पिछले दो दशक में भारत की सफलता की कहानियों में सबसे बड़ी भूमिका टेलीकम्युनिकेशंस की है. इस दौर में जहाँ निजी क्षेत्र की कई कंपनियाँ तेजी से आगे बढ़ीं, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की बीएसएनएल और एमटीएनएल के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है. यह संकट पूँजी, तकनीक और प्रबंधकीय कौशल तीनों में किसी न किसी प्रकार की खामी का संकेत दे रहा है. सरकार के सामने पहली बड़ी चुनौती इन कंपनियों को बचाने और निजी क्षेत्र की कंपनियों के मुकाबले में खड़ा करने की है. पिछले कई महीनों से खबरें हैं कि हजारों कर्मचारियों की छँटनी होने जा रही है. नई सरकार के सामने बड़ी चुनौती इस बात की है कि कोई अलोकप्रिय फैसला किए बगैर इस संकट का समाधान करे.
खबर है कि बीएसएनएल ने सरकार से कहा है कि अब हम काम नहीं चला पाएंगे. जून के महीने का वेतन देने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं. संस्था पर करीब 13,000 करोड़ रुपये की देनदारी है, जिसके कारण कार्य-संचालन असम्भव है. जून के महीने की तनख्वाह के लिए 850 करोड़ रुपये का इंतजाम करना तक मुश्किल है.
बीएसएनएल देश के तीन उन बड़े सार्वजनिक उपक्रमों में शामिल है, जो भारी घाटे के शिकार हैं. दूरसंचार किसी जमाने में सरकारी विभाग होता था. इन्हें जब कम्पनी बनाया गया तब बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों का तबादला यहाँ किया गया था. इस वक्त बीएसएनएल में 1.76 लाख और एमटीएनएल में 22,000 कर्मचारी हैं. 4-जी सेवा नहीं होने के कारण बीएसएनएल का प्रतियोगिता में खड़ा होना मुश्किल है. निजी क्षेत्र से मुकाबले के लिए प्रबंधकीय और तकनीकी दोनों तरह के कौशलों की इसे जरूरत है. उधर माली हालत खस्ता है.
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार दिसम्बर, 2018 तक बीएसएनएल का ऑपरेटिंग घाटा 90,000 करोड़ के ऊपर चला गया था. कम्पनी के मोबाइल सब्स्क्राइबरों की जो संख्या सन 2004-05 में थी, आज उसकी आधी भी नहीं रह गई है. कम्पनी का मार्केट शेयर 10 फीसदी भी नहीं है, जबकि खर्चे सबसे ज्यादा हैं. इसके पास जो सब्स्क्राइबर हैं, उनमें से ज्यादातर कम राजस्व देने वाले हैं, जबकि पैसे वाले और ज्यादा राजस्व देने वाले ग्राहक निजी कंपनियों के पास हैं.
बीएसएनएल, एमटीएनएल के अलावा एयर इंडिया तीन सबसे बड़े नुकसान वाली सरकारी कंपनियाँ हैं. इन कंपनियों का राजस्व उतना नहीं है कि कर्जा उतरता रहे और काम भी चलता रहे. मोदी सरकार अपने पिछले कार्यकाल में लगातार कहती रही कि इनकी व्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव किया जाएगा, पर अभी तक कुछ हुआ नहीं. अब लगता है कि सरकार कुछ बड़े कदम उठाने जा रही है.
व्यावहारिक कारणों से टेलीकॉम कंपनियों को बंद भी नहीं किया जा सकता. सरकार की ओर से संकेत मिला है कि फिलहाल बीएसएनएल को 2500 करोड़ रुपये का बैंकों से कर्ज दिलाया जाएगा, ताकि उसका काम चले. इस धनराशि से वेतन देने और संचालन का खर्च ही निकल पाएगा. करीब छह महीने तक नैया चलती रहेगी. इस बीच पुनरुद्धार की योजना लागू हुई, तो शायद ये कंपनियाँ रास्ते पर आ जाएं. अलबत्ता विशेषज्ञ मानते हैं कि 2500 करोड़ रुपये बहुत छोटी धनराशि है.
पिछले कुछ समय से कहा जा रहा है कि इन दोनों कंपनियों के लिए सरकार 18,000 करोड़ रुपये के पैकेज की व्यवस्था करने वाली है, जिसके लिए कैबिनेट की स्वीकृति लेनी है. मोदी सरकार की केंद्र में फिर से वापसी के बाद कहा जा रहा है कि दोनों दूरसंचार कंपनियों का रिवाइवल सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है. दूरसंचार मंत्रालय का ध्यान इन दिनों इसी विषय पर केंद्रित है.
बीएसएनएल को चलाने के लिए कर्मचारियों की संख्या में भारी कटौती करनी होगी. तकरीबन आधे कर्मचारी कम करने होंगे. इनके वीआरएस के लिए करीब 6,365 करोड़ रुपये की जरूरत है. इसके 1.76 लाख कर्मचारियों में से केवल 50 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की संख्या 40,000 से ऊपर है. इनके लिए आकर्षक वीआरएस पैकेज की कीमत काफी बड़ी होगी. 4-जी के लिए 6,767 करोड़ रुपये चाहिए.
दोनों कंपनियों को सन 2010 के बाद से स्पेक्ट्रम की कीमत देनी पड़ रही है और निजी कंपनियों से प्रतियोगिता करनी पड़ रही है. इनके पास नकदी का प्रवाह अच्छा नहीं है, और कर्ज ज्यादा है, इसलिए संकट है. हाल में खबर थी कि सरकार इनके पास उपलब्ध फाइबर-आधारित नेटवर्क को पट्टे पर देना चाहती है, ताकि इनके पास नकदी आती रहे. सरकार कुछ बैंकों और विदेशी फंड मैनेजरों से भी बात कर रही है, ताकि इनके लिए नकदी की व्यवस्था की जा सके.
चुनाव परिणाम आने के पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने सिद्धांततः यह स्वीकार कर लिया था कि दोनों कंपनियों के बेल-आउट पैकेज दिए जाएंगे. उसी दिशा में अब काम हो रहा है. इसके लिए दूरसंचार विभाग को योजना बनाने का जिम्मा दिया गया था, साथ ही इन्हें 4-जी स्पेक्ट्रम आबंटन करने का निर्देश भी दिया गया था. कर्मचारियों के लिए वीआरएस स्कीम भी तैयार हो रही है. बीएसएनएल के पास काफी जमीन भी पड़ी है. पूँजी प्राप्त करने के लिए उसका इस्तेमाल भी हो सकता है.
बीएसएनएल की अव्यवस्था के कारण भारतनेट परियोजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में तेज इंटरनेट सेवा पहुँचाने का काम भी प्रभावित हो रहा है. सरकार देश में 5-जी लाने की तैयारी भी कर रही है. इस साल उसके स्पेक्ट्रम की नीलामी करने और 2020 में सेवा शुरू करने का विचार है. दिसम्बर, 2018 में टीआरएआई ने 4.9 अरब रुपये (4.9 ट्रिलियन) के आधार मूल्य पर करीब 8,644 मेगाहर्ट्ज टेलीकॉम फ्रीक्वेंसी की नीलामी का सुझाव दिया था. इसमें 5-जी की रेडियो तरंगे भी शामिल हैं. इससे राजस्व प्राप्ति होगी. दूरसंचार कंपनियों की बदहाली और चीनी कम्पनी ह्वावे के खिलाफ अमेरिकी अभियान के कारण इस काम में विलम्ब हो रहा है. बहरहाल हमारी टेलीकॉम क्रांति तभी पूरी होगी, जब ये दोनों कंपनियाँ कार्य कुशल होंगी.
inext में 26 जून. 2019 को
खबर है कि बीएसएनएल ने सरकार से कहा है कि अब हम काम नहीं चला पाएंगे. जून के महीने का वेतन देने के लिए भी हमारे पास पैसे नहीं हैं. संस्था पर करीब 13,000 करोड़ रुपये की देनदारी है, जिसके कारण कार्य-संचालन असम्भव है. जून के महीने की तनख्वाह के लिए 850 करोड़ रुपये का इंतजाम करना तक मुश्किल है.
बीएसएनएल देश के तीन उन बड़े सार्वजनिक उपक्रमों में शामिल है, जो भारी घाटे के शिकार हैं. दूरसंचार किसी जमाने में सरकारी विभाग होता था. इन्हें जब कम्पनी बनाया गया तब बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों का तबादला यहाँ किया गया था. इस वक्त बीएसएनएल में 1.76 लाख और एमटीएनएल में 22,000 कर्मचारी हैं. 4-जी सेवा नहीं होने के कारण बीएसएनएल का प्रतियोगिता में खड़ा होना मुश्किल है. निजी क्षेत्र से मुकाबले के लिए प्रबंधकीय और तकनीकी दोनों तरह के कौशलों की इसे जरूरत है. उधर माली हालत खस्ता है.
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार दिसम्बर, 2018 तक बीएसएनएल का ऑपरेटिंग घाटा 90,000 करोड़ के ऊपर चला गया था. कम्पनी के मोबाइल सब्स्क्राइबरों की जो संख्या सन 2004-05 में थी, आज उसकी आधी भी नहीं रह गई है. कम्पनी का मार्केट शेयर 10 फीसदी भी नहीं है, जबकि खर्चे सबसे ज्यादा हैं. इसके पास जो सब्स्क्राइबर हैं, उनमें से ज्यादातर कम राजस्व देने वाले हैं, जबकि पैसे वाले और ज्यादा राजस्व देने वाले ग्राहक निजी कंपनियों के पास हैं.
बीएसएनएल, एमटीएनएल के अलावा एयर इंडिया तीन सबसे बड़े नुकसान वाली सरकारी कंपनियाँ हैं. इन कंपनियों का राजस्व उतना नहीं है कि कर्जा उतरता रहे और काम भी चलता रहे. मोदी सरकार अपने पिछले कार्यकाल में लगातार कहती रही कि इनकी व्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव किया जाएगा, पर अभी तक कुछ हुआ नहीं. अब लगता है कि सरकार कुछ बड़े कदम उठाने जा रही है.
व्यावहारिक कारणों से टेलीकॉम कंपनियों को बंद भी नहीं किया जा सकता. सरकार की ओर से संकेत मिला है कि फिलहाल बीएसएनएल को 2500 करोड़ रुपये का बैंकों से कर्ज दिलाया जाएगा, ताकि उसका काम चले. इस धनराशि से वेतन देने और संचालन का खर्च ही निकल पाएगा. करीब छह महीने तक नैया चलती रहेगी. इस बीच पुनरुद्धार की योजना लागू हुई, तो शायद ये कंपनियाँ रास्ते पर आ जाएं. अलबत्ता विशेषज्ञ मानते हैं कि 2500 करोड़ रुपये बहुत छोटी धनराशि है.
पिछले कुछ समय से कहा जा रहा है कि इन दोनों कंपनियों के लिए सरकार 18,000 करोड़ रुपये के पैकेज की व्यवस्था करने वाली है, जिसके लिए कैबिनेट की स्वीकृति लेनी है. मोदी सरकार की केंद्र में फिर से वापसी के बाद कहा जा रहा है कि दोनों दूरसंचार कंपनियों का रिवाइवल सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है. दूरसंचार मंत्रालय का ध्यान इन दिनों इसी विषय पर केंद्रित है.
बीएसएनएल को चलाने के लिए कर्मचारियों की संख्या में भारी कटौती करनी होगी. तकरीबन आधे कर्मचारी कम करने होंगे. इनके वीआरएस के लिए करीब 6,365 करोड़ रुपये की जरूरत है. इसके 1.76 लाख कर्मचारियों में से केवल 50 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की संख्या 40,000 से ऊपर है. इनके लिए आकर्षक वीआरएस पैकेज की कीमत काफी बड़ी होगी. 4-जी के लिए 6,767 करोड़ रुपये चाहिए.
दोनों कंपनियों को सन 2010 के बाद से स्पेक्ट्रम की कीमत देनी पड़ रही है और निजी कंपनियों से प्रतियोगिता करनी पड़ रही है. इनके पास नकदी का प्रवाह अच्छा नहीं है, और कर्ज ज्यादा है, इसलिए संकट है. हाल में खबर थी कि सरकार इनके पास उपलब्ध फाइबर-आधारित नेटवर्क को पट्टे पर देना चाहती है, ताकि इनके पास नकदी आती रहे. सरकार कुछ बैंकों और विदेशी फंड मैनेजरों से भी बात कर रही है, ताकि इनके लिए नकदी की व्यवस्था की जा सके.
चुनाव परिणाम आने के पहले प्रधानमंत्री कार्यालय ने सिद्धांततः यह स्वीकार कर लिया था कि दोनों कंपनियों के बेल-आउट पैकेज दिए जाएंगे. उसी दिशा में अब काम हो रहा है. इसके लिए दूरसंचार विभाग को योजना बनाने का जिम्मा दिया गया था, साथ ही इन्हें 4-जी स्पेक्ट्रम आबंटन करने का निर्देश भी दिया गया था. कर्मचारियों के लिए वीआरएस स्कीम भी तैयार हो रही है. बीएसएनएल के पास काफी जमीन भी पड़ी है. पूँजी प्राप्त करने के लिए उसका इस्तेमाल भी हो सकता है.
बीएसएनएल की अव्यवस्था के कारण भारतनेट परियोजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में तेज इंटरनेट सेवा पहुँचाने का काम भी प्रभावित हो रहा है. सरकार देश में 5-जी लाने की तैयारी भी कर रही है. इस साल उसके स्पेक्ट्रम की नीलामी करने और 2020 में सेवा शुरू करने का विचार है. दिसम्बर, 2018 में टीआरएआई ने 4.9 अरब रुपये (4.9 ट्रिलियन) के आधार मूल्य पर करीब 8,644 मेगाहर्ट्ज टेलीकॉम फ्रीक्वेंसी की नीलामी का सुझाव दिया था. इसमें 5-जी की रेडियो तरंगे भी शामिल हैं. इससे राजस्व प्राप्ति होगी. दूरसंचार कंपनियों की बदहाली और चीनी कम्पनी ह्वावे के खिलाफ अमेरिकी अभियान के कारण इस काम में विलम्ब हो रहा है. बहरहाल हमारी टेलीकॉम क्रांति तभी पूरी होगी, जब ये दोनों कंपनियाँ कार्य कुशल होंगी.
inext में 26 जून. 2019 को
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