बुल्ली बाई प्रकरण ने हमारे जीवन, समाज और संस्कृति की पोल खोली है। इस सिलसिले में अभी तक गिरफ्तार सभी लोग युवा या किशोर हैं, जिनमें एक लड़की भी है। यह बात चौंकाती है। इन युवाओं की दृष्टि और विचारों का पता बाद में लगेगा, पर इसमें दो राय नहीं कि ज़हरीली-संस्कृति को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया की भूमिका की अनदेखी करना घातक होगा। इसके पहले जुलाई 2021 में ‘सुल्ली डील्स’ नाम से गिटहब पर ऐसा ही एक कारनामा किसी ने किया था, जिसमें पकड़-धकड़ नहीं हुई। वजह यह भी थी कि गिटहब अमेरिका से संचालित होता है। अब खबर है कि सुल्ली डील्स मामले में भी एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई है। गिटहब और बुल्ली बाई को सोशल मीडिया कहा भी नहीं जा सकता, पर इसके सामाजिक प्रभावों से इनकार भी नहीं किया जा सकता। इस सिलसिले में वीडियो गेम्स के पीछे छिपे सामाजिक-टकरावों का अध्ययन करने की जरूरत भी है। इन खेलों में जिसे ‘दुश्मन’ बताया जाता है, वह हमारी दृष्टि पर निर्भर करता है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 3 जनवरी को केरल के एक कार्यक्रम में कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने
धार्मिक विश्वासों को मानने और प्रचार करने का अधिकार है। अपने धर्म का पालन करें,
लेकिन गाली न दें और अभद्र भाषा और लेखन में लिप्त न हों। उन्होंने
एक सैद्धांतिक बात कही है, पर मसला धर्म के पालन का नहीं है, बल्कि एक बहुल समाज
को समझ पाने की असमर्थता का है।
ज़हरीली भूमिका
विविधता हमारी पहचान है, जिसका सबसे बड़ा मूल्य सहिष्णुता है। यह बात समझने और समझाने की है, पर सोशल मीडिया ने सारी सीमाओं को तोड़ दिया है। बुल्ली मामले ने सोशल मीडिया की जहरीली भूमिका के अलावा सामाजिक रीति-नीति पर रोशनी भी डाली है। स्टैटिस्टा डॉट कॉम के अनुसार दुनियाभर में 3.6 अरब से ज्यादा लोग हर रोज औसतन 145 मिनट यानी सवा दो घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं। कुछ दशक पहले तक लोग अखबारों और पत्रिकाओं को पढ़ने में जितना समय देते थे, उससे कहीं ज्यादा समय अब लोग सोशल मीडिया को दे रहे हैं। यह मीडिया जानकारियाँ देने, प्रेरित करने और सद्भावना बढ़ाने का काम करता है, वहीं नफरत का ज़हर उगलने और फेक न्यूज देने का काम भी कर रहा है।
गिटहब क्या है?
बुल्ली बाई विवाद के दौरान गिटहब का नाम बार-बार
आया है। पिछले साल सुल्ली डील्स का जिक्र जब हुआ था, तब भी इसका नाम आया था। बुल्ली
बाई एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है, जो ऑनलाइन नीलामी को सिम्युलेट करती है। यानी
नीलामी जैसी परिस्थितियाँ बनाती हैं। यह नीलामी वस्तुतः फर्जी है। इसमें इस्तेमाल
हुए ‘बुल्ली और सुल्ली’ शब्द अपमानजनक हैं। गिटहब कोड
रिपोज़िटरी और सॉफ्टवेयर कोलैबरेशन प्लेटफॉर्म है, जिसका इस्तेमाल डेवलपर,
स्टार्टअप, बल्कि कई बार बड़ी टेक्नोलॉजी कम्पनियाँ भी करती हैं, ताकि किसी एप को
विकसित करने में कोडिंग से जुड़े लोगों की मदद ली जा सके। कोड रिपोज़िटरी से आशय
है, वह स्थान जहाँ लोग अपने कोड रख देते हैं, ताकि जो दूसरे लोग किसी सॉफ्टवेयर का
विकास कर रहे हैं, वे उसका लाभ उठा सकें। यानी ज्ञान को बाँटने का यह तरीका है।
युवा-भागीदारी
चूंकि तमाम टेक-फर्म
विदेश में हैं, इसलिए पुलिस को म्यूचुअल लीगल असिस्टेंट ट्रीटी की मदद से विदेशी
सरकारों से जानकारी प्राप्त करनी पड़ती है। मुस्लिम
महिलाओं की तस्वीरों के साथ गिटहब के प्लेटफॉर्म पर नीलामी के सिलसिले में चार
लोगों की गिरफ्तारियाँ हुईं हैं। चारों युवा हैं और उनमें एक लड़की भी है। दूसरी
तरफ जिन मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया गया है, वे ज्यादातर जागरूक, सक्रिय और मुखर पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्हें अपमानित
करने का प्रयास क्यों किया गया? ऐसी कौन सी बात थी जिसके कारण कंप्यूटर
साइंस के छात्र ने ऐसा ऐप बनाया?
दृष्टिकोण से नाराज़
इस मामले में पकड़े गए बीटेक दूसरे साल के
छात्र नीरज बिश्नोई ने शुरुआती पूछताछ में बताया है कि वह कुछ पत्रकारों के राजनीतिक
स्टैंड और रिपोर्ट से बेहद खफा था और उन्हें सबक सिखाना चाहता था। तफतीश अभी चल ही
रही है और कारण सामने आने में समय लगेगा, पर इतना समझ में आ रहा है कि दृष्टिकोणों
और राजनीतिक रुझानों को लेकर भी नफरतें हैं। नीरज की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
का अध्ययन करने की जरूरत भी है। यह समझने की जरूरत है कि ये लोग क्यों यह सब कर
रहे थे। सोशल मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है, पर बुल्ली बाई
मामले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में नहीं रखा जा सकता, यह शुद्ध नफरती
मामला है।
नफरत का स्रोत?
कहाँ से आ रही है, यह नफरत? किसने इसे हवा दी है? और क्या यह किसी एक समुदाय तक सीमित है? मुस्लिम महिलाओं के सम्मान को जो ठेस लगी है, उसकी प्रतिपूर्ति संभव
नहीं, पर तथ्य यह भी है कि हिन्दू महिलाओं को लेकर भी सोशल मीडिया पर ऐसी बातें
धड़ल्ले से चल रही हैं। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव को इस बात की
जानकारी एक ट्विटर यूजर ने दी, तो उन्होंने जवाब दिया कि टेलीग्राम चैनल को ब्लॉक
कर दिया गया है और एजेंसियां राज्य की पुलिस के साथ कार्रवाई के लिए समन्वय कर रही
है। महिलाएं जानती भी नहीं कि सोशल मीडिया एकाउंट से उनकी तस्वीरें उठाकर उनका
दुरुपयोग किया जा रहा है। फेक प्रोफाइल बनाकर या चेहरे को मॉर्फ करके लड़कियों को
ब्लैकमेल तक किया जा रहा है।
मर्यादा-हीनता
पूरे मामले का यह सांप्रदायिक पक्ष है। पर सब
सांप्रदायिक ही नहीं है। सांप्रदायिकता जल्दी पकड़ में आती है, पर व्यक्तिगत रूप
से लोगों की मान-मर्यादा को ठेस लगाने का काम भी सोशल मीडिया पर लंबे अरसे से हो
रहा है। समाज के भीतर कई तरह के ज़हर दबे हैं, वे किसी न किसी रूप में सामने आ रहे
है। कुछ लोग सायास और योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहे हैं और कुछ सहज भाव से इसे
अपना अधिकार मानकर चल रहे हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर मर्यादाओं को जो जगह मिलनी
चाहिए, वह अनुपस्थित है। दूसरे महिलाएं सबसे आसान निशाना बनती हैं। महिलाओं को
सोशल मीडिया पर निशाना बनाया जाता है, उनकी तस्वीरों से छेड़छाड़ की जाती है या
अश्लील मैसेज उन्हें भेजे जाते हैं। सामाजिक जीवन में जिस तरह गालियों का इस्तेमाल
होता है, उससे भी इस बात को समझा जा सकता है।
राजनीतिक पहलू
बुल्ली बाई मामले का जिक्र चल ही रहा है कि
मीडिया प्लेटफॉर्म ‘द वायर’ ने एक रिपोर्ट जारी की है कि बीजेपी आईटी सेल से जुड़े लोग अपनी
पार्टी के नेताओं, मंत्रियों की लोकप्रियता बढ़ाने,
नैरेटिव बदलने, सोशल मीडिया पर ट्रेंड कराने और अपने
आलोचकों को परेशान करने के लिए 'टेक फॉग' नामक
ऐप का इस्तेमाल करते हैं। बीजेपी मीडिया सेल की एक असंतुष्ट कर्मचारी ने टेक फॉग
के बारे में सोशल मीडिया पर अप्रैल 2020 में तमाम जानकारियां शेयर की थीं। वायर की
इस रिपोर्ट में कही गई बातें सोशल मीडिया के राजनीतिक दोहन के उदाहरण पेश करती है,
पर क्या यह काम केवल बीजेपी का मीडिया सेल कर रहा है? क्या
यह दोहन केवल राजनीतिक है?
हैशटैग की होड़
राजनीति के अलावा मनोरंजन, फैशन, स्वास्थ्य और
उपभोक्ता सामग्री से जुड़े कारोबार, ज्योतिष, योग, अध्यात्म और बाबा-संस्कृति का
सबसे बड़ा प्रचार सोशल मीडिया पर होता है। आतंकवाद और फसादी कारखाने के सबसे बड़े
हथियार के रूप में भी उसका उभार हो रहा है। भावनाएं भड़काने की कामना जिसकी भी है,
वह सोशल मीडिया की ओर भाग रहा है। वे हर रोज हैशटैग तैयार करके ट्रेंडिंग-प्रतियोगिता
चला रहे हैं। अगस्त 2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की
वापसी के ठीक पहले इंटरनेट सेवाओं के बंद करने का किया था।
नकारात्मक भूमिका
शिक्षा, सूचना और विकास के लिए इंटरनेट जरूरी
है, पर वह माध्यम है लक्ष्य नहीं। उसकी नकारात्मक भूमिका भी है। दुनिया के करीब
सात अरब नागरिकों में से हरेक का अपना एजेंडा है। उनके प्रतिनिधित्व का दावा करने
वाला एक अलग संसार है। यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, टेलीग्राम और वॉट्सएप वगैरह सिर्फ
औजार हैं। उनमें तमाम कचरा पड़ा है, जिसके लिए जिम्मेदार वे लोग हैं, जिनकी दिलचस्पी नकारात्मक बातों में है। वे अपराधी हैं जो उन्माद
पैदा करना चाहते हैं। उनकी अफवाहों से प्रेरित-प्रभावित उन्मादी भीड़ भी अपराधी है।
सोशल मीडिया का सकारात्मक इस्तेमाल तभी संभव है, जब नकारात्मकता की इस खेती पर रोक
लगेगी।
सटीक
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