ट्रिपल तलाक, बाबा राम रहीम और अब मुम्बई के डूबने की खबरों के बीच 21 अगस्त को हुए अन्ना द्रमुक के दो गुटों के विलय को खबर दबी रह गई. हालांकि इस विलय के बाद तमिलनाडु का अनिश्चय खत्म नहीं हुआ है. अद्रमुक के टीटीवी दिनाकरन यानी शशिकला खेमे के 20 विधायकों के रुख ने खेल को अत्यंत रोमांचक बना दिया है. इन विधायकों को पुदुच्चेरी में रखा गया है, पर लगता है कि ओपीएस-ईपीएस कैम्प के कुछ और विधायक टूटेंगे. पार्टी अब पूरी तरह टूटती नजर आ रही है. शायद ईपी अब मामला धीरे-धीरे फ्लोर टेस्ट की ओर बढ़ रहा है. राज्यपाल के सामने दूसरा रास्ता नहीं है. उधर पार्टी के दो धड़ों ने विलय के बाद शशिकला को पार्टी से निकालने के लिए 12 सितंबर को बैठक बुलाई है, पर उससे पहले ही पार्टी टूटती जा रही है. इसका लाभ डीएमके को मिलेगा. शायद ई पलानीसामी की सरकार ज्यादा समय तक टिकेगी नहीं. पर रोचक है तमिल राजनीति में बीजेपी की दिलचस्पी. उधर शशिकला कैम्प पूरी ताकत से जुटा है. शायद वह भी केंद्र से कुछ रियायतें चाहता है.
इस मामले को दो-तीन
नजरियों से देखना चाहिए. एक, अद्रमुक के भीतर के सत्ता संघर्ष के नजरिए से और
दूसरे उसके प्रबल प्रतिस्पर्धी द्रमुक के नजरिए से. शशिकला कैम्प के विधायकों
ने राज्यपाल से गुहार लगाकर सत्ता संघर्ष की शुरुआत कर दी है. शायद वहाँ एक और
फ्लोर टेस्ट होगा. इन दो बातों के अलावा बीजेपी ने वहाँ की राजनीति में सक्रिय
हस्तक्षेप किया है. हालांकि अभी तक वह प्रकट रूप में नजर नहीं आ रही है, पर गहराई
से देखें तो अद्रमुक के दो-फाड़ होने और फिर एक होने की प्रक्रिया में बीजेपी की
भूमिका साफ है. तमिलनाडु की यह करवट भी मोदी के मिशन-2109 का एक हिस्सा है.