Sunday, October 10, 2021

कश्मीरी हिंसा के पीछे कौन?


पिछले कुछ दिनों में कश्मीर घाटी में हुई आतंकी-हिंसा में हिंदुओं और सिखों की हत्या के बाद जम्मू-कश्मीर का माहौल फिर से तनावपूर्ण हो गया है। स्थानीय लोगों के मन में कई सवाल पैदा हो रहे हैं, वहीं शेष भारत में सवाल पूछा जा रहा है कि राज्य के हालात क्या फिर से 90 के दशक जैसे होने वाले हैं? क्या घाटी से बचे-खुचे पंडितों और सिखों का पलायन शुरू हो जाएगा? क्या यह हिंसा पाकिस्तान-निर्देशित है? क्या आतंकवादियों की यह कोई रणनीति है? इस हिंसा के पीछे द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) नामक नई संस्था है, जिसके पीछे पाकिस्तान के लश्करे तैयबा का हाथ है। इस साल सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने दो दर्जन लोगों की हत्याएं की थीं। अब अक्तूबर में पाँच दिन के भीतर सात लोगों के मारे जाने की खबरें हैं।

सॉफ्ट टार्गेट

नई बात यह है कि ये हमले मासूम नागरिकों पर हुए हैं। हाल के वर्षों में आतंकवादी ज्यादातर सुरक्षाबलों पर हमले कर रहे थे। हमलों के दौरान वे मारे भी जाते थे, क्योंकि सुरक्षाबल उन्हें जवाब देते थे, पर अब वे वृद्धों, स्त्रियों और गरीब कारोबारियों की हत्याएं कर रहे हैं, जो आत्मरक्षा नहीं कर सकते। ऐसा ही वे नब्बे के दशक में कर रहे थे, जिसके कारण घाटी से पंडितों का पलायन हुआ था। हालांकि छत्तीसिंहपुरा की हिंसा को छोड़ दें, तो सिखों पर अपेक्षाकृत कम हमले हुए हैं। 20 मार्च, 2000 की रात को छत्तीसिंहपुरा में 40-50 आतंकियों ने इस गाँव पर हमला करके 35 सिखों की हत्या की थी। महत्वपूर्ण यह है कि ये ‘टार्गेटेड किलिंग्स’ हैं। ऐसा नहीं है कि भीड़ को निशाना बनाया गया है, बल्कि सोच-समझकर हत्या की गई है। इसका मतलब है कि कोई सोच इसके पीछे काम कर रहा है।

क्या यह माना जाए कि आतंकवादी परास्त हो रहे हैं और अब वे अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए सॉफ्ट टार्गेट को निशाना बना रहे हैं, जिसमें जोखिम कम है और दहशत फैलाने की सम्भावनाएं ज्यादा हैं? जनता के बीच घुसकर कार्रवाई करने के लिए मामूली तमंचों और चाकुओं से काम चल जाता है। हत्यारे अपनी कार्रवाई करके भागने में सफल हो जाते हैं। यह रणनीति क्या है और इसके पीछे उद्देश्य क्या हैं, इसे समझने की भी जरूरत है। क्या वे दहशत फैलाना चाहते हैं, ताकि अल्पसंख्यक कश्मीर छोड़कर भागें और कानूनी-व्यवस्था में बदलाव के कारण जो नए लोग इस इलाके में बसना चाहें, तो वे अपना इरादा बदलें?

सम्पत्ति की बंदरबाँट

कश्मीर से पंडितों के पलायन के बाद उनकी सम्पत्ति पर कब्जे को लेकर बंदरबाँट भी एक कारण हो सकता है। हाल में सरकार ने कश्मीरी पंडितों की क़ब्ज़ा की गई अचल संपत्तियों पर उन्हें दोबारा अधिकार देने की कवायद शुरू की थी। अब तक ऐसे लगभग 1,000 मामलों का निपटारा करते हुए संपत्ति को वापस उनके असली मालिक के हवाले कर दिया गया। हिंसा के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है। इन सब बातों के अलावा ये घटनाएं 'बड़ी सुरक्षा चूक' भी हैं। जहाँ-जहाँ वारदात हुई, वहाँ से कुछ ही मीटर की दूरी पर या तो सुरक्षा बलों के शिविर थे या एसएसपी का कार्यालय। सुरक्षा एजेंसियों ने 21 सितंबर को ही अलर्ट जारी किया था और बड़े हमले की आशंका जताई थी। हमारी खुफिया-व्यवस्था को अब ज्यादा जागरूक होकर काम करना होगा, क्योंकि हत्यारे छिपने के लिए जगह तलाशते हैं। यदि जनता के बीच पुलिस की पैठ हो, तो उनका पता लगाना आसान होता है।

सौहार्द पर निशाना

इन हत्याओं से केवल कश्मीर में ही नहीं, शेष भारत में भी साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है। इसीलिए लगता है कि इसके पीछे पाकिस्तान में बैठे आकाओं की कोई योजना काम कर रही है। टीआरएफ नाम के नए समूह का नाम अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद से ही सुनाई पड़ा है। टीआरएफ ने गत 2 अक्तूबर को हुई माजिद अहमद गोजरी और मोहम्मद शफी डार की हत्याओं की जिम्मेदारी भी ली थी। फिर मंगलवार 5 अक्तूबर को तीन अलग-अलग वारदातों में तीन लोगों की हत्या कर दी। पहले इकबाल पार्क क्षेत्र में श्रीनगर की प्रसिद्ध फार्मेसी के मालिक माखनलाल बिंदरू की, फिर लाल बाजार क्षेत्र में गोलगप्पे बेचने वाले वीरेंद्र पासवान की और इसके बाद बांदीपुरा के शाहगुंड इलाके में एक नागरिक मोहम्मद शफी लोन की हत्या की गई।

Saturday, October 9, 2021

एबीपी- सी-वोटर चुनाव-पूर्व सर्वे


एबीपी ने शुक्रवार की शाम उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा समेत पांच चुनावी राज्यों की सम्भावनाओं पर सी-वोटर के सर्वेक्षण को प्रसारित किया। सर्वेक्षण के अनुसार यूपी चुनाव में सबसे ज्यादा सीटों के साथ बीजेपी फिर सरकार बना सकती है। सी-वोटर का दावा है कि इस सर्वे में 98 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। सर्वे 4 सितंबर  से 4 अक्तूबर के बीच किया गया। इसमें मार्जिन ऑफ एरर प्लस माइनस तीन से प्लस माइनस पांच फीसदी है।

सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 241 से 249 सीटें जा सकती है। समाजवादी पार्टी के हिस्से में 130 से 138 सीटें आएंगी, बीएसपी 15 से 19 के बीच और कांग्रेस 3 से 7 सीटों के बीच सिमट सकती है।  सर्वे के मुताबिक, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 41 फीसदी, समाजवादी पार्टी को 32 फीसदी, बहुजन समाज पार्टी को 15 फीसदी, कांग्रेस को 6 फीसदी और अन्य के खाते में 6 फीसदी वोट जा सकते हैं।

माहौल बनाने की कोशिश

इस सर्वेक्षण के आधार पर उत्तर प्रदेश से जुड़े नतीजों को जब मैंने फेसबुक पर डाला, तो तीन तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं। कुछ लोगों ने इसे सही बताया और कहा कि बीजेपी इससे भी बेहतर प्रदर्शन करेगी। इसके विपरीत कुछ लोगों का कहना था कि जैसा बंगाल में हुआ बीजेपी बुरी तरह हारेगी। आमतौर पर ऐसा होता भी है।

कुछ लोगों का कहना था कि गोदी मीडिया की तरफ से यह सर्वे बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए है। एक ने लिखा कि यह सर्वे सी-वोटर ने किया है, इससे आप खुद निष्कर्ष निकाल लीजिए। यह सच है कि सी-वोटर के संचालक यशवंत देशमुख का परिवार अर्से से बीजेपी के साथ जुड़ा रहा है, पर हाल में बंगाल में हुए चुनाव के पहले हुए सर्वे में सी-वोटर उन कुछ सर्वेक्षकों में शामिल था, जो तृणमूल की विजय सुनिश्चित कर रहे थे। जबकि काफी सर्वे बीजेपी को जिता रहे थे।

सी-वोटर ने बंगाल के चुनाव में टाइम्स नाउ के लिए चुनाव-पूर्व सर्वे और एबीपी के लिए एग्जिट पोल किया था। बहरहाल चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों और एग्जिट पोल की साख हमारे देश में काफी कम है। एग्जिट पोल को कुछ हद तक मान भी लिया जाता है, पर चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों पर कोई विश्वास नहीं करता। बहरहाल उत्तर प्रदेश को लेकर कई तरह के कयास हैं। चुनाव अभी चार-पाँच महीने दूर हैं, इसलिए कोई निर्णायक बात अभी नहीं कही जा सकती है। इस सर्वेक्षण के नतीजों को याद रखा जाना चाहिए, और परिणाम आने के बाद मिलान करना चाहिए।

एबीपी की साख

एबीपी चैनल कोलकाता के आनन्द बाजार पत्रिका समूह से जुड़ा है, जिसका अंग्रेजी अखबार मोदी-विरोधी कवरेज के लिए प्रसिद्ध है। अलबत्ता हिन्दी चैनल को लेकर प्रेक्षकों की राय अलग है। सन 2018 में एबीपी न्यूज चैनल के तीन वरिष्ठ सदस्यों को इस्तीफे देने पड़े। इन तीन में से पुण्य प्रसून वाजपेयी ने बाद में एक वैबसाइट में लेख लिखा, जिसमें उस घटनाक्रम का विस्तार से विवरण दिया, जिसमें उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इस विवरण में एबीपी न्यूज़ के प्रोपराइटर के साथ, जो एडिटर-इन-चीफ भी हैं उनके एक संवाद के कुछ अंश भी थे।

संवाद का निष्कर्ष था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत आलोचना से उन्हें बचना चाहिए। इस सिलसिले में ज्यादातर बातें पुण्य प्रसून की ओर से या उनके पक्षधरों की ओर से सामने आई थीं। चैनल के मालिकों और प्रबंधकों ने कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया।

Friday, October 8, 2021

कश्मीर में हत्याओं के पीछे क्या है आतंकवादियों की रणनीति?

 

माखन लाल बिंदरू

जम्मू-कश्मीर में हाल में हुई नागरिकों की हत्याओं से कुछ सवाल खड़े होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादियों के ज्यादातर हमले सुरक्षाबलों पर होते थे। इन हमलों के दौरान वे मारे भी जाते थे, क्योंकि सुरक्षाबल उन्हें जवाब देते थे, पर अब वे वृद्धों, स्त्रियों और गरीब कारोबारियों की हत्याएं कर रहे हैं, जो आत्मरक्षा नहीं कर सकते। इसका एक अर्थ है कि आतंकवादी परास्त हो रहे हैं और अब वे अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए सॉफ्ट टार्गेट को निशाना बना रहे हैं, जिसमें जोखिम कम है और दहशत फैलाने की सम्भावनाएं ज्यादा हैं। इसके अलावा यह भी समझ में आता है कि पाकिस्तान से इनके लिए कुछ नए संदेश प्राप्त हो रहे हैं।

यह रणनीति क्या है और इसके पीछे उद्देश्य क्या हैं, इसे समझने की जरूरत है। अलबत्ता पाक-परस्त द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इन हत्याओं की जिम्मेदारी ली है। जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों का मानना है कि TRF लश्कर-ए-तैयबा का ही एक फ्रंट है जिसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को स्थानीय कश्मीरियों का मूवमेंट बताकर प्रोजेक्ट करने के लिए खड़ा किया है। ऐसे में पाकिस्तान की मंशा साफ समझी जा सकती है। इस साल सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने दो दर्जन लोगों की हत्याएं की हैं।

टीआरएफ ने गत 2 अक्तूबर को हुई माजिद अहमद गोजरी और मोहम्मद शफी डार की हत्याओं की जिम्मेदारी भी ली थी। इस तरह पाँच दिन में सात नागरिकों की हत्याएं हुई हैं। बिंदरू की हत्या के बाद जारी बयान में टीआरएफ ने कहा कि बिंदरू दवाइयों के धंधे की आड़ में काम कर रहा था और दूसरी तरफ आरएसएस की सहायता से सीक्रेट सेमिनारों को चलाता था। उसने यह सब बन्द करने से इनकार कर दिया था।

शिक्षकों की हत्या

मंगलवार को आतंकवादियों ने तीन अलग-अलग वारदातों में तीन लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद गुरुवार को श्रीनगर के ईदगाह इलाके में आतंकवादियों ने एक सरकारी विद्यालय के दो शिक्षकों की गोली मार कर हत्या कर दी। इनमें एक महिला विद्यालय की प्रधानाचार्य थी। मृतकों में स्कूल की प्रिंसिपल सुपिन्दर कौर और कश्मीरी पंडित शिक्षक दीपक चंद शामिल हैं।

इन हत्याओं के बाद कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख समुदायों के बीच भय का माहौल है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने कहा कि इन हत्याओं के पीछे के लोगों का जल्द ही परदाफाश किया जाएगा। कायरता के यह कृत्य कश्मीर घाटी में सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को नुकसान पहुंचाने का एक प्रयास है।

Thursday, October 7, 2021

बीजेपी कार्यकारिणी से वरुण, मेनका, स्वामी बाहर, सिंधिया का नाम शामिल


भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को 80 सदस्यों वाली नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा की है, जिसमें वरुण गांधी समेत कुल पाँच नेताओं की छुट्टी कर दी गई है। जिन पाँच नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में नहीं रखा गया है, उनमें चौधरी वीरेंद्र सिंह, वरुण गांधी, मेनका गांधी, एसएस अहलूवालिया और सुब्रमण्यम स्वामी के नाम शामिल हैं। अटकलें हैं कि वरुण गांधी शायद कांग्रेस में शामिल होंगे। फिलहाल यह अटकल ही है और इस सम्भावना से जुड़े अनेक किन्तु-परन्तु हैं।

सरकार की आलोचना

वरुण गांधी और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेन्द्र दोनों कृषि आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना करते रहे हैं। चौधरी पिछले साल हरियाणा के रोहतक जिले में एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे। सुब्रह्मण्यम स्वामी भी एक अरसे से सरकार की आलोचना कर रहे हं।

लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर वरुण गांधी ने यूपी और केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले ट्वीट किए थे। गुरुवार को उन्होंने लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध वाले स्थल का एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें कृषि कानूनों का विरोध कर रहे लोगों के ऊपर से एक कार गुजरती हुई नजर आ रहा है। उन्होंने वीडियो ट्वीट करते हुए गुरुवार को लिखा था कहा कि निर्दोष किसानों का खून बहाने वालों का न्याय करना होगा।

लखीमपुर कांड

उन्होंने ट्वीट में लिखा था, 'यह वीडियो बिल्कुल शीशे की तरह साफ है। प्रदर्शनकारियों की हत्या करके उनको चुप नहीं करा सकते हैं। निर्दोष किसानों का खून बहाने की घटना के लिए जवाबदेही तय करनी होगी। हर किसान के दिमाग में उग्रता और निर्दयता की भावना घर करे इसके पहले उन्हें न्याय दिलाना होगा। वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद हैं। लखीमपुर और पीलीभीत दोनों क्षेत्रों में सिख वोटर भी बड़ी संख्या में हैं। वरुण गांधी के बागी तेवर लखीमपुर खीरी हिंसा से पहले भी दिखाई दिए। वरुण गांधी ने गन्ने का रेट 400 रुपये घोषित करने की मांग की। इसके लिए वरुण ने सीएम योगी को खत भी लिखा था। वरुण ने 12 सितंबर को भी किसानों के मुद्दे उठाते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ को खत लिखा था। तब वरुण ने भूमि-पुत्रों की बात सुनते की अपील करते हुए पत्र में 7 पॉइंट लिखे थे। वरुण गांधी ने इसमें गन्ना के दाम, बकाया भुगतान, धान की खरीदारी समेत 7 मुद्दों को उठाया था। 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में वरुण गांधी ने किसानों का समर्थन कर सरकार को असहज महसूस कराया था।

वरुण की नाराजगी

प्रेक्षकों के अनुसार, अपनी और मां मेनका गांधी की लगातार उपेक्षा से वरुण गांधी खासे नाराज हैं और यही वजह से पार्टी लाइन से अलग जाकर बयानबाज़ी कर रहे हैं। इस बार मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में वरुण गांधी की भी चर्चा हो रही थी, लेकिन उन्हें शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा अगले साल होने वाले यूपी चुनाव में भी वरुण गांधी को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई।

खटास के पीछे एक नहीं बल्कि कई वजहें हैं लेकिन इसकी शुरुआत 2013 में मानी जाती है। तब वरुण बीजेपी के पश्चिम बंगाल प्रभारी थे। लोकसभा चुनाव से पहले कोलकाता के परेड ग्राउंड तत्कालीन पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने रैली की थी। रैली का पूरा प्रबंध वरुण गांधी ने ही संभाला था। बीजेपी इसे अच्छी रैली मान रही थी, लेकिन वरुण ने अगले दिन अखबार में बयान दे दिया कि रैली विफल रही। बताती हैं कि यहीं से बीजेपी और वरुण गांधी के रिश्ते में दरार पैदा हो गई।

वरुण का वह बयान पार्टी नेताओं को नागवार गुजरा और धीरे-धीरे उन्हें साइडलाइन कर दिया गया। 2014 लोकसभा चुनाव में वरुण सुलतानपुर से जरूर जीते, लेकिन कैबिनेट पद नहीं मिला। 2015 में अमित शाह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही वरुण गांधी को राष्ट्रीय महासचिव पद से हटाया। वरुण की जगह कैलाश विजयवर्गीय को महासचिव और बंगाल प्रभारी की कमान सौंप दी गई।

नई कार्यकारिणी

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और एमएम जोशी शामिल हैं। पार्टी के केंद्रीय निर्णय लेने वाले इस निकाय में 50 विशेष और 179 स्थायी आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। इसमें बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, विधानसभाओं के नेता और प्रदेश इकाई अध्यक्ष शामिल हैं।

पार्टी के संविधान के अनुसार, समिति पार्टी की सभी इकाइयों और संगठनों के कार्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाती है और पार्टी फंड के रखरखाव के लिए नियम तैयार करती है, जिनका ऑडिट और सालाना अनुमोदन किया जाना है। समिति के पास अन्य सभी इकाइयों और संगठनों को अधिकार देने करने, नियम बनाने, चुनाव कराने और विवादों के निपटारे के लिए व्यवस्था बनाने का भी अधिकार है।

सिंधिया शामिल

80 सदस्यीय सूची में शामिल नए चेहरों में मध्य प्रदेश बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, दिल्ली से एस जयशंकर और मीनाक्षी लेखी हैं हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर और ओडिशा से अश्विनी वैष्णव शामिल किए गए हैं। अभिनेता से राजनेता बने मिथुन चक्रवर्ती और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी, जो तृणमूल कांग्रेस छोड़कर पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, को भी समिति में शामिल किया गया है। खुशबू सुंदर को तमिलनाडु से विशेष आमंत्रितों की सूची में शामिल किया गया है, जो कि कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुईं हैं।

जहाँ पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव के लिए पूरी शिद्दत से जुटी है, इस सूची में सिद्धार्थ नाथ सिंह, विनय कटियार और कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह का नाम नहीं है। अलबत्ता लोध समुदाय से बीएल वर्मा का नाम इस सूची में है। अस्सी सदस्यों की सूची में 12 नाम उत्तर प्रदेश से हैं। इनमें महेंद्र नाथ पांडेय, स्मृति ईरानी, ब्रजेश पाठक, अनिल जैन, संजीव बालियान, राजनाथ सिंह, संतोष गंगवार और स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम भी जुड़ गया है। विशेष आमंत्रित सदस्यों में भी छह नाम उत्तर प्रदेश से हैं। कार्यकारिणी की पहली बैठक नवम्बर में दिल्ली में होगी।

 

 

 

 

Wednesday, October 6, 2021

कोयले की किल्लत, बिजली संकट का अंदेशा

 


खबर है कि देश में केवल चार दिन के कोयले का स्टॉक बचा है, जिसकी वजह से बिजली उत्पादन में गिरावट आने का अंदेशा है। हाल के वर्षों में ऐसा संकट देखा नहीं गया है। अगस्त के महीने में बिजलीघरों में औसतन 13 दिन के कोयला का स्टॉक था, जो अब चार दिन का रह गया है। सरकार का निर्देश है कि बिजलीघरों के पास कम से कम 14 दिन का कोयला रहना चाहिए। गत 4 अक्तूबर को देश के 16 बिजलीघरों के पास एक दिन का स्टॉक भी नहीं बचा था। इन 16 बिजलीघरों की क्षमता 17,475 मेगावॉट की है। इनके अलावा 45 बिजलीघरों के पास, केवल दो दिन का कोयला था। इनकी क्षमता 59,790 मेगावॉट है।

बिजली-उत्पादन करने वाले आधे से अधिक बिजलीघरों को सावधान कर दिया गया है। बिजली मंत्री आरके सिंह का कहना है कि हम नहीं कह सकते कि अगले पांच-छह महीने में राहत मिलेगी या नहीं। हाँ इतना स्पष्ट है कि पिछले एक सप्ताह से हालात बेहद खराब हैं। देश में 40 से 50 गीगावॉट (एक गीगावॉट में 1000 मेगावॉट होते हैं) बिजली का उत्पादन करने वाले ताप बिजलीघरों अब केवल तीन दिन का स्टॉक बचा है।

 देश में कोयले से बिजली उत्पादन क्षमता 203 गीगावॉट है। इसमें से 70 फीसदी बिजली कोयले से पैदा होती है। अगले कुछ साल में देश में बिजली की मांग काफी बढ़ने वाली है। कई केंद्रीय मंत्रालय इस वक्त कोल इंडिया और एनटीपीसी के साथ मिलकर कोयला खदानों का उत्पादन बढ़ाने के उपायों पर विचार कर रहे हैं। फिलहाल कोयला खनन कंपनियां उन्हीं कंपनियों को पहले कोयला देंगी, जिन्होंने बकाये का भुगतान कर दिया है।

बिजली संकट के पीछे एक वजह कोरोना भी है जिसके कारण दफ्तर के काम से लेकर अन्य काम घर से ही निपटाए जा रहे थे और लोगों ने इस दौरान बिजली का काफी इस्तेमाल किया। दूसरे हर घर को बिजली देने का लक्ष्य भी एक कारण है। ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में बिजली की कुल खपत 10 हजार 660 करोड़ यूनिट  प्रति महीना थी। अब 2021 में बढ़कर यह 12 हजार 420 करोड़ यूनिट प्रति महीने है।