बीजेपी की जीत के बाद दिल्ली स्थित बीजेपी मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, मैं लगातार कहता रहा हूं कि मेरे लिए देश में चार जातियां ही सबसे बड़ी जातियां हैं. मैं जब इन जातियों की बात करता हूं, तो इसमें स्त्रियाँ, युवा, किसान और गरीब परिवार हैं. इन चार जातियों को सशक्त करने से ही देश सशक्त होने वाला है. उन्होंने यह भी कहा कि कई लोग कह रहे हैं कि इस हैट्रिक ने लोकसभा चुनाव की हैट्रिक की गारंटी दे दी है.
तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत के बाद लगता है
कि बीजेपी अब लोकसभा चुनाव की रणनीतियों पर काम करेगी. उसे बेशक सफलता मिल गई, पर
नहीं मिलती तब भी वह निराश नहीं होती. 2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इन तीनों
हिंदी भाषी राज्यों में हार गई थी, पर 2019 के लोकसभा चुनावों में इन्हीं राज्यों
से पार्टी को जबर्दस्त सफलता मिली. बीजेपी की सफलता के पीछे अनेक कारण हैं. मजबूत
नेतृत्व, संगठन-क्षमता, संसाधन, सांस्कृतिक-आधार और कल्याणकारी योजनाएं
वगैरह-वगैरह. इनमें ‘शुक्रिया मोदीजी’ को भी जोड़
लीजिए.
माना जाता है कि राज्यों के चुनावों में स्थानीय नेतृत्व की प्रतिष्ठा और राज्य से जुड़े दूसरे मसले भी होते हैं, पर लोकसभा चुनाव में मोदी का ‘जादू’ काम करता है. बहरहाल इसबार के विधानसभा चुनावों में भी ‘मोदी की गारंटी’ ने काम किया है. चुनाव-परिणामों के निहितार्थ और 2024 के चुनावों पर पड़ने वाले असर के लिहाज से देखने के लिए यह समझना जरूरी है कि बीजेपी की इस असाधारण सफलता के पीछे के कारण क्या हैं.
कल्याण-योजनाओं का असर
विश्लेषक अपने-तरीके से उन कारणों को समझने की
कोशिश कर रहे हैं, पर निर्विवाद रूप से दो बातों की ओर सभी इशारा कर रहे हैं. पहला
कारण है नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर वोटर का अगाध विश्वास और दूसरे जन-कल्याण से
जुड़ी योजनाओं का असर. यह असर सभी धर्मों, जातियों, समुदायों और क्षेत्रों पर है.
छत्तीसगढ़ में चुनाव के ठीक पहले बीजेपी ने गैस
सिलेंडर 500 रुपये में देने और गरीब परिवारों को हर साल 12,000 रुपये देने और
विवाहित स्त्रियों की सहायता करने की घोषणाएं करके कांग्रेस से बढ़त ले ली. इस
लिहाज से यह घोषणाओं की जीत है, पर कांग्रेस की पराजय के पीछे ‘एंटी इनकंबैंसी’ और आपसी
खींचतान का हाथ भी है. यही स्थिति कमोबेश राजस्थान में रही, पर मध्य प्रदेश में ‘एंटी इनकंबैंसी’ नहीं चली.
इसका मतलब है कि शिवराज चौहान की सरकार ने जनता के बीच अपनी जगह बनाकर रखी. और
पहले से कहीं बड़ी सफलता हासिल की. इन सब बातों के पीछे बीजेपी की
संगठनात्मक-क्षमता का भी हाथ रहा है.
इस लोकप्रियता के पीछे स्त्रियों की बहुत बड़ी
भूमिका है, जिनमें मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं. महिलाएं जब स्वयं को एक वर्ग के रूप
में देखती हैं, तब वे इस बात की अनदेखी नहीं करतीं कि उन्हें मिल रहे लाभ धार्मिक
या जातीय आधार पर नहीं हैं, बल्कि इंसान के रूप में हैं. युवा, किसान और गरीब इन
तीन वर्गों के केंद्र में भी स्त्रियाँ हैं. देश की आधी आबादी की राजनीतिक-चेतना
इस रूप में प्रस्फुटित हो रही है.
ध्यान दें, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. यह 2014
से चल रहा है. तब यह अपेक्षाकृत अदृश्य थी, अब मुखर हो रही है. इसमें दो राय नहीं
कि मध्य प्रदेश, भारतीय जनता पार्टी के साथ मजबूती के साथ खड़ा होने वाला पहला
राज्य है. गुजरात से भी पहले इस राज्य में पार्टी ने जड़ें जमा ली थीं.
लाड़ली बहना
मध्य प्रदेश में बीजेपी की इसबार जीत के पीछे ‘लाड़ली
बहना’ योजना का हाथ बताया जा रहा है. मार्च, 2023 में शुरू की गई इस योजना के तहत मध्य प्रदेश सरकार
राज्य की स्थायी निवासी महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन, उनकी सेहत और
पोषण में सुधार और परिवार में ज्यादा मजबूत स्थिति बना पाने में मदद करने के लिए
हर महीने 1,250 रुपये देती है.
यह रकम हर महीने की 10
तारीख तक दी जाती है. पहले इस योजना में 1,000 रुपये दिए
जाते थे, फिर इसे बढ़ाकर 1,250 रुपये या
15,000 रुपये सालाना कर दिया गया. कहा जा रहा
है कि यह रकम 3000 रुपये तक की जा सकती है. राज्य में कुल 5.6 करोड़ मतदाताओं में 2.72 करोड़ महिलाएं
हैं. लोकलुभावन योजनाएं देश के ज्यादातर राज्यों में शुरू हो गई हैं, पर केंद्र
में मोदी सरकार के आने के बाद से लागू हुई ऐसी ज्यादातर योजनाएं स्त्रियों को
लक्ष्य करके तैयार की गई हैं.
‘इंडिया’ के अंतर्विरोध
कांग्रेस और दूसरे विरोधी दलों ने ‘इंडिया’ नाम से जिस गठबंधन की
रूपरेखा तैयार की है, उसके अंतर्विरोध भी इस चुनाव में उजागर हो गए हैं. उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा, मेरी स्पष्ट राय है कि मध्य प्रदेश का चुनाव ‘इंडिया’ गठबंधन तहत
लड़ा जाना चाहिए था. अगर कुछ सीटें गठबंधन दलों के साथ साझा की जातीं तो कांग्रेस
का प्रदर्शन कहीं बेहतर होता. जेडीयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि चुनावों
में विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन गायब था. ऐसी बातें अभी और सुनाई पड़ेंगी.
असली सवाल विचारधारा
या नैरेटिव से जुड़े हैं. देश की सांस्कृतिक-पृष्ठभूमि का विश्लेषण करने में
कांग्रेस-दृष्टि में दोष हैं. दूसरी तरफ बीजेपी के राष्ट्रवाद
के राजनीतिक-दायरे में सैद्धांतिक-विस्तार की प्रचुर-संभावनाएं हैं. उसे मुस्लिम-विरोध
से जोड़ने में ही खराबी है, जो उसका अनिवार्य अंग नहीं है. पर उसकी विरोधी राजनीति
ने धार्मिक और जातीय-ध्रुवीकरण का सहारा लिया, जिसका लाभ मिलने के बजाय उन्हें
नुकसान हो रहा है.
मुसलमानों के बीच प्रगतिशील तबके को आगे लाने
या संकीर्ण बातों की आलोचना करने से कांग्रेस पार्टी बचती रही है. यह बात 1985 में
शाहबानो मामले में स्पष्ट हो गई थी. तेलंगाना में भ्रष्टाचार और निरंकुश शासन के
विरोध में खड़े होने के कारण उसे जीत मिली है, धार्मिक-ध्रुवीकरण के कारण नहीं.
राज्य में बीजेपी का संगठनात्मक आधार
अपेक्षाकृत नया और बिखरा हुआ है, इसलिए इस पहल का लाभ वह नहीं उठा पाई, पर उसे जो
जनादेश मिला है, उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है. बात केवल इतनी नहीं है कि मध्य
प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी की सरकारें बनने जा रही हैं, बल्कि यह भी है कि तेलंगाना
में उसने वोट प्रतिशत पहले की तुलना में दुगना और सीटों की संख्या आठ गुना बढ़ा ली
है. हिंदी भाषी राज्यों में उसने वोट प्रतिशत और सीटों दोनों लिहाज से जबर्दस्त
सफलता हासिल की है.
मुस्लिम महिलाएं
जिस समय चुनाव परिणाम आ रहे थे, भाजपा
राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद ज़फ़र इस्लाम ने एक समाचार एजेंसी से कहा कि मध्य प्रदेश
में मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में जबरदस्त वोट किया है. प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के लिए जो काम किया है, उसका
नतीजा अब सामने आ रहा है और मुस्लिम महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाजपा को वोट किया है.
इस बयान के पीछे अतिरंजना हो सकती है, पर
सच्चाई भी है. सच है कि बीजेपी भी मुसलमानों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रही है. उसने
इसके लिए महिलाओं की मदद ली है. वह बताना चाहती है कि बीजेपी के साथ बड़ी संख्या
में मुसलमान जुड़ेंगे, तब वे उनकी भावनाओं की तरफ ध्यान देना ज्यादा आसान होगा.
लोकसभा के पिछले दो चुनावों में भी बीजेपी को
राष्ट्रीय-स्तर पर मुसलमानों के बीच से करीब 9 फीसदी वोट मिले थे और अब पार्टी की
कोशिश है कि अगले साल यह प्रतिशत बढ़कर 16-17 प्रतिशत तक पहुँच जाए. पार्टी के
कार्यकर्ता देश के 65 ऐसे लोकसभा क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, जहाँ मुस्लिम
आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है.
‘शुक्रिया मोदी जी’
इस तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान है कि देश के 22
राज्यों में ‘शुक्रिया मोदी जी’ अभियान चल रहा है. अभियान के तहत
प्रत्येक जिले में अल्पसंख्यक मोर्चा की पांच-पांच महिलाओं की टीम बनाई गई है. यह टीम
हर मंडल में उन मुस्लिम महिलाओं को तलाश रही हैं, जो
मोदी सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना,
सौभाग्य योजना, आयुष्मान भारत योजना, इज्जत घर या अन्य योजना की लाभार्थी हैं.
इन योजनाओं सहित तीन तलाक खत्म करने और राजनीति
में महिलाओं को आरक्षण देने के निर्णय के लिए ‘शुक्रिया मोदी जी’ पत्र के साथ उन लाभार्थियों के नाम, हस्ताक्षर
और फोन नंबर भेजे जा रहे हैं. उन पत्रों का पूरा लेखा-जोखा तैयार करते हुए एक डेटा
भी तैयार होता जा रहा है. बेशक इसकी वजह से कोई बड़ी क्रांति नहीं हो, पर एक धीमे
बदलाव की शुरुआत हो चुकी है.
भाजपा की नजरें अल्पसंख्यक वर्ग के उन सभी सदस्यों
पर है, जो सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ ले रहे
हैं और जिनके जीवन में कुछ मुश्किलें कम हुई हैं. भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने
देशभर में मुस्लिम वर्ग के बीच 'मोदी मित्र' बनाना
शुरू किया. फिर सूफी संवाद शुरू किया और अब देश के 22
राज्यों में 'शुक्रिया मोदी जी' अभियान
चलाया जा रहा है.
'मोदी मित्र' अभियान
हाल में समाचार एजेंसी रायटर्स ने इस विषय पर
एक बड़ी रिपोर्ट जारी की, तो बहुत से लोगों का ध्यान इस तरफ गया कि 25,000 से
ज्यादा मुसलमान 'मोदी मित्र'
अभियान को सफल बनाने में जुटे हैं. इस साल अगस्त में नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी
के लोगों से कहा कि रक्षा बंधन के त्योहार के दौरान वे ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम
महिलाओं तक पहुँचें और उनसे राखी बँधवाएं. तीन तलाक पर पाबंदी लगाने के फैसले से
मुस्लिम महिलाओं में सुरक्षा की भावना बढ़ी है.
अपने संवाद-कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उन्होंने
कहा कि 4,000 से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं का ‘महरम’ के बिना हज करना एक ‘बड़ा
क्रांतिकारी बदलाव’ है. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार द्वारा हज नीति में किए गए
बदलावों की वजह से अब ज्यादा लोगों को हज पर जाने का मौका मिल रहा है.
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