मोदी-सरकार पहले से ज्यादा ताकत के साथ जीतकर आई है, जिसके कारण उसके हौसले
बुलंद हैं और सरकारी घोषणाओं में आत्मविश्वास झलक रहा है। बावजूद इसके चुनौतियाँ
पिछली बार से ज्यादा बड़ी हैं। अर्थव्यवस्था सुस्ती पकड़ रही है। बैंकिंग की
दुर्दशा, स्वदेशी पूँजी निवेश में कमी, बढ़ती बेरोजगारी और आर्थिक संवृद्धि में
अपेक्षित तेजी नहीं आ पाने के कारण ये चिंताएं हैं। सरकार को राजनीतिक दृष्टि से
लोकप्रियता बढ़ाने वाले फैसले भी करने हैं और आर्थिक-सुधार के कड़वे उपाय भी। पहली कैबिनेट बैठक में, मोदी सरकार ने सभी किसानों को कवर करने के लिए पीएम-किसान
योजना के विस्तार को मंजूरी दी है, जिन्हें प्रति वर्ष 6,000 रुपये की वित्तीय सहायता मिलेगी।
पिछली सरकार ने आयुष्मान भारत और किसानों को छह हजार रुपये सालाना देने के जो
फैसले किए थे, वे राजनीतिक दृष्टि से उपयोगी हैं, पर नई वित्तमंत्री निर्मला
सीतारमण के सामने राजकोषीय घाटे की चुनौती पेश करेंगे। सरकार के एजेंडा में सबसे
महत्वपूर्ण चार-पाँच बातें इस प्रकार हैं-1. गाँवों और किसानों की बदहाली पर
ध्यान, 2. बेरोजगारी को दूर करने के लिए बड़े उपाय, 3. आर्थिक सुधारों को गति
प्रदान करना, 4. राम मंदिर और कश्मीर जैसे सवालों के स्थायी समाधान, 5. दुनिया
के सामने नए स्वरूप में उपस्थित हो रहे शीत-युद्ध के बीच अपनी विदेश-नीति का
निर्धारण। दूसरी तमाम बातें भी हैं, जिनका एक-दूसरे से रिश्ता है।
प्रधानमंत्री ने किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन
में साफ संकेत दिया कि यह नया भारत है, हमें पुराने नजरिए से नहीं देखा जाए। एक
लिहाज से सरकार का पहला नीति-वक्तव्य बिश्केक से आया है। पर नई सरकार के इरादों और
योजनाओं की झलक नई मंत्रिपरिषद से मिली है। अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने और रोजगार
बढ़ाने के इरादे से प्रधानमंत्री ने दो नई कैबिनेट समितियों का गठन किया है। इन
दोनों समितियों के अध्यक्ष वे खुद हैं। ये समितियां रोजगार सृजन और निवेश बढ़ाने
के उपाय बताएंगी। पहली समिति विकास दर और निवेश पर है और दूसरी, रोजगार-कौशल विकास
पर।
सरकार ने यह कदम ऐसे समय
उठाया है जब संवृद्धि दर वित्त वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही में घटकर 5.8 प्रतिशत
पर आ गई, जो बीते पांच साल में सबसे कम है। सालाना वृद्धि दर भी पिछले वित्त वर्ष
में घटकर 6.8 प्रतिशत के स्तर पर आ गई है जबकि सरकार ने 7.2 प्रतिशत का लक्ष्य रखा
था। खास बात यह है कि कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर पिछले वित्त वर्ष की अंतिम
तिमाही में -0.1 प्रतिशत हो गई थी। वहीं विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर भी 3.1
प्रतिशत के स्तर पर आ गई है।
शनिवार को हुई नीति आयोग
की गवर्निंग कौंसिल की बैठक में तमाम बुनियादी बातों के अलावा सरकार का ध्यान
देशभर में आसन्न सूखे की स्थिति और खरीफ की फसल की तैयारी पर रहा। इस बैठक में आंतरिक
सुरक्षा भी महत्वपूर्ण विषय रहा, क्योंकि नक्सली हिंसा के कारण ग्रामीण विकास के
कार्यक्रमों में अवरोध पैदा हो रहा है। यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि
इसमें सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है।
केन्द्रीय वित्त मंत्रालय
ने स्वीकार कर लिया है कि अर्थव्यवस्था में धीमापन आ रहा है। वित्त मंत्रालय मंदी
के लिए जीडीपी के तीन घटकों को जिम्मेदार मानता है। निजी उपभोग, पूँजी निवेश और
निर्यात में कमी। निजी पूँजी के निवेश की समस्या वित्तीय क्षेत्र में है। खासतौर
पर बैंकों में। सरकार भी मानती है कि ब्याज दरें कम होनी चाहिए, पर बैंक ब्याज
दरें कम करने पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, रिजर्व बैंक अपनी दरों में लगातार कटौती
कर रहा है। वस्तुतः एक लम्बे अर्से से देश की बैंकिंग व्यवस्था मृत्यु-शैया पर
पड़ी थी। मोदी सरकार ने पहले दौर में इसे सुधारने का प्रयास किया। दिवालिया कानून
के कारण बैंकों की फँसी रकम वापस लाने की प्रक्रिया शुरू हुई है, पर इसमें समय
लगना ही लगना है। देश में पूँजी निवेश का माहौल बनाने के लिए श्रम कानूनों में
बड़े बदलाव की जरूरत भी है। यह काम राजनीतिक रूप से जोखिमों से भरा है, पर आर्थिक
सुधार के लिए यह जरूरी है। भारत ने भूमि और श्रम सुधार के लिए लंबा इंतजार किया
है। पिछली सरकार ने भूमि-सुधार कानून में अध्यादेश लाकर संशोधन की कोशिश की, जो
राज्यसभा में पर्याप्त संख्या नहीं होने के कारण पास नहीं हो पाया।
सरकार ने बिजली की
आपूर्ति सुधारने में काफी मेहनत की है और बुनियादी ढांचे में भी काफी सुधार हुआ
है। परंतु यह निवेश में नई जान फूंकने में कामयाब नहीं रहा। निर्यात में सुधार
होने से भी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा और देश मंदी से बाहर भी निकल सकता है। वित्तमंत्री
निर्मला सीतारमण जब 5 जुलाई को पूर्ण बजट पेश करेंगी तब सरकार के नए कार्यक्रमों
की जानकारी मिलेगी, पर उसके पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण से नई सरकार के दूरगामी
कार्यक्रमों की झलक मिलेगी। फरवरी में पेश किए गए 2019-20 के अंतरिम बजट का आकार 27.84
लाख करोड़ रुपये का था। अधिकारियों को उम्मीद है कि पूर्ण बजट में इसका आकार बढ़ेगा।
चुनौती साधनों की है। कर राजस्व अनुमान से कम है और घाटा ज्यादा है। सरकार का कर्ज
अपेक्षित स्तर से 20 फीसदी अधिक है। मुद्रास्फीति की औसत दर बीते
वर्षों में 7 फीसदी से घटकर 2.5 फीसदी हो गई है, लेकिन खाद्य वस्तुओं और खुदरा
मूल्यों में वृद्धि हुई है।
मोदी सरकार को मिले जबर्दस्त समर्थन के पीछे उसका कठोर रक्षा-नीति भी है।
गुजरे कुछ वर्षों के दौरान हमारा
रक्षा-व्यय कम हुआ है। इसकी वजह से सेनाओं को उपकरणों के मामले में दिक्कतों का
सामना करना पड़ा। सेना के आधुनिकीकरण की जरूरतों को अब पूरा करना होगा। सरकार के
पास राजस्व का सम4थन हासिल नहीं है। जीएसटी संग्रह में सुधार हुआ है, पर उसे एक
स्तर तक आने में समय लगेगा। सरकार को रिजर्व बैंक के भंडार से कुछ धनराशि मिलेगी,
जिसका इस्तेमाल सार्वजनिक बैंकों के पुनर्पूंजीकरण में किया जाएगा। देश की वित्तीय
संस्थाएं पूँजी की कमी से परेशान हैं। सरकार को इन चुनौतियों का सामना करना होगा,
साथ ही जनता को बताना होगा कि हम लम्बे समय के लिए सुधार के काम में जुटे हैं।
दो-चार दिन में चमत्कार होने से रहा। संकट का काफी समय हमने निकाल दिया है, अब समय
अच्छा आ रहा है और सफलता मिलेगी।
सटीक विश्लेषण।।
ReplyDeleteधन्यवाद।।
https://bit.ly/2ZKs8KT