Monday, June 16, 2014

लोकतंत्र तभी सफल होगा जब दबाव नागरिक का होगा

नई सरकार के लिए राष्ट्रपति के पहले अभिभाषण की उन बातों ने देश का ध्यान खींचा है, जो आर्थिक और तकनीकी विकास से जुड़ी हैं. तमाम बातों की सफलता या विफलता उनके कार्यान्वयन पर निर्भर करती है, इसलिए उनके बारे में कहने से कोई लाभ नहीं है. बेहतर होगा कि हम अगले महीने आने वाले बजट का इंतज़ार करें, जिसमें कुछ ठोस कार्यक्रम होंगे. जनता का मसला है महंगाई. इस बार बारिश कम होने का अंदेशा सबसे बड़ा खतरा है. कैबिनेट सचिव अजित सेठ पिछले कुछ दिनों से केवल इसी विषय पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि अनाज और अन्य खाद्य वस्तुओं की कीमतों को बढ़ने से किस तरह रोका जाए. प्याज, आलू, गैर-बासमती चावल, दालों और दूध की कीमतों पर सरकार की निगाहें हैं. अगले छह महीनों की अशंकाओं को सामने रखकर सरकार काम कर रही है. पर सरकार उस खतरे से निपटने की कोशिश करे उसके पहले ही दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ शहरों में पड़ रही गरमी ने उसके सामने संकट खड़ा कर दिया है. यह संकट बिजली की कटौती का है. बिजली और पानी के संकट ने जीना हराम कर दिया है. संकट की गहराई से ज्यादा सरकार मीडिया में इसकी चर्चा से घबराती है. सही या गलत इस चुनाव के बाद से मीडिया और शहरी नागरिक राजनीति के केंद्र में हैं. उनके सभी मसले सार्थक नहीं होते. पर इनके तेज स्वर इनकी महत्ता स्थापित करने में सफल हुए हैं.

Sunday, June 15, 2014

राष्ट्रीय सुरक्षा और पाकिस्तान का सवाल

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से यह सप्ताह खासा सरगर्म रहा और उम्मीद है कि यह सरगर्मी कायम रहेगी। पिछले रविवार को भारत आए चीनी विदेश मंत्री यांग यी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की। चीनी राष्ट्रपति के विशेष दूत बन आए यांग के साथ सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन घटाने समेत द्विपक्षीय संबंधों के हर मुद्दे पर बात हुई। इस बात से अभी कोई बड़ा निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता, पर स्टैपल्ड वीज़ा के मामले में चीन का अपने रुख पर कायम रहना भारत के लिए चिंता का विषय है। शायद इसीलिए विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने चीनी विदेशमंत्री से साफ स्वरों में कहा कि हम एक चीन को स्वीकार करते हैं तो चीन को भी एक भारत की मर्यादा को स्वीकार करना चाहिए। वस्तुतः चीन के साथ भारत के रिश्ते दो धरातलों पर हैं। एक द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्ते हैं और दूसरे पाकिस्तान, खासकर कश्मीर से जुड़े मामले। स्टैपल्ड वीज़ा का मसला कश्मीर-मुखी है।

Saturday, June 14, 2014

संघीय व्यवस्था पर विमर्श की घड़ी

मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह और एचडी देवेगौडा को छोड़ दें तो देश के प्रधानमंत्रियों में से अधिकतर के पास राज्य सरकार का नेतृत्व करने का अनुभव नहीं रहा। राज्य का मुख्यमंत्री होना भले ही प्रधानमंत्री पद के लिए महत्वपूर्ण न होता हो, पर राज्य का नेतृत्व करना एक खास तरह का अनुभव दे जाता है, खासकर तब जब केंद्र और राज्य की सरकारें अलग-अलग मिजाज की हों। इस बात को हाल में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने हाल में रेखांकित किया। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप जो समय बिताया उसका काफी हिस्सा केंद्र-राज्य रिश्तों से जुड़े टकरावों को समर्पित था।

संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का जवाब देते हुए मोदी ने जिस बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया वह यह थी कि इस देश को केवल दिल्ली के हुक्म से नहीं चलाया जा सकता। सारे देश को चलाने का एक फॉर्मूला नहीं हो सकता। पहाड़ी राज्यों की अपनी समस्याएं हैं और मैदानी राज्यों की दूसरी। तटवर्ती राज्यों का एक मिजाज है और रेगिस्तानी राज्यों का दूसरा। क्या बात है कि देश का पश्चिमी इलाका विकसित है और पूर्वी इलाका अपेक्षाकृत कम विकसित? लम्बे समय से देश मजबूत केंद्र और सत्ता के विकेंद्रीकरण की बहस में संलग्न रहा है। पर विशाल बहुविध, बहुभाषी, बहुरंगी देश को एकसाथ लेकर चलने का फॉर्मूला सामने नहीं आ पाया है। केंद्र की नई सरकार देश को नया शासन देने के साथ इस विमर्श को बढ़ाना चाहती है, तो यह शुभ लक्षण है।  
केंद्र-राज्य मंचों में राजनीति
राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कहा, राज्यों और केंद्र को सामंजस्यपूर्ण टीम इंडिया के रूप में काम करना चाहिए। सरकार, राष्ट्रीय विकास परिषद, अंतर्राज्यीय परिषद जैसे मंचों को पुन: सशक्त बनाएगी। अब तक का अनुभव है कि इन मंचों पर मुख्यमंत्री अनमने होकर आते हैं। अक्सर आते ही नहीं। राजनीतिक दलों की प्रतिस्पर्धा राष्ट्रीय विकास पर हावी रहती है। हाल के वर्षों में योजना आयोग के आँकड़ों को इस प्रकार घुमा-फिराकर पेश करने की कोशिश की जाती थी, जिससे लगे कि विकास का गुजरात मॉडल विफल है। पिछले दो साल में जबसे तृणमूल कांग्रेस ने यूपीए से हाथ खींचा है बंगाल को 22 हजार करोड़ रुपए के ब्याज की माफी का मसला राष्ट्रीय चर्चा का विषय रहा है। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार और यूपीए के बीच विशेष राज्य का दर्जा हासिल करने की बात राजनीतिक गलियारों में गूँजती रही।

Tuesday, June 10, 2014

कांग्रेस क्या करने वाली है?

कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि नरेंद्र मोदी ने हमारे एजेंडा को चुरा लिया है. इस बात में काफी सचाई सम्भव है, पर राजनीति में किसका एजेंडा स्थायी है? कांग्रेस को अब मोदी के एजेंडा की नहीं अपने एजेंडा की चिंता करनी चाहिए. अभी चार राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव आने वाले हैं. क्या वह उनके लिए तैयार है?

संसद के वर्तमान सत्र का उद्देश्य नए सदस्यों को शपथ दिलाना और संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति का अभिभाषण सुनना है. 9 जून को राष्ट्रपति का अभिभाषण और उसके बाद धन्यवाद प्रस्ताव ही इस सत्र की महत्वपूर्ण गतिविधि है. इस माने में यह औपचारिकताओं का सत्र है. इसमें ज्यादा से ज्यादा सरकार की दशा-दिशा का पता लगेगा, पर वास्तविक संसदीय राजनीति इसके बाद अगले महीने होने वाले बजट सत्र में दिखाई पड़ेगी.

असम्भव तो नहीं, पर है यह अविश्वसनीय-स्वप्न


संसद के दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में केंद्र की नई सरकार का आत्मविश्वास बोलता है। पिछली सरकार के भाषणों के मुकाबले इस सरकार के भाषण में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण एक सचाई के रूप में सामने आता है, मजबूरी के रूप में नहीं। उसमें बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा है। फिर भी इस भाषण को अभी एक राजनेता का सपना ही कह सकते हैं। इसमें एक विशाल परिकल्पना है, पर उसे पूरा करने की तज़बीज़ नजर नहीं आती। बेशक कुछ करने के लिए सपने भी देखने होते हैं। मोदी ने यह सपना देखा है तो सम्भव है वे अपने पुरुषार्थ से इसे पूरा करके भी दिखाएं। सम्भव है कि सारी कायनात इस सपने को पूरा करने में जुट जाएं। असम्भव तो कुछ भी नहीं है।

नरेंद्र मोदी जनता की कल्पनाओं को उभारने वाले नेता हैं। उनकी सरकार अपने हर कदम को रखने के पहले उसके असर को भी भाँप कर चलती है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नज़र डालें तो उसमें देश के टेक्नोट्रॉनिक बदलाव की आहट है तो सामाजिक क्षेत्र में बदलाव का वादा भी है। महिलाओं के आरक्षण को प्रतीक बनाकर आधी आबादी की आकांक्षाओं को रेखांकित किया है तो हर हाथ को हुनर और हर खेत को पानी का भरोसा दिलाया गया है। यह भाषण मध्यवर्गीय भारत की महत्वाकांक्षाओं को भी परिलक्षित करता। देश में एक सौ नए शहरों का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, गाँव-गाँव तक ब्रॉडबैंड पहुँचाने का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का वादा किया है। न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन के मंत्र जैसी शब्दावली से भरे इस भाषण पर नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत मुहर साफ दिखाई पड़ती है। ट्रेडीशन, टैलेंट, टूरिज्म, ट्रेड और टेक्नोलॉजी के 5-टी के सहारे ब्रांड-इंडिया को कायम करने की मनोकामना इसके पहले नरेंद्र मोदी किसी न किसी रूप में व्यक्त करते रहे हैं।