पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस पार्टी की परेशानियाँ बढ़ गई हैं। 2018 में जिन तीन हिंदीभाषी राज्यों में उसे जीत मिली थी, उनमें हार से उसके 2024 का गणित उलझ गया है। कम से कम एक राज्य में भी उसे जीत मिलती, तो उसके पास कहने को कुछ था, पर मामूली नहीं मिली, अच्छी-खासी हार मिली है। कांग्रेस इससे बेहतर परिणाम की उम्मीद कर रही थी।
विपक्ष का ‘इंडिया’
गठबंधन बनने के बाद यह बड़ा चुनाव था, जिसमें एक साथ पांच
राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। इसका असर इंडी या इंडिया गठबंधन पर पड़ेगा,
जिसके केंद्र में हिंदीभाषी राज्य ही हैं। बहरहाल अब गठबंधन की अगली बैठक का
इंतज़ार है, जिसमें सीटों के बँटवारे पर बात होगी। सपा ने फैसला किया है कि घटक
दलों के पास मजबूत प्रत्याशी होने पर ही वह कोई भी सीट छोड़ेगी।
सीटों के बंटवारे के
लिए तृणमूल, सपा और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियां समान
फॉर्मूला अपनाने पर सहमत हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने 6 दिसंबर को घटक
दलों के नेताओं की बैठक बुलाई थी, जिसे स्थगित कर दिया गया, पर संसद में विपक्ष के
नेता दिल्ली में खरगे के आवास पर डिनर में शामिल हो रहे हैं। डिनर के माध्यम से खटास
दूर करने की कोशिश होंगी और अगली बैठक के लिए संभावित तारीखों पर विचार भी किया
जाएगा।
पांच राज्यों के चुनाव के दौरान ही राजद और जदयू समेत इंडिया के कई घटक दल न सिर्फ एक बड़ी रैली का आयोजन करना चाहते थे, बल्कि सीटों के बंटवारे के फॉर्मूले पर वार्ता करने की भी उनकी योजना थी। लेकिन कांग्रेस ने पांच राज्यों के चुनाव के नतीजों के बाद इस पर विचार करने की बात कहते हुए मामले को टाल दिया था। अब क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस पर दबाव बढ़ जाएगा।
सपा पहले ही कांग्रेस
से कह चुकी है कि यूपी में वह जो सीटें चाहती है, उन पर किस
नेता को लड़ाएगी, पहले यह बताए। सपा के रणनीतिकारों का कहना
है कि लोकसभा चुनाव में कोई भी प्रत्याशी तभी लड़ाई में आता है, जब उसके पास कम से कम डेढ़ से दो लाख बुनियादी वोटों का
इंतजाम हो। तब गठबंधन के कारण जुड़ने वाला वोट उसे जीत की ओर ले जाता है। इसलिए
पहले कांग्रेस को यह बताना होगा कि डेढ़ से दो लाख बुनियादी वोट हासिल कर सकने
वाले कौन से नेता उसके पास हैं। सीट बँटवारे की बात उसके बाद ही शुरू होगी। सपा
सूत्रों का कहना है कि इंडिया की समन्वय बैठक में मांगे जाने के बावजूद कांग्रेस
ने उन नेताओं की सूची नहीं दी है।
इस उलझन की शुरुआत
इसबार मध्य प्रदेश के चुनाव में हो गई थी, जहाँ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के
बीच गठजोड़ नहीं हो पाया था। माना जाता है कि यह गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव के
लिए है, पर उसके पहले हुए विधानसभा चुनावों में भी तो उसकी शुरुआत की जा सकती थी। बहरहाल
अब चुनाव-परिणाम आने के बाद जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उनसे गठबंधन को लेकर
संदेह पैदा हो गए हैं।
परिणाम आते ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता
संजय राउत ने कहा, मेरी स्पष्ट राय है कि मध्य प्रदेश का
चुनाव ‘इंडिया’ गठबंधन तहत लड़ा जाना चाहिए था। अगर कुछ सीटें गठबंधन दलों के साथ
साझा की जातीं तो कांग्रेस का प्रदर्शन कहीं बेहतर होता। पार्टी के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में शिवसेना ने कमलनाथ पर 'इंडिया' के सिद्धांतों का पालन
न करने का आरोप लगाया है। साथ ही कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं पर राहुल और
प्रियंका गांधी के प्रयासों को कमज़ोर करने का आरोप भी लगाया गया है।
जेडीयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि
चुनावों में विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन गायब था। उसके बाद ममता बनर्जी का बयान आया
कि यह कांग्रेस की हार है, गठबंधन की नहीं। उन्होंने विरोधी दलों के बीच उन पार्टियों पर भी निशाना
साधा, जिन्होंने इन चुनावों में एक-दूसरे के सामने खड़े होकर वोट काटने का काम
किया, जिसका फायदा बीजेपी को मिला। उन्होंने कहा, आँकड़े देखिए। बीजेपी बहुत कम अंतर से जीती है। ये
विपक्षी दलों के वोट में बँटने की वजह से हुआ है। इसलिए सही तरीके से सीटों का
बंटवारा होना चाहिए।
केरल के मुख्यमंत्री
पिनरायी विजयन ने कहा, कांग्रेस ने लालची रवैया दिखाया। उसने
बीजेपी विरोधी ताकतों को एक साथ लाने की बजाय सब कुछ अपने हाथों में रखने और दबदबा
बनाने को चुना। चुनावी नतीजे इसी रवैए का परिणाम है। अखिलेश यादव पहले ही अपनी नाराज़गी
जताते हुए कह चुके हैं। हालांकि उन्होंने कांग्रेस का नाम नहीं लिया पर कहा, नतीजे
आ गए हैं और अहंकार खत्म हो गया। अब उनकी पार्टी के महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने कहा, कांग्रेस को इस चुनाव नतीजे से सबक लेना चाहिए। हम सबको
सबक लेना चाहिए। हम सब इसकी समीक्षा करेंगे। 2024 का लोकसभा चुनाव इंडिया गठबंधन को मज़बूत करने के बाद लड़ना चाहिए।
कुछ वर्षों के लिए विपक्ष को हिमालय चले जाना चाहिए | ५० साल बाद आ कर देखना चाहिए क्या संभव है | तब तक करने दें मोदी और पार्टी को मंगलगान | वोल्कोवर देना सबसे अच्छा विकल्प है | देश का पैसा बचेगा | वो बात अलग है कि बचा पैसा कहां जाएगा : )
ReplyDeleteइनके बस का कुछ नहीं है | अमित शाह के प्रबंधन के सामने सब घुटने टेक हैं |
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