Wednesday, December 6, 2023

महुआ मोइत्रा और राजनीतिक नैतिकता से जुड़े सवाल

यह लेख 18 नवंबर को लिखा गया था। मासिक-पत्रिका में प्रकाशित यह लेख 18 नवंबर को लिखा गया था। मासिक-पत्रिका में प्रकाशित होने के कारण अक्सर समय के साथ विषय का मेल ठीक से हो नहीं पाता है। बहरहाल अब संसद ने महुआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म करने का फैसला कर लिया है। इस लेख में इतना जोड़ लें, विषय से जुड़े संदर्भ बहुत पुराने नहीं हुए हैं।

महात्मा गांधी ने जिन सात पापों से बचने की सलाह दी, वे हैं-सिद्धांतों के बिना राजनीति, नैतिकता के बिना व्यापार, चरित्र के बिना शिक्षा, काम के बिना धन, विवेक के बिना खुशी, मानवता के बिना विज्ञान और बलिदान के बिना पूजा। अपने आसपास देखें, तो आप पाएंगे कि हम इन सातों पापों के साथ जी रहे हैं। पिछले कुछ समय का राजनीतिक घटनाक्रम इस बात की पुष्टि करता है।

दो पक्षों के वाग्युद्ध के शुरू हुआ महुआ मोइत्रा प्रकरण अब जटिल सांविधानिक-प्रक्रिया की शक्ल ले ल रहा है। लोकसभा की आचार समिति (एथिक्स कमेटी) ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा पर कैश लेकर सवाल पूछने से जुड़े बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के लगाए आरोपों की जाँच पूरी कर ली है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कमेटी ने महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्कासित करने की सिफ़ारिश की है। इस रिपोर्ट के मसौदे में बीएसपी सांसद दानिश अली को लोकसभा के नियम 275 के उल्लंघन पर फटकार लगाने की सिफारिश भी है।

इस रिपोर्ट में अली समेत विपक्ष के उन सांसदों का भी ज़िक्र है, जिन्होंने कमेटी की बैठक के दौरान चेयरमैन विनोद कुमार सोनकर के पूछे गए सवालों पर आपत्ति जताई थी। मोइत्रा और विपक्ष के पाँच सांसद-दानिश अली, कांग्रेस के उत्तम कुमार रेड्डी और वी वैथीलिंगम, सीपीएम सांसद पीआर नटराजन और जेडीयू के गिरिधारी यादव 2 नवंबर को हुई बैठक को छोड़कर चले गए थे।

संसदीय प्रक्रिया के अलावा यह मामला आपराधिक-जाँच के दायरे में भी आ रहा है। निशिकांत दुबे ने मीडिया को जानकारी दी है कि उन्होंने मोइत्रा के ख़िलाफ़ लोकपाल के पास शिकायत भेजी थी, जिसे लोकपाल ने जाँच के लिए सीबीआई के पास भेज दिया है। अब एक तरफ यह मामला लोकसभा के भीतर है और वहीं बाहर भी है।

लॉगिन पासवर्ड

यह साबित हो जाए कि किसी सांसद ने पैसे लेकर सवाल पूछे हैं, तो यह एक गंभीर मामला है। देखना होगा कि इस मामले में साबित क्या हुआ है या होने वाला है। किसी को लॉगिन पासवर्ड देने का मामला इससे पहले कभी आया नहीं है और न इस सिलसिले में कोई नियम है। इसलिए यह विषय थोड़ा पेचीदा है। आचार समिति के अलावा यह विशेषाधिकार समिति की जाँच का विषय भी बनता है। उसके बाद सदन सदस्यता को बर्खास्त भी कर सकता है। सदस्य को लगे कि उसके साथ न्याय नहीं हुआ है, तो वह अदालत की शरण भी ले सकता है। देखना होगा कि यह मामला किस दिशा में जाता है।

इस रिपोर्ट के आने के बाद एडवोकेट जय अनंत देहाद्राई ने दावा किया है कि महुआ के पास से दो करोड़ रुपये मिलेंगे, पर फर्नीचर और रोलेक्स नहीं मिलेंगी। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा है कि 'जब याददाश्त वापस लौटेगी तो दो करोड़ रुपये मिल जाएंगे, पर रोलेक्स और फर्नीचर नहीं मिलेगा। जय की शिकायत के अनुसार, महुआ ने कारोबारी दर्शन हीरानंदानी को संसद की वेबसाइट का एक्सेस देने के बदले दो करोड़ रुपये लिए। उन्होंने यह भी लिखा है कि पहले यह समझाना चाहिए कि 'सवाल' कैसे मिस्ट्री 'टाइपिस्‍ट' को भेजे गए। टेलीपैथी से? सवाल दुबई में 'बनाए' गए। नरेंद्र मोदी के खिलाफ भाषण कैनिंग लेन में तैयार हुए।

पृष्ठभूमि

महुआ मोइत्रा और निशिकांत दुबे के बीच मौखिक-टकराव काफी समय से चल रहा है, पर इस प्रकरण में एक मोड़ 14 अक्तूबर को आया, जब सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्राई ने सीबीआई में इस आशय की एक एफआईआर दर्ज कराई कि महुआ मोइत्रा ने दुबई के कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से घूस ली है। इसके बाद बीजेपी के लोकसभा सदस्य निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष के पास शिकायत दर्ज कराते हुए माँग की कि महुआ मोइत्रा की सदस्यता को निलंबित किया जाए। इसके बाद सोशल मीडिया की साइट एक्स पर दोनों पक्षों के बीच शाब्दिक-संग्राम चला।

इस बीच लोकसभा अध्यक्ष ने इस मामले को आचार समिति के पास भेज दिया। दूसरी तरफ कारोबारी दर्शन हीरानंदानी के एक हलफनामे की जानकारी सोशल मीडिया पर लीक हुई। इसमें हीरानंदानी ने इस बात को स्वीकार किया कि महुआ मोइत्रा ने उन्हें लॉगिन पासवर्ड दिए थे, ताकि वे ऐसे सवाल अपलोड कर सकें, जिन्हें महुआ मोइत्रा सदन में पूछ सकें। बदले में उन्हें महंगे तोहफे दिए गए। यह हलफनामा बाद में आचार समिति के पास भेज दिया गया। देहाद्राई और निशिकांत दुबे 26 अक्तूबर को और महुआ मोइत्रा 2 नवंबर को आचार समिति के सामने पेश हुए।

महुआ का आरोप

समिति की पूछताछ के दौरान महुआ मोइत्रा पूछताछ कक्ष से बाहर निकल कर आईं और उन्होंने कहा, मुझसे अपमानजनक सवाल पूछे जा रहे थे। उन्होंने इसे वस्त्रहरण की संज्ञा दी। इसके एक सप्ताह बाद खबर आई कि समिति ने उनके खिलाफ कारवाई करने की संस्तुति कर दी है। समिति में इस विषय पर मतदान भी हुआ, जिसमें 4 के मुकाबले 6 वोट से फैसला हुआ। इस सिलसिले में महुआ मोइत्रा के पक्ष की ओर से जो बातें कही जा रही हैं, वे इस प्रकार हैं:

·      महुआ मोइत्रा के विरुद्ध कार्रवाई किस आरोप में की जाए? क्या इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने सवाल पूछने के लिए नकद धनराशि ली थी? क्या इसकी पुष्टि के लिए बैंक-रिकॉर्ड उपलब्ध हैं? या किसी प्रकार के दूसरे प्रमाण हैं? आचार समिति की सलाह यह क्यों है कि पहले महुआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म की जाए और फिर मनी-ट्रेल (यदि कोई है) की तलाश की जाए?

·      बार-बार राष्ट्रीय-सुरक्षा का नाम लिया जाता है। लोकसभा के पोर्टल में विदेश से लॉग इन करना अपराध नहीं है। यदि यह वास्तव में अपराध है, तो नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) विदेशी लॉग इन या आईपी एड्रेस की एक्सेस रोक सकता है। यों भी इस पोर्टल को अनिवार्य वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) के बगैर एक्सेस नहीं किया जा सकता। यह ओटीपी संसद सदस्य के फोन पर ही आएगा। ऐसे में यह राष्ट्रीय-सुरक्षा के लिए खतरा क्यों?

·      आचार समिति ने दर्शन हीरानंदानी से पूछताछ करने की जरूरत नहीं समझी। उनपर महुआ को गिफ्ट देने का आरोप है, और उन्होंने अपने हलफनामे में इस बात को स्वीकार किया है। उनकी कंपनी ने शुरू में लोकसभा पोर्टल की अवैध एक्सेस के सभी आरोपों को गलत बताया था।

·      महुआ ने कमेटी के फैसले को 'कंगारू कोर्ट' का फैसला करार दिया है। उनका कहना है कि मैं अगली लोकसभा में और बड़े अंतर से जीत दर्ज करके लौटूँगी। उन्होंने दो करोड़ रुपये वाली बात को 'काल्पनिक' करार दिया। संसद की वैबसाइट का लॉगिन आईडी पासवर्ड  देने के बारे में महुआ का कहना है कि उन्होंने हीरानंदानी से वह शेयर किया था, ताकि उनका स्टाफ सांसद के सवाल टाइप कर सके।

·      आचार समिति में विरोधी दलों के सांसदों ने इस बात की ओर इशारा भी किया है कि लॉगिन पासवर्ड को लेकर कोई नियम नहीं है। हम सभी सहायकों, रिश्तेदारों या मित्रों की मदद से सवालों को अपलोड करते हैं। इस प्रकार दोनों सदनों के करीब 800 सदस्यों के लॉगिन पासवर्ड करीब तीन हजार लोगों के पास रहते हैं। महुआ मोइत्रा का कहना है कि वे अपने सवालों को टिप करने के लिए हीरानंदानी के कार्यालय की मदद लेती थीं। उसका ओटीपी उनके फोन/लैपटॉप या आईपैड पर आता था। इसलिए ऐसा संभव ही नहीं था कि कोई सवाल उनकी अनुमति के बगैर चला जाए। 

·      महुआ समर्थकों का यह भी कहना है कि आचार समिति ने जितनी तेजी से फैसला किया है, वह भी अभूतपूर्व है। यह न्याय नहीं, अन्याय है।

·      अपनी असहमति की टिप्पणी में बसपा के दानिश अली, कांग्रेस के वी वैथीलिंगम और उत्तम कुमार रेड्डी, सीपीएम के पीआर नटराजन और जेडीयू के गिरिधारी लाल यादव ने कहा है कि महुआ को इस बात का मौका नहीं दिया गया कि वे दर्शन हीरानंदानी से सवाल करतीं। एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में महुआ मोइत्रा ने स्वीकार किया है कि उन्होंने संसद के लॉग इन पासवर्ड हीरानंदानी को दिए थे, पर उन्होंने इस बात से इनकार किया कि बदले में उन्होंने धनराशि ली, जैसाकि जय अनंत देहाद्राई ने सीबीआई से की गई अपनी शिकायत में कहा है।

तृणमूल की चुप्पी

महुआ की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इस प्रकरण पर काफी समय तक चुप्पी साधकर रखी, पर बाद में वह कुछ देर से महुआ के समर्थन में उतरी। उसके पहले पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने एकबार इतना जरूर कहा था कि मेरे विचार से महुआ अपनी लड़ाई खुद लड़ने में समर्थ हैं। उन्होंने आचार समिति के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था, अगर उनके पास कोई सबूत नहीं है, तो वह निष्कासन की सिफारिश कैसे कर सकते हैं? यह प्रतिशोध की राजनीति के अलावा कुछ और नहीं है।

बहरहाल लगता है कि अब पार्टी ने इसे राजनीतिक-मसला बनाकर लड़ने का फैसला किया है। उद्योगपति अडाणी के खिलाफ महुआ आवाज़ उठाती रही हैं। राहुल गांधी और उनकी पार्टी भी इस प्रकरण को उठाते रहे हैं। लगता है कि उच्च स्तर पर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच इस मामले को लेकर सहमति बनी है। तृणमूल की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने महुआ मोइत्रा को गत 13 नवंबर को कृष्णानगर (नदिया उत्तर) का अध्यक्ष नियुक्त करके अपने बदले दृष्टिकोण का परिचय दिया है।

महुआ मोइत्रा ने जिला अध्यक्ष बनाए जाने लेकर ममता बनर्जी का धन्यवाद किया। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, 'मुझे कृष्णानगर जिले का प्रेसीडेंट नियुक्त करने पर ममता बनर्जी और टीएमसी का थैंक्यू। कृष्णानगर के लोगों के लिए पार्टी के साथ हमेशा काम करूंगी।' टीएमसी ने संगठन में यह फेरबदल ऐसे समय में किया है जब अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी तैयारी में जुटी है। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि लोकसभा अध्यक्ष किस दिशा में कदम उठाएंगे। यह स्पष्ट है कि विरोधी दल इसे राजनीतिक प्रश्न बनाएंगे।

संसदीय कदाचार

देश की पहला संविधान संशोधन जिस संसद ने किया वह उस तरह से चुनी नहीं गई थी जैसी लोकसभा है। पहली लोकसभा 17 अप्रेल 1952 में बनी थी, पर पहला संविधान संशोधन 1951 में ही हो गया था। संविधान सभा को अस्थायी संसद का रूप दे दिया गया था। उसी संसद में राजनीतिक कदाचार का पहला मामला सामने आया था। सदन के सदस्य एचजी मुदगल की सदस्यता समाप्त की गई थी। एचजी मुदगल को बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन से पैसे और गिफ्ट लेकर सवाल पूछने के मामले में अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी। उन्होंने बुलियन एसोसिएशन के पक्ष में माहौल बनाने के लिए संसद में सवाल पूछे थे, जिसके एवज में उन्हें पाँच हजार रुपये और गिफ्ट मिले थे। संसदीय समिति ने जाँच करके रिपोर्ट तैयार की, जिसके बाद संसद में वोटिंग हुई और एचजी मुदगल को इस्तीफा देना पड़ा। जांच समिति के प्रमुख थे टीटी कृष्णमाचारी और अन्य सदस्य थे प्रोफेसर केटी शाह, सैयद नौशेरअली, जी दुर्गाबाई और काशीनाथराव वैद्य। इसके अलावा अटॉर्नी जनरल से समिति की सहायता करने का अनुरोध किया गया। सदन ने 8 जून 1951 को समिति का गठन किया। इसकी रिपोर्ट अगस्त में पेश की गई।

जाँच के दौरान समिति के सामने कुछ रोचक बातें आईं। एचजी मुदगल ने लगभग 200 व्यावसायिक फर्मों को एक परिपत्र के माध्यम से व्यापारिक समुदाय के निपटान में अपनी सेवाएं देने का दावा किया था। उनके परिपत्र का शीर्षक था संसद में आपका प्रवक्ता-एचजी मुदगल। समिति के सामने मुदगल के वकील ने तर्क दिया कि अपने मतदाताओं से संपर्क करने में कुछ भी गलत नहीं है। बहरहाल उनके तर्कों को स्वीकार नहीं किया गया।

इस्तीफे के बावजूद बर्खास्त

सदस्यता खत्म करने के प्रस्ताव पर संसद में बहस हुई, जिसमें एचजी मुदगल ने भी शिरकत की। प्रस्ताव पर मतदान से पहले 24 सितंबर को मुदगल ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन सदन ने फैसला किया कि वह निष्कासन के पात्र हैं और उनके इस्तीफे की शर्तों ने सदन की अवमानना ​​की, जिससे उनका अपराध और बढ़ गया। मुदगल को जब निष्कासित किया गया तब जवाहर लाल नेहरू, डॉ आंबेडकर और संविधान सभा के ज्यादातर दिग्गज उपस्थित थे, क्योंकि वह सदन संविधान सभा से ही बना था।

मुदगल देश के पहले नेता थे, जिन्हें पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में इस्तीफा देना पड़ा था। तबसे सत्ता और नैतिकता का द्वंद राजनीतिक क्षितिज पर चल रहा है। भ्रष्टाचार और उसे समाप्त करने पर चर्चा पिछले 77 साल से चली आ रही है। एचजी मुदगल के प्रसंग के बाद देश की संसदीय राजनीति में कदाचार को लेकर कई तरह के मामले आए। सबसे ज्यादा प्रसंग अराजकता और अनुशासनहीनता से जुड़े हैं। इनमें आमतौर से सदस्यता को कुछ समय के लिए निलंबित किया जाता है।

लोकसभा के विशेषाधिकार हनन और अवमानना ​​के आरोप में इंदिरा गांधी को भी 19 दिसंबर 1978 को लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था। जब वे फिर से प्रधान मंत्री बनीं, तो लोकसभा ने 7 मई, 1981 को एक नया प्रस्ताव पास किया, जिसमें इस घोषणा के साथ अपने पहले के फैसले को रद्द कर दिया गया कि 19 दिसंबर, 1978 की कार्यवाही संसदीय विशेषाधिकारों के कानून में एक मिसाल नहीं बनेगी। इसके पहले सुब्रमण्यम स्वामी को 15 नवंबर, 1976 को राज्यसभा से निष्कासित कर दिया गया था, सुरेश सेठ को सितंबर, 1978 में मध्य प्रदेश विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया था और एक अन्य विधायक को अगस्त, 1964 में महाराष्ट्र विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया था। ऐसे ही हाल में राहुल गांधी की सदस्यता खत्म की गई थी, जो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद सदस्यता वापस उन्हें प्राप्त हो गई।

11 सांसदों की बर्खास्तगी

पैसे लेकर सवाल पूछने का सबसे बड़ा मामला 2005 में सामने आया। उसमें 11 सांसदों को पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी। एक मीडिया संस्थान ने सत्तापक्ष और विपक्ष के सांसदों का स्टिंग आपरेशन किया था। 11 सांसदों को संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेते हुए दिखाया गया था। इसकी जाँच के लिए एक विशेष समिति लोकसभा में गठित हुई थी। जिन 11 सांसदों की सदस्यता गई थी, उसमें 10 लोकसभा और एक राज्यसभा सदस्य थे। जांच कर रही पवन बंसल समिति ने 11 सदस्यों को निष्कासित करने की सिफारिश की थी। बर्खास्त सांसदों ने अपने निष्कासन के मामले को लेकर अदालत में अर्जी लगाई, लेकिन उन्हें सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने 2007 में एक फैसले ने सांसदों को निष्कासित करने के संसद के फैसले को बरकरार रखा।

इसके बाद 2016 में उद्योगपति विजय माल्या की राज्यसभा से सदस्यता खत्म की गई। हालांकि उसके पहले माल्या ने इस्तीफा दे दिया था, पर राज्यसभा की एथिक्स कमेटी ने उनकी सदस्यता रद्द करने का सुझाव दिया था, लिहाजा राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने माल्या का इस्तीफा नामंजूर कर दिया। माल्या ने एथिक्स कमेटी की बैठक से एक दिन पहले ही हामिद अंसारी को अपना त्यागपत्र भेजा था। एथिक्स कमेटी ने 25 अप्रैल की अपनी बैठक में आमराय से फैसला किया कि माल्या को अब सदन का सदस्य नहीं रहना चाहिए और फिर 3 मई की बैठक में उन्हें निष्कासित करने की सिफारिश कर दी। संभवतः विजय माल्या को इसकी भनक लग गई और उन्होंने पहले ही अपना इस्तीफा भेज दिया। विजय माल्या ऐसे 15वें सांसद थे, जिन्हें कदाचार  के कारण बर्खास्त किया गया।

 

BOX

कौन हैं महुआ मोइत्रा?

महुआ मोइत्रा पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर से 17 वीं लोकसभा में सदस्य हैं। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के कल्याण चौबे को 60 हजार वोटों से हराया। इसके पहले उन्होंने 2016 से 2019 तक करीमपुर का प्रतिनिधित्व करते हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। वे तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में भी कार्य कर चुकी हैं। राजनीति में आने से पहले वे निवेश बैंकर थीं। उनका जन्म असम में हुआ था, पर स्कूली शिक्षा कोलकाता में हुई। उसके बाद उन्होंने माउंट होलीक कॉलेज, साउथ हेडली, मैसाच्युसेट्स, अमेरिका से अर्थशास्त्र और गणित में ग्रेजुएशन किया। उनका शुरुआती जीवन असम और कोलकाता में बीता, लेकिन 15 साल की उम्र में वे अपने परिवार के साथ अमेरिका शिफ्ट हो गईं| अर्थशास्त्र की पढ़ाई के बाद उन्होंने न्यूयॉर्क में बैंकर की नौकरी शुरू कर दी | उन्होंने न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज़ के लिए निवेश बैंकर के रूप में काम किया।

यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने राजनीति में प्रवेश का निश्चय क्यों किया, पर इतनी जानकारी है कि 2009 में उन्होंने लंदन में जेपी मॉर्गन चेज़ में वाइस प्रेसीडेंट का अपना पद छोड़ दिया। यह भी समझ में आता है कि उनकी दिलचस्पी राष्ट्रीय-राजनीति में थी। सांसद बनने के पहले ही वे राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर हो रही बहसों में नज़र आने लगी थीं। इन बहसों में उनके अंदाज़ को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि उनकी महत्वाकांक्षाएं बड़ी है।

राजनीति में उन्होंने शुरुआत कांग्रेस से की। वे भारतीय युवा कांग्रेस में शामिल हो गईं, जहाँ वे आम आदमी का सिपाही परियोजना में राहुल गांधी के विश्वस्त कार्यकर्ताओं में से एक थीं|  कांग्रेस में वे ज्यादा समय नहीं रुकीं और 2010 में,  तृणमूल कांग्रेस पार्टी में चली गईं। 2016 में हुए विधान सभा चुनावों में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र से वे चुनी गईं। फिर 2019 आम चुनावों में कृष्णानगर से 17वीं लोकसभा के लिए संसद सदस्य के रूप में चुनी गईं।

 

BOX

लोकसभा की आचार समिति

वर्ष 1996 में दिल्ली में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में पहली बार दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के लिए आचार समिति गठित करने का विचार सामने आया। तत्कालीन उपराष्ट्रपति (और राज्यसभा के सभापति) केआर नारायणन ने सदस्यों के नैतिक और नीतिपरक आचरण की निगरानी करने एवं इससे संदर्भित कदाचार के मामलों की जाँच करने के लिए 4 मार्च, 1997 को राज्यसभा की आचार समिति का गठन किया।

लोकसभा के मामले में वर्ष 1997 में सदन की विशेषाधिकार समिति के एक अध्ययन समूह ने एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की, लेकिन इसे लोकसभा द्वारा अंगीकृत नहीं किया जा सका। 13वीं लोकसभा के दौरान विशेषाधिकार समिति ने अंततः एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की। दिवंगत अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी ने वर्ष 2000 में एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया, जो वर्ष 2015 में सदन का स्थायी हिस्सा बन गई।

शिकायतों की प्रक्रिया: कोई भी व्यक्ति किसी सदस्य के विरुद्ध किसी अन्य लोकसभा सांसद के माध्यम से कथित कदाचार के साक्ष्यों और एक हलफनामे के साथ शिकायत कर सकता है, जिसमें कहा गया हो कि शिकायत झूठी, तुच्छ या परेशान करने वाली नहीं है। यदि सदस्य स्वयं शिकायत करता है तो शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं होती है। अध्यक्ष किसी सांसद के विरुद्ध कोई भी शिकायत समिति को भेज सकते हैं। समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है, जो सदन से विचार विमर्श करते हैं कि क्या रिपोर्ट पर विचार किया जाना चाहिए।

आचार समिति और विशेषाधिकार समिति का कार्य प्रायः ओवरलैप होता है। किसी सांसद के विरुद्ध भ्रष्टाचार का आरोप किसी भी निकाय को भेजा जा सकता है, लेकिन आमतौर पर अधिक गंभीर आरोप विशेषाधिकार समिति के पास जाते हैं। विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिए एक सांसद की जाँच की जा सकती है; किसी गैर-सांसद व्यक्ति पर भी सदन के अधिकार और गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले कार्यों के लिए विशेषाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया जा सकता है। आचार समिति कदाचार के उन मामलों पर विचार करती है, जिनमें सांसद शामिल हों।

भारत वार्ता में प्रकाशित

No comments:

Post a Comment