चुनाव का आखिरी दौर पूरा होने और चुनाव परिणाम आने के बीच कुछ समय है. इस दौरान एक्ज़िट पोल की शक्ल में पहले अनुमान सामने आए हैं, पर कांग्रेस, ममता बनर्जी और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं ने इसे गप्पबाजी बताया है. बहरहाल हमें 23 का इंतजार करना होगा. इस दौरान तीन मुख्य सवाल विश्लेषकों से लेकर सामान्य व्यक्ति के मन में अभी हैं. पहला सवाल है कि परिणाम क्या होंगे? सरकार किसकी बनेगी? यह सवाल पहले सवाल का ही पुछल्ला है. इसके बाद का सवाल है कि आने वाली सरकार की चुनौतियाँ और वरीयताएं क्या होंगी? खबर है कि लम्बे अरसे से खाद्य सामग्री की कीमतों में जो ठहराव था, वह खत्म होने वाला है. खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ने वाली है. मॉनसून फीका होने का अंदेशा है. राजकोषीय घाटा अनुमान से ऊपर जा चुका है. पर ये बातें बाद की हैं. असल सवाल है कि वोटर किसके हाथ सत्ता सौंपने वाला है?
चुनाव परिणामों को लेकर जो मगज़मारी इस वक्त चल रही है उसमें कई तरह की दृश्यावलियों की चर्चा है. मोटे तौर पर तीन मुख्य परिदृश्य बन रहे हैं. पहला यह कि बीजेपी और उसके गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा. साफ बहुमत मिलने का मतलब है कि कम से कम अगले पाँच साल के लिए कई तरह के सिरदर्द खत्म होंगे. अलबत्ता कुछ नए सिरदर्द फौरन ही शुरू भी हो जाएंगे. काफी लोगों को यकीन है कि ऐसे या वैसे सरकार मोदी की बन जाएगी.
दूसरा सिनारियो है त्रिशंकु संसद का. ऐसा हुआ तब भी पहला अनुमान यही है कि चुनाव पूर्व गठबंधन के रूप में एनडीए सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगा. उसके संख्याबल पर निर्भर करेगा कि सरकार की संरचना क्या होगी. यकीनन उसे बाहर से समर्थन लेना होगा. जरूरत छोटी हुई तो समर्थन मिल भी जाएगा. आज के हालात 1996 जैसे नहीं हैं, जब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार बहुमत जुटाने में विफल रही. दोनों प्रमुख राष्ट्रीय गठबंधनों से बाहर कुछ राजनीतिक शक्तियाँ हैं, जो एनडीए के समर्थन में आएंगी. अलबत्ता उनकी कीमत होगी और कुछ शर्तें भी. कहा जा रहा है कि क्षेत्रीय दल नरेन्द्र मोदी को शायद नेता के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे.
तीसरा सिनारियो एनडीए की जबर्दस्त हार से जुड़ा है. यानी कि उसके पास संख्या-बल इतना भी नहीं होगा कि वह बाहर से समर्थन लेकर सरकार बना सके. उसका संख्या-बल 200 के नीचे रहने पर ही ऐसा सम्भव है. ऐसी स्थिति में गैर-भाजपा सरकार बन सकती है. उसमें भी दो प्रकार की सम्भावनाएं हैं. विरोधी दलों के इस गठजोड़ के केन्द्र में कांग्रेस होगी या नहीं. सब कुछ कांग्रेस के संख्याबल पर निर्भर करेगा. कांग्रेस यदि 100 के नीचे रही, तो क्षेत्रीय-क्षत्रप मंच पर होंगे. मायावती, ममता, चंद्रशेखर राव और देवेगौडा जैसे नेता इसके लिए तैयार बैठे हैं.
एक बात साफ है कि फिलहाल देश में शुद्ध गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा सरकार नहीं बन सकती. क्षेत्रीय-क्षत्रपों को कांग्रेस या बीजेपी का समर्थन लेना होगा. हाँ इतना लगता है कि गैर-भाजपा सरकार बनने की कोई भी नौबत आई, तो कांग्रेस तेजी से उसे अपना समर्थन घोषित कर देगी. जैसा कर्नाटक में पिछले साल हुआ. कांग्रेस ने पेशबंदी कर ली है. सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों से कहा है कि 23 को वे दिल्ली में ही रहें. किसी भी वक्त बड़ा फैसला हो सकता है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने पिछले हफ्ते पहले कहा कि प्रधानमंत्री पद को लेकर हमारी कोई शर्त नहीं है, पर दो दिन बाद ही उसकी सफाई दी कि हम बीजेपी को रोकना चाहते हैं, पर हमारी दिलचस्पी सरकार बनाने में है. इन सारी बातों के तमाम किन्तु-परन्तु हैं, जो परिणामों पर निर्भर हैं. पहली पहेली है कि बीजेपी को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात और कर्नाटक में कितना नुकसान होगा. यह नुकसान 75 से 100 या उससे भी ज्यादा का होगा, तभी एनडीए का पराभव सम्भव है. एनडीए के 225 से ऊपर जाने के बाद पचासेक सीटों का इंतजाम करने में दिक्कत नहीं होगी.
अब देखें कि कांग्रेसी उम्मीदें क्या हैं? क्या वह इन छह राज्यों में (इनमें सातवें महाराष्ट्र को भी जोड़ लें) 100 या उससे ज्यादा अतिरिक्त सीटें जीतेगी? तभी वह डेढ़ सौ के करीब पहुँचेगी. डीएमके, राजद और राकांपा को भी जोड़ लें, तो क्या यूपीए 200 तक पहुँचेगा? तीसरे मोर्चे वाले सपा-बसपा, ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक, वाईएसआर और दूसरी रेज़गारी कितनी होगी? कई दल ऐसे हैं, जो मोल-भाव करके किसी के भी साथ जा सकते हैं.
आंध्र, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश विधान सभाओं के चुनाव भी हो रहे हैं. इनमें आंध्र और ओडिशा के परिणामों का केन्द्र की सरकार के गठन के साथ रिश्ता है. केन्द्र में एनडीए फिर से आया, तो कर्नाटक में बदलाव हो सकता है. नरेन्द्र मोदी ने बंगाल के 40 विधायकों के ‘आउटरीच’ की बात कही थी. उसकी सच्चाई भी सामने आएगी. यह भी मत भूलिए कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस पार्टी बहुत क्षीण बहुमत के सहारे है. एनडीए की सरकार बनी तो राज्यों के सत्ता-समीकरण एकबार फिर से बदलेंगे.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने डीएमके के एमके स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से मुलाकातें की हैं. सोनिया गांधी ने ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, वाईएसआर कांग्रेस और यूपी के सपा-बसपा गठबंधन सभी के साथ सम्पर्क बनाया है. वे चुनाव-प्रचार में भले ही शामिल नहीं हुईं, पर इस वक्त उनका पूरा ध्यान जन-सम्पर्क पर है. कांग्रेस के जीवन-मरण का सवाल है. एक खबर है कि विरोधी दलों के नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर उनसे कहेंगे कि चुनाव में खंडित जनादेश आने पर सबसे बड़े राजनीतिक दल को सरकार बनाने के लिए ना बुलाएं.
यह अटकल इस उम्मीद पर है कि जनादेश खंडित होगा. कांग्रेस और उसके सहयोगी दल बीजेपी को किसी भी कीमत पर अपदस्थ करना चाहते हैं. पर ऐसा तभी होगा, जब एनडीए 200 पार नहीं कर पाए. सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ऐसा होगा?
Inext में प्रकाशित
चुनाव परिणामों को लेकर जो मगज़मारी इस वक्त चल रही है उसमें कई तरह की दृश्यावलियों की चर्चा है. मोटे तौर पर तीन मुख्य परिदृश्य बन रहे हैं. पहला यह कि बीजेपी और उसके गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा. साफ बहुमत मिलने का मतलब है कि कम से कम अगले पाँच साल के लिए कई तरह के सिरदर्द खत्म होंगे. अलबत्ता कुछ नए सिरदर्द फौरन ही शुरू भी हो जाएंगे. काफी लोगों को यकीन है कि ऐसे या वैसे सरकार मोदी की बन जाएगी.
दूसरा सिनारियो है त्रिशंकु संसद का. ऐसा हुआ तब भी पहला अनुमान यही है कि चुनाव पूर्व गठबंधन के रूप में एनडीए सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगा. उसके संख्याबल पर निर्भर करेगा कि सरकार की संरचना क्या होगी. यकीनन उसे बाहर से समर्थन लेना होगा. जरूरत छोटी हुई तो समर्थन मिल भी जाएगा. आज के हालात 1996 जैसे नहीं हैं, जब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार बहुमत जुटाने में विफल रही. दोनों प्रमुख राष्ट्रीय गठबंधनों से बाहर कुछ राजनीतिक शक्तियाँ हैं, जो एनडीए के समर्थन में आएंगी. अलबत्ता उनकी कीमत होगी और कुछ शर्तें भी. कहा जा रहा है कि क्षेत्रीय दल नरेन्द्र मोदी को शायद नेता के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे.
तीसरा सिनारियो एनडीए की जबर्दस्त हार से जुड़ा है. यानी कि उसके पास संख्या-बल इतना भी नहीं होगा कि वह बाहर से समर्थन लेकर सरकार बना सके. उसका संख्या-बल 200 के नीचे रहने पर ही ऐसा सम्भव है. ऐसी स्थिति में गैर-भाजपा सरकार बन सकती है. उसमें भी दो प्रकार की सम्भावनाएं हैं. विरोधी दलों के इस गठजोड़ के केन्द्र में कांग्रेस होगी या नहीं. सब कुछ कांग्रेस के संख्याबल पर निर्भर करेगा. कांग्रेस यदि 100 के नीचे रही, तो क्षेत्रीय-क्षत्रप मंच पर होंगे. मायावती, ममता, चंद्रशेखर राव और देवेगौडा जैसे नेता इसके लिए तैयार बैठे हैं.
एक बात साफ है कि फिलहाल देश में शुद्ध गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा सरकार नहीं बन सकती. क्षेत्रीय-क्षत्रपों को कांग्रेस या बीजेपी का समर्थन लेना होगा. हाँ इतना लगता है कि गैर-भाजपा सरकार बनने की कोई भी नौबत आई, तो कांग्रेस तेजी से उसे अपना समर्थन घोषित कर देगी. जैसा कर्नाटक में पिछले साल हुआ. कांग्रेस ने पेशबंदी कर ली है. सोनिया गांधी ने अपने सहयोगियों से कहा है कि 23 को वे दिल्ली में ही रहें. किसी भी वक्त बड़ा फैसला हो सकता है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने पिछले हफ्ते पहले कहा कि प्रधानमंत्री पद को लेकर हमारी कोई शर्त नहीं है, पर दो दिन बाद ही उसकी सफाई दी कि हम बीजेपी को रोकना चाहते हैं, पर हमारी दिलचस्पी सरकार बनाने में है. इन सारी बातों के तमाम किन्तु-परन्तु हैं, जो परिणामों पर निर्भर हैं. पहली पहेली है कि बीजेपी को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात और कर्नाटक में कितना नुकसान होगा. यह नुकसान 75 से 100 या उससे भी ज्यादा का होगा, तभी एनडीए का पराभव सम्भव है. एनडीए के 225 से ऊपर जाने के बाद पचासेक सीटों का इंतजाम करने में दिक्कत नहीं होगी.
अब देखें कि कांग्रेसी उम्मीदें क्या हैं? क्या वह इन छह राज्यों में (इनमें सातवें महाराष्ट्र को भी जोड़ लें) 100 या उससे ज्यादा अतिरिक्त सीटें जीतेगी? तभी वह डेढ़ सौ के करीब पहुँचेगी. डीएमके, राजद और राकांपा को भी जोड़ लें, तो क्या यूपीए 200 तक पहुँचेगा? तीसरे मोर्चे वाले सपा-बसपा, ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक, वाईएसआर और दूसरी रेज़गारी कितनी होगी? कई दल ऐसे हैं, जो मोल-भाव करके किसी के भी साथ जा सकते हैं.
आंध्र, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश विधान सभाओं के चुनाव भी हो रहे हैं. इनमें आंध्र और ओडिशा के परिणामों का केन्द्र की सरकार के गठन के साथ रिश्ता है. केन्द्र में एनडीए फिर से आया, तो कर्नाटक में बदलाव हो सकता है. नरेन्द्र मोदी ने बंगाल के 40 विधायकों के ‘आउटरीच’ की बात कही थी. उसकी सच्चाई भी सामने आएगी. यह भी मत भूलिए कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस पार्टी बहुत क्षीण बहुमत के सहारे है. एनडीए की सरकार बनी तो राज्यों के सत्ता-समीकरण एकबार फिर से बदलेंगे.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने डीएमके के एमके स्टालिन और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से मुलाकातें की हैं. सोनिया गांधी ने ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, वाईएसआर कांग्रेस और यूपी के सपा-बसपा गठबंधन सभी के साथ सम्पर्क बनाया है. वे चुनाव-प्रचार में भले ही शामिल नहीं हुईं, पर इस वक्त उनका पूरा ध्यान जन-सम्पर्क पर है. कांग्रेस के जीवन-मरण का सवाल है. एक खबर है कि विरोधी दलों के नेता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर उनसे कहेंगे कि चुनाव में खंडित जनादेश आने पर सबसे बड़े राजनीतिक दल को सरकार बनाने के लिए ना बुलाएं.
यह अटकल इस उम्मीद पर है कि जनादेश खंडित होगा. कांग्रेस और उसके सहयोगी दल बीजेपी को किसी भी कीमत पर अपदस्थ करना चाहते हैं. पर ऐसा तभी होगा, जब एनडीए 200 पार नहीं कर पाए. सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ऐसा होगा?
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 119वां जन्मदिवस - सुमित्रानंदन पंत जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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