ओमिक्रॉन-संक्रमण जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए किसी एक संख्या पर उँगली रखना मुश्किल है। कई राज्यों ने आंशिक लॉकडाउन शुरू कर दिया है। दिल्ली में स्कूल, कॉलेज, जिम, सिनेमा हॉल बंद हैं। मेट्रो-बसों में यात्रियों की संख्या सीमित की गई है। रात 10 से सुबह 5 बजे तक नाइट कर्फ्यू है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने रविवार को राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ ऑनलाइन बैठक की और नए निर्देश जारी किए हैं।
भारत में ओमिक्रॉन का पहला मरीज दक्षिण अफ्रीका से आया था। इसके कुछ दिन बाद वह दुबई चला गया। इसके बाद यह बात चर्चा का विषय बनी कि जब दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर कई देश रोक लगा चुके हैं तो भारत इसे क्यों नहीं रोक रहा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अलावा मुंबई और तेलंगाना समेत कई राज्यों ने जोखिम वाले देशों से यात्रा बंद करने की मांग की। पश्चिम बंगाल सरकार ने ब्रिटेन से कोलकाता आने वाली उड़ानों को निलंबित करने का फैसला किया है।
आए भी वो, गए भी वो
ओमिक्रॉन के मामले में केवल एक बात संतोषजनक
है। माना जा रहा है कि इसका असर गंभीर नहीं है। यह केवल नाक और गले पर असरकारी है,
फेफड़ों तक इसका असर नहीं है। बहरहाल यह भारत में आ चुका है और दुआ
करनी चाहिए कि जल्द से जल्द इसका पीक हो और उसके बाद संक्रमण कम होने लगे।
नवंबर में ओमिक्रोन का पहला मामला दक्षिण
अफ्रीका में सामने आया था। वहाँ तेजी से
इसका संक्रमण हुआ और 17 दिसंबर को 23,400 नए मामलों के साथ उसका पीक हुआ और अब
उतनी ही तेजी से संक्रमण कम होते जा रहे हैं। वहाँ लॉकडाउन की जरूरत नहीं समझी गई।
भारत में कोरोना के दूसरी लहर के सही पूर्वानुमान के लिए प्रसिद्ध आईआईटी कानपुर
के मणीन्द्र अग्रवाल ने अपने एक ट्वीट में लिखा है कि दक्षिण अफ्रीका की जनसंख्या
छह करोड़ है। वहाँ की 25 फीसदी आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है। बूस्टर लगभग
नहीं है। भारत और दक्षिण अफ्रीका में कुछ समानताएं हैं।
भारत में टीकाकरण दक्षिण अफ्रीका से ज्यादा है
और पिछले दौर में बीमार हुए लोगों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। सेरो सर्वे बता
रहे हैं कि भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की जो आधिकारिक संख्या सामने आई है,
उसकी तुलना में वास्तविक संख्या बहुत ज्यादा है। इस वजह से लोगों के
शरीर में इम्यूनिटी बेहतर है। यूरोप में वैक्सीनेशन ज्यादा है, पर काफी बड़ी जनसंख्या कोरोना से बची रही है। उनके शरीरों में
इम्युनिटी कम है। दूसरी तरफ पिछली लहर के मुकाबले भारत की स्वास्थ्य सुविधाएं अब
बेहतर स्थिति में हैं, इसलिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि
ओमिक्रॉन का पीक जल्दी आएगा और जल्दी उतर जाएगा।
पैंडेमिक जाएगा, एंडेमिक रहेगा
कोरोना वायरस अब दुनिया में हमेशा रहेगा,
पैंडेमिक नहीं एंडेमिक बनकर। सामान्य फ्लू की तरह। पिछले दो वर्षों
में दुनिया ने इस वायरस का अच्छी तरह अध्ययन कर लिया है। दिसंबर 2019 में जब इसका
हमला हुआ था, तब हम जानते भी नहीं थे कि इससे लड़ा किस तरह
जाए। जब यह हमारे बीच आ गया, तब ज्यादातर देशों ने लॉकडाउन के बारे
में सोचा। लॉकडाउन किया, तो उसके दुष्परिणामों पर विचार नहीं
किया।
तब हम मास्क, हाथ
धोने और सोशल डिस्टेंसिंग के महत्व को नहीं समझते थे। आज बेहतर समझते हैं। इस
दौरान यह बात भी समझ में आई कि लम्बे समय तक आने-जाने पर पाबंदियाँ लगाने से भी
कुछ नहीं होगा, बल्कि वे नुकसानदेह होंगी। भारत जैसे
देश में जहाँ आंतरिक प्रवास बहुत ज्यादा है, लम्बे समय तक पाबंदियों की भारी कीमत
अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ी। लोग बाहर जाकर फँस जाते हैं। वापसी की भारी कीमत
चुकानी पड़ती है। भावनात्मक रूप से वे टूट जाते हैं। यही बात अंतरराष्ट्रीय-प्रवास
पर लागू होती है।
सीमित पाबंदियाँ
बेशक छोटी अवधि के लिए पाबंदियाँ उपयोगी होती
हैं। थोड़े से मामले हों और आपके पास टेस्ट और ट्रेस करने की सुगठित व्यवस्था हो,
तो रोकने में सफल हो जाएंगे। पर अब ओमिक्रॉन के मामले में उससे भी
कोई लाभ नहीं। वह तो आ ही गया है, अब आप पाबंदियों से किसे रोकेंगे?
फ्रांस ने गत 16 दिसंबर को जब ब्रिटेन से गैर-जरूरी यात्रा पर
प्रतिबंध लगाया, उस समय वहाँ हर रोज़ औसतन 50,000 नए
केस आ रहे थे। वायरस की गति बहुत तेज है। यात्रा से जुड़ी पाबंदियों में भी छिद्र
होते हैं। किसी न किसी रूप में वायरस सीमा पार कर लेता है।
इस साल नवंबर में जब दक्षिण अफ्रीका ने
ओमिक्रॉन की जानकारी दी, तब भी कई देशों ने दक्षिण अफ्रीका से
उड़ानों को रोका। जापान और इसराइल ने तो हर तरह के विदेशियों के आने पर रोक लगा
दी। सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड अपने द्वार खोल
रहे थे, जिन्हें उन्होंने फिर से बंद कर दिया। यूरोप की निर्बाध-सीमाओं पर
प्रतिबंध लगने लगे, पर हुआ क्या? ओमिक्रॉन
100 से ऊपर देशों में प्रवेश कर गया।
फ्लाइट ट्रैकर फ़्लाइटअवेयर के अनुसार, ओमिक्रॉन का असर दुनियाभर की एयरलाइंस पर पड़ा है। हजारों उड़ानों
में या तो देरी आई है या रद्द हुई हैं। क्रू-सदस्यों के संक्रमित होने के कारण भी
उड़ानें रद्द की गई हैं। बावजूद इसके वैश्विक-परिवहन जारी है। अमेरिका ने दक्षिण
अफ्रीका और कुछ अन्य देशों से आने वाली उड़ानों पर शुरू में प्रतिबंध लगाए थे,
पर वे 31 दिसंबर से हटा लिए गए। ओमिक्रॉन के प्रस्थान-बिन्दु दक्षिण
अफ्रीका ने तो दो साल से चले आ रहे रात्रि-कर्फ्यू को भी हटा लिया है। क्या यह
विसंगति है? नहीं, उन्हें समझ में आ गया कि अब इससे कुछ
होने वाला नहीं।
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