Tuesday, January 18, 2022

कोरोना संकट के दौरान भारत ने दुनिया को दिया ‘उम्मीदों का गुलदस्ता’


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि कोरोना संक्रमण काल में भारत ने पूरी दुनिया को ‘उम्मीदों के गुलदस्ते’ जैसा एक खूबसूरत उपहार दिया है, जिसमें भारतीयों का लोकतंत्र पर अटूट विश्वास, 21वीं सदी को सशक्त करने वाली प्रौद्योगिकी, भारतीयों का मिजाज और उनकी प्रतिभा शामिल है। विश्व आर्थिक मंच के दावोस एजेंडा में वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से ‘विश्व की वर्तमान स्थिति’ (स्टेट ऑफ द वर्ल्ड) पर अपने विशेष संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कोरोना के इस समय में भारत ‘वन अर्थ, वन हैल्थ’’ की दृष्टि पर चलते हुए अनेक देशों को जरूरी दवाइयां और टीके देकर करोड़ों जीवन बचा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक है।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि जब से कोरोना महामारी की शुरुआत हुई तब से भारत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में भोजन दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘शायद दुनिया में इस प्रकार का यह सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा। हमारी कोशिश है कि संकट के कालखंड में गरीब से गरीब की चिंता सबसे पहले हो। इस दौरान हमने सुधार पर भी जोर दिया। सुधार के लिए हमारे कदमों को लेकर दुनिया के अर्थशास्त्री भी भरपूर सराहना कर रहे हैं। भारत बहुत मजबूती से आगे बढ़ रहा है।’

व्यवधान पर राजनीतिक-तंज

कोरोना महामारी के कारण वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक वर्चुअल हो रही है। भाषण के दौरान कुछ देर व्यवधान हुआ जिसे लेकर विरोधी दल कांग्रेस और कुछ अन्य लोगों ने तंज कसना शुरू कर दिया। मोदी के दिए भाषण के वीडियो में नजर आता है कि एक जगह वे बार-बार अपनी बाईं ओर देखते हैं, और कुछ सेकेंड की चुप्पी के बाद फ़ोरम के अध्यक्ष क्लॉस श्वाब से पूछते हैं कि क्या उनकी और उनके दुभाषिए की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है? इसके बाद वे अपना भाषण दोबारा देने लगते हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि बीबीसी हिंदी की वैबसाइट ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भाषण को कवर किया है, नरेंद्र मोदी के भाषण को नहीं। वैबसाइट ने मोदी के भाषण के टेलीप्रॉम्प्टर प्रसंग को जरूर कवर किया है, पर उन्होंने क्या कहा, इसे कवर करने की जरूरत नहीं समझी।

Monday, January 17, 2022

ओमिक्रॉन की धुआँधार तेजी के बाद अब बचाव का रास्ता क्या है?

ताजा खबर है कि ओमिक्रॉन के बाद एक नया वेरिएंट और सामने आया है, जो डेल्टा और ओमिक्रॉन का मिला-जुला रूप है। इसकी खबर सायप्रस से आई है। युनिवर्सिटी ऑफ सायप्रस के बायलॉजिकल साइंसेज़ के प्रोफेसर लेंडियस कोस्त्रीकिस ने इसकी जानकारी दी है, जिसके 25 केस सामने आए हैं। इसका नाम इन्होंने डेल्टाक्रॉन रखा है। बहरहाल यह एकदम शुरूआती जानकारी है, जिसकी पुष्टि अगले कुछ दिनों में होगी। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि लैब में सैम्पलों की मिलावट से भी ऐसा हो सकता है।

भारत में एक हफ्ते में रोजाना आ रहे संक्रमण दस हजार से बढ़कर एक लाख और फिर देखते ही देखते दो लाख की संख्या पार कर गए हैं। दूसरे दौर के पीक पर यह संख्या चार लाख से कुछ ऊपर तक पहुँची थी। उसके बाद गिरावट शुरू हुई थी। दूसरे देशों में भारत की तुलना में तीन से चार गुना गति से संक्रमण बढ़ रहा है। यह इतना तेज है कि विशेषज्ञों को विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त डेटा हासिल करने तक का समय नहीं मिल पाया है। रोजाना तेजी से मानक बदल रहे हैं।

हालात सुधरेंगे या बिगड़ेंगे?

अब तक का निष्कर्ष है कि वेरिएंट बी.1.1.529 यानी ओमिक्रॉन का संक्रमण भले ही तेज है, पर इसका असर कम है। इसका मतलब क्या हुआ?  क्या यह महामारी खत्म होने का लक्षण है या किसी नए वेरिएंट की प्रस्तावना? क्या अगले वेरिएंट का संक्रमण और तेज होगा?  ज्यादातर विशेषज्ञ मानकर चल रहे हैं कि यह पैंडेमिक नहीं एंडेमिक बनकर रहेगा। पिछले दो साल का अनुभव है कि आप मास्क लगाएं, दूरी रखकर बात करें और हाथ धोते रहें, तो बचाव संभव है।

भारत में आईआईटी कानपुर, आईआईटी हैदराबाद तथा कुछ अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञ मिलकर गणितीय मॉडल सूत्रपर काम कर रहे हैं। सूत्र का अनुमान है कि इसबार हर रोज की पीक संख्या चार से आठ लाख तक हो सकती है। इससे जुड़े विशेषज्ञ आईआईटी कानपुर के मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा है कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका दिल्ली और मुम्बई में हो रहे तेज संक्रमण की होगी। इन दोनों शहरों में पीक भी जनवरी के मध्य तक यानी इन पंक्तियों के प्रकाशन तक हो जाना चाहिए, जबकि शेष देश में फरवरी में पीक संभव है।

Sunday, January 16, 2022

आम बजट की चुनौतियाँ और उम्मीदें


संसद का बजट-सत्र 31 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। आम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। दो कारणों से इस बजट के सामने चुनौतियाँ हैं। एक तो महामारी की तीसरी सबसे ऊँची लहर सामने है। दूसरे पाँच राज्यों में चुनाव हैं, जिसके कारण सरकार के सामने अलोकप्रियता से बचने और लोकलुभावन रास्ता अपनाने की चुनौती है। देश का कर-राजस्व बढ़ रहा है, फिर भी जीएसटी अब भी चुनौती बना है। आयकर को लेकर मध्यवर्ग आस लगाए बैठा है। रेल बजट अब आम बजट का हिस्सा होता है। उसे लेकर घोषणाएं संभव हैं। ग्रामीण विकास, खेती, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और ग्रामीण महिलाओं से जुड़े कार्यक्रम भी सामने आएंगे। ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि कोविड-19 की लहर के दौरान यह सत्र चलेगा कैसे? पर सबसे बड़ी उत्सुकता यह जानने में है कि अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है और उत्तर-कोरोना व्यवस्था कैसी होगी? बढ़ती बेरोजगारी को कैसे रोका जाएगा, सामाजिक कल्याण के नए उपाय क्या होंगे और उनके लिए संसाधन कहाँ से आएंगे?

राजस्व-घाटा

सरकार 2021-22 बजट के अनुमानित ख़र्च के ऊपर, 3.3 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यय कर रही है, जिसे ग़रीबों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने, एयर इंडिया का निजीकरण की प्रक्रिया के तहत उसके कर्ज़ की अदायगी, निर्यात को बढ़ावा देने की विभिन्न स्कीमों के तहत प्रोत्साहन उपलब्ध कराने, और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम के अंतर्गत ज़्यादा पैसा देने पर ख़र्च किया जा रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 16.6 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है, जो जीडीपी का करीब 7.1 फीसदी होगा। राज्यों का राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी के अपेक्षाकृत कम स्तर पर रहने का अनुमान है। इस तरह केंद्र एवं राज्यों का सामान्य राजकोषीय घाटा जीडीपी के करीब 10.4 प्रतिशत तक पहुंचेगा।

बेहतर कर-संग्रह

अर्थव्यवस्था की पहली झलक सत्र के पहले दिन आर्थिक समीक्षा से मिलेगी। सरकार पिछले साल की तुलना में बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्रालय ने पिछले महीने प्रत्यक्ष कर-संग्रह के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि 16 दिसंबर तक नेट कलेक्शन 9.45 लाख करोड़ रुपये है। एक साल पहले इसी अवधि में यह 5.88 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह 60.8 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। वेतनभोगी और पेंशनधारक आयकर-राहत की आस में बैठे हैं। उन्हें उम्मीद है कि 50,000 रुपये की मानक कटौती की सीमा को 30 से 35 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। जिन्होंने नई कर-व्यवस्था का विकल्प चुना है, वे स्टैंडर्ड डिडक्शन के लिए पात्र नहीं हैं। कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को देखते हुए इस सीमा को 30-35 प्रतिशत बढ़ाने की मांग की जा रही है। घर से काम करने के कारण बिजली और इंटरनेट पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। कोविड मरीजों को भी छूट देने की माँग है।

Friday, January 14, 2022

पाकिस्तान की सुरक्षा-नीति है या चूँ चूँ का मुृरब्बा?


पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने शुक्रवार को देश की पहली राष्‍ट्रीय सुरक्षा नीति को जारी किया है। इस नीति में भारत के साथ अच्छे रिश्ते बनाने की मनोकामना व्यक्त की गई है, साथ ही कश्मीर को द्विपक्षीय संबंधों का आधार बताया गया है। इस नीति में पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि हिंदुत्व आधारित भारतीय राजनीति पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए चिंता का सबब है। यह बात अपने आप में विचित्र है।

इस नीति में कहा गया है कि कश्मीर मुद्दे का न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण समाधान होने तक यह हमारे द्विपक्षीय रिश्तों का आधार बना रहेगा। इस दस्‍तावेज में चीन के साथ अच्छे बनाए रखने और चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को पाकिस्तान के लिए राष्‍ट्रीय महत्व का प्रोजेक्‍ट बताया गया है।

इमरान सरकार भारत के दोस्त रूस के साथ भी अच्छे रिश्ते बनाना चाहती है। दस्तावेज में कहा गया है कि अमेरिका के साथ हमारे सहयोग का लंबा इतिहास रहा है। पाकिस्तान किसी खेमे की राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहता है और अमेरिका के साथ व्यापक रिश्ते बनाना चाहता है।

भूटान के विवादित-क्षेत्र में निर्माण के पीछे चीनी इरादों को समझने की जरूरत


समाचार एजेंसी रायटर्स ने खबर दी है कि चीन ने भूटान के साथ विवादित-क्षेत्र में इमारतें बनाने का काम तेज गति से शुरू कर दिया है। एजेंसी के लिए किए गए सैटेलाइट फोटो के विश्लेषण से पता लगा है कि छह जगहों पर 200 से ज्यादा इमारतों के निर्माण का काम चल रहा है। इन निर्माणों के पीछे की चीनी मंशा को समझने की जरूरत है। चूंकि अब चीन और भूटान के बीच सीधी बातचीत होती है, इसलिए अंदेशा पैदा होता है कि कहीं वह भूटान को किसी किस्म का लालच देकर ऐसी जमीन को हासिल करना तो नहीं चाहता, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करे।

ये तस्वीरें और उनका विश्लेषण अमेरिका की डेटा एनालिटिक्स फर्म हॉकआई360 (HawkEye 360) ने उपलब्ध कराया है। सैटेलाइट चित्र कैपेला स्पेस और प्लेनेट लैब्स नाम की फर्मों ने उपलब्ध कराए हैं। चीन जिन गाँवों का निर्माण कर रहा है, वे डोकलाम पठार से 30 किमी से भी कम दूरी पर हैं। सूत्रों ने कहा कि भूटान में विवादित क्षेत्र के भीतर चीनी गांवों का इस्तेमाल सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए किए जाने की संभावना है।

भूटान की पश्चिमी सीमा पर चीनी निर्माण की गतिविधियाँ 2020 के शुरुआती दिनों से ही चल रही हैं। शुरू में रास्ते बनाए गए और जमीन समतल की गई। 2021 में काम तेज किया गया, इमारतों की बुनियाद डाली गई और फिर इमारतें खड़ी की गईं। इन सभी छह जगहों को लेकर भूटान और चीन के बीच विवाद है। जब रायटर्स ने इस सिलसिले में भूटान के विदेश मंत्रालय से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि हम अपने सीमा विवाद की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं करते हैं। उधर चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि ये निर्माण स्थानीय निवासियों की सुविधा के लिए किए जा रहे हैं। यह चीनी क्षेत्र है और हमें अपनी जमीन पर निर्माण करने का अधिकार है।