Saturday, October 14, 2017

राहुल के पुराने तरकश से निकले नए तीर


कुछ महीने पहले तक माना जा रहा था कि मोदी सरकार मजबूत जमीन पर खड़ी है और वह आसानी से 2019 का चुनाव जीत ले जाएगी। पर अब इसे लेकर संदेह भी व्यक्त किए जाने लगे हैं। बीजेपी की लोकप्रियता में गिरावट का माहौल बन रहा है। खासतौर से जीएसटी लागू होने के बाद जो दिक्कतें पैदा हो रहीं हैं, उनके राजनीतिक निहितार्थ सिर उठाने लगे हैं। संशय की इस बेला में गुजरात दौरे पर गए राहुल गांधी की टिप्पणियों ने मसालेदार तड़का लगाया है।

पिछले कुछ दिन से माहौल बनने लगा है कि 2019 के चुनाव मोदी बनाम राहुल होंगे। राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बनने को तैयार हैं। पहली बार लगता है कि वे खुलकर सामने आने वाले हैं। पर उसके पहले कुछ किन्तु-परन्तु बाकी हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या गुजरात में कांग्रेसी अभिलाषा पूरी होगी? यदि हुई तो उसका परिणाम क्या होगा और नहीं हुई तो क्या होगा?


राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया, ‘2028 में मोदीजी गुजरात के हर व्यक्ति को चाँद पर एक घर देंगे और 2030 में मोदीजी चाँद को धरती पर ले आएंगे। अगला ट्वीट था,मैं अब आपको उनकी अगली लाइन बताता हूँ, 2025 तक मोदीजी गुजरात के हर व्यक्ति को चाँद पर जाने के लिए रॉकेट देंगे। एक और ट्वीट था, मोदीजी, आपकी पार्टी 22 साल से यहां सरकार में है और अब आप कहते हैं कि 2022 तक आप गुजरात से गरीबी मिटा देंगे।

राहुल की बातों में रस आने लगा है। किसी आयोजन में उन्होंने ने कहा, हुं गुजरात नू डीकरो छुं। मैं गुजरात का बेटा हूँ। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले वे अलग रंग में नजर आ रहे हैं। आदिवासियों के साथ नाच रहे हैं, ढपली बजा रहे हैं, नौजवानों के साथ गरबा कर रहे हैं और ट्विटर पर अमित शाह के नाम पर फब्तियाँ कस रहे हैं। संयोग है या कोई योजना कि अमित शाह के बेटे के कारोबार का खाता भी इन्हीं दिनों खुलकर सामने आया है। इसपर राहुल ने कहा है, मोदी सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का नाम बदलकर अमित शाह के बेटे को बचाओ कर देना चाहिए।

जागीं कांग्रेसी उम्मीद की किरणें

कांग्रेस समर्थकों के मन में अचानक उम्मीद की किरणें जागी हैं। उन्हें लगता है कि राहुल जमीन से जुड़ रहे हैं। गुजरात की नवसृजन यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने विद्यार्थियों से संवाद किया, मंदिरों में गए और भजन-कीर्तन भी किया। गुजरात में राहुल ने कहा कि राज्य में अंडरकरंट है और बीजेपी पूरी तरह हिल गई है। ऊपर से शांति दिखाई दे रही है, लेकिन नीचे बीजेपी की टीम साफ हो गई है। कुछ महीने बाद गुजरात में नई सरकार आएगी और वह सरकार पीएम के 'मन की बात' की सरकार नहीं होगी।

गुजरात में दलितों पर हुए हमलों, जीएसटी को लेकर व्यापारियों के विरोध और रोजगार में आरक्षण को लेकर असंतोष का माहौल है। यों भी दो दशक लम्बी एंटी इनकंबैंसी है। गुजरात की जीत या हार मोदी की व्यक्तिगत जीत या हार होगी। गुजरात मोदी का प्रवेश द्वार है। सन 2012 की जीत के बाद ही मोदी को देश का नेता बनाने की मुहिम शुरू हुई थी। मोदी के लिए गुजरात प्रतिष्ठा का विषय है। हालांकि राहुल गांधी पर इस किस्म का प्रेशर नहीं है। वे गुजरात में हार भी जाएं तो उनकी प्रतिष्ठा पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। पर यदि वे जीत गए तो हताश कांग्रेस में फिर से जान पड़ जाएगी।

हाल में हुए सीएसडीएस के एक सर्वे में कहा गया है कि गुजरात में बीजेपी के बेहतर आसार हैं। पर दो साल पहले गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली सफलता दूसरे तरह का संदेश भी दे रही है। कई बार हालात तेजी से बदलते हैं और फिर चुनाव सर्वेक्षणों का रुख बदलते देर नहीं लगती। गुजरात में व्यापारियों की नाराजगी से बीजेपी भी हिली हुई है और सरकार ने जीएसटी में राहत देने की घोषणाएं की हैं।

नर्वस भाजपा

तीन बातें एक साथ हुईं हैं। आर्थिक मोर्चे भाजपा सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बीजेपी ने अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार जरूर किया है, पर जिन इलाकों में उसने जड़ें जमाईं हैं, वहाँ असंतोष के बादल भी घिरने लगे हैं। इस बीच कांग्रेस पार्टी ने अपने आप को व्यवस्थित करना शुरू कर दिया है। राहुल गांधी अध्यक्ष बनने को तैयार हैं और गुजरात में उनके बदले हुए तेवर दिखाई पड़ने लगे हैं।

कांग्रेस पार्टी ने सोशल मीडिया का उसी तरह इस्तेमाल शुरू कर दिया है, जैसे 2012-2014 के बीच मोदी की पार्टी ने किया था। उस अभियान के कारण राहुल गांधी मजाक का विषय बन गए थे। पर राहुल गांधी ने अब अपनी इस कमजोरी को हथियार बना लिया है। राहुल गांधी ने गुजरात में कहा है,  सन 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पिटाई करके हमारी आँखें खोल दी हैं। उनका यह भी कहना है कि बीजेपी भले ही कांग्रेस-मुक्त भारत की बात करती हो, लेकिन मैं बीजेपी-मुक्त भारत की बात कभी नहीं कहूँगा, क्योंकि हमने उनसे काफी कुछ सीखा है।

क्या है राहुल की रणनीति?

राहुल गांधी की आक्रामकता के बावजूद यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि कांग्रेस गुजरात का किला फतह करने के लिए तैयार है। सवाल है कि राहुल गांधी की रणनीति में बुनियादी तौर पर क्या बात है, जिसके आधार पर लगे कि वे गुजरात जीत सकते हैं। पहली बात तो यह कि गुजरात का नेतृत्व अब मोदी के पास नहीं है। मोदी के दिल्ली चले जाने के बाद राज्य के भाजपा नेतृत्व के आंतरिक मतभेद भी सामने आने लगे हैं। मोदी के मुख्य सहायक अमित शाह के पास ताकत है, पर उनसे नाराज कार्यकर्ता भी हैं।

कांग्रेस रणनीति के तौर पर भी कुछ नया सोच रही है। सन 2002 से 2012 तक कांग्रेस ने केवल मोदी पर प्रहार किए। इन प्रहारों को मोदी ने गुजरात की अस्मिता पर हमले के रूप में पेश किया। राहुल गांधी अब गुजरात की आलोचना के बजाय उसकी  तारीफ का सहारा लेंगे। बल्कि वे कहेंगे कि हम गुजरात की इस ताकत का बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं। यानी गुजरात को निगेटिव नहीं, पॉजिटिव चश्मे से राहुल देखते हैं। अब गुजराती अस्मिता को बढ़ाने का काम होगा।

कांग्रेस गुजरात के छोटे व्यापारियों, महिलाओं और नौजवानों को साधेगी, जो मोदी के मित्र थे। इसी नजरिए से राहुल ने अपनी यात्रा के दौरान बड़ी रैलियों के बजाय छोटे समूहों के बीच ज्यादा समय बिताया ताकि लोगों से उनका जुड़ाव बढ़े। गुजरात के दुग्ध सहकारिता आंदोलन के माध्यम से महिलाओं की भूमिका बढ़ी है। राहुल गांधी अब उन छिद्रों पर ध्यान देंगे, जो सहकारिता के क्षेत्र में बन गए हैं। लम्बे अरसे से सहकारी आंदोलन की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया है। वे भविष्य की संभावनाओं की ओर इन महिलाओं का ध्यान खींचेंगे। मोदी से इनका मोहभंग करने के लिए राहुल गांधी नोटबंदी और जीएसटी के नकारात्मक असर का सहारा लेंगे। यानी मोदी की ताकत को मोदी के खिलाफ इस्तेमाल करना। क्या यह संभव है?

गुजरात कांग्रेस मानती है कि अब हम बीजेपी के साथ बराबरी पर हैं, पीछे नहीं हैं। यदि थोड़ा सा धक्का और लगे तो उसे हराया जा सकता है। राहुल गांधी ने दिसम्बर 2013 में दिल्ली में आम आदमी की जीत से दो बातें सीखीं थीं। एक थी कार्यकर्ता से राय लेकर उम्मीदवार का नाम तय करना और वोटर की राय से घोषणापत्र बनाना। गुजरात में वे आप की इस रणनीति को लागू करें तो आश्चर्य नहीं होगा। संभव यह भी है कि वे राज्य में मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी का नाम भी जल्द ही घोषित करें। राहुल की बातें कितनी व्यावहारिक होंगी इसे भी देखना होगा। सन 2014 के चुनाव में उन्होंने कई जगह प्राइमरीज के आधार पर प्रत्याशी तय करने की कोशिश की थी, जो बेकार साबित हुईं।

अमेठी पर जवाबी हमला

जिस वक्त राहुल गुजरात के दौरे पर थे भाजपा ने उत्तर प्रदेश के अमेठी में मोर्चा खोल दिया था। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मंत्री स्मृति ईरानी ने एकसाथ अमेठी पर धावा बोल दिया। बीजेपी की कोशिश है कि राहुल गांधी किसी न किसी तरह से अमेठी के अलावा किसी और सुरक्षित चुनाव क्षेत्र को चुनने की कोशिश करें। शायद वे रायबरेली जाएं और अमेठी से प्रियंका खड़ी हों। राहुल का रायबरेली जाना अपनी माँ की सीट पर जाना होगा। पर बीजेपी की कोशिश राहुल पर हमले की है।

यह हमला प्रतीकात्मक है। उद्देश्य है राहुल का ध्यान भी बाँटना। राहुल अमेठी को छोड़ने को तैयार नहीं होंगे तो उन्हें इस तरफ ज्यादा ध्यान और समय देना होगा। बीजेपी लगातार यह बताने की कोशिश कर रही है कि अमेठी से राहुल की पकड़ कम हो रही है। राहुल अपने ही क्षेत्र में अलोकप्रिय हो रहे हैं वगैरह। बीजेपी के इस हमले से कांग्रेस के भीतर कहीं न कहीं हलचल है। फिलहाल इतना लगता है कि राहुल युद्ध के मैदान में उतर पड़े हैं। और धीरे-धीरे अपने तीर तरकश से निकाल रहे हैं।





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