अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 2024 के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर दिल्ली नहीं आएंगे. पहले यह बात केवल मीडिया रिपोर्टों के माध्यम से सुनाई पड़ी थी, पर अब आधिकारिक रूप से भी बता दिया गया है. यात्रा का इस तरह से रद्द होना, राजनयिक और राजनीतिक दोनों लिहाज से अटपटा है.
बाइडेन की यात्रा की बात औपचारिक रूप से घोषित भी
नहीं की गई थी, पर भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने गत 20 सितंबर को
उत्साह में आकर इस बात की जानकारी एक पत्रकार को दे दी थी. बहरहाल अब दोनों देशों के सूत्रों ने
इस बात की पुष्टि की है कि प्रस्तावित यात्रा नहीं होगी.
गणतंत्र की प्रतिष्ठा
गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनना भारत की ओर से
अतिथि को दिया गया बड़ा राजनयिक सम्मान है. भारत की राजनयिक गतिविधियों में
अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा को उच्चतम स्तर दिया जाता है. ऐसे कार्यक्रमों की
घोषणा तभी की जाती है, जब हर तरफ से आश्वस्ति हो, ताकि बाद में शर्मिंदगी न हो.
बताते हैं कि सितंबर में दिल्ली में जी-20
सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के बीच हुई बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने बाइडेन को
भारत-यात्रा की निमंत्रण दिया था. बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में इस
निमंत्रण की जानकारी नहीं थी, पर अमेरिकी राजदूत ने एक भारतीय पत्रकार को बता दिया
कि बाइडेन को गणतंत्र दिवस-2024 के लिए मुख्य
अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है.
रिश्ते बिगड़ेंगे नहीं
अमेरिका
के राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने अब कहा है कि जो बाइडेन अब भारत नहीं आ
सकेंगे, पर भारत के साथ रिश्तों को प्रगाढ़ करने में उनकी निजी दिलचस्पी बदस्तूर
बनी रहेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी व्यक्तिगत दोस्ती है, जो आने
वाले समय में भी जारी रहेगी.
यात्रा का रद्द होना उतनी बड़ी घटना नहीं है, जितनी उसके साथ जुड़ी दूसरी बातें हैं. भारत-अमेरिका संबंधों को प्रगाढ़ करने में भारत से ज्यादा अमेरिका की दिलचस्पी है. अमेरिका के दोनों राजनीतिक दल चीन के खिलाफ भारत को समर्थन देने के पक्षधर हैं, पर इस समय यात्रा रद्द होने के पीछे भी वहाँ की आंतरिक रस्साकशी की भूमिका है.
नकारात्मक असर
यात्रा की घोषणा नहीं हुई होती, तो रद्द होने का
नकारात्मक असर नहीं होता. अब इसके निहितार्थ दोनों देशों में दिखाई पड़ रहे हैं. यह
बात गणतंत्र दिवस समारोह से करीब छह हफ्ते पहले बताई गई है, इसलिए इससे जो राजनयिक
किरकिरी हुई है, चर्चा का विषय वह बनी है.
अमेरिका
की एक और संस्था भारत को मौके-बेमौके निशाना बनाती है. वह है अंतर्राष्ट्रीय
धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ). इस संस्था ने बाइडेन प्रशासन
से फिर से अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत को ‘विशेष
चिंता का देश’ के रूप में नामित करने का आह्वान किया है.
यूएससीआईआरएफ
के कमिश्नर स्टीफन श्नेक ने कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार
का कथित हाथ होने और अमेरिका में गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश को ‘बेहद
परेशान करने वाला’ मामला बताया है. यूएससीआईआरएफ ने कहा कि उसने 2020 से हर साल सिफारिश की
है कि विदेश विभाग भारत को विशेष चिंता का देश घोषित करे, जो
1998 के अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत एक अभिव्यंजना है.
पन्नू-निज्जर प्रसंग
दोनों देशों के बीच पन्नू-निज्जर प्रसंग को लेकर पहले
से ही बदमज़गी पैदा हो चुकी है. बाइडेन की यात्रा का रद्द होना पन्नू-मसले से जुड़ा
नहीं है, पर उसे जोड़ने के राजनीतिक प्रयास ज़रूर हुए हैं. और अब यह साफ है कि कनाडा
की तरह अमेरिका सरकार पर भी इसे लेकर आंतरिक-राजनीति का दबाव है.
पिछले
हफ्ते अमेरिका सरकार ने भारतीय मूल के पाँच अमेरिकी सांसदों को एक ‘क्लैसीफाइड
ब्रीफिंग’ में गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामले में अभियुक्त बनाए गए निखिल गुप्ता के
बारे में जानकारी दी. ये सांसद हैं अमी बेरा, प्रमिला जयपाल, रो खन्ना, राजा
कृष्णमूर्ति और श्री थानेदार जिन्होंने उसके बाद एक संयुक्त बयान भी जारी किया.
ब्रीफिंग
के बाद इन सांसदों ने अपने बयान में चेताया कि मामला नहीं सुलझा तो उसके गंभीर
नतीजे होंगे. ब्रीफिंग और सांसदों के बयानों से साफ है कि यह मामला राजनीतिक है,
राजनयिक नहीं.
निखिल गुप्ता
अब खबरें आ रही हैं कि चेकोस्लोवाकिया में
गिरफ्तार किए गए भारतीय कारोबारी निखिल गुप्ता के साथ बदसलूकी की गई है. निखिल गुप्ता ने
प्राग अधिकारियों पर बेहद गंभीर आरोप लगाया है. उन्होंने भारत के सुप्रीम कोर्ट
में याचिका दायर कर प्राग की जेल में सूअर और गाय का मांस दिए जाने का आरोप लगाया
है.
उन्होंने
यह भी कहा है कि गिरफ्तारी अवैध तरीके से की गई है. उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट
ने उन्हें चेक गणराज्य की अदालत से संपर्क करने के लिए कहा है. निखिल गुप्ता ने
वहाँ की हाईकोर्ट में अपील की है, उसके बाद उनके पास देश की सांविधानिक अदालत में
भी अपील करने का अधिकार है. बहरहाल ऐसी बातें भारत में अमेरिका-विरोधी जनमत तैयार
करती हैं.
पश्चिमी-पाखंड
भारत-अमेरिका
रिश्तों के साथ कुछ सैद्धांतिक बातें भी जुड़ी हैं. भारत ने 7 अक्तूबर के
हमास-हमले का विरोध किया, पर फलस्तीनियों के अधिकारों का समर्थन किया है. इस बात
पर ध्यान देने की जरूरत है कि हम आतंकवाद के किसी भी स्वरूप का विरोध करते हैं और
वैश्विक-स्तर पर इसके विरोध में भारत ने ही पहल की थी.
भारत
ने ही सबसे पहले 1996 में संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद
पर व्यापक संधि (कांप्रिहैंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म-सीसीआईटी) का
प्रस्ताव रखा था. बड़ी ताकतों का पाखंड आतंकवाद की परिभाषा को लेकर है. पिछले कई
साल से संयुक्त राष्ट्र में सीसीआईटी पर विमर्श चल रहा है, पर टेररिज्म की
परिभाषा पर सारा मामला अटक जाता है.
भारत का कहना है कि जब तक ऐसी संधि नहीं होगी, तब तक आतंकवाद
के विरुद्ध लड़ाई लड़ी नहीं जा सकेगी. हम साबित नहीं कर पाएंगे कि भारत के कश्मीर
या दूसरे इलाकों में चल रहे आतंकवाद का चरित्र क्या है. यही
स्थिति फलस्तीन की है.
कानूनी ढाँचा
संधि
का लक्ष्य आतंकवाद से निपटने के लिए एक कानूनी ढाँचा तैयार करना था, जो सभी प्रकार
के आतंकवाद को अपराध घोषित करे और आतंकवादियों और उनकी फंडिंग करने वालों को रोके.
आतंकियों और उनके सहयोगियों की धन, हथियारों और सुरक्षित ठिकानों तक पहुँच
को रोकना भी इस संधि का मकसद था.
अमेरिका
पर 9/11 के हमले के बाद
संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 1373 पास किया और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से
निपटने के लिए आतंकवाद-रोधी समिति (सीटीसी) बनाई. पिछले साल भारत ने सीटीसी की
दिल्ली तथा मुंबई में हुई बैठकों की मेजबानी की और 18-19 नवंबर, 2022 को ‘नो मनी
फॉर टेरर’ सम्मेलन के माध्यम से दुनिया का ध्यान आतंकवाद के खिलाफ ढीली पड़ती
वैश्विक मुहिम की तरफ खींचा.
उस
समय सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भारत के पास थी. जिसका लाभ उठाते हुए भारत ने 15-16
दिसंबर, 2022 को संरा सुरक्षा परिषद की एक विशेष ब्रीफिंग की मेजबानी भी की.
प्रस्ताव 1373 की बीसवीं वर्षगांठ के
मौके पर भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर ने 2020 में कहा था कि हमें दोहरे मानकों को
स्वीकार नहीं करना चाहिए. आतंकवादी केवल आतंकवादी होते हैं. वे अच्छे या बुरे नहीं
होते.
यह
बात पन्नू और निज्जर के मामले में महत्वपूर्ण है. सवाल है कि अमेरिका उन्हें
आतंकवादी मानता है या नहीं? पन्नू ने भारत पर हमले को लेकर तमाम
चेतावनियाँ दे रखी है। 26
जनवरी, 2021 को कुछ लोगों ने लालकिले पर आपत्तिजनक झंडा लहराने की कोशिश की थी, जो
उसके समर्थक बताए जाते हैं. क्या अमेरिका या कनाडा को इस बात की जानकारी नहीं है? या माना जाए कि
पन्नू, अमेरिका का एजेंट है?
क्वाड-सम्मेलन
जनवरी में बाइडेन की यात्रा के दौरान भारत क्वाड
देशों का एक शिखर सम्मेलन आयोजित करना चाहता था. इसके लिए ऑस्ट्रेलिया और जापान के
प्रधानमंत्री भी दिल्ली आते. बाइडेन की यात्रा टलने का मतलब है कि क्वाड-सम्मेलन
अभी नहीं होगा.
फरवरी-मार्च के बाद भारत में लोकसभा चुनाव की
गतिविधियाँ शुरू हो जाएंगी, इसलिए वह सम्मेलन अब चुनाव के बाद मई-जून के पहले संभव
नहीं होगा. उसके बाद अमेरिका में चुनाव की गतिविधियाँ शुरू हो जाएंगी.
भारत की दृष्टि से दिक्कत यह भी है कि इतनी छोटी
अवधि में गणतंत्र दिवस के लिए किसी नए मेहमान की व्यवस्था करना आसान नहीं है.
खासतौर से यह देखते हुए कि जिसे भी बुलाएंगे, उसे लगेगा कि मुझे दोयम दर्जे का
मानकर बुलाया गया है.
अमेरिकी राजनीति
पर्यवेक्षकों का अनुमान है कि बाइडेन की यात्रा
में रुकावट के पीछे सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के आंतरिक-मतभेदों का हाथ है.
बाइडेन और मोदी के प्रगाढ़ रिश्तों के निहितार्थ को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं
और समर्थकों का एक वर्ग नाखुश है.
उनका समर्थक वर्ग इसे पचा नहीं पा रहा है. 2024
में राष्ट्रपति पद के चुनाव हैं और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बड़े वेग से
अपनी वापसी के प्रयास कर रहे हैं. डेमोक्रेटिक
पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों को लगता है कि ट्रंप के आक्रामक अंदाज़ का सामना करना
बाइडेन के लिए मुश्किल होता जाएगा.
पश्चिम एशिया के विकट हालात और यूक्रेन की लड़ाई
दोनों में उनकी नीतियों को लेकर पहले ही सवाल पूछे जा रहे हैं. भारत ने यूक्रेन पर
रूस के हमले की निंदा नहीं की और रूस पर आर्थिक पाबंदियों के बावजूद उससे खनिज तेल
खरीदा. इन कारणों से अमेरिका में भारत की आलोचना भी की गई है. बावजूद इसके बाइडेन
प्रशासन ने भारतीय प्रधानमंत्री को इस साल जून में अमेरिका की राजकीय यात्रा पर
बुलाया. इसे लेकर भी बाइडेन की आलोचना हुई है.
बहरहाल अब पार्टी में घबराहट है कि बाइडेन को
इसका राजनीतिक नुकसान न हो जाए. यों डेमोक्रेटिक पार्टी को यह भी समझ में आता है
कि नरेंद्र मोदी के पीछे जनता का समर्थन है और कम से कम अगले चुनाव में भी उनकी ही
सरकार भारत में जीतकर आएगी.
मोदी का सीधे विरोध करने से डेमोक्रेटिक पार्टी बच
भी रही है, पर आंतरिक राजनीति के दबाव में वह मान रही है कि बाइडेन की भारत-यात्रा
नुकसानदेह होगी, इसलिए उसे टाल देना ही बेहतर है.
सुन्दर विश्लेषण
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