पिछला हफ़्ता अर्थ-व्यवस्था को लेकर खड़े किए गए सवालों
के कारण विवादों में रहा, पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया कि बीजेपी ने 2019 के
मद्देनजर एक महत्वपूर्ण दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। पार्टी ने अपने राष्ट्रवादी
एजेंडा के साथ-साथ भ्रष्टाचार के विरोध और गरीबों की हित-रक्षा पर ध्यान केंद्रित
करने का फैसला किया है। अब मोदी का नया सूत्र-वाक्य है, ‘गरीब का सपना, मेरी सरकार का सपना है।’ प्रधानमंत्री ने 25 सितम्बर को दीनदयाल
ऊर्जा भवन का लोकार्पण करते हुए देश के हरेक घर तक बिजली पहुँचाने की ‘सौभाग्य’ योजना का ऐलान किया, जो इस दिशा में एक कदम
है। इस योजना के तहत 31 मार्च 2019 तक देश के हरेक घर तक बिजली कनेक्शन पहुँचा
दिया जाएगा।
पिछले साल मई में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की घोषणा
हुई थी, जो काफी लोकप्रिय हुई है। इस योजना के अंतर्गत गरीब महिलाओं को मुफ्त एलपीजी
गैस कनेक्शन दिए जाते हैं। इस कार्यक्रम ने गरीब महिलाओं को मिट्टी के चूल्हे से
आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बताते हैं कि इस साल उत्तर प्रदेश
के चुनावों में पार्टी को मिली जीत के पीछे दूसरे कारणों के साथ-साथ उज्ज्वला
योजना की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। ग्रामीण महिलाओं की रसोई में अब गैस के साथ-साथ
बिजली की रोशनी का और इंतजाम किया जा रहा है।
नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल पं दीनदयाल उपाध्याय के जन्म
दिन के मौके पर ही ‘गरीब कल्याण’ वर्ष का ऐलान किया था। उन्होंने तब कहा, इस
सरकार ने 30 करोड़ लोगों का खाता खुलवाया और 15 करोड़ लोगों को बीमा दिया। नौ
करोड़ खाता धारकों को बिना किसी गारंटी के 3.5 लाख करोड़ रुपये का लोन दिया गया। उसके
एक साल बाद अब उनका कहना था, नए भारत में हर घर में बिजली का कनेक्शन होगा। अभी
देश में 25 करोड़ घर हैं, जिनमें से 4 करोड़ घरों में बिजली का कनेक्शन नहीं है।
इस योजना का पूरा नाम प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना संक्षेप
में ‘सौभाग्य’ है। इसके तहत 31 मार्च, 2019 तक हर घर में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य
रखा गया है। इस घोषणा के साथ नरेन्द्र मोदी ने जो बातें कहीं उनमें बीजेपी की
चुनावी-रणनीति के सूत्र छिपे हैं। उन्होंने कहा, ‘किसी ने नहीं सोचा था कि कोई ऐसी सरकार आएगी, जो गरीबों का बैंक में खाता खुलवाएगी। महिलाओं
को रसोई में धुएं से मुक्ति दिलवाएगी। स्टेंट की कीमतों को कम कर देगी। घुटने के
इम्प्लांट को गरीब की पहुँच में ले आएगी और जो इस बारे में सोचेगी कि हवाई चप्पल
पहने वाला हवाई जहाज में उड़ सके।’
गाँव और गरीब भारतीय राजनीति का सबसे बुनियादी सूत्र है।
पिछले साल नोटबंदी का सबसे ज्यादा प्रभाव इसी तबके पर पड़ा, पर उन्हें लगा कि यह
सब हमारे लिए हो रहा है। विडंबना है कि इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के उत्तरार्ध
में हम हर कोने तक बिजली, पानी और सड़कों की सुविधाएं नहीं पहुँचा पाए हैं। सन
1947 में देश के छह लाख से ज्यादा गाँवों में से करीब 1500 में बिजली थी। सन 1991
में ऐसे गाँवों की संख्या बढ़कर 4,81,124 हो गई। इसके अगले दशक में यह संख्या बजाय
बढ़ने के 4,74,982 हो गई। यह संख्या क्यों घटी? ऐसा राज्यों के बिजली बोर्डों की लगातार
बिगड़ती दशा के कारण हुआ। घुन कहीं और लगा है।
सन 2005 में यूपीए सरकार ने राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण
योजना को शुरू किया और 2015 में मोदी सरकार ने दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति
योजना शुरू की। ग्राम ज्योति योजना में यूपीए सरकार की गई राजीव गांधी ग्रामीण
विद्युतीकरण योजना को भी समाहित कर लिया गया है। इसी कार्यक्रम को अब मोदी सरकार
तार्किक परिणति तक पहुँचाना चाहती है।
गाँव और घर में बिजली आना कई तरह के बदलावों को जन्म
देता है। इसका सीधा रिश्ता कृषि उपज में वृद्धि से है। छोटे और घरेलू उद्यमों के विकास में इस
बिजली की भूमिका है। इसके कारण रोजगार के नए अवसर तैयार होते हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग
(एटीएम) सेवाओं की पहुँच गाँव तक होती है। रेडियो, टेलीफोन, टेलीविजन, इंटरनेट और मोबाइल पहुँचते हैं। स्कूलों, पंचायतों, अस्पतालों
और पुलिस स्टेशनों की भूमिका बढ़ती है। मोटे तौर पर सामाजिक कल्याण और ग्रामीण
क्षेत्रों के व्यापक विकास को सुनिश्चित करना इसका उद्देश्य है।
गाँवों की बदहाली के साथ देश की बदहाली भी जुड़ी है। सच
है कि देश के तमाम इलाकों में लोगों ने बिजली के अवैध कनेक्शन ले रखे हैं। इन
कनेक्शनों को औपचारिक रूप देने से बिजली की उपलब्धता और उपभोग के आँकड़े सही ढंग
से सामने आएंगे। मुफ्त की संस्कृति को बढ़ावा भी नहीं मिलना चाहिए। यह भी देखना
होगा कि गरीब लोगों में बिजली के उपभोग की क्षमता भी है या नहीं।
आर्थिक नीतियों का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों की उपभोग
क्षमता को बढ़ाना भी है। यह योजना गरीबों को बिजली कनेक्शन लेने के आर्थिक भार से
मुक्त कर देगी, पर क्या वे उसके उपभोग की कीमत अदा कर सकेंगे? उन्हें मुफ्त में बिजली उपभोग का आदत नहीं पड़नी
चाहिए। वे मुफ्त की बिजली के आदी होंगे तो फिर उपभोग के महत्व को समझ भी नहीं
पाएंगे। अर्थ-व्यवस्था की संवृद्धि में बिजली उत्पादन की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
सिद्धांततः भारत में बिजली आवश्यकता से अधिक है, पर
व्यवहार में यह अधिकता दिखाई नहीं पड़ती। इसकी वजह है क्षमता का सही उपभोग नहीं हो
पाना। देश में कोयले और लिग्नाइट से चलने वाले बिजलीघरों का प्लांट लोड फैक्टर 2009-10
में 77.5 फीसदी था, जो 2016-17 में 59.88 फीसदी हो गया है। इसकी वजह यह भी है कि
राज्यों में बिजली की माँग घटी है। माँग घटने का कारण यह नहीं कि बिजली की जरूरत
नहीं है, बल्कि राज्यों की आर्थिक स्थिति का ठीक नहीं होना है। इस तरह से यह एक
विषद चक्र है।
दो साल पहले इसके निदान के लिए उज्ज्वल डिस्कॉम
एश्योरेंस योजना (उदय) शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य था राज्य एवं केंद्र शासित
प्रदेशों की घाटे में चल रही विद्युत वितरण कंपनियों को घाटे से उबारना और उनकी वित्तीय
स्थिति को सुदृढ़ करना। इससे स्थितियाँ सुधरी जरूर हैं, पर बड़ा बदलाव नहीं हुआ है।
बहरहाल हमें कोशिश करनी होगी कि बिजली उत्पादन बढ़े और उसके वितरण की व्यवस्था
बेहतर हो और उसकी वाजिब कीमत भी हासिल हो। इससे अर्थ-व्यवस्था में तेजी आएगी, जो
रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी।
हरिभूमि में प्रकाशित
सरकार के इरादे नेक हैं और सरकार गरीबों के हित के लिए लगातार काम कर रही है.
ReplyDeleteअनिता जी से पूर्णतः असहमत.
ReplyDeleteअयंगर