दिल्ली में एनआईए के प्रमुख के साथ एफबीआई के प्रमुख
अमेरिका में खालिस्तानी-अलगाववादी गतिविधियों
और गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश से जुड़े एक मामलों को लेकर दोनों देशों के गुपचुप-मतभेद जरूर सामने आए हैं, पर इससे यह
नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ जाएगी. अलबत्ता इन मामलों
से भारत की प्रतिष्ठा जुड़ी है.
बावजूद इसके बातें इतनी बड़ी नहीं हैं कि दोनों
देशों के रिश्तों में बिगाड़ पैदा हो जाए. पन्नू-प्रसंग से मिलता-जुलता मामला कनाडा
में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जुड़ा है. इन दोनों मामलों को लेकर भारत की
खुफिया एजेंसी की प्रतिष्ठा को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. दूसरी तरफ भारत के सामने खालिस्तानी
चरमपंथियों को काबू करने की चुनौतियाँ भी है.
अमेरिका को चीनी चुनौती का सामना करने के लिए भारत की जरूरत है. एशिया में भारत ही अमेरिका के काम आ सकता है. ऐसा भारत की भौगोलिक स्थिति के अलावा आर्थिक और सामरिक मजबूती की वजह से भी है. भारत को भी अमेरिका की जरूरत है, क्योंकि वह दो ऐसे देशों से घिरा है, जो उसे अज़ली दुश्मन मानते हैं.
संसदीय-सुनवाई
अमेरिकी सीनेट की विदेश-संबंध समिति इन दिनों ‘विदेश में विरोधियों को निशाना’ बनाने से
जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही है. इसमें पन्नू और निज्जर के मामले भी शामिल हैं.
भारतीय राष्ट्र-राष्ट्र की प्रतिष्ठा के प्रश्न इसके साथ जुड़े हैं, क्योंकि रूस,
चीन और ईरान जैसे देशों के साथ भारत को भी इस श्रेणी में रखा जा रहा है.
इस सुनवाई में कई प्रकार के एक्टिविस्ट भी
शामिल हैं. इनमें फ्रीडम हाउस के अध्यक्ष माइकल जे. अब्रामोविट्ज़ का नाम भी है,
जो ‘भारत में लोकतंत्र के पराभव’ का आरोप लगाते
रहे हैं.
एक तरफ यह सुनवाई हो
रही है, दूसरी तरफ भारत-अमेरिका रिश्ते प्रगाढ़ होते जा रहे हैं. हाल में दिल्ली
स्थित अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा है कि अमेरिका की वित्तमंत्री जेनेट
येलेन इस साल चार बार विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकेन तीन बार और रक्षामंत्री लॉयड
ऑस्टिन दो बार भारत आ चुके हैं.
रिश्तों की
मजबूती
इससे दोनों देशों के
रिश्तों की मजबूती का अनुमान लगाया जा सकता है. भारतीय
प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका ने इस साल जून में राजकीय अतिथि बनाया था. गार्सेटी
ने कहा भी है कि भारत और अमेरिका के बीच 'डेटिंग' चल रही है.
दिसंबर के पहले सप्ताह में अमेरिका के
राष्ट्रीय सुरक्षा उपसलाहकार जोनाथन फ़ाइनर ने विदेश मंत्री एस जयशंकर, एनएसए अजित
डोभाल और विदेश सचिव विनय क्वात्रा से मुलाक़ात की. अब इस हफ्ते अमेरिका की जाँच
एजेंसी एफबीआई के प्रमुख क्रिस्टोफर रे भारत में हैं. उन्होंने कहा है कि हम भारतीय
कौंसुलेट पर हुए हमले की तेजी से जाँच कर रहे हैं.
प्रश्न यह भी है कि हम अमेरिका, कनाडा,
ऑस्ट्रेलिया और यूके को अलगाववादियों की गतिविधियों को लेकर भरोसे में ले पाए हैं
या नहीं? यह भी कि इन दोनों मामलों के इस रूप में खुलकर
सामने आने के पीछे की वजह क्या है?
सैद्धांतिक-पवित्रता
अमेरिका ने जिन सैद्धांतिक-पवित्रताओं के सवाल
उठाए हैं, उनसे असहमति भले ही नहीं हो, पर पूछा जा सकता है कि ओसामा बिन लादेन को
किसी दूसरे देश में जाकर मारना क्या उस विचार से मेल खाता है? या फिर अमेरिकी प्रशासन को गुरपतवंत सिंह पन्नू की गतिविधियाँ अहिंसक
और सौम्य लगती हैं. या पन्नू का अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ कोई संबंध है?
भारत आए एफबीआई के चीफ क्रिस्टोफर रे के सामने
इस आशय के तथ्य भी रखे जाने चाहिए और अपने सवाल भी. पिछले बारह वर्षों में भारत
आने वाले पहले एफबीआई चीफ हैं क्रिस्टोफर रे. बारह साल पहले तत्कालीन चीफ रॉबर्ट
मुलर को कई बार भारत आना पड़ा था.
ऐसा नवंबर 2008 में मुंबई हमले के कारण हुआ,
जिसके पीछे पाकिस्तानी गिरोह लश्करे-तैयबा का हाथ था. क्या एफबीआई को इस बात की
जानकारी नहीं है कि खालिस्तानी-चरमपंथियों और लश्कर के बीच साठगाँठ है?
मुंबई कांड की साज़िश रचने वाले तहव्वुर राना
का प्रत्यर्पण अभी तक नहीं हुआ है, जबकि अमेरिका की एक अदालत ने इस साल मई में
इसकी अनुमति दे दी थी. बहरहाल भारतीय एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे
क्रिस्टोफर रे के सामने पन्नू से जुड़ी जानकारियों को भी रखें.
पन्नू की धमकियाँ
भारत सरकार ने जुलाई 2020 में पन्नू के संगठन
सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) को गैर-कानूनी संगठन घोषित किया था. पन्नू ने भारत की
संसद पर हमला करने, एयर इंडिया के विमानों और कनाडा के हिंदू नागरिकों को निशाना
बनाने की प्रत्यक्ष या परोक्ष धमकियाँ दी हैं.
क्रिस्टोफर रे के दौरे का विषय सायबर सिक्योरिटी और काउंटर टैररिज्म के क्षेत्र में
भारत-अमेरिका सहयोग पर बात करना है. आधिकारिक रूप से इसमें पन्नू के मसले का
उल्लेख नहीं है, पर अनुमान लगाया जा सकता है कि इस विषय का जिक्र जरूर होगा. चाहे
ऐसा अमेरिका की ओर से हो या भारत की ओर से.
निखिल गुप्ता
चेकोस्लोवाकिया में निखिल गुप्ता नाम के भारतीय
नागरिक की गिरफ्तारी जून के महीने में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अमेरिका-यात्रा के फौरन बाद हुई थी. बावजूद इसके करीब पाँच महीने तक मीडिया
को इसकी भनक नहीं लगी.
कनाडा और अमेरिका के मामले में बुनियादी फर्क भी
लगता है. जो जानकारियाँ सामने आ रही हैं, उनसे लगता है कि भारत सरकार के साथ
अमेरिका ने इस मसले को लेकर संपर्क स्थापित किया था. दोनों में मामलों में भारत
सरकार की प्रतिक्रियाएं भी अलग-अलग तरीके से व्यक्त हुई हैं.
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते राज्यसभा
में एक सवाल के जवाब में कहा कि अमेरिका और कनाडा के मामले एक जैसे नहीं हैं.
कनाडा ने हमें ऐसी कोई जानकारी नहीं दी है, जिसके आधार पर कोई कार्रवाई की जी सके.
दोनों का फर्क
अमेरिका में एक कानूनी-प्रक्रिया इस सिलसिले
में शुरू हुई है, जिसका विवरण भारत को दिया गया है. भारत ने उसकी गंभीरता से देखते
एक उच्चस्तरीय समिति को इसकी जाँच का जिम्मा सौंपा है.
दूसरी तरफ कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो
ने अपनी संसद में इसकी घोषणा जरूर की, पर ऐसी किसी औपचारिक कार्रवाई का विवरण नहीं
दिया. कनाडा की संसद में ट्रूडो ने कहा था कि जून में हुई हरदीप सिंह निज्जर की
हत्या में भारत सरकार की संलिप्तता के कुछ ‘विश्वसनीय आरोप’ मिले हैं.
इतना ही नहीं भारतीय उच्चायोग के एक अधिकारी को
देश छोड़ने का आदेश दे दिया. इसके अलावा भारत के साथ चल रही व्यापार-वार्ता को
रोकने की घोषणा भी कर दी. इन दोनों बातों से दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट
पैदा हो गई.
अमेरिका ने इस मामले को उठाने के साथ इस बात को
कई बार कहा है कि दोनों देशों के रिश्ते गहरे हैं, जिन्हें और गहरे बनाने का
प्रयास जारी रहेगा. भारत हमारा रणनीतिक-सहयोगी देश है वगैरह.
अमेरिकी आरोप
अमेरिका ने एक निखिल गुप्ता नाम के एक भारतीय
नागरिक पर आरोप लगाया है. आरोप है कि उन्होंने भाड़े के एक हत्यारे को एक लाख डॉलर
कैश के बदले अलगाववादी नेता की हत्या की सुपारी दी थी. यह भी कि उन्होंने हत्या का
यह प्रयास भारत सरकार के एक अधिकारी के इशारे पर किया था.
जिस हिटमैन को हत्या का काम दिया गया था,
वह वास्तव में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी का अंडरकवर एजेंट था. निखिल
गुप्ता इस समय चेक गणराज्य की जेल में हैं. उन्होंने चेकोस्लोवाकिया की एक अदालत
में प्रत्यर्पण की अनुमति देने वाले प्राग अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की है.
अमेरिका के मैनहटन में दायर अभियोग में यह भी
कहा गया है कि गुप्ता के साथ साजिश में शामिल भारत का अधिकारी, जून में एक कनाडाई
सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भी शामिल था.
गत 29 नवंबर को
अमेरिकी संघीय अभियोजकों ने कहा था कि उन्होंने न्यूयॉर्क में एक सिख कार्यकर्ता
की हत्या की विफल साजिश में ‘पैसों के लिए हत्या’ और ‘साजिश’ रचने का अभियोग दायर
किया है.
उनका दावा है कि इसके पीछे एक अनाम, किंतु ‘पहचाने
जा चुके भारतीय सरकारी कर्मचारी का हाथ था’, जिसने
निखिल गुप्ता को एक ‘हिटमैन को भाड़े पर रखने का काम सौंपा था. जिस व्यक्ति को गुप्ता ने ‘हिटमैन’ समझकर काम पर
रखा था, वह वास्तव में एक अमेरिका का सीक्रेट एजेंट था.
निखिल की गिरफ्तारी
निखिल गुप्ता को अमेरिकी अधिकारियों के अनुरोध
पर प्राग में उस समय गिरफ्तार किया गया था जब 30
जून 2023 को भारत से वहां पहुँचे. इसके बाद अगस्त 2023 में अमेरिकी अधिकारियों ने उनके प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक अनुरोध
प्रस्तुत किया.
प्राग की म्युनिसिपल अदालत ने अमेरिका के
प्रत्यर्पण आदेश की स्वीकार्यता पर 23 नवंबर को एक
आदेश जारी किया था. अदालत का निर्णय अभी तक लागू नहीं हुआ है.
प्राग-अदालत के आदेश के एक हफ्ते से भी कम समय
के बाद अमेरिकी अभियोजकों ने न्यूयॉर्क में एक नया विस्तृत और बिना सीलबंद अभियोग
दायर किया, जिसमें कहा गया कि निखिल गुप्ता को चेक अधिकारियों ने गिरफ्तार किया
है.
भारतीय अधिकारी
अमेरिकी अभियोजकों के अनुसार, ड्रग्स और हथियारों के तस्कर के रूप में नामजद गुप्ता को इस साल मई
में भारतीय सरकारी अधिकारी ने ( जिसे सीसी-1
नाम दिया गया है) काम पर लगाया था. गुप्ता को कथित तौर
पर इसके एवज में गुजरात में उनके खिलाफ पुलिस में दर्ज मामले को खत्म करने का
आश्वासन दिया गया था.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू
मिलर ने कहा, हमने स्पष्ट कर दिया है कि हम सरहद पार जाकर इस तरह के उत्पीड़न के
ख़िलाफ़ हैं. ऐसा चाहे कहीं भी हो और कोई भी करे. यह केवल भारत से जुड़ी नीति नहीं
है, बल्कि दुनिया के किसी भी देश के लिए यही नीति है.
अमेरिका की अदालत में दायर अभियोग-पत्र में
पीड़ित का नाम नहीं है, लेकिन मीडिया-रिपोर्टों के अनुसार निशाने पर सिख अलगाववादी
नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू था. पन्नू अमेरिकी नागरिक है, जिसके
पास कनाडा की नागरिकता भी है. वह भारत में घोषित ‘आतंकवादी’ हैं.
अमेरिकी अधिकारी भारत में
अमेरिका से आई खबरों के अनुसार इसी वजह से
सीआईए डायरेक्टर विलियम जे बर्न्स और नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर एवरिल हेन्स
को अगस्त और अक्तूबर में भारत भेजा गया था, ताकि इस मामले में जाँच करवाने और
ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा देने के लिए भारत से कहा जा सके.
इससे पहले कनाडा ने सिख अलगाववादी नेता हरदीप
सिंह निज्जर की हत्या में भारत के शामिल होने के आरोप लगाये थे. कनाडा के इन
आरोपों के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों में कड़वाहट आ गई थी.
कनाडा के आरोपों के साथ यह भी स्पष्ट हो गया था
कि अमेरिका के पास भी इस विषय में कुछ खुफिया जानकारियाँ हैं. वस्तुतः ‘फाइव आईज़’ नाम से प्रसिद्ध अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड का खुफिया-तंत्र इन
बातों की राजनीतिक-पृष्ठभूमि को भी समझने की जरूरत है.
भारत-अमेरिका रिश्तों पर पन्नू-निज्जर प्रसंगों
की छाया
प्रमोद जोशी
अमेरिका में खालिस्तानी-अलगाववादी गतिविधियों
और गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित साजिश से जुड़े एक मामलों को लेकर दोनों देशों के गुपचुप-मतभेद जरूर सामने आए हैं, पर इससे यह
नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों के रिश्तों में खटास आ जाएगी. अलबत्ता इन मामलों
से भारत की प्रतिष्ठा जुड़ी है.
बावजूद इसके बातें इतनी बड़ी नहीं हैं कि दोनों
देशों के रिश्तों में बिगाड़ पैदा हो जाए. पन्नू-प्रसंग से मिलता-जुलता मामला कनाडा
में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या से जुड़ा है. इन दोनों मामलों को लेकर भारत की
खुफिया एजेंसी की प्रतिष्ठा को लेकर सवाल खड़े हुए हैं. दूसरी तरफ भारत के सामने खालिस्तानी
चरमपंथियों को काबू करने की चुनौतियाँ भी है.
अमेरिका को चीनी चुनौती का सामना करने के लिए भारत
की जरूरत है. एशिया में भारत ही अमेरिका के काम आ सकता है. ऐसा भारत की भौगोलिक
स्थिति के अलावा आर्थिक और सामरिक मजबूती की वजह से भी है. भारत को भी अमेरिका की
जरूरत है, क्योंकि वह दो ऐसे देशों से घिरा है, जो उसे अज़ली दुश्मन मानते हैं.
संसदीय-सुनवाई
अमेरिकी सीनेट की विदेश-संबंध समिति इन दिनों ‘विदेश में विरोधियों को निशाना’ बनाने से
जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही है. इसमें पन्नू और निज्जर के मामले भी शामिल हैं.
भारतीय राष्ट्र-राष्ट्र की प्रतिष्ठा के प्रश्न इसके साथ जुड़े हैं, क्योंकि रूस,
चीन और ईरान जैसे देशों के साथ भारत को भी इस श्रेणी में रखा जा रहा है.
इस सुनवाई में कई प्रकार के एक्टिविस्ट भी
शामिल हैं. इनमें फ्रीडम हाउस के अध्यक्ष माइकल जे. अब्रामोविट्ज़ का नाम भी है,
जो ‘भारत में लोकतंत्र के पराभव’ का आरोप लगाते
रहे हैं.
एक तरफ यह सुनवाई हो
रही है, दूसरी तरफ भारत-अमेरिका रिश्ते प्रगाढ़ होते जा रहे हैं. हाल में दिल्ली
स्थित अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा है कि अमेरिका की वित्तमंत्री जेनेट
येलेन इस साल चार बार विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकेन तीन बार और रक्षामंत्री लॉयड
ऑस्टिन दो बार भारत आ चुके हैं.
रिश्तों की
मजबूती
इससे दोनों देशों के
रिश्तों की मजबूती का अनुमान लगाया जा सकता है. भारतीय
प्रधानमंत्री मोदी को अमेरिका ने इस साल जून में राजकीय अतिथि बनाया था. गार्सेटी
ने कहा भी है कि भारत और अमेरिका के बीच 'डेटिंग' चल रही है.
दिसंबर के पहले सप्ताह में अमेरिका के
राष्ट्रीय सुरक्षा उपसलाहकार जोनाथन फ़ाइनर ने विदेश मंत्री एस जयशंकर, एनएसए अजित
डोभाल और विदेश सचिव विनय क्वात्रा से मुलाक़ात की. अब इस हफ्ते अमेरिका की जाँच
एजेंसी एफबीआई के प्रमुख क्रिस्टोफर रे भारत में हैं. उन्होंने कहा है कि हम भारतीय
कौंसुलेट पर हुए हमले की तेजी से जाँच कर रहे हैं.
प्रश्न यह भी है कि हम अमेरिका, कनाडा,
ऑस्ट्रेलिया और यूके को अलगाववादियों की गतिविधियों को लेकर भरोसे में ले पाए हैं
या नहीं? यह भी कि इन दोनों मामलों के इस रूप में खुलकर
सामने आने के पीछे की वजह क्या है?
सैद्धांतिक-पवित्रता
अमेरिका ने जिन सैद्धांतिक-पवित्रताओं के सवाल
उठाए हैं, उनसे असहमति भले ही नहीं हो, पर पूछा जा सकता है कि ओसामा बिन लादेन को
किसी दूसरे देश में जाकर मारना क्या उस विचार से मेल खाता है? या फिर अमेरिकी प्रशासन को गुरपतवंत सिंह पन्नू की गतिविधियाँ अहिंसक
और सौम्य लगती हैं. या पन्नू का अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के साथ कोई संबंध है?
भारत आए एफबीआई के चीफ क्रिस्टोफर रे के सामने
इस आशय के तथ्य भी रखे जाने चाहिए और अपने सवाल भी. पिछले बारह वर्षों में भारत
आने वाले पहले एफबीआई चीफ हैं क्रिस्टोफर रे. बारह साल पहले तत्कालीन चीफ रॉबर्ट
मुलर को कई बार भारत आना पड़ा था.
ऐसा नवंबर 2008 में मुंबई हमले के कारण हुआ,
जिसके पीछे पाकिस्तानी गिरोह लश्करे-तैयबा का हाथ था. क्या एफबीआई को इस बात की
जानकारी नहीं है कि खालिस्तानी-चरमपंथियों और लश्कर के बीच साठगाँठ है?
मुंबई कांड की साज़िश रचने वाले तहव्वुर राना
का प्रत्यर्पण अभी तक नहीं हुआ है, जबकि अमेरिका की एक अदालत ने इस साल मई में
इसकी अनुमति दे दी थी. बहरहाल भारतीय एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे
क्रिस्टोफर रे के सामने पन्नू से जुड़ी जानकारियों को भी रखें.
पन्नू की धमकियाँ
भारत सरकार ने जुलाई 2020 में पन्नू के संगठन
सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) को गैर-कानूनी संगठन घोषित किया था. पन्नू ने भारत की
संसद पर हमला करने, एयर इंडिया के विमानों और कनाडा के हिंदू नागरिकों को निशाना
बनाने की प्रत्यक्ष या परोक्ष धमकियाँ दी हैं.
क्रिस्टोफर रे के दौरे का विषय सायबर सिक्योरिटी और काउंटर टैररिज्म के क्षेत्र में
भारत-अमेरिका सहयोग पर बात करना है. आधिकारिक रूप से इसमें पन्नू के मसले का
उल्लेख नहीं है, पर अनुमान लगाया जा सकता है कि इस विषय का जिक्र जरूर होगा. चाहे
ऐसा अमेरिका की ओर से हो या भारत की ओर से.
निखिल गुप्ता
चेकोस्लोवाकिया में निखिल गुप्ता नाम के भारतीय
नागरिक की गिरफ्तारी जून के महीने में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अमेरिका-यात्रा के फौरन बाद हुई थी. बावजूद इसके करीब पाँच महीने तक मीडिया
को इसकी भनक नहीं लगी.
कनाडा और अमेरिका के मामले में बुनियादी फर्क भी
लगता है. जो जानकारियाँ सामने आ रही हैं, उनसे लगता है कि भारत सरकार के साथ
अमेरिका ने इस मसले को लेकर संपर्क स्थापित किया था. दोनों में मामलों में भारत
सरकार की प्रतिक्रियाएं भी अलग-अलग तरीके से व्यक्त हुई हैं.
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते राज्यसभा
में एक सवाल के जवाब में कहा कि अमेरिका और कनाडा के मामले एक जैसे नहीं हैं.
कनाडा ने हमें ऐसी कोई जानकारी नहीं दी है, जिसके आधार पर कोई कार्रवाई की जी सके.
दोनों का फर्क
अमेरिका में एक कानूनी-प्रक्रिया इस सिलसिले
में शुरू हुई है, जिसका विवरण भारत को दिया गया है. भारत ने उसकी गंभीरता से देखते
एक उच्चस्तरीय समिति को इसकी जाँच का जिम्मा सौंपा है.
दूसरी तरफ कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो
ने अपनी संसद में इसकी घोषणा जरूर की, पर ऐसी किसी औपचारिक कार्रवाई का विवरण नहीं
दिया. कनाडा की संसद में ट्रूडो ने कहा था कि जून में हुई हरदीप सिंह निज्जर की
हत्या में भारत सरकार की संलिप्तता के कुछ ‘विश्वसनीय आरोप’ मिले हैं.
इतना ही नहीं भारतीय उच्चायोग के एक अधिकारी को
देश छोड़ने का आदेश दे दिया. इसके अलावा भारत के साथ चल रही व्यापार-वार्ता को
रोकने की घोषणा भी कर दी. इन दोनों बातों से दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट
पैदा हो गई.
अमेरिका ने इस मामले को उठाने के साथ इस बात को
कई बार कहा है कि दोनों देशों के रिश्ते गहरे हैं, जिन्हें और गहरे बनाने का
प्रयास जारी रहेगा. भारत हमारा रणनीतिक-सहयोगी देश है वगैरह.
अमेरिकी आरोप
अमेरिका ने एक निखिल गुप्ता नाम के एक भारतीय
नागरिक पर आरोप लगाया है. आरोप है कि उन्होंने भाड़े के एक हत्यारे को एक लाख डॉलर
कैश के बदले अलगाववादी नेता की हत्या की सुपारी दी थी. यह भी कि उन्होंने हत्या का
यह प्रयास भारत सरकार के एक अधिकारी के इशारे पर किया था.
जिस हिटमैन को हत्या का काम दिया गया था,
वह वास्तव में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी का अंडरकवर एजेंट था. निखिल
गुप्ता इस समय चेक गणराज्य की जेल में हैं. उन्होंने चेकोस्लोवाकिया की एक अदालत
में प्रत्यर्पण की अनुमति देने वाले प्राग अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की है.
अमेरिका के मैनहटन में दायर अभियोग में यह भी
कहा गया है कि गुप्ता के साथ साजिश में शामिल भारत का अधिकारी, जून में एक कनाडाई
सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भी शामिल था.
गत 29 नवंबर को
अमेरिकी संघीय अभियोजकों ने कहा था कि उन्होंने न्यूयॉर्क में एक सिख कार्यकर्ता
की हत्या की विफल साजिश में ‘पैसों के लिए हत्या’ और ‘साजिश’ रचने का अभियोग दायर
किया है.
उनका दावा है कि इसके पीछे एक अनाम, किंतु ‘पहचाने
जा चुके भारतीय सरकारी कर्मचारी का हाथ था’, जिसने
निखिल गुप्ता को एक ‘हिटमैन को भाड़े पर रखने का काम सौंपा था. जिस व्यक्ति को गुप्ता ने ‘हिटमैन’ समझकर काम पर
रखा था, वह वास्तव में एक अमेरिका का सीक्रेट एजेंट था.
निखिल की गिरफ्तारी
निखिल गुप्ता को अमेरिकी अधिकारियों के अनुरोध
पर प्राग में उस समय गिरफ्तार किया गया था जब 30
जून 2023 को भारत से वहां पहुँचे. इसके बाद अगस्त 2023 में अमेरिकी अधिकारियों ने उनके प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक अनुरोध
प्रस्तुत किया.
प्राग की म्युनिसिपल अदालत ने अमेरिका के
प्रत्यर्पण आदेश की स्वीकार्यता पर 23 नवंबर को एक
आदेश जारी किया था. अदालत का निर्णय अभी तक लागू नहीं हुआ है.
प्राग-अदालत के आदेश के एक हफ्ते से भी कम समय
के बाद अमेरिकी अभियोजकों ने न्यूयॉर्क में एक नया विस्तृत और बिना सीलबंद अभियोग
दायर किया, जिसमें कहा गया कि निखिल गुप्ता को चेक अधिकारियों ने गिरफ्तार किया
है.
भारतीय अधिकारी
अमेरिकी अभियोजकों के अनुसार, ड्रग्स और हथियारों के तस्कर के रूप में नामजद गुप्ता को इस साल मई
में भारतीय सरकारी अधिकारी ने ( जिसे सीसी-1
नाम दिया गया है) काम पर लगाया था. गुप्ता को कथित तौर
पर इसके एवज में गुजरात में उनके खिलाफ पुलिस में दर्ज मामले को खत्म करने का
आश्वासन दिया गया था.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू
मिलर ने कहा, हमने स्पष्ट कर दिया है कि हम सरहद पार जाकर इस तरह के उत्पीड़न के
ख़िलाफ़ हैं. ऐसा चाहे कहीं भी हो और कोई भी करे. यह केवल भारत से जुड़ी नीति नहीं
है, बल्कि दुनिया के किसी भी देश के लिए यही नीति है.
अमेरिका की अदालत में दायर अभियोग-पत्र में
पीड़ित का नाम नहीं है, लेकिन मीडिया-रिपोर्टों के अनुसार निशाने पर सिख अलगाववादी
नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू था. पन्नू अमेरिकी नागरिक है, जिसके
पास कनाडा की नागरिकता भी है. वह भारत में घोषित ‘आतंकवादी’ हैं.
अमेरिकी अधिकारी भारत में
अमेरिका से आई खबरों के अनुसार इसी वजह से
सीआईए डायरेक्टर विलियम जे बर्न्स और नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर एवरिल हेन्स
को अगस्त और अक्तूबर में भारत भेजा गया था, ताकि इस मामले में जाँच करवाने और
ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा देने के लिए भारत से कहा जा सके.
इससे पहले कनाडा ने सिख अलगाववादी नेता हरदीप
सिंह निज्जर की हत्या में भारत के शामिल होने के आरोप लगाये थे. कनाडा के इन
आरोपों के बाद भारत और कनाडा के रिश्तों में कड़वाहट आ गई थी.
कनाडा के आरोपों के साथ यह भी स्पष्ट हो गया था
कि अमेरिका के पास भी इस विषय में कुछ खुफिया जानकारियाँ हैं. वस्तुतः ‘फाइव आईज़’ नाम से प्रसिद्ध अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड का खुफिया-तंत्र इन
बातों की राजनीतिक-पृष्ठभूमि को भी समझने की जरूरत है.
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