Thursday, June 3, 2021

क्या भारत की फलस्तीन-नीति में बड़ा बदलाव आ रहा है?


हाल में इसराइल और हमस के बीच हुए टकराव के दौरान भारत की विदेश-नीति में जो बदलाव दिखाई पड़ा है, उसकी ओर पर्यवेक्षक इशारा कर रहे हैं। संरा सुरक्षा परिषद में भारत ने जो कहा, वह महासभा की बहस में बदल गया। इसके बाद मानवाधिकार परिषद की बैठक में भारत ने उस प्रस्ताव पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसमें गज़ा में इसराइली कार्रवाई की जाँच की माँग की गई है। भारत की इस अनुपस्थिति पर फलस्तीन के विदेशमंत्री डॉ रियाद मल्की ने कड़े शब्दों में आलोचना की है।

इस आलोचना के जवाब में भारत के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को कहा कि भारत की नीति इस मामले में स्पष्ट रही है। इसके पहले भी हम मतदान से अनुपस्थित होते रहे हैं। जहाँ तक फलस्तीन के विदेशमंत्री के पत्र का सवाल है, उन्होंने यह पत्र उन सभी देशों को भेजा है, जो मतदान से अनुपस्थित रहे। 

उधर इसराइल में प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के विरोधियों के बीच गठबंधन सरकार बनाने को लेकर सहमति बन गई है जिसके बाद नेतन्याहू की विदाई का रास्ता साफ़ हो गया है। नेतन्याहू इसराइल में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं और पिछले 12 साल से देश की राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द घूमती रही है। मार्च में हुए चुनाव में नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। उन्हें बुधवार 2 जून की मध्यरात्रि तक बहुमत साबित करना था और समय-सीमा समाप्त होने के कुछ ही देर पहले विपक्षी नेता येर लेपिड ने घोषणा की कि आठ दलों के बीच गठबंधन हो गया है और अब वे सरकार बनाएँगे। बहरहाल इस घटनाक्रम से इसराइल-फलस्तीन मसले पर कोई बड़ा फर्क पड़ने वाला नहीं है।

भारत के विदेशमंत्री डॉ एस जयशंकर को 30 मई को लिखे पत्र में फलस्तीन के विदेशमंत्री डॉ रियाद मल्की ने कहा कि मानवाधिकार परिषद का प्रस्ताव लम्बे अरसे से दुनिया के देशों के बीच विचार-विमर्श का परिणाम है। भारत ने इसका समर्थन नहीं करके इस महत्वपूर्ण मोड़ पर विश्व-समुदाय से जुड़े रहने का मौका खो दिया है। गत 27 मई को इस प्रस्ताव पर मतदान हुआ था, जिसमें 24 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, 9 ने विरोध और 14 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। वस्तुतः भारत की यह अनुपस्थिति केवल भारतीय विदेश-नीति की दिशा ही नहीं बता रही है, बल्कि दुनिया के बदलते रुख को भी व्यक्त कर रही है।

भारत ने इस मतदान से खुद को अलग ही नहीं रखा, बल्कि उसके पहले परिषद में अपने वक्तव्य से एक महत्वपूर्ण वाक्यांश को भी हटा लिया था। भारत के पिछले बयान में फलस्तीन के न्यायपूर्ण उद्देश्य का समर्थन किया था। इसमें से न्यायपूर्ण शब्द को हटा दिया गया। डिप्लोमेसी में शब्दों का ही नहीं कॉमा, फुलस्टॉप का भी अर्थ होता है। नई शब्दावली बता रही है कि फलस्तीन के साथ पुराने रिश्तों का संतुलन इसराइल के साथ बदलते रिश्तों के साथ भारत कर रहा है। इसका वास्तविक अर्थ क्या है, यह भविष्य में पता लगेगा।

यह समझने की जरूरत भी है कि संरा मानवाधिकार परिषद का स्वरूप अब काफी हद तक राजनीतिक है। भारतीय फैसले से अभी यह नहीं कहा जा सकता कि फलस्तीन के बारे में भारतीय नीति में बुनियादी बदलाव आया है, पर इतना जरूर समझ में आता है कि वैश्विक-दृष्टिकोण बदला है। इसबार भारत ने जो दृष्टिकोण अपनाया है, उससे इसराइल भी बहुत खुश नहीं है और फलस्तीनी राष्ट्रीय अथॉरिटी भी अप्रसन्न है।

पाकिस्तान मुसलमानों के लिए बना, यह एक तथ्य है। इसराइल यहूदियों का है, इसमें भी कोई झूठ नहीं है, लेकिन भारत हिंदुओं का है, यह हमारी सांविधानिक स्थिति नहीं है। भारत जिस विचारधारा से बना है, उसकी जड़ में यह बात नहीं है। इसराइल और फलस्तीनियों के रिश्तों को लेकर हाल में भारत के अंदर जबर्दस्त बहस है। कुछ दशक पहले तक यह बहस बहुत हल्के स्वरों में होती थी, पर अब काफी मुखर है। बीबीसी की हिन्दी वैबसाइट ने इस विषय पर देश के कुछ विशेषज्ञों से बात करके एक लम्बी रिपोर्ट प्रकाशित की है, उसे पढ़ना चाहिए।

जिनीवा में मानवाधिकार परिषद की बैठक पर हुए मतदान के 11 दिन पहले 16 मई को संरा में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने एक बयान में कहा था, मैं फलस्तीन के न्यायपूर्ण (जस्ट) उद्देश्य के भारत के दृढ़ समर्थन और इस समस्या के दो-राज्य सिद्धांत के प्रति अपने संकल्प को व्यक्त करना चाहूँगा। इसके बाद 20 मई को स्थायी प्रतिनिधि ने संरा महासभा में जो कहा उसमें फलस्तीन के न्यायपूर्ण उद्देश्य को दृढ़ समर्थन जैसे शब्द नहीं थे।

जब 10-21 मई के बीच इसराइल और हमस के बीच संघर्ष चल रहा था, तब स्थायी प्रतिनिधि ने कहा था कि हम इस क्षेत्र में स्थायी शांति की स्थापना और सुरक्षित और सुस्पष्ट सीमाओं में परिभाषित दो-राज्यों के सह-अस्तित्व के विचार का समर्थन करते हैं। इसके बाद 27 मई को मानवाधिकार परिषद की बैठक में भारत ने कहा कि हम गज़ा में इसराइल और हथियारबंद समूह के बीच हुए युद्धविराम का स्वागत करते हैं।

मानवाधिकार परिषद में यह प्रस्ताव पाकिस्तान ने पेश किया था। भारत के अलावा जिन देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया उनके नाम हैं-फ्रांस, इटली, जापान, नेपाल, नीदरलैंड्स, पोलैंड और दक्षिण कोरिया, बहामास, ब्राजील, डेनमार्क, फिजी, टोगो और यूक्रेन।

इस प्रस्ताव पर मत-विभाजन इस प्रकार रहा-

प्रस्ताव के पक्ष में (24):

Argentina, Armenia, Bahrain, Bangladesh, Bolivia, Burkina Faso, China, Cote d’Ivoire, Cuba, Eritrea, Gabon, Indonesia, Libya, Mauritania, Mexico, Namibia, Pakistan, Philippines, Russian Federation, Senegal, Somalia, Sudan, Uzbekistan and Venezuela.

विरोध में (9):

Austria, Bulgaria, Cameroon, Czech Republic, Germany, Malawi, Marshall Islands, United Kingdom and Uruguay.

अनुपस्थित (14):

Bahamas, Brazil, Denmark, Fiji, France, India, Italy, Japan, Nepal, Netherlands, Poland, Republic of Korea, Togo and Ukraine.

मानवाधिकार परिषद की वैबसाइट पर इस प्रस्ताव को पढ़ें

https://www.ohchr.org/EN/HRBodies/HRC/Pages/NewsDetail.aspx?NewsID=27119&LangID=E

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