शपथ लेते प्रचंड |
नेपाल-भारत रिश्ते-1
रविवार को ओली की पार्टी एमाले, प्रचंड की माओवादी सेंटर, राष्ट्रीय
स्वतंत्रता पार्टी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जनमत पार्टी, जनता समाजवादी पार्टी और नागरिक
उन्मुक्ति पार्टी की बैठक हुई थी. इसी बैठक में फ़ैसला हुआ था कि पाँच साल के
कार्यकाल में पहले ढाई साल प्रचंड प्रधानमंत्री रहेंगे और बाद के ढाई साल ओली पीएम
बनेंगे. अभी तक प्रचंड की छवि जुझारू और गैर-परंपरावादी नेता की रही है, पर अब वह छवि बदली है. इस बार शपथ लेते समय उन्होंने नेपाल का परंपरागत दरबारी परिधान दौरा सुरुवाल पहना हुआ था, जो उनके बदले मिजाज को बता रहा है.
प्रचंड के समर्थन में 169 सांसद बताए गए हैं.
इनमें 78 ओली की पार्टी के हैं, 32 प्रचंड की पार्टी के, 20 राष्ट्रीय स्वतंत्रता पार्टी के, 12 जनता समाजवादी पार्टी से, छह जनमत पार्टी और चार नागरिक उन्मुक्ति पार्टी से हैं. 14 राष्ट्रीय
प्रजातंत्र पार्टी से हैं. हालांकि यह पार्टी फौरन सरकार में शामिल नहीं हो रही
है, पर समर्थन देगी. निर्दलीय प्रभु शाह, किरण कुमार शाह
और अमरेश कुमार सिंह का भी सरकार को समर्थन मिलेगा.
ओली की जीत
पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह केपी
शर्मा ओली की जीत और नेपाल कांग्रेस के नेता देउबा की हार है. ओली ने प्रचंड
को नेपाल कांग्रेस के पाले से बाहर निकाल लिया है. चूंकि उनके पास ज्यादा सांसद
हैं, इसलिए उनके ज्यादा समर्थक सरकार में होंगे. राष्ट्रपति और स्पीकर के पद पर भी
उनका दावा होगा.
बाक़ी जो राजनीतिक नियुक्तियां होंगी, उन पर भी उनकी चलेगी. राजदूतों की नियुक्ति में भी ओली की चलेगी. ढाई
साल बाद प्रचंड आनाकानी करेंगे, तो ओली सरकार गिराकर किसी दूसरे का समर्थन कर
देंगे. चूंकि दोनों कम्युनिस्ट पार्टियाँ फिर से एकसाथ आ गई हैं, इसलिए चीन की भी
चलेगी.
अस्थिरता को निमंत्रण
प्रचंड भले प्रधानमंत्री बन गए हैं लेकिन कहा
जा रहा है कि वह स्थिर सरकार देने में कामयाब नहीं रहेंगे. 2021 में नेपाली
कांग्रेस के नेतृत्व में प्रचंड और अन्य तीन पार्टियों का एक गठबंधन बना था. नेपाल
के अंग्रेज़ी अख़बार काठमांडू पोस्ट ने लिखा है कि यह ओली की जीत से ज्यादा नेपाली
कांग्रेस की हार है.
पहले माना जा रहा था कि नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ही प्रधानमंत्री रहेंगे लेकिन प्रचंड ने ऐन मौक़े पर पाला बदल लिया. प्रचंड चाहते थे कि नेपाली कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री बनाए लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई थी. जून 2021 में प्रचंड के समर्थन से ही देउबा प्रधानमंत्री बने थे.