Friday, October 8, 2021

कश्मीर में हत्याओं के पीछे क्या है आतंकवादियों की रणनीति?

 

माखन लाल बिंदरू

जम्मू-कश्मीर में हाल में हुई नागरिकों की हत्याओं से कुछ सवाल खड़े होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादियों के ज्यादातर हमले सुरक्षाबलों पर होते थे। इन हमलों के दौरान वे मारे भी जाते थे, क्योंकि सुरक्षाबल उन्हें जवाब देते थे, पर अब वे वृद्धों, स्त्रियों और गरीब कारोबारियों की हत्याएं कर रहे हैं, जो आत्मरक्षा नहीं कर सकते। इसका एक अर्थ है कि आतंकवादी परास्त हो रहे हैं और अब वे अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए सॉफ्ट टार्गेट को निशाना बना रहे हैं, जिसमें जोखिम कम है और दहशत फैलाने की सम्भावनाएं ज्यादा हैं। इसके अलावा यह भी समझ में आता है कि पाकिस्तान से इनके लिए कुछ नए संदेश प्राप्त हो रहे हैं।

यह रणनीति क्या है और इसके पीछे उद्देश्य क्या हैं, इसे समझने की जरूरत है। अलबत्ता पाक-परस्त द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने इन हत्याओं की जिम्मेदारी ली है। जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों का मानना है कि TRF लश्कर-ए-तैयबा का ही एक फ्रंट है जिसे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को स्थानीय कश्मीरियों का मूवमेंट बताकर प्रोजेक्ट करने के लिए खड़ा किया है। ऐसे में पाकिस्तान की मंशा साफ समझी जा सकती है। इस साल सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने दो दर्जन लोगों की हत्याएं की हैं।

टीआरएफ ने गत 2 अक्तूबर को हुई माजिद अहमद गोजरी और मोहम्मद शफी डार की हत्याओं की जिम्मेदारी भी ली थी। इस तरह पाँच दिन में सात नागरिकों की हत्याएं हुई हैं। बिंदरू की हत्या के बाद जारी बयान में टीआरएफ ने कहा कि बिंदरू दवाइयों के धंधे की आड़ में काम कर रहा था और दूसरी तरफ आरएसएस की सहायता से सीक्रेट सेमिनारों को चलाता था। उसने यह सब बन्द करने से इनकार कर दिया था।

शिक्षकों की हत्या

मंगलवार को आतंकवादियों ने तीन अलग-अलग वारदातों में तीन लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद गुरुवार को श्रीनगर के ईदगाह इलाके में आतंकवादियों ने एक सरकारी विद्यालय के दो शिक्षकों की गोली मार कर हत्या कर दी। इनमें एक महिला विद्यालय की प्रधानाचार्य थी। मृतकों में स्कूल की प्रिंसिपल सुपिन्दर कौर और कश्मीरी पंडित शिक्षक दीपक चंद शामिल हैं।

इन हत्याओं के बाद कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दू और सिख समुदायों के बीच भय का माहौल है। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने कहा कि इन हत्याओं के पीछे के लोगों का जल्द ही परदाफाश किया जाएगा। कायरता के यह कृत्य कश्मीर घाटी में सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे को नुकसान पहुंचाने का एक प्रयास है।

Thursday, October 7, 2021

बीजेपी कार्यकारिणी से वरुण, मेनका, स्वामी बाहर, सिंधिया का नाम शामिल


भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को 80 सदस्यों वाली नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा की है, जिसमें वरुण गांधी समेत कुल पाँच नेताओं की छुट्टी कर दी गई है। जिन पाँच नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में नहीं रखा गया है, उनमें चौधरी वीरेंद्र सिंह, वरुण गांधी, मेनका गांधी, एसएस अहलूवालिया और सुब्रमण्यम स्वामी के नाम शामिल हैं। अटकलें हैं कि वरुण गांधी शायद कांग्रेस में शामिल होंगे। फिलहाल यह अटकल ही है और इस सम्भावना से जुड़े अनेक किन्तु-परन्तु हैं।

सरकार की आलोचना

वरुण गांधी और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेन्द्र दोनों कृषि आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना करते रहे हैं। चौधरी पिछले साल हरियाणा के रोहतक जिले में एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे। सुब्रह्मण्यम स्वामी भी एक अरसे से सरकार की आलोचना कर रहे हं।

लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर वरुण गांधी ने यूपी और केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले ट्वीट किए थे। गुरुवार को उन्होंने लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध वाले स्थल का एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें कृषि कानूनों का विरोध कर रहे लोगों के ऊपर से एक कार गुजरती हुई नजर आ रहा है। उन्होंने वीडियो ट्वीट करते हुए गुरुवार को लिखा था कहा कि निर्दोष किसानों का खून बहाने वालों का न्याय करना होगा।

लखीमपुर कांड

उन्होंने ट्वीट में लिखा था, 'यह वीडियो बिल्कुल शीशे की तरह साफ है। प्रदर्शनकारियों की हत्या करके उनको चुप नहीं करा सकते हैं। निर्दोष किसानों का खून बहाने की घटना के लिए जवाबदेही तय करनी होगी। हर किसान के दिमाग में उग्रता और निर्दयता की भावना घर करे इसके पहले उन्हें न्याय दिलाना होगा। वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद हैं। लखीमपुर और पीलीभीत दोनों क्षेत्रों में सिख वोटर भी बड़ी संख्या में हैं। वरुण गांधी के बागी तेवर लखीमपुर खीरी हिंसा से पहले भी दिखाई दिए। वरुण गांधी ने गन्ने का रेट 400 रुपये घोषित करने की मांग की। इसके लिए वरुण ने सीएम योगी को खत भी लिखा था। वरुण ने 12 सितंबर को भी किसानों के मुद्दे उठाते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ को खत लिखा था। तब वरुण ने भूमि-पुत्रों की बात सुनते की अपील करते हुए पत्र में 7 पॉइंट लिखे थे। वरुण गांधी ने इसमें गन्ना के दाम, बकाया भुगतान, धान की खरीदारी समेत 7 मुद्दों को उठाया था। 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में वरुण गांधी ने किसानों का समर्थन कर सरकार को असहज महसूस कराया था।

वरुण की नाराजगी

प्रेक्षकों के अनुसार, अपनी और मां मेनका गांधी की लगातार उपेक्षा से वरुण गांधी खासे नाराज हैं और यही वजह से पार्टी लाइन से अलग जाकर बयानबाज़ी कर रहे हैं। इस बार मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में वरुण गांधी की भी चर्चा हो रही थी, लेकिन उन्हें शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा अगले साल होने वाले यूपी चुनाव में भी वरुण गांधी को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई।

खटास के पीछे एक नहीं बल्कि कई वजहें हैं लेकिन इसकी शुरुआत 2013 में मानी जाती है। तब वरुण बीजेपी के पश्चिम बंगाल प्रभारी थे। लोकसभा चुनाव से पहले कोलकाता के परेड ग्राउंड तत्कालीन पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने रैली की थी। रैली का पूरा प्रबंध वरुण गांधी ने ही संभाला था। बीजेपी इसे अच्छी रैली मान रही थी, लेकिन वरुण ने अगले दिन अखबार में बयान दे दिया कि रैली विफल रही। बताती हैं कि यहीं से बीजेपी और वरुण गांधी के रिश्ते में दरार पैदा हो गई।

वरुण का वह बयान पार्टी नेताओं को नागवार गुजरा और धीरे-धीरे उन्हें साइडलाइन कर दिया गया। 2014 लोकसभा चुनाव में वरुण सुलतानपुर से जरूर जीते, लेकिन कैबिनेट पद नहीं मिला। 2015 में अमित शाह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही वरुण गांधी को राष्ट्रीय महासचिव पद से हटाया। वरुण की जगह कैलाश विजयवर्गीय को महासचिव और बंगाल प्रभारी की कमान सौंप दी गई।

नई कार्यकारिणी

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और एमएम जोशी शामिल हैं। पार्टी के केंद्रीय निर्णय लेने वाले इस निकाय में 50 विशेष और 179 स्थायी आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। इसमें बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, विधानसभाओं के नेता और प्रदेश इकाई अध्यक्ष शामिल हैं।

पार्टी के संविधान के अनुसार, समिति पार्टी की सभी इकाइयों और संगठनों के कार्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाती है और पार्टी फंड के रखरखाव के लिए नियम तैयार करती है, जिनका ऑडिट और सालाना अनुमोदन किया जाना है। समिति के पास अन्य सभी इकाइयों और संगठनों को अधिकार देने करने, नियम बनाने, चुनाव कराने और विवादों के निपटारे के लिए व्यवस्था बनाने का भी अधिकार है।

सिंधिया शामिल

80 सदस्यीय सूची में शामिल नए चेहरों में मध्य प्रदेश बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, दिल्ली से एस जयशंकर और मीनाक्षी लेखी हैं हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर और ओडिशा से अश्विनी वैष्णव शामिल किए गए हैं। अभिनेता से राजनेता बने मिथुन चक्रवर्ती और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी, जो तृणमूल कांग्रेस छोड़कर पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, को भी समिति में शामिल किया गया है। खुशबू सुंदर को तमिलनाडु से विशेष आमंत्रितों की सूची में शामिल किया गया है, जो कि कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुईं हैं।

जहाँ पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव के लिए पूरी शिद्दत से जुटी है, इस सूची में सिद्धार्थ नाथ सिंह, विनय कटियार और कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह का नाम नहीं है। अलबत्ता लोध समुदाय से बीएल वर्मा का नाम इस सूची में है। अस्सी सदस्यों की सूची में 12 नाम उत्तर प्रदेश से हैं। इनमें महेंद्र नाथ पांडेय, स्मृति ईरानी, ब्रजेश पाठक, अनिल जैन, संजीव बालियान, राजनाथ सिंह, संतोष गंगवार और स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम भी जुड़ गया है। विशेष आमंत्रित सदस्यों में भी छह नाम उत्तर प्रदेश से हैं। कार्यकारिणी की पहली बैठक नवम्बर में दिल्ली में होगी।

 

 

 

 

Wednesday, October 6, 2021

कोयले की किल्लत, बिजली संकट का अंदेशा

 


खबर है कि देश में केवल चार दिन के कोयले का स्टॉक बचा है, जिसकी वजह से बिजली उत्पादन में गिरावट आने का अंदेशा है। हाल के वर्षों में ऐसा संकट देखा नहीं गया है। अगस्त के महीने में बिजलीघरों में औसतन 13 दिन के कोयला का स्टॉक था, जो अब चार दिन का रह गया है। सरकार का निर्देश है कि बिजलीघरों के पास कम से कम 14 दिन का कोयला रहना चाहिए। गत 4 अक्तूबर को देश के 16 बिजलीघरों के पास एक दिन का स्टॉक भी नहीं बचा था। इन 16 बिजलीघरों की क्षमता 17,475 मेगावॉट की है। इनके अलावा 45 बिजलीघरों के पास, केवल दो दिन का कोयला था। इनकी क्षमता 59,790 मेगावॉट है।

बिजली-उत्पादन करने वाले आधे से अधिक बिजलीघरों को सावधान कर दिया गया है। बिजली मंत्री आरके सिंह का कहना है कि हम नहीं कह सकते कि अगले पांच-छह महीने में राहत मिलेगी या नहीं। हाँ इतना स्पष्ट है कि पिछले एक सप्ताह से हालात बेहद खराब हैं। देश में 40 से 50 गीगावॉट (एक गीगावॉट में 1000 मेगावॉट होते हैं) बिजली का उत्पादन करने वाले ताप बिजलीघरों अब केवल तीन दिन का स्टॉक बचा है।

 देश में कोयले से बिजली उत्पादन क्षमता 203 गीगावॉट है। इसमें से 70 फीसदी बिजली कोयले से पैदा होती है। अगले कुछ साल में देश में बिजली की मांग काफी बढ़ने वाली है। कई केंद्रीय मंत्रालय इस वक्त कोल इंडिया और एनटीपीसी के साथ मिलकर कोयला खदानों का उत्पादन बढ़ाने के उपायों पर विचार कर रहे हैं। फिलहाल कोयला खनन कंपनियां उन्हीं कंपनियों को पहले कोयला देंगी, जिन्होंने बकाये का भुगतान कर दिया है।

बिजली संकट के पीछे एक वजह कोरोना भी है जिसके कारण दफ्तर के काम से लेकर अन्य काम घर से ही निपटाए जा रहे थे और लोगों ने इस दौरान बिजली का काफी इस्तेमाल किया। दूसरे हर घर को बिजली देने का लक्ष्य भी एक कारण है। ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में बिजली की कुल खपत 10 हजार 660 करोड़ यूनिट  प्रति महीना थी। अब 2021 में बढ़कर यह 12 हजार 420 करोड़ यूनिट प्रति महीने है। 

Tuesday, October 5, 2021

कोरोना से कहीं बड़ा है ज़हरीली-हवा का ख़तरा


कोविड-19 के ताजा आँकड़ों के अनुसार इस हफ्ते तक इस बीमारी ने दुनियाभर में 48 लाख के आसपास लोगों की जान ले ली है। करीब एक करोड़ 85 लाख लोग अब भी संक्रमण की चपेट में हैं। यह महामारी मनुष्य-जाति के अस्तित्व के सामने खतरे के रूप में खड़ी है, पर यह सबसे बड़ा खतरा नहीं है। इससे भी ज्यादा बड़ा एक और खतरा हमारे सामने है, जिसकी भयावहता का बहुत से लोगों को अनुमान ही नहीं है।

हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायु गुणवत्ता के नए निर्देश जारी किए हैं, जिनमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के साथ वायु प्रदूषण मानव-स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। डब्लूएचओ ने 2005 के बाद पहली बार अपने एयर क्वालिटी गाइडलाइंस को बदला है। नए वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (एक्यूजी) के अनुसार इस बात के प्रमाण मिले हैं कि प्रदूषित वायु की जो समझ पहले थी, उससे भी कम प्रदूषित वायु से मानव-स्वास्थ्य को होने वाले नुकसानों के सबूत मिले हैं। संगठन का कहना है कि वायु प्रदूषण से हर साल 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु होती है। यह संख्या कोविड-19 से हुई मौतों से कहीं ज्यादा है।

बच्चों की मौतें

नए दिशानिर्देश ओज़ोन, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड समेत पदार्थों पर लागू होते हैं। डब्ल्यूएचओ ने आखिरी बार 2005 में वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी किए थे, जिसका दुनिया भर के देशों की पर्यावरण नीतियों पर प्रभाव पड़ा था।

सेव द चिल्ड्रन इंटरनेशनल की अगुवाई में जारी की गई एक और रिपोर्ट सिटीज4चिल्ड्रन में बताया गया है कि हर दिन दुनिया में 19 साल से कम उम्र के 93 फीसदी बच्चे भारी प्रदूषित हवा में साँस लेते हैं जो उनके स्वास्थ्य और विकास को खतरे में डालता है। 2019 में वायु प्रदूषण से दुनिया में लगभग पाँच लाख नवजात-शिशुओं की जन्म के महीने भर के भीतर मौतें हुई। बच्चे विशेष रूप से वायु प्रदूषण के प्रति संवेदनशील होते हैं। उनका शरीर बढ़ रहा होता है। वे वयस्कों की तुलना में शरीर के वजन की प्रति इकाई हवा की अधिक मात्रा में साँस लेते हैं, इसलिए अधिक प्रदूषक उनके शरीर के अंदर जा सकते हैं।

Monday, October 4, 2021

चीन पर आर्थिक संकट का साया


हाल में चीन की सबसे बड़ी रियलिटी फर्म एवरग्रैंड के दफ़्तरों के बाहर नाराज़ निवेशकों की भीड़ जमा हो गई। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। चीनी-व्यवस्था को देखते हुए यह एक नई किस्म की घटना है। जनता का विरोध? अर्थव्यवस्था के रूपांतरण के साथ चीनी समाज और राजनीति में बदलाव आ रहा है। वैश्विक-अर्थव्यवस्था से जुड़ जाने के कारण उसपर वैश्विक गतिविधियों का और चीनी गतिविधियों का वैश्विक-अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ने लगा है। और इसके साथ कुछ सैद्धांतिक प्रश्न खड़े होने लगे हैं, जो भविष्य में चीन की साम्यवादी-व्यवस्था के लिए चुनौती पेश करेंगे।

एवरग्रैंड, चीन में सबसे ज़्यादा देनदारियों के बोझ से दबी संस्था बन गई है। कम्पनी पर 300 अरब अमेरिकी डॉलर की देनदारी है। कर्ज़ के भारी बोझ ने कम्पनी की क्रेडिट रेटिंग और शेयर भाव ने उसे रसातल पर पहुँचा दिया है। इसकी तमाम निर्माणाधीन आवासीय इमारतों का काम अधूरा रह गया है। करीब 10 लाख लोगों में मकान खरीदने के लिए इस कम्पनी को आंशिक-भुगतान कर दिया था।

चीनी समाज में पैसे के निवेश के ज्यादा रास्ते नहीं हैं। बड़ी आबादी के मन में अच्छे से घर का सपना होता है। इस झटके से उन्हें धक्का लगा है। अब चीन सरकार ने घर खरीदने की अनुमति देने के नियमों को कठोर बना दिया है। बहरहाल इस परिघटना से चीनी शेयर बाजार में 9 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद चीनी शेयरों में आई यह सबसे बड़ी  गिरावट है।  इस संकट के झटके दुनिया शेयर बाज़ारों में महसूस किए गए हैं।