Monday, June 21, 2021

दुनिया पर भारी पड़ेगी वैक्सीन-असमानता


ब्रिटेन के कॉर्नवाल में हुए शिखर सम्मेलन में जी-7 देशों ने घोषणा की है कि हम गरीब देशों के 100 करोड़ वैक्सीन देंगे। यह घोषणा उत्साहवर्धक है, पर 100 करोड़ वैक्सीन ऊँट में मुँह में जीरा जैसी बात है। दूसरी तरफ खबर यह है कि दक्षिण अफ्रीका में आधिकारिक रूप से कोविड-19 की तीसरी लहर चल रही है। वहाँ अब एक्टिव केसों की संख्या एक महीने के भीतर दुगनी हो रही है और पॉज़िटिविटी रेट 16 प्रतिशत के आसपास पहुँच गया है, जो कुछ दिन पहले तक 9 प्रतिशत था। सारी दुनिया में तीसरी लहर को डर पैदा हो गया है। ब्रिटेन में भी तीसरी लहर के शुरूआती संकेत हैं।

इतिहास बताता है कि महामारियों की लहरें आती हैं। आमतौर पर पहली के बाद दूसरी लहर के आने तक लोगों का इम्यूनिटी स्तर बढ़ जाता है। पर दक्षिण अफ्रीका और भारत में यह बात गलत साबित हुई। चूंकि अब दुनिया के पास कई तरह की वैक्सीनें भी हैं, इसलिए भावी लहरों को रोकने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। दुनिया की बड़ी आबादी को समय रहते टीके लगा दिए जाएं, तो सम्भव है कि वायरस के संक्रमण क्रमशः कम करने में सफलता मिल जाए, पर ऐसा तभी होगा, जब वैक्सीनेशन समरूप होगा।

टीकाकरण की विसंगतियाँ

दुनिया में टीकाकरण इस साल जनवरी से शुरू हुआ है। इसकी प्रगति पर नजर डालें, तो वैश्विक-असमानता साफ नजर आएगी। दुनिया के 190 से ज्यादा देशों में इस हफ्ते तक 2.34 अरब से ज्यादा टीके लग चुके हैं। वैश्विक आबादी को करीब 7.7 अरब मानें तो इसका मतलब है कि करीब एक तिहाई आबादी को टीके लगे हैं। पर जब इस डेटा को ठीक से पढ़ें, तो पता लगेगा कि टीकाकरण विसंगतियों से भरा है।

पिछले रविवार के ब्लूमबर्ग वैक्सीनेशन ट्रैकर में दर्ज कुछ देशों में हुए टीकाकरण पर ध्यान दें। इन देशों में जितनी आबादी को कम से कम एक टीका लग गया है उसके प्रतिशत पर नजर डालें, तो अंतर दिखाई पड़ेगा। अमेरिका में 52, ईयू 43, ब्रिटेन 61.8, जर्मनी 48.1, फ्रांस 46.5, इटली 47.8 यूएई 47.3, चीन 31, दक्षिण कोरिया 22, रूस 12.3, जापान 12 और भारत में करीब 17.0 फीसदी आबादी को कम से कम एक टीका लग गया है। अब दूसरी तरफ देखें। फिलीपींस 4.1, थाईलैंड 6.3, इंडोनेशिया 7.4, मलेशिया 9.0, ईरान 4.7, मिस्र 2.8, म्यांमार 3.4, पाकिस्तान 3.6, बांग्लादेश 3.5, श्रीलंका 9.3 इथोपिया 2.0, वियतनाम 1.4, इराक 1.1, अफगानिस्तान 1.3, सूडान 1.0, वेनेजुएला 0.8, यमन 0.7, केमरून 0.3 और अल्जीरिया तथा द सूडान 0.1। बहुत से देशों में टीकाकरण शुरू ही नहीं हुआ है।

असमानताओं की भरमार

अमेरिका से ईयू देश पीछे हैं। वहीं भारत, रूस और दक्षिण कोरिया इन देशों से पीछे हैं। अफ्रीकी देश एकदम पीछे हैं। कुछ देशों में वैक्सीनेशन शुरू ही नहीं हुआ है। ईयू की योजना है कि इन गर्मियों में 70 फीसदी आबादी को दोनों डोज लग जाएं। अमेरिका का लक्ष्य है कि 4 जुलाई के स्वतंत्रता दिवस तक 64 फीसदी आबादी का टीकाकरण पूरा हो जाए। सबसे पहले टीकाकरण अमेरिका में शुरू हुआ, फिर ब्रिटेन में और फिर ईयू में। तकरीबन उसी समय भारत में भी शुरू हुआ।

उनकी आबादी कम है। हमारी बहुत ज्यादा। बराबरी सम्भव ही नहीं। अमेरिका, ब्रिटेन और ईयू देशों में एक फर्क एस्ट्राजेनेका के टीके को लेकर संशय के कारण भी पैदा हुआ है। पूर्वी यूरोप के देश पश्चिमी यूरोप से पीछे हैं। बल्गारिया, एस्तोनिया, रोमानिया, बेलारूस और अल्बानिया जैसे देश विकासशील देशों के स्तर पर हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के रुचिर अग्रवाल और गीता गोपीनाथ ने महामारी के खात्मे का एक प्रस्ताव बनाया है। इसके अनुसार इस साल के अंत तक दुनिया की 40 फीसदी और अगले साल जुलाई तक 60 फीसदी आबादी का वैक्सीनेशन हो जाना चाहिए। साथ ही बड़े स्तर पर टेस्टिंग और ट्रेसिंग का काम चलाया जाए। इस अध्ययन के अनुसार इस काम की कुल लागत होगी करीब 50 अरब डॉलर यानी करीब प्रति व्यक्ति चार डॉलर या करीब 280 रुपये। यह निहायत छोटी रकम है। इतने छोटे निवेश पर दुनिया में इतना बड़ा परिणाम कभी हासिल नहीं हुआ है। दुनिया में औषधि निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फार्मास्युटिकल मैन्यूफैक्चरर्स एंड एसोसिएशंस के 23 अप्रैल के एक बयान में कहा गया है 2021 के अंत तक पूरी दुनिया में 10 अरब वैक्सीन की डोज बनाना सम्भव है।

क्या ऐसा होगा?

दुनिया में उच्च आय वर्ग के देशों की कुल आबादी है 1.2 अरब, मध्य आय वर्ग के देशों की आबादी 1.2 अरब, भारत और चीन की आबादी करीब-करीब बराबर यानी 1.4 और 1.4 यानी 2.8 अरब मानें और निम्न आय वर्ग के 92 देशों की आबादी 2.5 अरब यानी कुल मिलाकर 7.7 अरब लोगों को अगले साल के अप्रेल तक वैक्सीन देने की योजना दुनिया को बनानी होगी। ऐसा सम्भव हुआ, तो इस महामारी से छुटकारा मिल जाएगा।

यह सब इतना सरल नहीं है। ब्रिटेन में हुए जी-7 देशों के शिखर सम्मेलन की मुख्य चिंता चीन की घेराबंदी पर केंद्रित थी न कि वैक्सीन के वैश्विक कार्यक्रम पर। हालांकि इन देशों ने अगले साल तक कोरोना वैक्सीन की एक अरब डोज़ दान करने का ऐलान किया है, पर जरूरत इस बात की है कि महामारी पर इसी साल काबू पाया जाए। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि इस वायरस से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 10 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है। दुनिया के आधे कामकाजी लोगों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ सकता है।

सबसे बड़ी मार गरीब देशों पर पड़ेगी। वैक्सीन लगाकर अमीर देशों की जनता के स्वास्थ्य की रक्षा कुछ देर के लिए हो भी जाए, पर उससे दूरगामी परिणाम नहीं मिलेंगे। गरीब देशों में वायरस बचा रहा, तो महामारी की लहरें फिर-फिर आएंगी। इस दुष्चक्र को रोकने की जरूरत है। जी-7 की बैठक के बाद वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में संयुक्‍त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा कि महामारी को रोकने के लिए वैक्सीन के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है। वैक्सीन को वैश्विक प्राण-रक्षक के रूप में देखना चाहिए।

दुर्भाग्य है कि कुछ देश अपनी पूरी आबादी को वैक्सीन देने पर तुले हैं, जबकि बहुत से गरीब देशों को अब तक एक भी खुराक नहीं मिल पाई है। इस स्थिति में वैश्विक टीकाकरण योजना को मूर्त रूप देना ही होगा। सवाल है कि जैसे मुद्राकोष के अर्थशास्त्री वैश्विक वैक्सीनेशन की परिकल्पना कर रहे हैं क्या वैसा वैश्विक स्वास्थ्य के लिए नहीं किया जा सकता? किया जा सकता है, पर उसके लिए दुनिया की समझदारी का दायरा बढ़ाना होगा।

नवजीवन में प्रकाशित

 

 

 

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