Sunday, January 2, 2022

उम्मीदों पर हावी असमंजस


नए साल की शुरुआत वैष्णो देवी परिसर में हुई दुखद दुर्घटना के साथ हुई है। कुछ समय पहले लगता था कि 2022 का साल संभावनाओं और समाधानों को लेकर आएगा, पर आज यह कोहरे में लिपटी धूप जैसा है। खट्टा-मीठा या गुनगुना सा एहसास है। शुरुआत एक नए वैश्विक-असमंजस के साथ हुई है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हैल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन (आईएचएमई) का अनुमान है कि अगले दो महीने में कोविड-19 के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों की संख्या तीन अरब के ऊपर पहुँच जाएगी। तीन अरब यानी दुनिया की आधी आबादी से कुछ कम। यह संख्या पिछले दो साल में संक्रमित लोगों की कुल-संख्या से कई-कई गुना ज्यादा है।

तीन चुनौतियाँ

भारत के सामने इस साल तीन बड़ी चुनौतियाँ हैं। ओमिक्रॉन, अर्थव्यवस्था और चुनाव। महामारी का तीनों से रिश्ता है। पिछले साल अप्रेल-मई में दूसरी लहर का जैसा कहर बरपा हुआ, उसे याद करके डर लगता है। भारत को इस बात का श्रेय भी जाता है कि उसने हालात का काबू में करके दिखाया, पर क्या आगामी चुनौती का सामना हम कर पाएंगे?   

भारत की आजादी के 75वें साल का समापन इस साल होगा। यह ऐतिहासिक वर्ष है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की भविष्यवाणी है कि इस साल भारत की पूरे वेग के साथ वापसी होने वाली है। दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2024-25 तक हम देश को पाँच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देंगे। फिलहाल ऐसा होता लग नहीं रहा है। दस फीसदी या उससे भी ज्यादा की वार्षिक दर हो, तब भी नहीं। फिर भी, शायद इस साल अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन पार कर लेगी

ओमिक्रॉन का खतरा

ओमिक्रॉन पहेली बनकर सामने आया है। यह जबर्दस्त तेजी से फैलने वाला वैरिएंट है, इसलिए खतरनाक है। पर, इसका असर काफी हल्का है, साधारण फ्लू का दशमांश। इसलिए खतरनाक नहीं है। शायद वह दुनिया को कोविड-19 से बाहर निकालने के लिए आया है। इसके बाद यह बीमारी साधारण फ्लू बनकर रह जाएगी। पर क्या यह शायद सच होगा? 

नए साल के पहली सुबह तक भारत में एक 145 करोड़ से ज्यादा टीके लग चुके हैं। यह संख्या लक्ष्य से कुछ पीछे जरूर है, पर संतोषजनक है। लक्ष्य था पूरी वयस्क आबादी को टीके लगवाने का, पर ऐसा संभव नहीं हो पाया है। पिछले साल 16 जनवरी से शुरू हुआ टीकाकरण अभियान लगातार जारी है। यह अभियान कई चरणों में चला है। शुरू में हैल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स, 50 से अधिक उम्र के लोगों और कोमॉर्बिडिटी वाले लोगों को टीका लगाने की घोषणा हुई थी। बाद में 50 के बजाय 45, फिर 18 से ऊपर और अब 15 से ऊपर के किशोरों को भी टीका लगाया जा रहा है। बच्चों की वैक्सीन भी तैयार है।

हालांकि भारत में एंटी-वैक्सीन आंदोलन उतना व्यापक नहीं है, जितना अमेरिका और यूरोप में है, पर शुरू से ही वैक्सीन-भय का माहौल है। इसी वजह से बड़ी संख्या में स्वास्थ्य-कर्मियों और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं ने पहला टीका लगवाने के बाद दूसरा नहीं लगाया। देश में इस बात को लेकर आपत्ति व्यक्त की जा रही है कि जब कानूनन वैक्सीन अनिवार्य नहीं है, तब ट्रेन, बसों और हवाई-यात्राओं में टीके के प्रमाणपत्र की जरूरत क्यों है? ऐसे अंतर्विरोध तब तक सामने आएंगे, जब तक कोरोना का कहर खत्म नहीं होता।

मोदी की प्रतिष्ठा

गुजरे साल में कोविड-9 से लेकर किसान आंदोलन तक कई कारणों से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को चुनौतियाँ मिलीं। पेट्रोल की कीमतों ने नाक में दम कर दिया। तीन कृषि-कानूनों को वापस लेकर उन्होंने अपनी निजी प्रतिष्ठा तक को दाँव पर लगा दिया। अप्रेल-मई 2021 में कोविड की दूसरी लहर ने कुछ देर के लिए परेशान किया, पर उसपर विजय पाने का श्रेय भी उन्हें मिला। इस साल उन्हें अपनी प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के कुछ मौके मिलेंगे। बेशक वे इस समय देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। उन्हें चुनौती देने वाली कोई ताकत अबतक सामने नहीं है, पर बंगाल की सफलता से उत्साहित ममता बनर्जी ने खुद को विपक्ष का नेता साबित करने का अभियान शुरू किया है। जिस तरह से गोवा में उनकी पार्टी सक्रिय हुई है, उससे लगता है कि इस साल राजनीतिक पिटारे में कई रोचक संभावनाएं बैठी हैं।

इस साल चुनाव ही चुनाव हैं, जिनमें ताकत और हैसियतों का पता लगेगा। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के अलावा सात या आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव और तीन बड़े महानगरों के नगर निकाय चुनावों से बहुत बातें स्पष्ट होगी। साल का यक्ष-प्रश्न है, क्या कांग्रेस का क्षरण जारी रहेगा? क्या उसके नए अध्यक्ष की घोषणा होगी? पार्टी ने कहा है कि अगस्त-सितंबर तक अध्यक्ष का चुनाव करा लेंगे। वह खानदानी होगा या बाहर का? ममता बनर्जी क्या विपक्ष की एकछत्र नेता बनकर उभरेंगी? योगी आदित्यनाथ क्या उत्तर प्रदेश के नए लोह-पुरुष साबित होंगे? ऐसे तमाम सवालों के जवाब इस साल की झोली में हैं।  

फरवरी मार्च में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के चुनाव होंगे। नवंबर-दिसंबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में। हालात ठीक रहे तो जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव हो सकते हैं। बृहन्मुम्बई नगर महापालिका और महाराष्ट्र के कई शहरों के नगर निगम के चुनाव फरवरी में महाराष्ट्र के राजनीतिक स्वास्थ्य की जानकारी देंगे। अप्रेल में दिल्ली के तीन नगर निगमों के चुनाव होंगे। पश्चिम बंगाल में भी नगर निगमों के चुनाव हैं।

आर्थिक-मोर्चा

गुजरे साल के आखिरी दिन जीएसटी कौंसिल ने 1 जनवरी से कपड़े पर 5 फीसदी के बजाय 12 फीसदी जीएसटी लगाने के फैसले को स्थगित कर दिया है, पर जूतों पर वृद्धि वापस नहीं ली गई है। व्यापारियों का कहना है कि अभी तक जीएसटी एक स्थिर कर प्रणाली नहीं बन पाई है। विसंगतियों के कारण यह बहुत ही जटिल कर प्रणाली बन गई है। महीने के अंत में आर्थिक समीक्षा के रूप में आर्थिक-संवृद्धि के प्रक्षेपवक्र यानी ट्रैजेक्टरी के पहले संकेतक सामने आएंगे।

आम-बजट को लेकर उत्सुकताएं हैं। उम्मीद है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खपत बढ़ाने की खातिर अधिक आवंटन और प्रोत्साहनों की घोषणाएं होंगी। सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश बढ़ाना पड़ा है, जो जारी रहेगा। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा। चालू वित्तवर्ष में यह घाटा जीडीपी के 6.8 फीसदी पर भी रहा, तो यह संतोष की बात होगी। बहरहाल 2020-21 में जीडीपी में संकुचन आया था, जिसे पूरा कर लिया गया है। अर्थव्यवस्था कोरोना-पूर्व स्तर पर वापस आ गई है। चालू वित्तवर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 8.4 फीसदी रही है। पहली तिमाही संवृद्धि में 20.1 फीसदी रही। अनुमान है कि वित्तवर्ष के अंत तक अर्थव्यवस्था 9.5 फीसदी की वृद्धि दर हासिल कर लेगी या उसे पार कर जाएगी।

विदेश-नीति

विदेश-नीति के मोर्चे पर भारत की सबसे बड़ी परीक्षा अपने आसपास के देशों के साथ रिश्तों को बनाए रखने की है। चीन के साथ 13 दौर की बातचीत के बाद भी पूर्वी लद्दाख का गतिरोध जारी है। मालदीव में भारत-विरोधी ताकतें फिर से सक्रिय हैं, जो इन दिनों इंडिया-आउट अभियान चला रही हैं। इसके पीछे पाकिस्तान और चीन की भूमिका है। विदेश-नीति की दूसरी परीक्षा अफगानिस्तान में है। भारत ने मध्य एशिया के पाँच देशों और ईरान के साथ संपर्क बनाया है, जिसका लाभ मिल रहा है। भारत-अमेरिका सामरिक रिश्तों में सुधार है, पर आर्थिक-रिश्तों में अब भी अड़चनें हैं।

विज्ञान और तकनीक

इस साल भारत को अंतरिक्ष में कुछ सफलताएं मिलेंगी। इस साल गगनयान के दो मानवरहित प्रक्षेपण होंगे। इसके बाद होगी 2023 के शुरू में समानव उड़ान होगी, जिसमें तीन अंतरिक्ष-यात्री जाएंगे। शुक्र-अभियान भी इसी साल भेजा जाएगा, उसके बाद सौर-अभियान आदित्य। महामारी के कारण चंद्रयान-3 में देरी हुई और वह भी इस साल की तीसरी तिमाही में लांच होगा। इसरो ने पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रह स्थापित करने के लिए स्मॉल सैटेलाइट लांच वेहिकल (एसएसएलवी) का विकास भी किया है। इसका पहला प्रक्षेपण 2022 की पहली तिमाही में होगा। यानी एक के बाद एक परीक्षण आप देखेंगे। डीआरडीओ की हाइपर-सोनिक मिसाइल का परीक्षण भी इस साल हो सकता है। तेजस मार्क-2 का पहला प्रोटोटाइप भी इस साल तैयार हो सकता है।  

1 comment:

  1. अगर तारों को छूने का सपना लेकर चलें तो संभव है कि रास्ते में आ रहे छोटे छोटे अवरोधों को आप पार कर लें, अगर सिर्फ इन अवरोधों को पार करने का सपना लेकर चले तो इन्हें पार न कर पायेंगे.

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