अयोध्या में राम मंदिर से जुड़ी जमीन की खरीद में घोटाले का आरोप लगाने वाले अपने ही जाल में उलझ गए लगते हैं। ‘पंद्रह मिनट में दो करोड़ से साढ़े अठारह करोड़’ का जो आरोप लगाया गया है, वह तथ्यों की जमीन पर टिक नहीं पाएगा। आरोप लगाने वालों को कम से कम बुनियादी होमवर्क जरूर करना चाहिए। आम आदमी पार्टी और सपा के साथ कांग्रेस ने भी इन आरोपों के साथ खुद को जोड़कर जल्दबाजी की है। आरोपों की बुनियाद कच्ची साबित हुई और वे फुस्स हुए, तो इन्हें लगाने वालों के हाथ भी हाथ जलेंगे। इन सभी पार्टियों पर आरोप लगता रहा है कि मंदिर निर्माण में अड़ंगे लगाने की वे कोशिशें करती रहती हैं।
वायरल
आरोप
पिछले तीन-चार दिनों
में दो खबरों ने तेजी से सिर उठाया और फिर उतनी ही तेजी से गुम हो गईं। इन दोनों
खबरों पर जमकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आईं। लानत-मलामत हुई और जब गर्द-गुबार साफ
हुआ तो किसी ने न तो सफाई देने की कोशिश की और न गलती मानी। पहली खबर एक बुजुर्ग
मुसलमान व्यक्ति की पिटाई और फिर उनकी दाढ़ी काटने से जुड़ी थी। दूसरी खबर अयोध्या
में राम जन्मभूमि के निर्माण के सिलसिले में जमीन की खरीदारी को लेकर थी। दोनों ही
खबरों में काफी राजनीतिक मसाला था, इसलिए सोशल मीडिया के साथ-साथ मुख्यधारा के मीडिया
में जमकर शोर मचा।
गाजियाबाद के 72
वर्षीय अब्दुल समद सैफी की पिटाई और दाढ़ी कटने का एक वीडियो वायरल होने के एक दिन
बाद, गाजियाबाद पुलिस ने
दावा किया कि यह ‘व्यक्तिगत दुश्मनी’ का मामला था। कुछ लोग उनसे नाराज़ थे क्योंकि
उन्होंने एक व्यक्ति को तावीज’ दी थी, जिससे अभीप्सित परिणाम नहीं मिला। उनकी
पिटाई के वीडियो में वायरल करने वालों ने आवाज बंद कर दी थी, जिससे पता नहीं लग
रहा था कि पीटने की वजह क्या थी।
उसके बाद इन सज्जन के साथ बातचीत का एक और वीडियो जारी हुआ, जिसमें इनके मुख से कहलवाया गया था कि पीटने वाले ‘जय श्रीराम’ बोलने के लिए मजबूर कर रहे थे। यह वीडियो जिन सज्जन के सौजन्य से आया था उनके कमरे की दीवार पर लगी तस्वीर बता रही थी कि वे एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता हैं। यहाँ से कहानी में लोच आ गया और मीडिया की मुख्यधारा ने इस मामले की तफतीश से हाथ खींच लिया।
जमीन का सौदा
आम आदमी पार्टी के
सांसद संजय सिंह ने रविवार को लखनऊ में संवाददाता सम्मेलन करके आरोप लगाया कि अयोध्या
में श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से संबंधित एक जमीन सौदे में
भ्रष्टाचार हुआ है। उनके अनुसार वह जमीन दो करोड़ रुपये में खरीदी गई और फिर महज ‘पंद्रह मिनट’ के भीतर ट्रस्ट ने उसे 18.50 करोड़
रुपये में खरीद लिया। संजय सिंह ने सीधे पीएम मोदी से इसका जवाब माँगा है।
‘पंद्रह मिनट में दो करोड़ से साढ़े
अठारह करोड़’ की शब्दावली ने जादू
का कम किया। चूंकि अयोध्या के मंदिर से जुड़ा मामला था, इसलिए राजनीतिक नेताओं ने
बयान जारी करने में देरी नहीं की। मामला क्या है, उसकी पृष्ठभूमि क्या है, यह देखे
बगैर तीर चलाने शुरू कर दिए। बहरहाल दो दिन बाद इस मामले के विवरण सामने आने के
बाद बयानों के स्वर बदल गए। राजनीतिक दलों के लिए आरोप लगाना और उनपर अड़े रहना
मामूली बात है, पर तथ्यों की पुष्टि किए बगैर मीडिया में धड़ाधड़ कवरेज होना नया
रिवाज है।
जमीन खरीद के आरोप
लगाने वालों की जिम्मेदारी अब यह बताने की है कि उनके आरोप क्या हैं? यानी घोटाला क्या है? किसने किसे फायदा पहुँचाया और किसे
नुकसान पहुँचाया? यदि वे आरोप को पूरे
संदर्भ सहित साबित नहीं कर सकते, तब इसका मतलब यही हुआ कि उनके इरादों में कहीं
गड़बड़ी है। चूंकि जमीन का मामला है, इसलिए पहले दस्तावेजों को देखना होगा कि
सम्पत्ति किसकी थी। उसकी खरीद का समझौता कब हुआ था, अग्रिम राशि कब और कितनी दी
गई, जमीन का सर्किल रेट क्या है, बाजार मूल्य क्या है वगैरह।
राजनीति
आरोप
ट्रस्ट ने जो विवरण
दिया है, उसकी जाँच की जानी चाहिए। देखना होगा कि क्या उन्होंने सही प्रक्रिया का
पालन नहीं किया है? क्या यह प्रक्रिया सन
2011 से नहीं चल रही थ?
क्या रुपयों का भुगतान बैंकों के मार्फत नहीं हुआ है? इस प्रक्रिया को पूरा होने में कम से
कम दस साल लगे हैं, जिसका दस्तावेजी विवरण मौजूद है। क्या इन बातों से ‘पंद्रह मिनट में दो करोड़ से साढ़े
अठारह करोड़’ का आरोप साबित होता
है?
चूंकि इस आरोप की प्रकृति राजनीतिक है, इसलिए यह केवल आम आदमी पार्टी तक
सीमित नहीं रहा। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और महासचिव प्रियंका
गांधी ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने में देरी नहीं की। सपा प्रमुख अखिलेश
यादव ने ट्रस्ट के प्रमुख का इस्तीफा माँग लिया। उनके पूर्व विधायक पवन पांडे ने मामले
की सीबीआई जाँच की मांग कर दी।
शिवसेना पार्टी के सांसद संजय राउत ने कहा कि जमीन खरीदी में भ्रष्टाचार का
मामला सामने आने से हमारी श्रद्धा और आस्था को ठेस पहुंची है। हमने भी एक करोड़
रुपये दिए हैं। राउत ने कहा कि सांसद संजय सिंह ने मुझे फोन करके बताया कि मंदिर
बनाने के लिए जो जमीन खरीदी गई है, उसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। सवाल है कि क्या उन्होंने मामले
को ठीक से समझ लिया है? पहली नजर में यह आरोप
जितना सनसनीखेज है, गहराई पर जाने पर वह उतना ही पोला नजर आता है।
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