Tuesday, June 20, 2017

रामनाथ कोविंद का चयन बीजेपी का सोचा-समझा पलटवार है

कोविंद को लेकर यह बेकार की बहस है कि वह प्रतिभा पाटिल जैसे ‘अनजाने और अप्रत्याशित’ प्रत्याशी हैंPramod Joshi | Published On: Jun 20, 2017 09:21 AM IST | Updated On: Jun 20, 2017 09:21 AM IST

रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित करने के बाद से एक निरर्थक बहस इस बात को लेकर शुरू हो गई है कि वे क्या प्रतिभा पाटिल जैसे ‘अनजाने और अप्रत्याशित’ प्रत्याशी हैं? उनकी काबिलियत क्या है और इसके पीछे की राजनीति क्या है वगैरह.

भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशी का नाम अपने दूरगामी राजनीतिक उद्देश्यों के विचार से ही तय किया है, पर इसमें गलत क्या है? राष्ट्रपति का पद अपेक्षाकृत सजावटी है और उसकी सक्रिय राजनीति में कोई भूमिका नहीं है, पर राजेंद्र प्रसाद से लेकर प्रणब मुखर्जी तक सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी राजनीतिक कारणों से ही चुने गए.

इमर्जेंसी : यादों के कुछ काले-सफेद पन्ने

सुबह के अखबारों में जेपी की रैली की खबर थी, जिसमें देश की जनता से अपील की गई थी कि वह इस अवैधसरकार को खारिज कर दे। टैक्स देना बंद करो, छात्र स्कूल जाना बंद करें, सैनिक, पुलिस और सरकारी कर्मचारी अपने अफसरों के हुक्म मानने से इंकार करें। रेडियो स्टेशनों को चलने नहीं दें, क्योंकि रेडियो झूठबोलता है। लखनऊ के स्वतंत्र भारत में काम करते हुए मुझे डेढ़-दो साल हुए थे। सम्पादकीय विभाग में मैं सबसे जूनियर था। खबरों को लेकर जोश था और सामाजिक बदलाव का भूत भी सिर पर सवार था। 26 जून 1975 की सुबह किसी ने बताया कि रेडियो पर इंदिरा गांधी का राष्ट्र के नाम संदेश आया था, जिसमें उन्होंने घोषणा की है कि राष्ट्रपति जी ने देश में आपातकाल की घोषणा की है।
आपातकाल या इमर्जेंसी लगने का मतलब मुझे फौरन समझ में नहीं आया। एक दिन पहले ही अखबारों में खबर थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को अपने पद पर बनाए रखा है, पर उनके तमाम अधिकार खत्म कर दिए हैं। वे संसद में वोट भी नहीं दे सकती हैं। इंदिरा गांधी के नेतृत्व और उसके सामने की चुनौतियाँ दिखाई पड़ती थीं, पर इसके आगे कुछ समझ में नहीं आता था।
हमारे सम्पादकीय विभाग में दो गुट बन गए थे। कुछ लोग इंदिरा गांधी के खिलाफ थे और कुछ लोग उनके पक्ष में भी थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे की खबर की कॉपी मुझे ही अनुवाद करने के लिए मिलती थी, जिससे मुझे मुकदमे की पृष्ठभूमि समझ में आती थी। हमारे यहाँ हिन्दी की एजेंसी सिर्फ हिन्दुस्तान समाचार थी। वह भी जिलों की खबरें देती थी, जो दिन में दो या तीन बार वहाँ से आदमी टाइप की गई कॉपी देने आता था। हिन्दुस्तान समाचार का टेलीप्रिंटर नहीं था। आज के मुकाबले उस जमाने का मीडिया बेहद सुस्त था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नाम पर सुबह और रात की रेडियो खबरें ही थीं। टीवी लखनऊ में उसी साल नवम्बर में आया, जून में वह भी नहीं था। आने के बाद भी शाम की छोटी सी सभा होती थी। आज के नज़रिए से वह मीडिया नहीं था। केवल शाम को खेती-किसानी की बातें बताता और प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के भाषणों का विवरण देता था। 

Sunday, June 18, 2017

राष्ट्रपति चुनाव का गणित और अब तक के परिणाम

चुनाव का गणित

दल
विधायक
सांसद
वि.सभा वोट
संसदीय वोट
कुल वोट
प्रतिशत
कुल
4114
784
5,49,474
5,55,072
11,04,546
100
एनडीए
1691
418
2,41,757
2,95,944
5,37,683
48.64
यूपीए
1710
244
2,18,987
1,73,460
3,91,739
35.47
अन्य
510
109
71,495
72,924
1,44,302
13.06
उपरोक्त गणना सार्वजनिक मीडिया स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर है। इसे मोटा अनुमान ही कहा जा सकता है। यह आधिकारिक डेटा नहीं है। इन संख्याओं का जोड़ लगाने के बाद भी लगभग 3 प्रतिशत वोटों की विसंगति है या उनका विवरण उपलब्ध नहीं है।


अब तक के चुनाव परिणाम

वर्ष
राष्ट्रपति
दूसरे नम्बर के प्रत्याशी
जीत का अंतर
1952
डॉ राजेन्द्र प्रसाद
केटी शाह
5,07,400
1957
डॉ राजेन्द्र प्रसाद
चौधरी हरि राम
4,59,698
1962
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
चौधरी हरि राम
5,53.067
1967
डॉ ज़ाकिर हुसेन
कोका सुब्बाराव
4,71,244
1969
वीवी गिरि
नीलम संजीव रेड्डी
4,20,077
1975
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद
त्रिदिब चौधरी
7,65,587
1977
नीलम संजीव रेड्डी
निर्विरोध
-------------
1982
ज्ञानी जैल सिंह
हंसराज खन्ना
7,54.113
1987
आर वेंकटरामन
वीआर कृष्ण अय्यर
7,40,148
1992
डॉ शंकर दयाल शर्मा
जीजी स्वेल
6,75,864
1997
केआर नारायण
टीएन शेषन
9,56,290
2002
एपीजे अब्दुल कलाम
कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
8,15,366
2007
श्रीमती प्रतिभा पाटील
भैरों सिंह शेखावत
3,06,810
2012
प्रणब मुखर्जी
पीए संगमा
3,97,776




राष्ट्रपति चुनाव का गणित और राजनीति

गुरुवार को राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं। अब अगले हफ्ते यह तय होगा कि मुकाबला किसके बीच होगा। और यह भी कि मुकाबला होगा भी या नहीं। सरकार ने विपक्ष की तरफ हाथ बढ़ाकर इस बात का संकेत जरूर किया है कि क्यों न हम मिलकर एक ही प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाएं। बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने प्रत्याशी चयन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। समिति में वेंकैया नायडू, अरुण जेटली और राजनाथ सिंह शामिल हैं। इस समिति ने विपक्ष सहित ज्यादातर राजनीतिक दलों से बातचीत शुरू कर दी है।  

एनडीए ने सन 2002 में प्रत्याशी का निर्णय करने के लिए समिति नहीं बनाई थी, बल्कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की थी। उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम का नाम सामने रखकर ऐसी स्थिति पैदा कर दी, जिसे कांग्रेस नकार नहीं पाई थी। इसके विपरीत सन 2012 में कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी का नाम घोषित करने के बाद मुख्य विपक्षी दल भाजपा से सम्पर्क किया था। 

किसानों की बदहाली पर राजनीति

हाल में मंदसौर में हुए गोलीकांड के बाद ऐसा लग रहा है कि देश का किसान असंतुष्ट ही नहीं, बुरी तरह नाराज है। मंदसौर में जली हुई बसों की टीवी फुटेज को देखकर लगता है कि हाल में ऐसा कुछ हुआ है, जिसके कारण उसकी नाराजगी बढ़ी है। हाल में दो साल लगातार मॉनसून फेल होने के बावजूद किसान हिंसक नहीं हुआ। अब लगातार दो साल बेहतर अन्न उत्पादन के बावजूद वह इतना नाराज क्यों हो गया कि हिंसा की नौबत आ गई? किसानों की समस्याओं से इंकार नहीं किया जा सकता। पर कम से कम मंदसौर में किसान आंदोलन की राजनीतिक प्रकृति भी उजागर हुई है।

इसमें दो राय नहीं कि खेती-किसानी घाटे का सौदा बन चुकी है। उन्हें अपने उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल पाता। खेती से जुड़ी सामग्री खाद, कीटनाशक, सिंचाई और उपकरण महंगे हो गए हैं। कृषि ऋणों का बोझ बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट हुई खेती का न तो बीमा है और न सरकारी मुआवजे की बेहतर व्यवस्था। पर ये समस्याएं अलग-अलग वर्ग के किसानों की अलग-अलग हैं। इनपर राजनीतिक रंग चढ़ जाने के बाद समाधान मुश्किल हो जाएगा।