Monday, October 4, 2021

टैक्स-चोरी की एक और बड़ी वैश्विक-व्यवस्था का पिटारा फिर खुला


पनामा पेपर्स के बाद अब सम्पत्ति के घपलों-घोटालों और उसकी वैश्विक-मशीनरी से जुड़े दस्तावेजों की सबसे बड़ी लीक के बाद हैरतंगेज़ बातें सामने आई हैं। करोड़ों दस्तावेजों के इस लीक में 91 से ज्यादा देशों के 100 से ज्यादा खरबपतियों, 35 बड़े नेताओं, 300 अधिकारियों और हजारों-लाखों कारोबारियों के खुफिया-खातों और धंधों की जानकारी दी है। इनमें ऐसी कम्पनियाँ भी हैं, जो राजनीतिक दलों को बड़ा चंदा देती हैं। पैंडोरा पेपर्स (भानुमती का पिटारा) नाम से हुआ यह लीक पत्रकारों की वैश्विक संस्था इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) की देन है।

3 अक्तूबर से प्रकाशित हुए विवरण के अनुसार इसमें करीब एक करोड़ 19 लाख दस्तावेज (2.9 टैराबाइट डेटा) सामने आए हैं, जिनमें समझौते, तस्वीरें, ईमेल और 14 वित्तीय सेवा कम्पनियों की स्प्रैडशीट शामिल हैं। जिन देशों का विवरण इनमें है, उनमें पनामा, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। यह लीक 2016 के पनामा पेपर्स से भी बड़ा है। पनामा पेपर्स में 1.15 लाख गोपनीय दस्तावेज सामने आए थे।  

32 ट्रिलियन डॉलर की टैक्स-चोरी

इन दस्तावेजों पर सरसरी निगाह से एक नजर डालने पर पता लगता है कि दुनिया में कम से कम 32 ट्रिलियन डॉलर सम्पदा पर टैक्स लगने से बचाया गया है। इस सम्पदा में रियल एस्टेट, कला-सम्पदा और जेवरात शामिल नहीं हैं। दुनिया के अमीरों ने पनामा, दुबई, मोनेको, स्विट्ज़रलैंड और केमैन द्वीप के टैक्स हेवनों में बनी ऐसी ऑफशोर कम्पनियों में पैसा रखा है, जो टैक्स चोरी करती हैं।

ऑफशोर कम्पनियां टैक्स बचाने तथा वित्तीय और कानूनी फायदे के लिए टैक्स हेवन देशों में गुप्त रूप से काम करती हैं। ये कम्पनियाँ कॉरपोरेट टैक्स, इनकम टैक्स, कैपिटल गेन टैक्स जैसे कई प्रकार के टैक्स से बच जाती हैं। पनामा में 3,50,000 से ज्यादा गोपनीय अंतरराष्ट्रीय कम्पनियाँ रजिस्टर्ड बताई जाती हैं।

स्विट्ज़रलैंड, हांगकांग, मॉरिशस, मोनेको, पनामा, अंडोरा, बहामास, बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, बेलीज, कैमेन आइलैंड, चैनल आइलैंड, कुक आइलैंड, लाइशेंश्टाइन जैसे देश टैक्स हेवन देशों की सूची में आते हैं। इन टैक्स हेवन के खिलाफ बने प्रेशर ग्रुप ‘टैक्स जस्टिस नेटवर्क’ की सन 2012 की रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में 21 ट्रिलियन से 32 ट्रिलियन के बीच की राशि टैक्स बचाकर रखी गई है।

आईसीआईजे

वैश्विक संस्था इंटरनेशनल कंसोर्शियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) का मुख्यालय वॉशिंगटन में है। यह अपनी सामग्री दुनिया के चुनींदा मीडिया हाउसों से साझा करती है। इनमें भारत का इंडियन एक्सप्रेस, ब्रिटेन का गार्डियन, बीबीसी पैनोरमा, पेरिस का ल मोंद, वॉशिंगटन पोस्ट वगैरह शामिल हैं। यह जानकारी करीब 600 पत्रकारों के साथ शेयर की गई है।

Sunday, October 3, 2021

जी-23 वाले क्या चाहते हैं?

 


कपिल सिब्बल ने यह कहकर कि पार्टी में इस समय कोई अध्यक्ष नहीं है, एक बड़ी और उत्तेजक बात कह दी है। वास्तव में सोनिया गांधी अध्यक्ष हैं, पर सिब्बल का आशय है कि यह जाग्रत अवस्था नहीं है। कपिल सिब्बल जी-23 में शामिल हैं और पिछले कुछ समय से सबसे ज्यादा मुखर भी हैं। वे पार्टी के भीतर सुधार चाहते हैं और गांधी परिवार को चुनौती भी देते रहते हैं। उन्होंने 29 सितम्बर को प्रेस कांफ्रेंस में कहा, हम जी-23 हैं, जी हुजूर-23 नहीं।

आज के हिन्दू में प्रोफाइल्स के तहत जी-23 के बारे में संदीप फूकन ने रोचक जानकारी दी है। इसके जवाब में चाँदनी चौक से आए कुछ लोगों ने उनके घर के बाहर नारेबाजी की और टमाटर फेंके। चाँदनी चौक, कपिल सिब्बल का चुनाव-क्षेत्र है।

कांग्रेस बनाम कांग्रेस के इस टकराव में गांधी परिवार के समर्थक मानते हैं कि संकट के समय में गांधी परिवार के कारण ही पार्टी जुड़ी रह सकती है, अन्यथा टूट जाएगी। जी-23 में गुलाम नबी आज़ाद, शशि थरूर, मनीष तिवारी, आनन्द शर्मा, मुकुल वासनिक, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चह्वाण, पीजे कुरियन, रेणुका चौधरी, मिलिन्द देवड़ा, जितिन प्रसाद, राजिन्दर कौर भट्टल, अखिलेश प्रसाद सिंह, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, कुलदीप शर्मा, योगानन्द शास्त्री, संदीप दीक्षित, अजय सिंह, विवेक तन्खा और कपिल सिब्बल के नाम हैं। जितिन प्रसाद पार्टी छोड़ चुके हैं और पीजे कुरियन ने खुद को इस ग्रुप से अलग कर लिया है।

हालांकि जी-23 से जुड़े नेताओं ने गांधी-नेहरू परिवार के प्रति अपनी वफादारी से इनकार नहीं किया है, पर वे इनके फैसलों, खासतौर से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के तौर-तरीकों के प्रति अपनी असहमति जताते रहते हैं। इन फैसलों में पंजाब का नवजोत सिद्धू से जुड़ा फैसला और कन्हैया कुमार का पार्टी में प्रवेश भी शामिल है।

पंजाब में कांग्रेस का पराभव

पंजाब से पैदा हुआ कांग्रेस पार्टी का संकट बड़ी शक्ल लेता जा रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू और अमरिंदर सिंह के विवाद को देखते हुए समझ में नहीं आ रहा है कि पार्टी के भीतर समुद्र-मंथन जैसी कोई योजना है या हालात नेतृत्व के काबू के बाहर हैंयह संकट पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले खड़ा हुआ है, इसलिए यह सवाल बनता है कि क्या नेतृत्व को इसका अंदेशा नहीं था? उसे सिद्धू से बड़ी उम्मीदें थीं, तो उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बनाया गया? कैप्टेन अमरिंदर सिंह जैसे बड़े नेता को हाशिए पर डालने की कोशिश क्यों की गई?

सब कुछ सोचकर हुआ है, तो देखना होगा कि आगे होता क्या है। अमरिंदर सिंह एक नई पार्टी बनाने की सोच रहे हैं। यह पार्टी पंजाब-केन्द्रित होगी या राष्ट्रीय स्तर पर नई कांग्रेस खड़ी होगी? कांग्रेस के एक और विभाजन की यह बेला तो नहीं? फिलहाल कुछ लोग कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक की उम्मीद कर रहे हैं, पर उस बैठक में क्या होगा? अगस्त 2020 में जब पहली बार जी-23 के पत्र का विवाद उछला था, तब कार्यसमिति की बैठक में क्या हुआ था? उस बैठक का निष्कर्ष था कि भाजपा से हमदर्दी रखने वालों का यह काम है। उसके बाद से राहुल गांधी इशारों में कई बार कह चुके हैं कि भाजपा से हमदर्दी रखने वाले जाएं और उससे लड़ने वालों का स्वागत है।

सिद्धू के हौसले

पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के फैसलों से नाराज नवजोत सिद्धू ने पहले इस्तीफा दिया और बाद में दोनों के बीच समझौता हो गया। पर इससे संदेश क्या गया? क्या सिद्धू किसी परिवर्तनकारी राजनीति को लेकर सामने आए हैं? मोटे तौर पर समझ में आता है कि कैप्टेन को बाहर करने के लिए बहानों की तलाश थी। सिद्धू जी ने खुद को कुछ ज्यादा वजनदार समझ लिया। बाद में उन्हें अपने वजन का सही अंदाज़ हो गया। पर क्या पार्टी ने अमरिंदर के वजन को सही आँका था?

नई कांग्रेस

कहा जा रहा है कि पार्टी विचारधारा और संगठन के स्तर पर नई शक्लो-सूरत के साथ सामने आने वाली है। इस शक्लो-सूरत को वीआईपी सलाहकार प्रशांत किशोर की सहायता से तैयार किया गया है। नौजवान छवि और वामपंथी जुमलों से भरे क्रांतिकारी विचार के साथ पार्टी मैदान में उतरने वाली है। कन्हैया कुमार के शामिल होने से भी इसका आभास होता है। पर क्या अपनों को धक्का देकर और बाहर वालों का स्वागत करके कोई पार्टी अपने प्रभाव को बढ़ा सकेगी? हाल के वर्षों में कांग्रेस की चुनावी विफलताएं कार्यकर्ता के कारण मिलीं हैं या नेतृत्व की वैचारिक धारणाओं के कारण? नए लोगों का स्वागत करके पार्टी जहाँ नई खिड़कियाँ खोल रही है, वहीं पुराने दरवाजे भी बन्द कर रही है। यह रणनीति उसपर भारी पड़ेगी।

Saturday, October 2, 2021

कांग्रेस पर भारी पड़ेगा पंजाब का संकट


पिछले महीने तक कांग्रेस पार्टी का पंजाब-संकट स्थानीय परिघटना लगती थी, जिसके निहितार्थ केवल उसी राज्य तक सीमित थे। पर अब लगता है कि यह संकट बड़ी शक्ल लेने वाला है और सम्भव है कि यह पार्टी के एक और बड़े विभाजन का आधार बने। इस वक्त दो बातें साफ हैं। एक, पार्टी का नेतृत्व किसके पास है, यह अस्पष्ट है। लगता है कि कमान राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के हाथों में है, पर औपचारिक रूप से उनके पद उन्हें हाईकमान साबित नहीं करते।

दूसरे पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराजगी व्यक्त करने लगे हैं। असंतुष्टों का एक तबका तैयार होता जा रहा है। कुछ लोगों ने अलग-अलग कारणों से पार्टी छोड़ी भी है। ज्यादातर की दिलचस्पी अपने करियर में है। इनमें खुशबू सुन्दर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, लुईज़िन्हो फलेरो, ललितेश त्रिपाठी, अभिजीत मुखर्जी वगैरह शामिल हैं।

पार्टी टूटेगी?

अभी तक मनीष तिवारी, गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और आनन्द शर्मा की आवाजें ही सुनाई पड़ती थीं, पर अब शशि थरूर और पी चिदम्बरम जैसे नेताओं की व्यथा कुछ कह रही है। लगता है कि पंजाब की जमीन से पार्टी के विभाजन की शुरुआत होने वाली है, जो देशव्यापी होगा।

पंजाब में नवजोत सिद्धू ने अपनी पाकिस्तान-परस्ती को कई बार व्यक्त किया और उन्हें ऊपर से प्रश्रय मिला या झिड़का नहीं गया। इसके विपरीत कैप्टेन अमरिंदर सिंह मानते हैं कि पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य में राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। वैचारिक स्तर पर पार्टी की लाइन स्पष्ट नहीं है। जो लाइन है, वह बीजेपी के विरोध की लाइन है। यह देखे बगैर कि बीजेपी की लाइन क्या है और क्यों है।

Friday, October 1, 2021

कब मिलेगा छुटकारा महामारी के इस दानव से?

कोरोना वायरस से उत्पन्न महामारी को इस साल के अंत तक दो साल पूरे हो जाएंगे, पर लगता नहीं कि इससे हमें छुटकारा मिलेगा। अभी तो तीसरी और चौथी लहरों की बात हो रही है। वैज्ञानिकों की मोटी राय है कि यह रोग सबको करीब से छू लेगा, तभी जाएगा। छूने का मतलब यह नहीं है कि सबको होगा। इसका मतलब है कि या तो वैक्सीनेशन से या संक्रमण से प्राप्त इम्यूनिटी ही सामान्य व्यक्ति को इस रोग का मुकाबला करने लायक बनाएगी। कुछ लोगों को दूसरी बार संक्रमण भी होगा। वैक्सीन लगने के बाद भी होगा। वायरस नहीं मिटेगा, पर उसका असर काफी कम हो जाएगा। हमारे शरीरों का प्राकृतिक प्रतिरक्षण बढ़ जाएगा।

डब्ल्यूएचओ के यूरोप मामलों के प्रमुख हैंस क्लूग ने महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों के परिणामों पर निराशा जाहिर की है। उनका मानना ​​​​है कि वायरस का कोई तत्काल इलाज नहीं है, क्योंकि वायरस के नए वेरिएंट हर्ड इम्युनिटी को हासिल करने की उम्मीदों को धराशायी कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक ने मई में कहा था कि जब टीकाकरण 70 प्रतिशत तक पूरा हो जाएगा तो ज्यादातर देशों में कोरोना वायरस महामारी खत्म हो जाएगी। ऐसा नहीं हुआ है और एक नई लहर का खतरा खड़ा है।

सहारा टीके का

विशेषज्ञ मानते हैं कि दुनिया की 90-95 फीसदी आबादी को टीका लग जाए, तो इसे रोका जा सकता है। ब्लूमबर्ग वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार करीब छह अरब डोज़ दुनिया भर में लगाई जा चुकी हैं। अमेरिका में 64, ईयू 67, ब्रिटेन 73, जर्मनी 67, फ्रांस 77, इटली 73, यूएई 84,  दक्षिण कोरिया 71, रूस 32, जापान 66 और भारत में करीब 44 फीसदी आबादी को कम से कम एक टीका लग गया है। अब दूसरी तरफ देखें। म्यांमार 9.4, बांग्लादेश 13.5, वियतनाम 28.6, इराक 10.7, अफगानिस्तान 2.6, सूडान 1.5, यमन 1.0, केमरून 1.5। बहुत से देशों में टीकाकरण शुरू ही नहीं हुआ है।