कि इस आंदोलन के बारे में उन लोगों की राय क्या बनती है, जो किसान नहीं हैं। पिछले साल इसी वक्त हुए सीएए एनआरसी विरोधी आंदोलन को मुसलमानों का आंदोलन साबित कर दिया गया। अब सरकार और किसानों के बीच बातचीत में से समझौता नहीं निकल पा रहा है। क्या बीजेपी इन माँगों को स्वीकार करेगी या पलटकर वार करेगी? इस दौरान ऐसी बातें भी सुनाई पड़ रही हैं कि आर्थिक सुधारों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं रोक रही हैं।  

पालशीकर ने लिखा है कि किसानों का आंदोलन शुरू होने के कुछ दिन बाद सरकार ने उनसे संवाद शुरू कर दिया। ऐसा सरकार करती नहीं रही है। इस वार्ता ने राजनीतिक लचीलेपन को स्थापित किया है। खेती से जुड़े कानूनों को बोल्ड आर्थिक सुधार के रूप में स्थापित किया गया है। वर्तमान प्रधानमंत्री गुजरात में भी ऐसे ही दावे करते रहे हैं। वे इस बात को कभी नहीं मानते कि सुधारों को लेकर मतभेद हो सकते हैं और ऐसे मामलों को मिलकर सुलझाना चाहिए।

किसान आंदोलन में लहराते पोस्टर

 


दिल्ली के आसपास चल रहे किसान आंदोलन के दौरान 10 दिसंबर की एक तस्वीर मीडिया में (खासतौर से सोशल मीडिया में) प्रसारित हुई है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 10 दिसंबर को हर साल संयुक्त राष्ट्र की ओर से सार्वभौमिक मानवाधिकार दिवसमनाया जाता है। इस मौके पर किसी किसान संगठन की ओर से देश के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की तस्वीरों के पोस्टर आंदोलनकारियों ने हाथ में उठाकर प्रदर्शन किया। इन तस्वीरों में गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, अरुण फरेरा, आनन्द तेलतुम्बडे के साथ-साथ पिंजरा तोड़ के सदस्य नताशा नरवाल और देवांगना कलीता वगैरह की तस्वीरें शामिल थीं। इनमें जेएनयू के छात्र शरजील इमाम और पूर्व छात्र उमर खालिद की तस्वीरें भी थीं। ये सभी लोग अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए) के अंतर्गत जेलों में बंद हैं।    

इस समय आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र सिंघु बॉर्डर है और पिछले दो हफ्ते से काफी आंदोलनकारी टिकरी सीमा पर भी बैठे हैं। जो तस्वीरें सामने आई हैं, वे टिकरी बॉर्डर की हैं। आंदोलन के आयोजक शुरू से कहते रहे हैं कि इसमें केवल किसानों के कल्याण से जुड़े मसले ही उठाए जाएंगे, राजनीतिक प्रश्नों को नहीं उठाया जाएगा।

बहरहाल जोगिंदर सिंह उगराहां के नेतृत्व में बीकेयू (उगराहां) से जुड़े लोगों ने इन पोस्टरों का प्रदर्शन किया था। उगराहां का कहना है कि जेलों में बंद लोगों के पक्ष में आवाज उठाना राजनीति नहीं है। जो लोग जेलों में बंद हैं, वे हाशिए के लोगों की आवाज उठाते रहे हैं। हम भी आपके अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, जिन्हें सरकार ने छीन लिया है। यह राजनीति नहीं है।

Thursday, December 10, 2020

भारत के ‘क्वाड’ में शामिल होने से परेशान है रूस

 

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव

सन 2020 में भारत की विदेश नीति में एक बड़ा मोड़ आया है। यह मोड़ चीन के खिलाफ कठोर नीति अपनाने और साथ ही अमेरिका की ओर झुकाव रखने से जुड़ा है। इसका संकेत पहले से मिल रहा था, पर इस साल लद्दाख में भारत और चीन के टकराव और फिर उसके बाद तोक्यो में भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद चतुष्कोणीय सुरक्षा योजना को मजबूती मिली। फिर भारत में अमेरिका के साथ टू प्लस टूवार्ता और नवंबर के महीने में मालाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के भी शामिल हो जाने के बाद यह बात और स्पष्ट हो गई कि भारत अब काफी हद तक पश्चिमी खेमे में चला गया है।

भारतीय विदेश-नीति सामान्यतः किसी एक गुट के साथ चलने की नहीं रही है। नब्बे के दशक में शीत-युद्ध की समाप्ति के बाद भारत पर दबाव भी नहीं रह गया था। पर सच यह भी है कि उसके पहले भारत की असंलग्नतापूरी नहीं थी, अधूरी थी। भारत का रूस की तरफ झुकाव छिपाया नहीं जा सकता था। बेशक उसके पीछे तमाम कारण थे, पर भारत पूरी तरह गुट निरपेक्षता का पालन नहीं कर रहा था। फर्क यह है कि तब हमारा झुकाव रूस की तरफ था और अब अमेरिका की तरफ हो रहा है।